यह किसी से छिपा नहीं है की कैसे 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही, इस फ़ासीवादी मोदी सरकार ने, जनता के पैसों पर चलने वाले संसद से, जनता के जीवन से जुड़े मुद्दों को गायब किया है। इसका ताज़ा उदाहरण अभी मणिपुर घटना के रूप में सामने आया। मणिपुर में जो भी हुआ वह एक इन्साफपसन्द समाज के माथे पर कलंक से कम नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी गुण्डा वाहिनियों तथा बीजेपी सरकार द्वारा दो समुदायों के बीच दंगे कराए गए,महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया गया और सामूहिक बलात्कार किया गया। इस घटना पर प्रधानमन्त्री हमेशा की तरह चुप्पी मारकर बैठे रहे। चौतरफा आलोचना होने के बाद संसद में 2 घण्टे के अपने लम्बे चौड़े लफ़्फ़ाज़ी भरे भाषण में प्रधानमन्त्री मोदी ने मात्र 2 मिनट मणिपुर की घटना पर बात की। हालाँकि यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। 2014 के बाद से ही संसद मोदी जी के भाषणबाजी का अड्डा बना हुआ है। इसी क्रम में बीजेपी के नेता संसद में ऐसी तमाम हरकतें कर चुके हैं जिससे, इस पार्टी का फ़ासीवादी चरित्र उजागर हो चुका है। “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” की डींगे हाँकने वाली इसी सरकार के कर्नाटक के दो नेता और त्रिपुरा का एक नेता संसद में बैठकर अश्लील फिल्में देखते हुए पकड़े गये थे।