काँवड़ यात्रा के ज़रिये फैलाया गया साम्प्रदायिक उन्माद!
अदिति
हर साल की तरह इस साल भी सावन माह में काँवड़ यात्रा की शुरूआत हुई। काँवड़ यात्रियों के सामने इस बार भी भाजपा सरकार कालीन की तरह बिछ गयी। जगह-जगह हेलीकॉप्टर से काँवड़ियों पर फूल बरसाये गये। साथ ही प्रशासन को भी काँवड़ियों की सेवा में लगा दिया गया ताकि काँवड़ यात्रा के बहाने फ़ासीवादी सरकार ने अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा दे सके। हर साल की तरह इस साल भी यात्रा के मार्ग में पड़ने वाली तमाम मज़ारों और मस्जिदों को भगवा कपड़े से ढक दिया गया। दिल्ली-देहरादून हाईवे, दिल्ली रोड, हापुड़ रोड जैसी तमाम जगहों के आसपास मजारों व मस्जिदों को कपड़े से ढका गया था।
काँवड़ यात्रा के शुरू होते ही हुड़दंगी भीड़ द्वारा अल्पसंख्यकों और आम जनता पर हमले तोड़फोड़ इत्यादि की घटनाएँ सामने आयी। भाजपा के रंगा-बिल्ला के राज में काँवड़ यात्रा अब कोई “धार्मिक अनुष्ठान” ना होकर एक ‘राजनीतिक अनुष्ठान’ में तब्दील हो चुकी है। सरकारी आँकड़ों की माने तो इस साल 7 करोड़ “श्रद्धालु” उत्तराखण्ड़ गंगा जल लेने के लिए पहुँचे थे। वैसे इससे देश में बेरोज़गार लम्पट टुटपुँजिया और लम्पट मज़दूर आबादी के आकार के बारे में भी पता चलता है जिसके जीवन और दिमाग़ की ख़ाली जगह को संघी फ़ासीवादी प्रचार भरता है और उसे नफ़रत और उन्माद में बहाता है। बहरहाल यात्रा जुलाई माह में शुरू हुई और डीजे की धुनों पर धमकते-ठुमकते “शिवभक्त” अपनी “भक्ति भाव” का परिचय देते हुए हरिद्वार पहुँचे। लेकिन उनकी भक्ति की पराकाष्ठा तो देखते ही बनती थी। उन्होने तमाम जगहों पर तोड़-फोड़ की गतिविधियों को अंजाम दिया। इसकी ज़द में अच्छी-ख़ासी संख्या में हिन्दू आबादी भी आयी और उसमें से अच्छे-ख़ासों को यह समझ में आया के साम्प्रदायिकता के दानव को खिला-पिलाकर उन्होंने अपने ही पाँवों पर कुल्हाड़ी मार ली है। खाने में प्याज़ होने के शक़ मात्र से ढाबों पर तोड़फोड़ की और काँवड़ खण्डित होने के शक़ मात्र से गाड़ियों पर हमला किया। इस सावन माह में यात्रा के दौरान कुछ घटनाएँ हुई, उसके चन्द उदाहरण:-
- हरियाणा के सोनीपत जिले के खेड़ी दमकन गाँव में काँवड़ यात्रा के दौरान मामूली कहा सुनी में सीआरपीएफ जवान कृष्ण की हत्या कर दी गयी।
- मिर्ज़ापुर में रेलवे स्टेशन पर टिकट लेने को लेकर सीआरपीएफ जवान से बहस के दौरान दर्जन भर काँवड़ियों ने जवान को बुरे तरीके से पीटा, जिसमें सात काँवड़ियों को दोषी पाया गया। पर हुआ कुछ भी नहीं!
- सहारनपुर में काँवड़ियों ने काँवड़ खण्डित होने के सन्देह पर एक गाड़ी पर ख़ूब डण्डे बरसाये और गाड़ी को क्षतिग्रस्त किया गया। इस दौरान सैकड़ों काँवड़ियों ने उन्माद फैलाया।
- मुजफ्फ़रनगर में ‘पहचान’ अभियान चलाने वाले यशवीर जी महाराज स्वामी ने तो यहाँ तक कह दिया की काँवड़ यात्रा के दौरान उन्माद और तोड़फोड़ विपक्षी पार्टी द्वारा की गयी साज़िश है। काँवड़ यात्रा में उपद्रव करने वाले असामाजिक तत्व मुसलमान है।
- काँवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान:- ‘काँवड़िये बेहद श्रद्धा भक्ति भाव से यात्रा करते हैं, उन्हें उपद्रवी कहना ग़लत है। जो काँवड़ियों को बदनाम कर रहे हैं, वो भारत की एकता को तोड़ना चाहते हैं।’
ज़ाहिर है कि काँवड़ यात्रा के बहाने फासीवादी मोदी सरकार तमाम लम्पटों और उपद्रवियों को शह देने का काम कर रही है।
यात्रा के दौरान तेज आवाज़ में डीजे बजाना, मारपीट करना, किसी भी शक़ मात्र से किसी की जान ले लेना, छेड़खानी करना, ड्रग्स लेकर आम राहगीरों को उत्पीड़ित करना… क्या यह सहने योग्य है? इसका भला धर्म-कर्म से क्या लेना-देना? यह तो एक दिशाहीन लम्पट आबादी को साम्प्रदायिक उन्माद से भरकर अपनी राजनीति के लिए फ़ासीवादी संघ व भाजपा द्वारा इस्तेमाल किया जाना है। यात्रा के दौरान तमाम ऐसी घटनाएँ सामने आयी, जिससे यह पता चलता है कि काँवड़ यात्रा लम्पटों की एक ऐसी भीड़ बन गयी है, जिसमें कोई भी गैरक़ानूनी काम करने का लाइसेंस मिल जाता है। इसका एक सीधा-सा कारण है बेरोज़गारी। काँवड़ यात्रा में सबसे ज़्यादा भागीदारी करने वाले हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान इत्यादि प्रदेश के लोग हैं। हरियाणा की बात करें तो, हरियाणा भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी वाला प्रदेश है। 2022 के अनुसार हरियाणा में बेरोज़गारी दर 37.4% है। इसी के साथ रोजगार के मसले में राजस्थान और उत्तर प्रदेश की स्थिति भी कोई ज्यादा सन्तोषजनक नहीं है। काँवड़ यात्रा के बहाने फ़ासीवादी सरकार अपना प्रचार और साथ ही अपना आतंक जनता में बैठना चाहती है। किसी भी घटना या मारपीट का पूरा ठीकरा कर मुसलमान पर फोड़ा जा सकता है। लेकिन असली मकसद है समूची मेहनतकश जनता में इस लम्पट फ़ासीवादी भीड़ का डर बिठाना। यह भीड़ तैयार भी इसलिए ही की जा रही है कि कल फ़ासीवादी अपने कुकर्मों के लिए इसका इस्तेमाल कर सकें।
हमें इस समूची साज़िश को समझना चाहिए और खुद संगठित होना चाहिए कि जब ज़रूरत पड़े फ़ासीवादी गुण्डों-लम्पटों की भीड़ का जवाब दे सकें। साथ ही, इस भीड़ में शामिल मेहनतकश आबादी के तत्वों के बीच लम्बे प्रचार के साथ उन्हें उनकी ज़िन्दगी की सच्चाई से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि वे अपने दुश्मनों और अपने दोस्तों की सही पहचान कर सकें और साम्प्रदायिक उन्माद में न बहें।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2025