Category Archives: मज़दूर बस्तियों से

बवाना के मज़दूर की चिट्ठी

सुबह जगो तो काम के लिए, नहाओ तो काम के लिए, खाओ तो काम के लिए, रात बारह बजे सोओ तो काम के लिए। ऐसा लगता है की हम सिर्फ काम करने के लिए पैदा हुए हैं ‌तो हम फिर अपना जीवन कब जियेंगे। महीने की सात से दस तारीख के बीच तनखा मिलती है, पन्द्रह तारीख तक जेब में पैसे होते हैं तो अपने बच्चों के लिए फल या कुछ ज़रूरी चीजें ले सकते हैं । उसके बाद हर दिन एक-एक रुपया सोचकर खर्च करना पड़ता है। महीना ख़त्म होते-होते ये भी सोच ख़त्म हो जाती है। अगर कहीं बीमार पड़ गये तो क़र्ज़ के बोझ तले दबना तय है।

ऑटोमोबाइल मज़दूर विकास की चिट्ठी

मैं अपने रिश्तेदार के साथ लॉज में उनके कमरे पर रुका। उन छोटे कमरों में मेरा दम घुटता है। एक कमरे में हमलोग 4 से 5 आदमी रहते हैं।  मेरे रिश्तेदार मार्क एग्जौस्ट सिस्टम लिमिटेड मैं काम करते थे। उन्होंने मेरा काम मीनाक्षी पोलिमर्स में लगवा दिया। यहाँ पर करीब 100 लोग काम करते थे। यहाँ बहुत बुरी तरह से हमारा शोषण होता था। कम्पनी फ़र्श पर झाड़ू-पोछा भी लगवाती थी और कभी प्रोडक्शन का काम नहीं हो तो नाली वगैरह भी साफ़ करवाती थी। काम जबरिया दबाव में कराया जाता था, बारह घण्टे का काम आठ घण्टे में करवाया जाता था। अन्दर में बैठने की व्यवस्था नहीं था। बारिश के समय खाने पीने के लिए कोई जगह नहीं थी। गर्मी में काम करवाया जाता और पीने के लिए गर्म पानी दिया जाता। मैं दिन-रात मेहनत करता था ताकि कुछ पैसे कमा बचा सकूँ। लेकिन यहाँ मालिक ज़िन्दा रहने लायक भी पैसा नहीं दे रहा था। हम अपना हक माँग रहे हैं और मालिक दे नहीं रहा है, हम यूनियन बनाने का प्रयास कर रहे हैं मालिक बनने नहीं दे रहा है। मैं जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूँ, लेकिन मैं अब समझ गया हूँ कि मैं अकेले आगे नहीं बढ़ सकता। हम सबकी ज़िन्दगी ख़राब है इसीलिए हम सभी को एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए। इसीलिए दोस्तों और मजदूर भाइयो अपना हक माँगो और यूनियन बनाओ।

कुसुमपुर पहाड़ी में मेहनतकशों-नौजवानों की जीवन स्थिति पर एक छात्र की चिट्ठी

सुई से लेकर जहाज़ तक सब कुछ पैदा करने वाला मज़दूर वर्ग क्या पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसी तरह शोषण की चक्की में पिसता रहेगा? कुसुमपुर में रहने वाले मेहनतकशों की अगली पीढ़ियाँ भी क्या इन्हीं नारकीय और अमानवीय परिस्थितियों में अपनी ज़िन्दगी काटेंगी? अगर इतिहास में चीज़ें बदली हैं तो क्या आगे भी मज़दूर वर्ग के हालात बदलेंगे? अगर बदलेंगे तो कैसे बदलेंगे? कौन बदलेगा उन्हें?

हैदराबाद में कांग्रेस सरकार द्वारा मूसी नदी और झीलों को बचाने के नाम पर ग़रीबों व मेहनतकशों के आशियानों और आजीवका पर ताबड़तोड़ हमला

जैसे ही बुलडोज़र को खुली छूट दी गयी, उसका आबादी के ग़रीब तबक़े की ओर बढ़ना तय था। रेवंत रेड्डी सरकार अब हैदराबाद में ग़रीब मेहनतकश लोगों के सपनों, आकांक्षाओं और आजीविका को मिट्टी में कुचलने का काम कर रही है। लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाने और उनकी आजीविका को नष्ट करने का भयावह दृश्य हैदराबाद में रोज़मर्रे की बात हो चुकी है। कई सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणवादी रेवंत रेड्डी सरकार की इस कार्रवाई का यह कह कर समर्थन कर रहे हैं कि वह झीलों को बचाने और बाढ़ रोकने का प्रयास ईमानदारी से कर रही है। हालाँकि, मुख्यमन्त्री की पर्यावरण हितैषी छवि के इस दावे पर एक बड़ा सवालिया निशान तब खड़ा हो जाता है जब हम देखते हैं कि यह वही सरकार है जो प्रदेश के विकाराबाद ज़िले के दामागुंडम जंगलों में नौसेना का रडार स्टेशन बनाने के लिए लगभग 12 लाख पेड़ों की योजनाबद्ध कटाई की योजना पर एक शातिराना चुप्पी बनाये रखती है। इस रडार स्टेशन को बनाने के लिए लगभग 3000 एकड़ वन भूमि नौसेना को सौंपने की योजना है। इसी तरह, यह साबित करने के भी पर्याप्त उदाहरण हैं कि जब बात कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के स्वामित्व वाली संरचनाओं को ध्वस्त करने की आती है तो हाइड्रा के कर्मचारी उतना उत्साह नहीं दिखा रहे हैं।

बिजली कनेक्शन की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए ग्रेटर नोएडा में महापंचायत

लोगों की एकजुटता ने स्थानीय से लेकर उत्तर-प्रदेश सरकार तक में खलबली मची हुई है। लोगों को संगठित और एकजुट होता देखकर तुरन्त बिजली विभाग द्वारा सभी कॉलोनियों का ड्रोन द्वारा सर्वे शुरू कर दिया गया है। सरकार द्वारा इस क्षेत्र के लिए स्पेशल मीटिंगें बुलायी जा रही है। लोगों के हर ट्वीट पर सरकार का जवाब आ रहा है। ख़बर तो ये भी है कि उत्तर प्रदेश के शहरी विकास और अतिरिक्त ऊर्जा विभाग मन्त्री ए के शर्मा ने ग्रेटर नोएडा की बिजली की समस्या के लिए खास बैठक तक बुलायी है।

नोएडा-ग्रेटर नोएडा में अँधेरे में रहने को मजबूर लाखों मेहनतकश

नोएडा की भयंकर गर्मी में भी ये लोग बिना बिजली के अँधेरे में रहते हैं। देश में इस बार जैसी गर्मी पड़ी वह तो सबको पता ही है। ऐसी गर्मी में दिल्ली-एनसीआर के लोगों के दिमाग में एक सुकून होता है कि रात जब घर जायेंगे तो कम से कम पंखे के नीचे चैन की नींद लेंगे। पर नोएडा-ग्रेटर नोएडा के इन लाखों लोगों को यह भी नसीब नहीं। इतना ही नहीं, बिजली नहीं होने पर पानी की भी एक भयंकर समस्या रहती है। लोगों को मजबूरी में रोज़ के इस्तेमाल के लिये भी पानी कई बार ख़रीद कर लेना पड़ता है। यही कारण है कि कई बार भयंकर गर्मी से लोगों की जान तक चली जाती है।

जन विरोध के बाद लखनऊ में हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाने से पीछे हटी योगी सरकार

बुलडोज़र पर सवार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लखनऊ के बीचोबीच अकबरनगर के हज़ारों घरों की बस्ती को नेस्तनाबूद करने के बाद सत्ता के नशे में पगला गयी थी। किसी बड़े विरोध के बिना पूरी बस्ती को बुलडोज़रों से रौंदने में सफल होने से उसके हौसले और भी बुलन्द हो गये थे और कुकरैल नाले (जिसे जबरन नदी घोषित कर दिया गया) के किनारे बसी पंतनगर, अबरार नगर, खुर्रम नगर, रहीम नगर, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी आदि बस्तियों से भी लाखों लोगों को बेदखल करने और हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाने की तैयारी कर ली गयी थी। इन बस्तियों के हज़ारों घरों पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों ने लाल निशान लगाने शुरू कर दिये थे।

लखनऊ के अकबरनगर में लिखा गया योगी सरकार के बुलडोज़री न्याय का एक और काला अध्याय

जब 50-60 सालों से यह सब चल रहा था तो यहाँ रहने वाले लोग “अवैध क़ब्ज़ा” करने वाले नहीं थे, वे भी नागरिक थे जो टैक्स और वोट देते थे। लेकिन अब अचानक उन सबको “अपराधी” घोषित कर दिया गया है जिनकी वजह से ही कुकरैल नदी मर रही है और राजधानी का पर्यावरण चौपट हो रहा है। अगर वे अपराधी हैं तो वे तमाम मंत्री और सरकारी अफ़सर उनसे बहुत बड़े अपराधी हैं जो दशकों से उनके यहाँ बसने में सहयोग करते रहे हैं। अपराधी वे तमाम मंत्री और अफ़सर हैं जिनकी शह पर बिल्डर माफ़िया ने हर शहर के जलाशयों, नालों और पार्कों को पाट और काट डाला है। मगर उन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होगी।

दिल्ली के करावल नगर में जारी बादाम मज़दूरों का जुझारू संघर्ष : एक रिपोर्ट

हड़ताल मज़दूरों को सिखाती है कि मालिकों की शक्ति तथा मज़दूरों की शक्ति किसमें निहित होती है; वह उन्हें केवल अपने मालिक और केवल अपने साथियों के बारे में ही नहीं, वरन तमाम मालिकों, पूँजीपतियों के पूरे वर्ग, मज़दूरों के पूरे वर्ग के बारे में सोचना सिखाती है। जब किसी फ़ैक्टरी का मालिक, जिसने मज़दूरों की कई पीढ़ियों के परिश्रम के बल पर करोड़ों की धनराशि जमा की है, मज़दूरी में मामूली वृद्धि करने से इन्कार करता है, यही नहीं, उसे घटाने का प्रयत्न तक करता है और मज़दूरों द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में हज़ारों भूखे परिवारों को सड़कों पर धकेल देता है, तो मज़दूरों के सामने यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि पूँजीपति वर्ग समग्र रूप में समग्र मज़दूर वर्ग का दुश्मन है और मज़दूर केवल अपने ऊपर और अपनी संयुक्त कार्रवाई पर ही भरोसा कर सकते हैं।

दिल्ली में पानी की समस्या से जूझती जनता

केजरीवाल सरकार ने 700 लीटर मुफ़्त पानी देना का जो वायदा किया उसे केवल एक ख़ास वर्ग के लिए निभाया है। एक तरफ़ दिल्ली के मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग की सोसायटी में पानी की दिक्कत होने पर उसे तुरन्त प्रभाव से ठीक कर दिया जाता है। उनके कुत्ते और गाड़ी धोने के लिए भी पर्याप्त पानी सप्लाई किया जाता है। इसके विपरीत दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पीने के पानी के लिये भी लम्बी कतारें देखने को मिलती हैं। मज़दूर आबादी सप्ताह भर के लिए पानी स्टोर करके रखती है। इस पानी की गुणवत्ता भी पीने लायक नहीं है। इन इलाक़ों में 350 से 450 टीडीएस के बीच पानी की सप्लाई होती है। लेकिन दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पानी की समस्या के लिए कोई समाधान नहीं किया जाता। मज़दूर इलाक़ों में पानी को लेकर जनता के जुझारू आन्दोलन संगठित करने की आवश्यकता है और इस दिशा में प्रयास चल भी रहे हैं।