Category Archives: समाज

आज़ादी के अमृत महोत्सव में सड़कों पर तिरंगा बेचती ग़रीब जनता

इस बार आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया गया। यह दीगर बात है कि पिछले 75 वर्षों में देश की व्यापक मेहनतकश जनता के सामने यह बात अधिक से अधिक स्पष्ट होती गयी है कि यह वास्तव में देश के पूँजीपति वर्ग और धनिक वर्गों की आज़ादी है, जबकि व्यापक मेहनतकश जनता को आज़ादी के नाम पर सीमित अधिकार ही हासिल हुए हैं। दाग़दार आज़ादी का उजाला हमारे सामने अँधेरा बनकर मँडरा रहा है। बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी ने तो पहले ही हमारा दम निकाल रखा है। तो सबसे पहले तो यही सोचना चाहिए कि ये महोत्सव किसके लिए है?

मोदी के जुमलों की बारिश के बीच कैथल के मनरेगा मज़दूरों के हालात पर एक नज़र

15 अगस्त को जब पूरा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था। इस अवसर पर सुबह 8 बजे से पीएम मोदी लाल क़िले पर चढ़कर 70-80 मिनट का लम्बा-चौड़ा भाषण दे रहे थे। जिसमें पिछले आठ बार की ही तरह एक बार फिर बड़े-बड़े वायदे किये गये, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले, साथ ही ‘अमृत काल’ का गुणगान किया गया। उसी वक़्त दूसरी ओर कैथल (हरियाणा) के फरल गाँव के मज़दूर सुबह 8 बजे मनरेगा के तहत काम करने के लिए गाँव से रवाना हुए थे। लेकिन मोदी जी के ‘अमृत काल’ की हक़ीक़त मनरेगा मज़दूरों से कोसों दूर है।

राजस्थान में स्कूली छात्र इन्द्र मेघवाल की हत्या बढ़ती जातीय नफ़रत का नतीजा है

बीते 13 अगस्त को राजस्थान के जालौर से एक दिल दहलाने देने वाली घटना सामने आयी है जिसमें 10 वर्ष के एक दलित छात्र को उसके अध्यापक ने इतना पीटा कि उसकी मौत हो गयी। उस बच्चे की ग़लती सिर्फ़ इतनी थी कि उसने अपने एक जातिवादी अध्यापक के मटके से पानी पी लिया था। उस मासूम बच्चे को यह पता नहीं था कि औपनिवेशिक ग़ुलामी से भारत की आज़ादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी भारतीय समाज ब्राह्मणवाद-जातिवाद के कोढ़ से ग्रस्त है। ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ और ‘हर घर तिरंगा’ की देश-व्यापी चीख़-पुकार के बीच उसे लगा होगा कि उसे किसी भी मटके से पानी पी लेने की आज़ादी है और उसे इस ग़लतफ़हमी की क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

‘फ़्रण्ट लाइन वर्करों’ के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी की नयी जुमलेबाज़ी!

15 अगस्त को लाल क़िले की प्राचीर से प्रधान “सेवक” महोदय उर्फ़ नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी के दौरान कार्यरत ‘फ़्रण्ट लाइन वर्कर्स’ की जमकर “सराहना” की। इस दफ़े लाल क़िले पर आँगनवाड़ीकर्मियों, आशाकर्मियों व एनएचएम कर्मचारियों को बतौर विशेष “अतिथि” आमंत्रित भी किया गया था। लेकिन प्रधानमंत्री महोदय जी भूल गये कि कौड़ियों के दाम ठेके पर दे दिये गये लाल क़िले पर चढ़कर की गयी ऐसी हवबाज़ी से फ़्रण्टलाइन वर्करों का गुज़ारा नहीं चलता! और न ही थालियों-तालियों, धूप-अगरबत्ती की नौटंकी से ही हम लाखों कामगारों को कुछ हासिल हुआ था।

बेरोज़गारी और आर्थिक संकट के दौर में बढ़ती आत्महत्याएँ

पिछले साल का कोरोना काल आपको याद होगा। ऑक्सीजन, दवाइयों, बेड की कमी के कारण लोग मारे जा रहे थे। गंगा तक इन्सानों की लाशों से अट गयी थी और श्मशानों के आगे लम्बी-लम्बी क़तारें लगी थीं। इसमें मौत के गर्त में समाने वाले ज़्यादातर मेहनतकश तबक़े के लोग थे। मोदी सरकार इस क़त्लेआम को अंजाम देकर आपदा में अवसर निकालने में लगी हुई थी। इसके साथ ही पूरी पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा मज़दूरों की जा रही हत्याओं के आँकडों में और इज़ाफ़ा हो गया।

बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों की रिहाई : भाजपा और संघ की बेशर्मी की पराकाष्ठा

2002 से लेकर अब तक कुछ मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में न्याय का दरवाज़ा खटखटाने वालों को निराशा ही हासिल हुई है। अभी 24 जून 2022 को ज़ाकिया जाफ़री की याचिका ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया। इतिहास के इस काले अध्याय में देश को शर्मसार करने वाला एक और अध्याय जुड़ गया है। 15 अगस्त को बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों को क्षमा दे कर रिहा कर दिया गया। बिलकिस बानो भी गुजरात नरसंहार की शिकार महिला है।

आज़ादी का (अ)मृत महोत्सव : अडानियों-अम्बानियों की बढ़ती सम्पत्ति, आम जनता की बेहाल स्थिति

मेहनतकश साथियों, इस साल हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर बार की तरह मोदीजी फिर इस बार लाल क़िले पर चढ़कर लम्बे-लम्बे भाषण देंगे। बड़े-बड़े वायदे करेंगे, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले। इसका कारण भी है क्योंकि मोदी जी के लिए देश का मतलब आम जनता नहीं बल्कि देश के पूँजीपति हैं, इसलिए धन्नासेठों से किये सारे वायदे पूरे होते हैं और जनता को दिये जाते हैं बस जुमले। इस बार ये सरकार आज़ादी का मृत महोत्सव, माफ़ कीजिएगा, “अमृत महोत्सव” मना रही है। पर सवाल है किसके लिए आज़ादी?

अय्यंकालि के स्मृति दिवस पर – जाति-उन्मूलन आन्दोलन को अय्यंकालि से सीखना होगा

कई जाति-विरोधी व्यक्तित्वों को ख़ुद भारत की सरकार ने आज़ादी के बाद से ही प्रचारित-प्रसारित किया है लेकिन अय्यंकालि को नहीं। क्यों? क्योंकि अय्यंकालि आमूलगामी तरीक़े से और जुझारू तरीक़े से सड़क पर उतरकर संघर्ष का रास्ता अपनाते थे; क्योंकि अय्यंकालि सरकार की भलमनसाहत या समझदारी के भरोसे नहीं थे, बल्कि जनता की पहलक़दमी पर भरोसा करते थे। वह कोई सुधारवादी या व्यवहारवादी नहीं थे, बल्कि एक रैडिकल जाति-विरोधी योद्धा थे। यही कारण है कि सरकार अय्यंकालि के रास्ते और विचारों के इस पक्ष को हमसे बचाकर रखती है। क्योंकि यदि मेहनतकश दलित और दमित जनता उनके बारे में जानेगी, तो उनके रास्ते के बारे में भी जानेगी और यह मौजूदा पूँजीवादी व जातिवादी सत्ता ऐसा कभी नहीं चाहेगी कि उसके विरुद्ध रैडिकल संघर्ष के रास्ते को जनता जाने और अपनी पहलक़दमी में भरोसा पैदा करे। यही कारण है कि अय्यंकालि की विरासत को जनता की शक्तियों को याद करना चाहिए। उनकी स्मृतियों को, प्रगतिशील ताक़तों को जीवित रखना चाहिए। उनके आन्दोलन के रास्ते को व्यापक मेहनतकश और दलित जनता में हमें ले जाना होगा। केवल ऐसा करके ही हम अय्यंकालि को सच्ची आदरांजलि दे सकते हैं। उनको याद करने का यही सबसे बेहतर तरीक़ा हो सकता है।

ज्ञानव्यापी विवाद और फ़ासिस्टों की चालें

आज पूरे देश में बेरोजगारी अपने चरम पर है। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है। आर्थिक संकट लगातार गहराता जा रहा है। मज़दूरों को लगातार तालाबंदी और छँटनी का सामना करना पड़ रहा है। मेहनतकश लोगों की जिंदगी बदहाली में गुजर रही है। ठीक इसी समय भाजपा एवं आरएसएस ने अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से पूरे देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। जबसे इन फासीवादियों ने सत्ता संभाली है तब से तमाम ऐसे छोटे-छोटे धार्मिक त्योहारों, पर्वों को बड़े पैमाने पर मनवाया जा रहा है, जिन्हें आम तौर पर नहीं मनाया जाता था, एवं उनका इस्तेमाल धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए किया जा रहा है।

‘देह व्यापार’ स्त्रियों-बच्चों के विरुद्ध शोषण, हिंसा, असहायता और विकल्पहीनता में लिथड़ा पूँजीवादी मवाद है!

सर्वोच्च न्यायलय द्वारा 19 मई को वेश्यावृत्ति को वैध क़रार दिए जाने सम्बन्धी फ़ैसला दिया गया है जिसकी काफ़ी चर्चा हो रही है। इन फ़ैसले के तहत ‘देह व्यापार’ में लगी स्त्रियों के “पुनर्वास” को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को कुछ दिशानिर्देश दिए गए हैं। साथ ही उक्त फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायलय ने वेश्यावृत्ति अथवा ‘देह व्यापार’ को एक “पेशा” य “व्यवसाय” माना है और कहा है कि पुलिस “अपनी इच्छा से” वेश्यावृत्ति कर रही “सेक्स वर्कर्स” के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाई न करे।