Category Archives: स्‍त्री मज़दूर

कुसुमपुर पहाड़ी में अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस पर सांस्कृतिक संध्या : एक शाम संघर्षों के नाम

दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन की ओर से 8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कुसुमपुर पहाड़ी के मद्रासी मन्दिर पार्क में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। कामगार स्त्री दिवस के महत्व और आज के दौर में इसकी प्रासंगिकता को लेकर दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन की ओर से 4 मार्च से कुसुमपुर पहाड़ी की गलियों में अभियान चलाया जा रहा था और मज़दूरों-मेहनतकशों को इस अवसर पर होने वाले सांस्कृतिक संध्या की सूचना दी जा रही थी। कुसुमपुर के स्त्री व पुरुष मज़दूरों को बताया गया कि कार्यक्रम में नाटक और गीतों के साथ दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन की माँगों और कामों पर भी चर्चा होगी। अभियान के दौरान मज़दूरों ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सहयोग भी किया।

अन्तरराष्ट्रीय कामगार स्त्री दिवस के अवसर पर आँगनवाड़ीकर्मियों ने मनाया ‘संघर्ष का उत्सव’!

आज आँगनवाड़ीकर्मी देशभर में कर्मचारी के दर्जे का हक़ हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर गुजरात हाई कोर्ट ने आँगनवाड़ी कर्मियों के पक्ष में फ़ैसले सुनाये हैं। इस संघर्ष में दिल्ली की महिलाकर्मी भी शामिल हैं। कर्मचारी के दर्जे के अधिकार के इस संघर्ष में ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ एक नये अध्याय की शुरुआत करने जा रही है। इस मुद्दे पर यूनियन की तरफ़ से जल्द ही दिल्ली हाई कोर्ट में एक केस दायर किया जायेगा। अदलात में संघर्ष के साथ सड़कों का संघर्ष भी इस मसले पर जारी रहेगा।

मनरेगा स्त्री मज़दूरों का नारा : पूरे साल काम दो! काम के पूरे दाम दो!! काम नहीं तो बेरोज़गारी भत्ता दो!

मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के कारण मनरेगा के बजट में लगातार कटौती की जा रही है। बजट कटौती का सीधा मतलब श्रम दिवस के कम होने और रोज़गार के अवसरों में भी कमी है। कैथल में मनरेगा भ्रष्टाचार से भी जाहिर है कि बजट का एक बड़ा हिस्सा भी भ्रष्ट अफ़सरशाही की जेब में चला जाता है। यूनियन से अजय ने बताया कि ज़ाहिर है कि मनरेगा की योजना को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाकर लागू करने से ही गाँव के ग़रीबों की सारी समस्याएँ हल नहीं हो जायेंगी और मनरेगा की पूरी योजना ही गाँव के ग़रीबों को बस भुखमरी रेखा पर बनाये रखने का काम ही कर सकती है। ज़रूरत इस बात की है कि सच्चे मायने में रोज़गार गारण्टी, पर्याप्त न्यूनतम मज़दूरी, सभी श्रम अधिकारों समेत गाँव के ग़रीबों को प्राथमिक से उच्च स्तर तक समान व निशुल्क शिक्षा, समान, स्तरीय व निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएँ, आवास की सरकार सुविधा, और सामाजिक सुरक्षा मुहैया करायी जाय। यह काम मौजूद पूँजीवादी व्यवस्था में कोई सरकार नहीं करती क्योंकि पूँजीपतियों की सेवा करने से उन्हें फुरसत ही कहाँ होती है! ग़रीबों की सुध लेने का काम मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था नहीं करने वाली। लेकिन तात्कालिक माँग के तौर पर मनरेगा में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की लड़ाई मज़दूरों के एक रोज़मर्रा के हक़ की लड़ाई है, जिसे आगे बढ़ाने का काम यूनियन कर रही है।

स्त्री मुक्ति आन्दोलन को सुधारवाद, संशोधनवाद, नारीवाद और एनजीओपन्थ की राजनीति से बाहर लाना होगा

स्त्रियाँ आज पूँजीवाद और पूँजीवादी पितृसत्ता की दोहरी गुलामी झेल रही हैं। एक तरफ पूँजीवादी व्यवस्था सस्ती स्त्री-श्रमशक्ति के दोहन के ज़रिये अपना मुनाफ़ा बढ़ा रही है वहीं दूसरी तरफ पूँजीवादी पितृसत्तात्मक मानसिकता ने स्त्रियों को भी एक बिकाऊ माल बनाकर बाज़ार में खड़ा कर दिया है। आज स्त्री सम्मान, बराबरी, न्याय, नारीशक्ति, नारी सशक्तीकरण के कानफोड़ू शोर के पीछे जो असली सवाल छिपा दिया जा रहा है वह यह है कि आज भी समान काम के लिए स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में 67 फ़ीसदी मेहनताना ही मिलता है। पीस रेट पर होने वाले काम में अधिकांशतः स्त्रि‍याँ काम करती हैं, जहाँ बेहद कम मेहनताने पर 12 से 14 घण्टे काम कराया जाता हैं। इन्हें कार्यस्थल पर सुरक्षा, बीमा, मेडिकल जैसी कोई सुविधा हासिल नहीं होती है। पूँजीवादी व्यवस्था में स्त्री कार्यबल एक प्रकार की औद्योगिक रिज़र्व सेना का निर्माण करती है। समृद्धि के दौर में, स्त्रियों को बड़े पैमाने पर उद्योगों में काम पर रखा जाता है जैसा कि 70 के दशक तक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों में तेज़ी के दौर में देखा गया। पूँजीपति स्त्रि‍यों के सस्ते श्रम के बूते पुरुष मज़दूरों के वेतन को भी अधिकतम सम्भव स्तर तक कम करने का प्रयत्न करता है।

महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय को आवण्टन बजट में दिखावटी वृद्धि : हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और!

एक तरफ़ मोदी सरकार सक्षम आँगनवाड़ी के तहत आँगनवाड़ी केन्द्रों पर वाईफ़ाई, एलईडी स्क्रीन, वॉटर प्यूरिफ़ायर इत्यादि लगाने की योजना बना रही है जबकि असलियत में इन केन्द्रों पर बुनियादी सुविधाएँ भी मौजूद नहीं! मोदी जी का “गुजरात मॉडल” यही है! कहाँ दिल्ली के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा ने दिल्लीवासियों को 500 रुपये में गैस सिलिण्डर और होली और दिवाली में मुफ़्त सिलिण्डर की रेवड़ी देने के जुमले फेंक रही थी, और कहाँ वित्त मन्त्री महोदया एलपीजी सब्सिडी के आबण्टन में 17.7 प्रतिशत की कटौती कर रही थीं!

क्रान्तिकारी मनरेगा यूनियन (हरियाणा) द्वारा सदस्यता कार्ड जारी किये गये और आगामी कार्य योजना बनायी गयी

कलायत, कैथल में मनरेगा के काम की जाँच-पड़ताल में पता चला है कि यहाँ किसी भी मज़दूर परिवार को पूरे 100 दिन का रोज़गार नहीं मिलता है, जैसा कि क़ानूनन उसे मनरेगा के तहत मिलना चाहिए। असल में सरकारी क़ानून के तहत 1 वर्ष में एक मज़दूर परिवार को 100 दिन के रोज़गार की गारण्टी मिलना चाहिए। साथ ही क़ानूनन रोज़गार के आवदेन के 15 दिन के भीतर काम देने या काम ना देने की सूरत में बेरोज़गारी भत्ता देने की बात कही गयी है।

दिल्ली के करावल नगर में जारी बादाम मज़दूरों का जुझारू संघर्ष : एक रिपोर्ट

हड़ताल मज़दूरों को सिखाती है कि मालिकों की शक्ति तथा मज़दूरों की शक्ति किसमें निहित होती है; वह उन्हें केवल अपने मालिक और केवल अपने साथियों के बारे में ही नहीं, वरन तमाम मालिकों, पूँजीपतियों के पूरे वर्ग, मज़दूरों के पूरे वर्ग के बारे में सोचना सिखाती है। जब किसी फ़ैक्टरी का मालिक, जिसने मज़दूरों की कई पीढ़ियों के परिश्रम के बल पर करोड़ों की धनराशि जमा की है, मज़दूरी में मामूली वृद्धि करने से इन्कार करता है, यही नहीं, उसे घटाने का प्रयत्न तक करता है और मज़दूरों द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में हज़ारों भूखे परिवारों को सड़कों पर धकेल देता है, तो मज़दूरों के सामने यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि पूँजीपति वर्ग समग्र रूप में समग्र मज़दूर वर्ग का दुश्मन है और मज़दूर केवल अपने ऊपर और अपनी संयुक्त कार्रवाई पर ही भरोसा कर सकते हैं।

स्त्रियों के शोषण-उत्पीड़न-बलात्कार में लिप्त दिल्ली सरकार का महिला एवं बाल विकास विभाग!

महिला सशक्तीकरण की दुहाई देने वाले दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का स्त्री-विरोधी चरित्र पहले ही उजागर हो चुका है, और अब प्रेमोदय खाखा प्रकरण ने इनकी घिनौनी और सड़ी हुई मानसिकता को नई ऊँचाई पर ले जाने का काम किया है। महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक प्रेमोदय खाखा को बीते 20 अगस्त को एक नाबालिग से रेप के आरोप में पकड़ा गया है। मालूम हो कि वह बच्ची अपने पिता के निधन के बाद उनके दोस्त यानी प्रेमोदय खाखा के घर पर रह रही थी जहाँ आरोपी ने उसका कई बार बलात्कार किया।

आँगनवाड़ी कर्मियों को ग़ैरक़ानूनी रूप से टर्मिनेट करने वाले केजरीवाल के लाभार्थियों के लिए दावे झूठे हैं!!!

पहले से ही काम के बोझ तले दबी हुई आँगनवाड़ीकर्मियों से अब शिक्षक का काम भी लेकर उन्हें “स्वयंसेविकाओं” के अनुरूप मानदेय थमाया जायेगा। यही आँगनवाड़ीकर्मी जब अपने केन्द्रों पर बँटने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठा देंगी तो इन्हें बर्ख़ास्त कर दिया जाएगा, वाजिब मेहनताना पाने का संघर्ष करेंगी तो उसे “हिंसक” घोषित कर दिया जाएगा। ज़ाहिरा तौर पर, समेकित बाल विकास परियोजना के लाभार्थियों को लेकर केजरीवाल की चिन्ता महज़ दिखावा है।

दिल्ली नगर निगम चुनाव में आँगनवाड़ीकर्मियों का ‘आप’ और ‘भाजपा’ के ख़िलाफ़ व्यापक बहिष्कार अभियान! 

दिल्ली में 4 दिसम्बर को होने वाले निगम चुनाव के मद्देनज़र दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में घोषणा की थी कि दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी इस बार मज़दूर-महिला विरोधी भाजपा और आम आदमी पार्टी का पूर्ण बहिष्कार करेंगी। यह बहिष्कार सिर्फ़ राजधानी की 22,000 आँगनवाड़ीकर्मी और उनके परिवार ही नहीं कर रहे हैं बल्कि आँगनवाड़ीकर्मी अपने लाभार्थियों से और दिल्ली की जनता से भी यह अपील कर रही हैं। इस दौरान नज़फ़गढ़, सीमापुरी से लेकर पहाड़गंज, जाफ़राबाद व अन्य कई इलाक़ों में महिलाकर्मियों ने व्यापक और सघन अभियान चलाते हुए दिल्ली की जनता के सामने इन दोनों ही चुनावबाज़ पार्टियों के झूठ और फ़रेब को नंगा किया।