Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

पेट्रोल में इथेनॉल की मिलावट के नाम पर भाजपा ने दिया एक और “राष्ट्रवादी” लूट को अंजाम!

निखिल गडकरी की कम्पनी ‘सी.आई.ए.एन एग्रो’ ने 2024 में इथेनॉल सेक्टर में क़दम रखा। इससे पहले यह मसाला और खाने के तेल बेचने वाली कम्पनी थी। 2024 में कम्पनी का टर्नओवर 171 करोड़ था, जोकि 2025 में बढ़कर 1029 करोड़ हो गया। इस कम्पनी के शेयर की क़ीमत जनवरी, 2025 में 41 रुपये थी, जो कि अब बढ़कर 850 रुपये से अधिक हो गयी है यानी इनकी क़ीमतों में 552 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सिर्फ़ एक साल में यह कम्पनी इथेनॉल उत्पादन में देश की सबसे बड़ी कम्पनी बन चुकी है। यही है भाजपा के नेता-मन्त्रियों की “राष्ट्रवादी” लूट!

नेपाल में युवाओं की बग़ावत के बाद केपी शर्मा ओली की भ्रष्ट सत्ता का पतन

नेपाल के युवाओं का विद्रोह सिर्फ़ सत्तारूढ़ संशोधनवादी पार्टी या उसके नेताओं के ख़िलाफ़ ही नहीं बल्कि उन सभी पार्टियो व नेताओं एवं धन्नासेठों के ख़िलाफ़ था जिन्होंने पिछले 2 दशकों के दौरान सत्ता में भागीदारी की या जो सत्ता के निकट रहे हैं। यही वजह है कि प्रदर्शनकारियों के निशाने पर संसद, प्रधानमन्त्री निवास, शासकीय व प्रशासनिक मुख्यालय, उच्चतम न्यायालय के अलावा तमाम बड़ी पार्टियों के कार्यालय और उनके नेताओं के आवास भी थे जिनमें पाँच बार नेपाल के प्रधानमन्त्री रह चुके शेर बहादुर देउबा और माओवादी नेता व पूर्व प्रधानमन्त्री प्रचण्ड के आवास भी शामिल थे। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू की कई बहुमंज़िला व्यावसायिक इमारतों और आलीशान होटलों में भी आग लगा दी जो धनाढ्यता का प्रतीक थीं। इस प्रकार यह बग़ावत वस्तुत: समूचे पूँजीवादी निज़ाम के ख़िलाफ़ थी।

अमेरिकी टैरिफ़ बढ़ने के बाद कपड़ा उद्योग में बढ़ रही मज़दूरों की छँटनी

टैरिफ़ लगने के बाद कपड़ा उद्योग के मज़दूरों की स्थिति और अधिक बदहाल हो गयी है। एक तरफ़ तो अधिकतर कम्पनियों में से आधे मज़दूरों को बिना नोटिस दिये काम से निकाला जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ़ बहुत से मज़दूरों को बिना वेतन काम से कई दिनों की छुट्टी दी जा रही है। जिन्हें काम से निकाला नहीं गया, उनकी 8 घण्टे की शिफ़्ट चल रही है, जिस कारण उन्हे 8-9 हज़ार वेतन ही मिल रहा है, जो कि आज के महँगाई के दौर में नाकाफ़ी है। सालों तक कपड़ा लाइन में काम कर चुके मज़दूरों को अब किसी और फैक्ट्री में भी काम नहीं मिल रहा है। अलग-अलग राज्यों से काम करने आये मज़दूरों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। नौकरी जाने या बिना वेतन के छुट्टी मिलने के कारण मज़दूरों को मकान का किराये देने से लेकर राशन लेने व घर का ख़र्च चलाने के लिए बेहद मशक्क़त करना पड़ रहा है। ऐसे में यह साफ़ हो जाता है कि टैरिफ़ बढ़ने से सबसे अधिक गाज मज़दूरों पर ही गिरी है।

जीएसटी 2.0 : पाँव के नीचे से ज़मीन खिसकती देखकर मोदी-शाह सरकार द्वारा जनता के साथ एक और धोखाधड़ी

सच तो यह है कि जीएसटी में “सुधार” से कोई बुनियादी फ़र्क नहीं आयेगा और महँगाई दर में मामूली-सा अन्‍तर आयेगा, जबकि ज़रूरत यह थी कि इन अप्रत्‍यक्ष करों को समाप्‍त या लगभग समाप्‍त किया जाता, विशेष तौर पर उन वस्‍तुओं और सेवाओं पर जिनका उपयोग आम तौर पर आम मेहनतकश जनता करती है। शिक्षा, चिक‍ित्‍सा, आदि बुनियादी सुविधाओं और उनसे जुड़ी वस्‍तुओं व सेवाओं पर तो जीएसटी लगाने का कोई अर्थ ही नहीं है। मोदी सरकार ने उन्‍हें ख़त्‍म करने के बजाय उनमें मामूली-सी कमी की है और इसी का डंका बजाकर श्रेय लेने की कोशिश कर रही है।

विश्व की “चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” के शोर के पीछे की सच्चाई

जीडीपी का बढ़ना किसी भी देश की आर्थिक स्थिति के ठीक होने का सूचक नहीं है। क्योंकि इससे इस बात का पता नहीं चलता कि देश में पैदा होने वाली कुल सम्पदा का कितना हिस्सा देश के बड़े धनपशु हड़प लेते हैं और देश की आम मेहनतकश जनता की स्थिति क्या है? पिछले दिनों विश्व असमानता लैब की नवीनतम रिपोर्ट ‘भारत में आय और सम्पत्ति असमानता, 1922-2023: अरबपति राज का उदय’ (मार्च 2024) ने बताया कि भारत की शीर्ष 1% आबादी का राष्ट्रीय आय के 22.6% हिस्से पर नियन्त्रण है। शीर्ष 10% आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 57.7% हिस्सा है, जबकि निचले 50% के पास केवल 15% हिस्सा है। यह असमानता दुनिया में सबसे अधिक है। साफ़ है कि दुनिया की “चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” में पूँजीपतियों-धन्नासेठों की तिजोरियों का आकार तो बढ़ता जा रहा है लेकिन आम मेहनतकश आबादी इस “चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” में तबाही और बरबादी की और गहरी खाई में धकेली जा रही है। यह हास्यास्पद है कि जिस जापान को पीछे छोड़कर चौथी अर्थव्यवस्था होने का दावा किया जा रहा है, वहाँ प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत की तुलना में लगभग 11.8 गुना अधिक है।

दिल्ली बजट 2025 – दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों व मेहनतकश महिलाओं के साथ भाजपा का एक और भद्दा मज़ाक!

मोदी सरकार के जनता से किये गए तमाम वायदे हास्यास्पद साबित हुए हैं। दिल्ली चुनाव में इस सरकार ने महिलाओं से यह भी वायदा किया था कि उन्हें होली-दिवाली पर रसोई गैस मुफ़्त उपलब्ध कराया जायेगा। स्थिति अब यह है कि हर महीने रसोई गैस पहले 50 रुपये की बढ़ी हुई कीमत पर ख़रीदो और फिर साल में एक सिलिण्डर मुफ़्त लेने का लाभ उठाओ (अगर योजना जुमला न साबित हुई!)! वहीं अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में जब पेट्रोल-डीजल की कीमत कम हुई तो भाजपा सरकार ने एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ाकर इसे और महँगा कर दिया जिसका परिणाम यह होगा कि लोगों की ज़रूरत की सभी चीज़ों की कीमत बढ़ेगी, महँगाई बढ़ेगी और जनता की ज़ेब पर डाका डलेगा।

रसोई गैस के दाम और पेट्रोल-डीज़ल पर कर बढ़ाकर मोदी सरकार का जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका!

सरकार लगातार कॉरपोरेट कर और उच्च मध्य वर्ग पर लगने वाले आयकर को घटा रही है और इसकी भरपाई आम जनता की जेबों से कर रही है। भारत में मुख्‍यत: आम मेहनतकश जनता द्वारा दिया जाने वाला अप्रत्‍यक्ष कर, जिसमें जीएसटी, वैट, सरकारी एक्‍साइज़ शुल्‍क, आदि शामिल हैं, सरकारी खज़ाने का क़रीब 60 प्रतिशत बैठता है। यह वह टैक्‍स है जो सभी वस्तुओं और सेवाओं ख़रीदने पर आप देते हैं, जिनके ऊपर ही लिखा रहता है ‘सभी करों समेत’। इसके अलावा, सरकार बड़े मालिकों, धन्‍नासेठों, कम्‍पनियों आदि से प्रत्‍यक्ष कर लेती है, जो कि 1990 के दशक तक आमदनी का 50 प्रतिशत तक हुआ करता था, और जिसे अब घटाकर 30 प्रतिशत तक कर दिया गया है। यह कॉरपोरेट और धन्‍नासेठों पर लगातार प्रत्‍यक्ष करों को घटाया जाना है, जिसके कारण सरकार को घाटा हो रहा है। दूसरी वजह है इन बड़ी-बड़ी कम्‍पनियों को टैक्‍स से छूट, फ़्री बिजली, फ़्री पानी, कौड़ियों के दाम ज़मीन दिया जाना, घाटा होने पर सरकारी ख़र्चों से इन्‍हें बचाया जाना और सरकारी बैंकों में जनता के जमा धन से इन्‍हें बेहद कम ब्याज दरों पर ऋण दिया जाना, उन ऋणों को भी माफ़ कर दिया जाना या बट्टेखाते में, यानी एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) बोलकर इन धन्‍नासेठों को फोकट में सौंप दिया जाना। अब अमीरों को दी जाने वाली इन फोकट सौगातों से सरकारी ख़ज़ाने को जो नुक़सान होता है, उसकी भरपाई आपके और हमारे ऊपर टैक्‍सों का बोझ लादकर मोदी सरकार कर रही है।

केन्द्रीय बजट 2025 : मनरेगा मज़दूरों के साथ एक बार फ़िर से छल करती मोदी सरकार

दिये गए आँकड़ों से यह साफ़ दिखता है कि सरकार का मनरेगा के तहत अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करने का कोई इरादा नहीं है। इस अपर्याप्त बजट का अनिवार्य रूप से तीन परिणाम होंगे। पहला, मज़दूरी भुगतान में भारी देरी, जिससे लाखों ग्रामीण मज़दूरों की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी। दूसरा, काम की माँग का दमन होगा, या उसे दबाया जायेगा, इस तरह से लोगों को रोज़गार के उनके अधिकार से वंचित किया जायेगा। तीसरा, मनरेगा के तहत होने वाले ढाँचों के निर्माण की गुणवत्ता में गिरावट, जिससे ग्रामीण बुनियादी ढाँचा ही कमज़ोर होगा।

महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय को आवण्टन बजट में दिखावटी वृद्धि : हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और!

एक तरफ़ मोदी सरकार सक्षम आँगनवाड़ी के तहत आँगनवाड़ी केन्द्रों पर वाईफ़ाई, एलईडी स्क्रीन, वॉटर प्यूरिफ़ायर इत्यादि लगाने की योजना बना रही है जबकि असलियत में इन केन्द्रों पर बुनियादी सुविधाएँ भी मौजूद नहीं! मोदी जी का “गुजरात मॉडल” यही है! कहाँ दिल्ली के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा ने दिल्लीवासियों को 500 रुपये में गैस सिलिण्डर और होली और दिवाली में मुफ़्त सिलिण्डर की रेवड़ी देने के जुमले फेंक रही थी, और कहाँ वित्त मन्त्री महोदया एलपीजी सब्सिडी के आबण्टन में 17.7 प्रतिशत की कटौती कर रही थीं!

केन्द्रीय बजट 2025-26 – मज़दूरों, ग़रीब किसानों और निम्न-मध्यवर्ग की क़ीमत पर अमीरों को राहत

मन्दी के दौरों में दुनिया के हर देश में पूँजीपति वर्ग अपनी सरकारों पर दबाव बनाता है कि वह बची-खुची सामाजिक कल्याण की नीतियों को भी समाप्त कर दे। विशेष तौर पर आर्थिक संकट के दौर में तो पूँजीपति वर्ग मज़दूरों की औसत मज़दूरी को कम-से-कम रखने और उनके काम के घण्टों व श्रम की सघनता को अधिक से अधिक बढ़ाने का प्रयास करता है। ऐसे में, वह ऐसी किसी भी पूँजीवादी पार्टी को अपनी पूँजी की शक्ति का समर्थन नहीं देगा, जो सरकार में आने पर किसी किस्म का कल्याणवाद करना चाहती हो। यहाँ तक कि वह कल्याणवाद का दिखावा करने वाली किसी पार्टी को भी चन्दे नहीं देता है। यही वजह है कि 2010-11 में भारतीय अर्थव्यवस्था में मन्दी के गहराने के बाद से पूँजीपति वर्ग का समर्थन एकमुश्त फ़ासीवादी भाजपा और मोदी-शाह की ओर स्थानान्तरित हुआ है।