• September 30, 2024

    देश में बेतहाशा बढ़ती बेरोज़गारी

    भारत में बेरोज़गारी तेजी से बढ़ रही है। भले ही लोगों का विकास नहीं हो रहा हो, पर बेरोज़गारी में लगातार ‘विकास’ देखने को मिल रहा है। करोड़ों मज़दूर और पढ़े-लिखे नौजवान, जो शरीर और मन से दुरुस्त हैं और काम करने के लिए तैयार हैं, उन्हें काम के अवसर से वंचित कर दिया गया है और मरने, भीख माँगने या अपराधी बन जाने के लिए सड़कों पर धकेल दिया गया है। आर्थिक संकट के ग़हराने के साथ हर दिन बेरोज़गारों की तादाद में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। बहुत बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है, जिन्हें बेरोज़गारी के आँकड़ों में गिना ही नहीं जाता लेकिन वास्तव में उनके पास साल में कुछ दिन ही रोज़गार रहता है या फिर कई तरह के छोटे-मोटे काम करके भी वे मुश्किल से जीने लायक कमा पाते हैं। हमारे देश में काम करने वालों की कमी नहीं है, प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, जीवन के हर क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के विकास और रोज़गार के अवसर पैदा करने की अनन्त सम्भावनाएँ मौजूद हैं, फिर भी आज देश में बेरोज़गारी आसमान छू रही है।

  • September 29, 2024

    यूपीएस : एनडीए सरकार द्वारा कर्मचारियों के आन्दोलन को तोड़ने की साज़िशाना और धोखेबाज़ कोशिश...

    यूपीएस और एनपीएस में कोई गुणात्मक अन्तर नहीं है। दोनों बाज़ार से जुड़ी हुई और बाज़ार पर निर्भर योजनाएँ हैं और मज़दूरों और कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति के बाद के भविष्य को पूँजीपतियों की जुआखोरी और सट्टेबाज़ी के भरोसे कर देती हैं। ये योजनाएँ अन्ततोगत्वा बड़े कोर्पोरेट घरानों को कर्मचारियों के वेतन में कटौती के ज़रिये वित्तीय पूँजी मुहैया कराती हैं। इन दोनों ही योजनाओं से सम्मानजनक पेंशन मिलने की उम्मीद करना बेमानी ही है। इसलिए जबतक बिना कर्मचारियों द्वारा वसूले गए अंशदान पर आधारित स्थिर पेंशन देने की माँग सरकार नहीं मानती है, तब तक पेंशन की माँग को लेकर हो रहा आन्दोलन जारी रहेगा। इस आन्दोलन के दूसरे क़दम के तौर पर देश के स्तर पर सार्विक पेंशन की माँग को जोड़ना भी आवश्यक है। यह माँग संविधान द्वारा प्रदत्त जीने के अधिकार के साथ भी जुड़ती है। आन्दोलन में इस माँग के जुड़ने से ज़ाहिरा तौर पर सामान्य नागरिक भी इस आन्दोलन में शामिल होंगें।

  • September 29, 2024

    फ़ासिस्ट मोदी-शाह सरकार के तीसरे कार्यकाल में भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के बढ़ते मामल...

    2014 में सत्ता में क़ाबिज़ होने के बाद से मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी एवं सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा बढ़ी है। इन समस्याओं से त्रस्त जनता के गुस्से को फ़ासिस्ट गिरोह द्वारा किसी काल्पनिक शत्रु के मत्थे मढ़ देने का काम कुशलतापूर्वक किया जा रहा है। इस काल्पनिक शत्रु के दायरे में धार्मिक अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान आते हैं और बाद में इस काल्पनिक दुश्मन की छवि में दलित, आदिवासी, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता व कम्युनिस्ट सभी को समेट लिया जाता है। 2014 के बाद से ही इस काल्पनिक शत्रु के श्रेणी से आने वाले लोगों को अलग-अलग तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और इनके ख़िलाफ़ मॉब लिंचिंग की असंख्य वारदातों को अंजाम दिया गया है। पहले से ही कमज़ोर और अब फ़ासीवाद द्वारा पंगु बना दिये गये भारतीय बुर्जुआ जनवाद और उसकी संवैधानिक संस्थाओं और गोदी मीडिया के भोंपू तन्त्र के भरपूर सहयोग के बावजूद जनता के एक हिस्से में फ़ासिस्ट गिरोह की कलई उजागर हो रही है। धाँधली और तीन-तिकड़म के बाद भी गठबन्धन की बैसाखी से तीसरी बार सत्ता में पहुँचने बाद फ़ासिस्ट गुण्डा गिरोह बुरी तरह बौखलाया हुआ है। मॉब लिंचिंग सरीखे नफ़रती खेल के ज़रिये विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल करने के जुगत में है। मज़दूर व आम मेहनतकश लोग ही ज़्यादातर मामलों में इस खेल का शिकार हो रहे हैं, हमें इस खेल की असलियत का भण्डाफोड़ करना होगा। हिटलर और मुसोलिनी के इन वंशजों के ख़िलाफ़ संघर्ष करना ही होगा! वरना काठ की हाँडी बार-बार चढ़ती रहेगी।

  • September 26, 2024

    मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के सौ दिन : गठबन्धन की तनी रस्सी पर फ़ासीवाद के नटनृत्य और जनता ...

    आर्थिक और राजनीतिक, दोनों ही पैमानों पर, मोदी सरकार के 100 दिन जनता के लिए ‘फ़ासीवादी दण्ड’ के जारी रहने के 100 दिन ही साबित हुए हैं, चाहे उसके प्रतीतिगत रूपों में कुछ बदलाव क्यों न आये हों। यह ‘दण्ड’ जनता को तभी मिलता है, जब उसकी जनगोलबन्दी, उसके जन संगठन और उसका क्रान्तिकारी हिरावल तैयार नहीं हो पाता है और नतीजतन आर्थिक व राजनीतिक संकट क्रान्तिकारी मोड़ लेने के बजाय एक प्रतिक्रियावादी मोड़ लेता है। इससे देश के मेहनतकशों व मज़दूरों के लिए सबक वही है: एक देशव्यापी क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माण और गठन के कार्य को अधिकतम सम्भव तेज़ी से आगे बढ़ाना और जनता के विभिन्न हिस्सों और वर्गों के जुझारू क्रान्तिकारी जनान्दोलनों को जनता के ठोस मुद्दों ठोस नारों व ठोस कार्यक्रम के साथ खड़ा करना। ये ही आज के प्रमुख राजनीतिक कार्यभार हैं।

  • September 25, 2024

    भगतसिंह को पूजो नहीं, उनके विचारों को जानो, उनकी राह पर चलने का संकल्प लो!

    शासक वर्ग हमेशा इस जुगत में रहता है कि जनता अपने क्रान्तिकारियों के विचारों को जानने न पाये। इसलिए वह अपनी शिक्षा व्यवस्था से लेकर, अख़बार, पत्रिकाओं, टी.वी., इण्टरनेट, सिनेमा आदि के माध्यम से विचारों की धुन्ध फैलाता रहता है ताकि मेहनतकश लोग अपनी क्रान्तिकारी विरासत को जान ही न सकें। शासक वर्ग इस कोशिश में रहता है कि जननायकों को या तो बुत बनाकर पूजने की वस्तु बना दिया जाये ताकि लोग बस उन्हें फूलमाला चढ़ाकर भूल जायें या फिर शहीदों के क्रान्तिकारी विचारों के बारे में षड़यंत्राकारी चुप्पी साध ली जाये जिससे कि लोग अपने संघर्षों के इतिहास को ही भूल जायें।