Category Archives: समाज

रतन टाटा : अच्छे पूँजीवाद का ‘पोस्टर बॉय’

जब टाटा की तुलना रिलायंस या अडानी से की जाती है तो कई ‘प्रगतिशील’ नाराज़ हो जाते हैं और दावा करते हैं कि टाटा समूह ने अद्वितीय नैतिक मानकों को बनाये रखा है और इसकी तुलना इन भ्रष्ट समूहों से नहीं की जा सकती। या तो ये उदारवादी घोर अज्ञानता में जी रहे होते हैं, या अपने पसन्दीदा ब्राण्डों के कारनामों को भूलने का सचेत प्रयास कर रहे होते हैं। आइए देखते हैं टाटा ग्रुप की कुछ उपलब्धियाँ।

अपराध को साम्प्रदायिक रंग देने की संघियों की कोशिश को जनता की एकजुटता ने फिर किया नाक़ाम!

पूरे इलाक़े में नशाखोरी बड़े पैमाने पर फैली हुई है। अक्सर नुक्कड़ चौराहों तक पर लम्पट तत्व छेड़खानी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। बहुत से लम्पट तो भाजपा-आम आदमी पार्टी तथा अन्य चुनावबाज़ पार्टियों से ही जुड़े होते हैं। इन पार्टियों के तमाम नेता इन गुण्डों को शह देते हैं, ताकि चुनाव के समय इनका इस्तेमाल कर सकें। इलाक़े में इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी कई बार बच्चियों व स्त्रियों से बलात्कार के मामले सामने आ चुके हैं। एक वर्ष पहले साक्षी हत्याकाण्ड एवं कुछ साल पहले पाँच वर्ष की बच्ची मुस्कान के साथ भी बलात्कार और हत्या की घटना सामने आयी थी।

बढ़ते स्त्री विरोधी अपराध और प्रतिरोध का रास्ता

स्‍त्री उत्पीड़न के पीछे असल वज़ह पूँजीवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था है जिसमें महिलाएँ दोहरी गुलामी का शिकार हैं। जब तक यह व्यवस्था है तब तक हम चाहे जितना ‘सेफ़ स्पेस’ बना लें, कराटे सीख लें, ‘राजनीतिक रूप से सही भाषा’ में बात करना सीख लें, पढाई कर लें, हमारी मुक्ति सम्भव नहीं है। इसके लिए ज़रूरी है कि इस पूँजीवादी व्यवस्था को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के लिए सड़कों पर एक जुझारू आन्दोलन खड़ा किया जाये। इस व्यवस्था का पूर्ण रूप से ख़ात्मा ही स्‍त्री मुक्ति की पहली अनिवार्य शर्त है। मज़दूर सत्ता की स्‍थापना और समाजवाद का निर्माण ही एक लम्‍बी प्रक्रिया में क़दम-दर-क़दम मज़दूरों और उनके अंग की तौर पर स्त्रियों को भी मुक्‍त कर सकता है। पितृसत्ता वर्गों के साथ पैदा हुई थी और यह वर्गों के साथ ही ख़त्म हो सकती है। यह दूरगामी लक्ष्‍य है, यह लम्‍बी लड़ाई है, लेकिन इसकी शुरुआत हमें करनी ही होगी।

अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण में उप वर्गीकरण – मेहनतकशों को आपस में बाँटने का एक नया हथकण्डा !!

सच्चाई यह है कि जब नवउदारवादी दौर में सरकारी नौकरियाँ ही नहीं हैं, तो किसी जाति को औपचारिक तौर पर कितना आरक्षण दिया जाता है, दलितों के आरक्षण के बीच में कितना और कैसा उपवर्गीकरण कर दिया जाता है, उससे इस समूचे वर्ग की नियति पर, उनके हालात पर कोई गुणात्मक फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। जब नौकरियों की पैदा होने की दर ही शून्य के निकट है और अगर उसे काम करने योग्य आबादी में होने वाली बढ़ोत्तरी के सापेक्ष रखें, तो नकारात्मक में है, तो फिर इन श्रेणीकरणों और वर्गीकरणों को आरक्षण की लागू नीति में घुसा देने से किसे क्या हासिल हो जायेगा? पूँजीवादी व्यवस्था में नगण्य होते अवसरों के लिए दलित मेहनतकश व आम मध्यवर्गीय जनता में ही आपस में सिर-फुटौव्वल होगा, दलित जातियों के बीच ही आपस में विभाजन की रेखाएँ खिंच जायेंगी और इसका पूरा फ़ायदा देश के हुक़्मरान उठायेंगे।

काँवड़ यात्रियों के बहाने दुकानों पर नाम लिखने का योगी सरकार का हिटलरी फ़रमान

मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में काँवड़ यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले सभी मुसलमान मालिकों के होटल बन्द करा दिये गये थे। इनमें वे शाकाहारी होटल भी शामिल थे जहाँ खाने में प्याज-लहसुन भी नहीं डाला जाता था। इस बेहूदा आदेश के पीछे मुस्लिम दुकानदारों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे स्वामी यशवीर नाम के एक ढोंगी बाबा का हाथ है। इस घोर साम्प्रदायिक व्यक्ति ने आरोप लगया है कि “मुसलमान लोग खाने में थूक रहे हैं और मूत्र भी कर रहे हैं।” ऐसे अपराधी की जगह सीधे जेल में होनी चाहिए थी, लेकिन फ़ासिस्ट भाजपा उसे सर-आँखों पर बैठाकर उसके वाहियात आरोपों के आधार पर लोगों का कारोबार बन्द करा रही है। इसके ज़रिये काँवड़ के नाम पर रास्ते में गुण्डागर्दी करने व साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करने वालो के लिए राह आसान बना रही है कि वे मुस्लिम नामों की पहचान करके उन दुकानों को निशाना बनायें। संघ परिवार व उसके अनुषंगी संगठनों द्वारा वैसे भी मुस्लिम दुकानदारों से हिन्दुओं द्वारा सामान न खरीदने का अभियान लम्बे समय से चलाया जाता रहा है।

बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराधों के पैदा होने की ज़मीन की शिनाख़्त करनी होगी!

कोई दिन नहीं जाता जब देश के किसी न किसी कोने में कोई न कोई बच्ची हवस का शिकार न होती हो। कहीं शिक्षक छात्राओं के उत्पीड़न में शामिल दिखते हैं, कहीं बालिका गृहों में बच्चियों पर यौन हिंसा होती है, कहीं झूठी शान के लिए लड़कियों को मार दिया जाता है, कहीं सत्ता में बैठे लोग स्त्रियों को नोचते हैं, कहीं जातीय या धार्मिक दंगों में औरतों पर ज़ुल्म होता है तो कहीं पर पुलिस और फ़ौज तक की वर्दी में छिपे भेड़िये यौन हिंसा में लिप्त पाये जाते हैं! ऐसा कोई क्षण नहीं बीतता जब बलात्कार या छेड़छाड़ की कोई घटना न होती हो! कोई भी पार्टी सत्ता में आ जाये किन्तु स्त्री विरोधी अपराध कम होने के बजाय लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं मगर फ़ासीवादी भाजपा के शासनकाल में बर्बर स्त्री-विरोधी अपराधों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है।

नशे में मदहोश अमीरजादों की चमचमाती गाड़ियों के चक्कों से पिसकर ख़ून से लथपथ होती आम ज़िन्दगी

दौलत के नशे में डूबे यह अमीरजादे अपने पोर्शे, बीएमडब्ल्यू और लक्ज़री गाड़ियों में बैठने के बाद, सड़क पर चलने वाले इन्सान को कीड़े-मकोड़े से ज़्यादा कुछ नहीं समझते और मानते हैं कि वे उन्हें कीड़ों-मकोड़ों के ही समान कुचल सकते हैं। उन्हें पता होता है कि इसके बाद यह बेहद आसानी से छूट भी जाएँगे। भला ऐसा हो भी क्यूँ नहीं? पैसे और बहुबल के दम पर पुलिस–न्यायपालिका–नेता का गठजोड़ जो इनके पीछे खड़ा रहता है! इसके तहत ‘खाओ-पियो-ऐश करो’ की संस्कृति व दौलत के नशे में, घमण्ड से चूर यह धन्नासेठ वर्ग सबसे क्रूरतम घटनाओं को अंजाम देता रहता है। पूरी राज्य व्यवस्था इन अमीरजादों के हाथों में कठपुतली की तरह काम करती है। इनको सजा कहाँ मिलेगी? जेलों में सड़ती है बस आम गरीब जनता।

प्रज्वल रेवन्ना सेक्स काण्ड – “धर्मध्‍वजाधारी” और “संस्कारी” भाजपाइयों द्वारा बलात्कारियों को प्रश्रय और संरक्षण देने की मुहिम का हुआ पर्दाफा़श!

शायद ही ऐसा कोई माह बीतता हो जब किसी बड़े भाजपाई नेता या उसके सहयोगी दलों के नेताओं का नाम स्त्री-विरोधी अपराधों में नहीं आता हो। भाजपा सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल में बारम्‍बार इस प्रकार की घटनाएँ सामने आती रही हैं जिसमें कि ख़ुद भाजपा नेता ऐसे स्त्री-विरोधी अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। दूसरी तरफ़, तमाम बलात्कारियों को संरक्षण देने और बढ़ावा देने के काम में भाजपा सरकार निरन्‍तर संलिप्त पायी जाती रही है। लेकिन अभी कर्नाटक में जो यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामले सामने आये हैं उसकी वीभत्सता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कर्नाटक के हासन से वर्तमान जद(से) सांसद और भूतपूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवीगोड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना ने क़रीब 2800 महिलाओं का न सिर्फ़ बलात्कार किया बल्कि अपने इन कुकृत्यों को रिकॉर्ड किया! ऐसे क़रीब 2976 वीडियो मौजूद हैं। यह वीडियो प्रज्वल ने इसलिए बनाये ताकि आगे इन महिलाओं को ब्लैकमेल कर सके। जिन महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, उनमें से कई महिलाएँ ख़ुद इसी की पार्टी की सदस्य थीं और कई तो ग़रीब परिवारों से आती थीं, जो मदद के सिलसिले में इस दरिन्दे से मिलने पहुँची थीं। इसने राज्य की महिला अधिकारियों को भी अपनी हवस का शिकार बनाया है। जो वीडियो सामने आये हैं, उनमें उस स्तर की यौन हिंसा है, जिसका ज़िक्र तक नहीं किया जा सकता है! घटना के बाहर आने पर पता चला कि यह घिनौने कुकृत्य कई सालों से जारी थे।

सामाजिक-आर्थिक विषमता दूर करने के कांग्रेस के ढपोरशंखी वायदे और मोदी की बौखलाहट

जनता से किये गये बड़े-बड़े ढपोरशंखी वायदे भारतीय बुर्जुआ चुनावी राजनीति और सम्‍भवत: किसी हद तक हर देश में पूँजीवादी राजनीति की चारित्रिक विशेषता है। लेकिन भारत में तो यह ग़ज़ब तरीके से होता है। पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक में हर प्रत्याशी अपने प्रतिद्वन्दी से बढ़कर ही वायदे करता है, चाहे उसका सत्य से कोई लेना-देना हो या न हो। 18वीं लोकसभा के चुनाव में भी इसी परिपाटी का पालन हो रहा है। मज़ेदार बात है कि ऐसे वायदे सत्तासीन पार्टी की तरफ़ से नहीं बल्कि विपक्ष की तरफ़ से ज़्यादा हो रहे हैं। सत्‍तासीन पार्टी के पास तो 10 साल के कुशासन के बाद किसी ठोस मुद्दे पर कोई ठोस वायदा करने की स्थिति ही नहीं बची है, तो मोदी सरकार बस साम्‍प्रदायिक उन्‍माद फैलाने वाले झूठ और ग़लतबयानियों का सहारा ले रही है। लेकिन ‘इण्डिया’ गठबन्‍धन ठोस मुद्दों पर बात अवश्‍य कर रहा है। लेकिन वायदे ऐसे कर रहा है, जो भारतीय पूँजीवाद की आर्थिक सेहत को देखते हुए व्‍यावहारिक नहीं लगते।

सरकार के ग़रीबी हटाने के दावे की असलियत

मोदी सरकार को आँकड़ों में हेर-फेर करने और उसे दबाने में महारत हासिल है।  भारत में ग़रीबी सम्बन्धित आधिकारिक आँकड़ा पहले नेशनल सैम्पल सर्वे जारी करता था। पर इसके द्वारा जारी किया गया अन्तिम आँकड़ा 2011-12 का ही है। नेशनल सैम्पल सर्वे द्वारा 2017-18 में जो आँकड़ा जारी किया गया था उसे सरकार ने खुद ही ग़लत कह कर रद्द कर दिया क्योंकि उन आँकड़ों से से मोदी सरकार के दावों की पोल खुल रही थी।