Category Archives: जातिगत उत्‍पीड़न

तेलंगाना में जातिगत जनगणना : युवाओं को रोज़गार देने में फिसड्डी रेवन्त रेड्डी सरकार का नया शिगूफ़ा

जातिगत जनगणना के समर्थन में एक अन्य तर्क यह दिया जा रहा है कि इससे भाजपा व संघ परिवार की हिन्दुत्व की राजनीति को मात दी जा सकती है। इस प्रकार का तर्क देने वाले यह मानकर चलते हैं कि यह हिन्दुत्व की राजनीति के द्वारा निर्मित हिन्दू एकता को निश्चय ही तोड़ेगा। परन्तु ऐसे लोग यह नहीं समझ पाते कि अन्य फ़ासीवादी विचारधाराओं की ही तरह हिन्दुत्व की विचारधारा का भी सबसे महत्वपूर्ण अंग व्यवहारवाद है। हिन्दुत्व फ़ासीवादी जहाँ एक ओर मुस्लिमों को दुश्मन बताते हुए एक पूर्ण रूप से विचारधारात्मक हिन्दू पहचान का निर्माण करते हैं वहीं दूसरी तरफ़ उन्हें जाति-आधारित पहचान की राजनीति करने से भी कोई परहेज़ नहीं है। अलग-अलग मंचों पर अलग-अलग श्रोताओं के अनुसार वे अलग-अलग पहलुओं पर ज़ोर देते हैं। उच्च जातियों के बीच घोर ब्राह्मणवादी श्रेष्ठतावादी प्रचार करने के साथ ही साथ उन्होंने पिछड़ी व दलित जातियों के बीच जाति-आधारित पहचान की राजनीति करने में अन्य सभी बुर्जुआ पार्टियों को पीछे छोड़ दिया है और साथ ही वे सभी हिन्दुओं के बीच मुस्लिम-विरोधी राजनीति को ज़हर फैलाते रहते हैं। यह महज़ इत्तेफ़ाक नहीं है कि भाजपा का उभार मण्डल की राजनीति के साथ-साथ ही हुआ और आज भाजपा के समर्थन आधार का बहुलांश पिछड़ी जातियों, दलितों व आदिवासियों के बीच से आता है। इस प्रकार मण्डल 1.0 कभी भी भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति के लिए प्रभावी चुनौती नहीं रहा है और यह मानने की कोई वजह नहीं है कि मण्डल 2.0 ऐसा करने में सक्षम होगा।

चिन्मय स्कूल प्रशासन की आपराधिक लापरवाही से प्रिन्स की मौत, फिर भी स्कूल प्रशासन को बचाने में लगी दिल्ली पुलिस

मोटी-मोटी फीस लेने वाले ये निजी स्कूल सरकार से शिक्षा के नाम पर सस्ती ज़मीन, बिजली और पानी हासिल करते हैं और मुनाफ़े की हवस में बेहद अप्रशिक्षित और अयोग्य लोगों को बेहद कम तनख्वाहों पर काम पर रखते हैं जो इस तरह के संकट से निपटने में अक्षम होते हैं। स्कूल प्रशासन की इस ग़ैर-ज़िम्मेदारी, लापरवाही और लचर व्यवस्था ने एक मासूम बच्चे की जान ले ली और एक माँ की गोद सूनी कर दी। प्रिन्स की हत्या हुई है और हत्यारा स्कूल प्रशासन है।

अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण में उप वर्गीकरण – मेहनतकशों को आपस में बाँटने का एक नया हथकण्डा !!

सच्चाई यह है कि जब नवउदारवादी दौर में सरकारी नौकरियाँ ही नहीं हैं, तो किसी जाति को औपचारिक तौर पर कितना आरक्षण दिया जाता है, दलितों के आरक्षण के बीच में कितना और कैसा उपवर्गीकरण कर दिया जाता है, उससे इस समूचे वर्ग की नियति पर, उनके हालात पर कोई गुणात्मक फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। जब नौकरियों की पैदा होने की दर ही शून्य के निकट है और अगर उसे काम करने योग्य आबादी में होने वाली बढ़ोत्तरी के सापेक्ष रखें, तो नकारात्मक में है, तो फिर इन श्रेणीकरणों और वर्गीकरणों को आरक्षण की लागू नीति में घुसा देने से किसे क्या हासिल हो जायेगा? पूँजीवादी व्यवस्था में नगण्य होते अवसरों के लिए दलित मेहनतकश व आम मध्यवर्गीय जनता में ही आपस में सिर-फुटौव्वल होगा, दलित जातियों के बीच ही आपस में विभाजन की रेखाएँ खिंच जायेंगी और इसका पूरा फ़ायदा देश के हुक़्मरान उठायेंगे।

मोदी सरकार के अमृतकाल में दलितों का बर्बर उत्पीड़न चरम पर

अल्पसंख्यक, स्त्रियों और दलितों-आदिवासियों के दमन-उत्पीड़न में इस फ़ासीवादी सरकार ने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। दलितों द्वारा नाम के साथ सिंह आदि टाइटल लगाना, घोड़ी पर चढ़ना, मूँछ रखना, सवर्णों के बर्तन में पानी पी लेना, काम करने से मना करना, बराबरी से व्यवहार करना आदि ही सवर्णों द्वारा दलितों के अपमान और उनके बर्बर उत्पीड़न की वजह बन जा रहा है। दलित लड़कियों से बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या जैसे जघन्य अपराधों में बहुत तेज़ी आयी है। इसी तरह विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में संघ परिवार के बगलबच्चा संगठन एबीवीपी के कार्यकर्ताओं द्वारा दलित प्रोफ़ेसरों के साथ मारपीट, अपमानित करने की कई घटनाएँ सामने आयी हैं।

राजस्थान में स्कूली छात्र इन्द्र मेघवाल की हत्या बढ़ती जातीय नफ़रत का नतीजा है

बीते 13 अगस्त को राजस्थान के जालौर से एक दिल दहलाने देने वाली घटना सामने आयी है जिसमें 10 वर्ष के एक दलित छात्र को उसके अध्यापक ने इतना पीटा कि उसकी मौत हो गयी। उस बच्चे की ग़लती सिर्फ़ इतनी थी कि उसने अपने एक जातिवादी अध्यापक के मटके से पानी पी लिया था। उस मासूम बच्चे को यह पता नहीं था कि औपनिवेशिक ग़ुलामी से भारत की आज़ादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी भारतीय समाज ब्राह्मणवाद-जातिवाद के कोढ़ से ग्रस्त है। ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ और ‘हर घर तिरंगा’ की देश-व्यापी चीख़-पुकार के बीच उसे लगा होगा कि उसे किसी भी मटके से पानी पी लेने की आज़ादी है और उसे इस ग़लतफ़हमी की क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

सवर्णवादी वर्चस्ववाद और गुण्डागर्दी का फिर शिकार हुआ एक दलित युवक

राजस्थान के पाली ज़िले का रहने वाला एक दलित युवक जितेन्द्र पाल मेघवाल पूँजीवाद ब्राह्मणवाद के नापाक गठजोड़ का शिकार हो गया। पाली ज़िले के बाली स्थित सरकारी अस्पताल में कार्यरत जितेन्द्र विगत 15 मार्च को हॉस्पिटल में ड्यूटी करने के बाद अपने सहकर्मी के साथ मोटरसाइकिल से घर वापस लौट रहा था। लौटने के क्रम में दो स्वर्णवादी गुण्डों ने चाकू से उसपर कई वार किये। इलाज के दौरान जितेन्द्र की मौत हो गयी, मौत से पहले उन्होंने परिजनों को सूरज सिंह एवं रमेश सिंह नामक अपराधियों के बारे में बताया।

भाजपा के “रामराज्यों” में दलितों के ख़िलाफ़ बढ़ती बर्बर हिंसा!

फ़ासीवादी भाजपा-शासित राज्यों में हो रहे दलित-विरोधी अपराध बर्बरता की सारी हदें पार करते जा रहे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब दलितों के साथ सवर्ण जातिवादी गुण्डों द्वारा हिंसा की घटना सामने न आती हो। बीते दिन प्रयागराज के फाफामऊ में दलित परिवार के चार सदस्यों की जातिवादी गुण्डों द्वारा बर्बर हत्या कर दी गयी। देशभर में दलितों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा के इतिहास में यह घटना एक स्याह पन्ने की तरह दर्ज हो गयी है।

प्रथम स्त्री शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर जातितोड़क भोजों का आयोजन

जाति व्यवस्था को इतिहास में हर शासक वर्ग ने अपने तरीक से इस्तेमाल करने का काम किया है। मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था ने भी जाति प्रथा को अपने ढाँचे के साथ सहयोजित कर लिया है। पूँजीवादी चुनावी राजनीति भी जाति व्यवस्था के पूरे ढाँचे को बना कर रखने का काम करती रही है और यह मौजूदा पूँजीवादी जाति व्यवस्था मेहनतकश वर्ग की क्रान्तिकारी लामबन्दी को कमजोर करने का काम करती है। आज निरन्तर ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की ज़रूरत है जो जाति व्यवस्था को तोड़कर मेहनतकश जनता की क्रान्तिकारी लामबन्दी कायम कर सकें। इसी के तहत नौजवान भारत सभा द्वारा सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर जगह-जगह जाति तोड़क भोज, चर्चा और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

महामारी के दौर में भी जारी हैं दलितों पर हमले और अपमान

विगत 19 जुलाई को उत्तरप्रदेश के आगरा जनपद में ककरपुरा नामक गाँव में दलित जाति की महिला के शव को शमशान घाट पर चिता से ही उतरवा दिया गया क्योंकि यह शमशान घाट तथाकथित ऊँची जाति वालों का था। 18 जुलाई को कर्नाटक के विजयपुरा में एक दलित व्यक्ति और उसके परिजनों को तथाकथित ऊँची जाति के लोगों की भीड़ के द्वारा बेरहमी से पीटा गया और निर्वस्त्र करके घुमाया गया।

पंजाब के संगरूर में दलित खेत मज़दूर की बर्बर हत्या!

पंजाब के संगरूर में दलित खेत मज़दूर की बर्बर हत्या! दलितों के सामाजिक उत्पीड़न और आर्थिक शोषण के विरुद्ध साझा जुझारू संघर्ष छेड़ने होंगे – अखिल भारतीय जाति-विरोधी मंच पंजाब…