लाभार्थियों के फ़ेशियल रिकॉग्निशन व ई-केवाईसी के ज़रिये जनता की निगरानी और आँगनवाड़ीकर्मियों पर काम का बोझ बढ़ाती मोदी सरकार!

प्रियम्बदा

भाजपा सरकार के महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय द्वारा पिछले दिनों एक अधिसूचना जारी की गयी है। इसके तहत देशभर में आँगनवाड़ी केन्द्रों के ज़रिये मिलने वाली योजनाओं के लाभार्थियों के लिए फ़ेशियल रिकॉगनिशन और ई-केवाईसी करवाना अनिवार्य कर दिया गया है।

इस अधिसूचना के तहत 1 जुलाई 2025 से आँगनवाड़ी केन्द्रों पर आने वाले 3 से 6 साल के बच्चों की उपस्थिति से लेकर उनको हर रोज़ दिये जाने वाले पोषाहार की मात्रा को भी ‘पोषण ट्रैकर एप’ पर अपलोड करना अनिवार्य कर दिया गया है। मोदी जी के “डिजिटल इण्डिया” में पोषाहार की गुणवत्ता को भी अपलोड करने का कोई उपाय होता तो क्या ही बात होती! यह ‘फ़ेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम’ न तो लाभार्थियों के हक़ में हैं और न ही आँगनवाड़ीकर्मियों के। कैसे, आइए देखते हैं।

सरकार ने अब सभी लाभार्थियों के लिए फ़ेस रिकॉग्निशन के ज़रिए पंजीकरण कराना ज़रूरी बना दिया है। इसके लिए ‘पोषण ट्रैकर ऐप’ में मौजूद ‘सिटीजन मॉड्यूल’ के ज़रिये, कहने के लिए, लाभार्थी के पास ख़ुद भी अपना पंजीकरण करने का भी विकल्प है। लेकिन सवाल यह है कि जिस ऐप का इस्तेमाल करने में ख़ुद आँगनवाड़ीकर्मी परेशानहाल हो जाती हैं, उसका इस्तेमाल लाभार्थी कितना कर पायेंगे?! ‘पोषण ट्रैकर एप’ के यूज़र इण्टरफ़ेस और तकनीकी समस्याओं के बारे में देशभर की आँगनवाड़ीकर्मियों ने सवाल खड़े किये हैं। दूसरा, समेकित बाल विकास परियोजना के तहत दी जा रही सेवाओं का लाभ लेने वाले ज़्यादातर लोगों के पास या तो स्मार्टफ़ोन नहीं होते हैं या वे हर महीने महँगे इण्टरनेट बिल भरने की क्षमता नहीं रखते हैं। एक सर्वे के अनुसार देश की सबसे ग़रीब आबादी की 33 प्रतिशत महिलाओं (जो समेकित बाल विकास परियोजना की लाभार्थी हैं या लाभार्थी बच्चों की घर में मुख्य रूप से देखभाल करती हैं) के पास स्मार्टफ़ोन नहीं है और 66 प्रतिशत महिलाओं ने इण्टरनेट सेवा का इस्तेमाल नहीं किया था। इन हालात में लाभार्थियों से स्वयं पंजीकरण की उम्मीद करना एक भोंडा मज़ाक नहीं है तो और क्या है? यह वास्तव में, लाभार्थियों को लाभ से वंचित कर देने की योजना है।

फ़ेशियल रिकॉगनिशन और ई-केवाईसी अनिवार्य बनाने का दूसरा पहलू यह भी है कि बड़े पैमाने पर लाभार्थियों की निजी जानकारी सरकार इकट्ठा करेगी जो नागरिकों की निजता का हनन ही होगा। 2023 में एक अमरीकी साइबर फ़र्म ने खुलासा किया था कि 81.5 करोड़ भारतियों के आधार कार्ड के निजी विवरण लीक कर दिये गये थे। ऐसे में फ़ेशियल रिकॉगनिशन और ई-केवाईसी के तहत जुटायी जा रही जानकारी के सुरक्षा की क्या गारण्टी होगी?

इस अधिसूचना के आँगनवाड़ी कर्मियों पर होने वाले असर की बात करें तो उनके काम का बोझ और बढ़ जाएगा, और इसके साथ बढ़ेगा उनका शोषण। आँगनवाड़ीकर्मियों को मुहैया किये गये स्मार्टफ़ोन हों या ‘पोषणट्रैकर ऐप’ हों, सरकार के “डिजिटल इण्डिया” के गुलाबी सपने से इन दोनों की हक़ीक़त कोसों दूर है। सरकार महिलाकर्मियों से डिजिटल काम करवाने में कोई चूक नहीं चाहती है, लेकिन जब इण्टरनेट बिल के समय से भुगतान की बात आती है, तब सरकार अपने हाथ खड़े कर देती है। दूसरा, ‘पोषण ट्रैकर ऐप’ को लेकर हमेशा ही महिलकर्मियों को दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा है – कई बार ऐप खुलता नहीं है, वज़न और लम्बाई के डेटा नहीं लेता है; और अब एक ऐसे एप में सरकार ने फ़ेशियल रिकॉगनिशन भी ज़रूरी बना दिया है। हालाँकि इसे अनिवार्य हाल में ही किया गया है लेकिन मोटे तौर पर इस योजना को दिल्ली सहित देश भर में पहले ही लागू कर दिया गया था। आँगनवाड़ीकर्मियों ने इसकी शिकायत भी की कि अक्सर ही फ़ेशियल रिकॉगनिशन तकनीकी दिक़्क़तों की वजह से लाभार्थी को पहचानने से इनकार कर देता है। कहने का अर्थ यह कि यदि किसी आँगनवाड़ी केन्द्र पर लाभार्थी पोषाहार ले लेते हैं लेकिन उनका फ़ेशियल वेरिफ़िकेशन फ़ेल हो जाता है, तो उन्हें अनुपस्थित माना जाएगा। इसकी ज़िम्मेदारी किसके कन्धे पर आयेगी? आँगनवाड़ीकर्मियों के! वैसे ही आँगनवाड़ीकर्मी ‘पोषण ट्रैकर एप’ पर अपनी तय समयसीमा के बाद काम करने के लिए मजबूर थीं, अब उनके लिए नयी सिरदर्दी होगी लाभार्थियों को पोषाहार देने के बाद उनकी तस्वीर को एप पर अपलोड करना! कई जगहों पर एक ही लाभार्थी के फ़ेस रिकॉग्निशन में त्रुटि दिखाने की वजह से उन्हें बार-बार आँगनवाड़ी केन्द्रों के चक्कर लगाने पड़ते हैं चाहे वे गर्भवती महिलाएँ हो, स्तनपान कराने वाली माएँ हो या फिर 0-6 साल के छोटे बच्चे हों।

समेकित बाल विकास परियोजना का घोषित मक़सद ज़रूरतमन्द लोगों तक आवश्यक सुविधाएँ और पोषाहार पहुँचाने का है। इसे डिजिटल करना न केवल आँगनवाड़ीकर्मियों का काम बढ़ाना होगा बल्कि उस ज़रूरतमन्द आबादी तक इस परियोजना की पहुँच को ही सीमित कर देना होगा। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन सरकार के इस क़दम का विरोध करती है। हम माँग करते हैं कि :

  • फ़ेशियल रिकॉगनिशन सिस्टम व ई-केवाईसी को रद्द किया जाए।
  • आँगनवाड़ीकर्मियों को बेहतर स्मार्टफ़ोन मुहैया किये जाएँ।
  • स्मार्टफ़ोन के लिए बिल का भुगतान समय से किया जाए।
  • ‘पोषण ट्रैकर एप’ को दुरुस्त किया जाए व उपयोग में आसान बनाया जाए।

 

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2025

 

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