Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

दिव्य महाकुम्भ में भव्य भ्रष्टाचार

‘हिन्दू राष्ट्र’ के कुम्भ के धार्मिक आयोजन में मज़दूरों और मेहनतकशों की यही जगह है क्योंकि स्वयं इनके ‘हिन्दू राष्ट्र’ में मज़दूरों की यही जगह है, चाहे उनका धर्म या जाति कुछ भी हो। धन्नासेठ, अमीरज़ादे, ऐय्याश धनपशु अपना पापनाश कर सकें, उसके लिए मज़दूरों को अपनी हड्डियाँ-हाड़ गलाना ही होगा, चाहे उनका ही नाश क्यों न हो जाये! मोदी-योगी के चमचे बाबा धीरेन्द्र शास्त्री के अनुसार, अमीरज़ादों के पापनाश की नौटंकी में अगर मज़दूर और आम जनता मरते हैं, तो उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है! जो मज़दूर संघ परिवार, मोदी और योगी के ‘हिन्दू राष्ट्र’ में दास और सेवक जैसी हालत में अपना शोषण, उत्पीड़न और दमन करवाने को मोक्ष समझते हैं, उनसे हम क्या ही कह सकते हैं। लेकिन जिन मज़दूरों के भीतर आत्मसम्मान, गरिमा और अपने अधिकारों का बोध है, वे जानते हैं कि इस ‘हिन्दू राष्ट्र’ की सच्चाई केवल मालिकों, धनपशुओं, ठेकेदारों, व्यापारियों की लूट के तहत देश के मेहनतकश अवाम को निचोड़ने की व्यवस्था है। इसपर ही धर्म की चादर चढ़ाई जाती है, ताकि हम इस लूट और शोषण को इहलोक में अपना कर्म मानकर चुपचाप इसे सहते रहें, इस आशा में कि परलोक में मोक्ष प्राप्त होगा! आपको समझ लेना चाहिए कि ये बातें केवल आपको बेवकूफ़ बनाने का तरीक़ा हैं।

छावा : फ़ासीवादी भोंपू से निकली एक और प्रोपेगैण्डा फ़िल्म

पहला तथ्य तो यही है कि यह फ़िल्म किसी ऐतिहासिक घटना पर नहीं बल्कि यह शिवाजी सावन्त के एक उपन्यास पर बनी है। लेकिन इसे पेश ऐसे किया जा रहा है जैसे कि यह इतिहास को चित्रित कर रही है। दूसरा, अगर ऐतिहासिक तथ्यों पर ग़ौर करें, तो यह बात तो स्पष्ट तौर पर समझ में आ जाती है कि औरंगज़ेब और शिवाजी के बीच की लड़ाई कोई धर्म-रक्षा की लड़ाई नहीं थी बल्कि पूरी तरह से अपनी राजनीतिक सत्ता के विस्तार की लड़ाई थी। शिवाजी की सेना में कितने ही मुस्लिम सेनापति मौजूद थे, साथ ही औरंगज़ेब की सेना और दरबार में हिन्दू मन्त्री, सेनापति और सैनिक भारी संख्या में मौजूद थे। औरंगज़ेब का मकसद अगर सभी को मुसलमान बनाना होता, तो ज़ाहिरा तौर पर पहले वह अपने दरबार और अपनी सेना में अगुवाई और सरदारी की स्थिति में मौजूद हिन्दुओं को मुसलमान बनाता। धर्मान्तरण का जब कभी उसने इस्तेमाल किया तो वह भी राजनीतिक वर्चस्व और अहं की लड़ाई का हिस्सा था, न कि इस्लाम का राज भारत में क़ायम करने की मुहिम।

भारतीय संविधान के 75 साल – संविधान का हवाला देकर फ़ासीवाद से मुक़ाबले की ख़ामख्याली फ़ासीवाद-विरोधी संघर्ष के लिए घातक सिद्ध होगी!

“संविधान बचाओ” का नारा अपने आप में इसी व्यवस्था की चौहद्दी के भीतर हमारे संघर्ष को समाप्त कर देने वाला नारा है। हमें समझना होगा कि फ़ासीवाद के विरुद्ध लड़ाई में जब हम किसी प्रकार के बुर्जुआ जनवाद की पुनर्स्थापना की बात करते हैं तो वह फ़ासीवाद के विरुद्ध चल रही लड़ाई में बेहद घातक और आत्मघाती सिद्ध हो सकता है। हमें यह समझना होगा कि फ़ासीवाद का विकल्प किसी किस्म का शुद्ध-बुद्ध बुर्जुआ जनवाद नहीं हो सकता। असल में फ़ासीवाद आज के दीर्घकालिक मन्दी के दौर में एक कमोबेश स्थायी परिघटना बन चुका है। पूँजीवादी संकट आज एक दीर्घकालिक मन्दी का रूप ले चुका है, जो नियमित अन्तरालों पर महामन्दी के रूप में भी फूटती रहती है। आज तेज़ी के दौर बेहद कम हैं, छोटे हैं और काफ़ी अन्तरालों पर आते हैं और अक्सर वास्तविक उत्पादक अर्थव्यवस्था में तेज़ी के बजाय सट्टेबाज़ वित्तीय पूँजी के बुलबुलों की नुमाइन्दगी करते हैं। ऐसे में, बुर्जुआ वर्ग का प्रतिक्रिया और निरंकुशता की ओर झुकाव, टुटपुँजिया वर्गों के बीच सतत् असुरक्षा और परिणामतः प्रतिक्रिया की ज़मीन लगातार मौजूद रहती है और वर्ग-संघर्ष के ख़ास नाज़ुक मौक़ों पर यह एक पूँजीपति वर्ग व पूँजीवादी राज्य के राजनीतिक संकट की ओर ले जाने की सम्भावना से परिपूर्ण स्थिति सिद्ध होती है।

कुम्भ में भगदड़ : भाजपा के फ़ासीवादी प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ी जनता

ऐसे किसी भी धार्मिक आयोजन में सरकार की भूमिका केवल व्यवस्था और प्रबन्धन की हो सकती है, लेकिन फ़ासीवादी भाजपा सरकार यहाँ आयोजक बनी बैठी है और ऐसी अपनी फ़ासीवादी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रोजेक्ट के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। आज ज़रूरत है कि भाजपा और संघ परिवार के इस फ़ासीवादी प्रोजेक्ट की सच्चाई को लोगों तक पहुँचाया जाये और लोगों को उनकी ज़िन्दगी के असली सवालों पर लामबन्द किया जाये।

झूठे व खोखले जुमलों के अलावा भाजपा घरेलू कामगारों को कुछ नहीं दे सकती!

भाजपा असल में धन्नासेठों, कोठी मालिकों और पूँजीपतियों की पार्टी है, जो स्वयं घरेलू कामगारों के सबसे बड़े शोषक और उत्पीड़क हैं। आज मज़दूर वर्ग की सबसे बड़ी दुश्मन भाजपा ही है क्योंकि यह पूँजीपति वर्ग की फ़ासीवादी पार्टी है।

केन्द्रीय बजट 2025-26 – मज़दूरों, ग़रीब किसानों और निम्न-मध्यवर्ग की क़ीमत पर अमीरों को राहत

मन्दी के दौरों में दुनिया के हर देश में पूँजीपति वर्ग अपनी सरकारों पर दबाव बनाता है कि वह बची-खुची सामाजिक कल्याण की नीतियों को भी समाप्त कर दे। विशेष तौर पर आर्थिक संकट के दौर में तो पूँजीपति वर्ग मज़दूरों की औसत मज़दूरी को कम-से-कम रखने और उनके काम के घण्टों व श्रम की सघनता को अधिक से अधिक बढ़ाने का प्रयास करता है। ऐसे में, वह ऐसी किसी भी पूँजीवादी पार्टी को अपनी पूँजी की शक्ति का समर्थन नहीं देगा, जो सरकार में आने पर किसी किस्म का कल्याणवाद करना चाहती हो। यहाँ तक कि वह कल्याणवाद का दिखावा करने वाली किसी पार्टी को भी चन्दे नहीं देता है। यही वजह है कि 2010-11 में भारतीय अर्थव्यवस्था में मन्दी के गहराने के बाद से पूँजीपति वर्ग का समर्थन एकमुश्त फ़ासीवादी भाजपा और मोदी-शाह की ओर स्थानान्तरित हुआ है।

पाँच दिवसीय सातवीं अन्तरराष्ट्रीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी हैदराबाद में सम्पन्न हुई! फ़ासीवाद की सही समझ के साथ इसके विरुद्ध संघर्ष तेज़ करने का संकल्प

हमारे देश के कम्युनिस्ट आन्दोलन में फ़ासीवाद की समझदारी को लेकर आम तौर पर काफ़ी विभ्रम मौजूद हैं। कई संगठन और समूह बीसवीं सदी के फ़ासीवाद के हूबहू दोहराव की अपेक्षा कर रहे हैं तो कई आज मौजूदा सत्ता को फ़ासीवादी कहते हैं मगर उनमें फ़ासीवाद की स्पष्ट समझदारी की कमी है और वे फ़ासीवाद से लड़ने के लिए बीसवीं सदी में अपनायी गयी रणनीतियों से आगे नहीं बढ़ पा रहें हैं। ऐसे में, भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन में अरविन्द स्मृति न्यास द्वारा आयोजित यह संगोष्ठी  एक पथ प्रदर्शक के तौर पर उन तमाम लोगों के लिए मददगार है जो फ़ासीवाद को समझने और उसके ख़िलाफ़ सही सर्वहारा रणनीति बनाने के काम में जुटे हुए हैं।

मोदी राज में ‘अडानी भ्रष्टाचार – भ्रष्टाचार न भवति’ !

भाजपा नेताओं के लिए तो अडानी जी ही देश हैं, इसलिए अडानी पर हमला “देश” पर हमला है, विदेशी ताक़तों की साज़िश है। इन सब (कु)तर्कों के बावजूद अडानी जी ने विदेशों में देश का डंका तो बजवा ही दिया है।

लार्सन एण्ड टूब्रो कम्पनी के चेयरमैन की इच्छा : “राष्ट्र के विकास” के लिए हफ़्ते में 90 घण्टे काम करें मज़दूर व कर्मचारी!

मोदी सरकार द्वारा लाये गये नये लेबर कोड के तमाम मक़सदों में से एक मक़सद यह है कि मज़दूर 12-12 घण्टे बिना किसी कानूनी रोक-टोक के काम करने को मजबूर किये जा सकें। आर्थिक संकट के दौर में मोदी सरकार को अरबों रुपये ख़र्च कर तमाम पूँजीपतियों ने इसीलिए तो सत्ता में पहुँचाया था। अपने पहले कार्यकाल से ही मोदी और उसके पीछे खड़े सारे पूँजीपति तरह-तरह के बयानों से इस बात का माहौल बनाते रहे हैं मज़दूर सप्ताह में सारे दिन 12-12 घण्टे काम करने को “राष्ट्र की प्रगति” के नाम पर स्वीकार कर लें! ख़ुद प्रधानमन्त्री मोदी दिन में 18-18 घण्टे काम करने के बयान देते रहे हैं। इससे पहले इन्फ़ोसिस के नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 70 घण्टे काम करवाने की इच्छा जतायी थी और अब लार्सन एण्ड टूब्रो के चेयरमैन ने हमसे हफ्ते में 90 घण्टे काम करवाने की चाहत अभिव्यक्त की है। और मोदी ने इन्हीं इच्छाओं को पूरा करने के लिए “देश के विकास” के नाम पर हमसे सप्ताह में 90-90 घण्टे काम करवाने का इन्तज़ाम लेबर कोड के ज़रिये कर दिया है!

नया साल मज़दूर वर्ग के फ़ासीवाद-विरोधी प्रतिरोध और संघर्षों के नाम! साम्राज्यवाद-पूँजीवाद के विरुद्ध क्रान्तिकारी संघर्षों के नाम!

यह सच है कि बीता साल भी पूरी दुनिया में मेहनतकश अवाम के लिए प्रतिक्रिया और पराजय के अन्धकार में बीता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि कुछ भी स्थायी नहीं होता। यह समय पस्तहिम्मती का नहीं, बल्कि अपनी हार से सबक लेकर उठ खड़े होने का है। रात चाहे कितनी ही लम्बी क्यों न हो, सुबह को आने से नहीं रोक सकती। इस नये साल हमें सूझबूझ, जोशो-ख़रोश और ताक़त के साथ गोलबन्द और संगठित होने को अपना नववर्ष का संकल्प बनाना होगा। फ़ासीवाद के ख़िलाफ़, साम्राज्यवाद-पूँजीवाद के ख़िलाफ़, हर रूप में शोषण, दमन और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ समूची मेहनतकश जनता को संगठित करने के काम को नये सिरे से, रचनात्मक तरीक़े से अपने हाथों में लेना होगा।