Category Archives: चुनाव

लोकसभा चुनावों में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) के पाँच प्रत्याशियों का प्रदर्शन

इन सभी जगहों पर आरडब्ल्यूपीआई ने जनता के बीच क्रान्तिकारी प्रचार किया, समाजवादी क्रान्ति के कार्यक्रम का प्रचार किया, फ़ासीवादी मोदी सरकार और उसकी नीतियों को बेनक़ाब किया, समूची पूँजीवादी व्यवस्था को बेनक़ाब किया और जनता के ठोस मुद्दों पर एक ठोस कार्यक्रम और ठोस नारों के साथ काम किया। लोकसभा निर्वाचन मण्डल में हम आम तौर पर समूचे क्षेत्र को कवर नहीं कर सकते। वजह यह है कि ये इतने बड़े होते हैं कि इसमें क्रान्तिकारी प्रचार को पूर्णता के साथ करने के लिए जिस प्रकार के धनबल की ज़रूरत होती है, वह पूँजीवादी दलों के पास ही हो सकती है या फिर एक देशव्यापी क्रान्तिकारी पार्टी के पास। सभी लोकसभा सीटों पर मतदाताओं की औसत संख्या हमारे देश में 22,29,410 है। उनका भौगोलिक विस्तार भी भारी है।

लोकसभा चुनाव : बहुमत से पीछे रहने के बावजूद फ़ासीवादी भाजपा के  दाँत, नख और पंजे राज्यसत्ता में और अन्दर तक धँसे

लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। भाजपा भले ही अपने “400 पार” के नारे के बोझ तले धड़ाम से गिर चुकी हो, मगर जिस तरह पूरे चुनाव में गोदी मीडिया, ईडी, सीबीआई, चुनाव आयोग समेत पूँजीवादी राज्यसत्ता की समस्त मशीनरी ने भाजपा के पक्ष में सम्भावनाएँ पैदा करने का काम किया है, यह भाजपा-आरएसएस द्वारा राज्यसत्ता की मशीनरी में अन्दर तक की गयी घुसपैठ और उसके भीतर से किये गये ‘टेक ओवर’ के बारे में काफी कुछ बता देता है। इसके बावजूद एक तबका चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा के 240 सीट पर सिमट जाने से ख़ुशी की लहर पर सवार है और वह “लोकतंत्र की जीत” व “संविधान की मज़बूती” की दुहाई देते थक नहीं रहा है। ऐसे में “लोकतंत्र के त्यौहार” यानी 18वें  लोकसभा चुनाव (जिसका कुल ख़र्च लगभग 1.35 ट्रिलियन रुपये बताया जा रहा है) को समग्रता में देखने की ज़रूरत है, ताकि चुनाव नतीजों के शोर में व्यवस्थित तरीक़े से, पूँजीवादी औपचारिक मानकों से भी, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के हो रहे विघटन से दृष्टि ओझल न हो।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा पाँच लोकसभा सीटों पर की जा रही रणकौशलात्मक भागीदारी की विस्तृत रिपोर्ट 

आम मेहनतकश जनता के फ़ौरी और दूरगामी हितों को साधने का काम उसकी स्वतन्त्र क्रान्तिकारी पार्टी ही कर सकती है। आम मेहनतकश जनता के स्वतन्त्र क्रान्तिकारी पक्ष को प्रस्तुत करते हुए भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में भागीदारी कर रही है। इसके पहले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव एवं इसके उपरान्त कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा भागीदारी की गयी थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ (RWPI) ने छह लोकसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवारों को उतारा है : दिल्ली उत्तर-पूर्व, दिल्ली उत्तर-पश्चिम, मुम्बई उत्तर-पूर्व, पुणे, अम्बेडकरनगर और कुरुक्षेत्र, हालाँकि, साज़िशाना ढंग से उत्तर-पूर्व मुम्बई से आरडबल्यूपीआई के उम्मीदवार का पर्चा रद्द कर दिया गया है।

फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में क्यों ‘इण्डिया’ गठबन्धन नहीं हो सकता  भाजपा का विकल्प?

अपने दूरगामी वर्ग संघर्ष के हितों को ध्यान में रखते हुए जनता को यह सुनिश्चित करना होगा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को शिकस्त दी जाय। यह फ़ासीवाद की निर्णायक पराजय नहीं होगी, लेकिन यह फ़ासीवादी शक्तियों को एक तात्कालिक झटका देगी और जनता को अपनी शक्तियों को क्रान्तिकारी नेतृत्व के मातहत संचित और संगठित करने की एक मोहलत, वक़्त और मौका देगी। इसलिए यह नकारात्मक नारा हमारे लिए आज प्रासंगिक है कि भाजपा को हराया जाये। यह कोई सकारात्मक नारा नहीं है जो सीधे किसी अन्य पूँजीवादी दल या पूँजीवादी दलों के गठबन्धन को समर्थन देता है (जैसा कि संसदीय वामपन्थी, सुधारवादी और उदारवादी देते हैं), क्योंकि वह सर्वहारा पक्ष की स्वतन्त्रता को गिरवी रखने के समान होगा, वह किसी अन्य पूँजीवादी दल या उनके किसी गठबन्धन के राजनीतिक कार्यक्रम को समर्थन देना होगा।

लोकसभा चुनाव 2024 – हमारी चुनौतियाँ, हमारे कार्यभार, हमारा कार्यक्रम

देश की अट्ठारहवीं लोकसभा  के लिए चुनाव एक ऐसे समय में होने जा रहे हैं, जब हमारे देश में फ़ासीवादी उभार एक नये चरण में पहुँच चुका है। 2019 से 2024 के बीच ही राज्यसत्ता के फ़ासीवादीकरण और समाज में फ़ासीवादी सामाजिक आन्दोलन का उभार गुणात्मक रूप से नये चरण में गया है। ग़ौरतलब है कि किसी देश में फ़ासीवादी सामाजिक आन्दोलन का उभार और राज्यसत्ता का फ़ासीवादीकरण एक प्रक्रिया होती है, कोई घटना नहीं जो किसी निश्चित तिथि पर घटित होती है। इसलिए इसे समझा भी एक प्रक्रिया के तौर पर ही जा सकता है, जो कई चरणों और दौरों से गुज़रती है।

क्या ईवीएम सचमुच अभेद्य है?

विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि चुनाव आयोग की जानकारी के बिना बड़ी संख्या में छेड़छाड़ की गयी या नकली ईवीएम को असली ईवीएम से बदलना तीन चरणों में सम्भव है। पहला, ईवीएम निर्माण करने वाली कम्पनियों भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (ईसीआईएल) में ईवीएम-निर्माण चरण में; दूसरा, गैर-चुनाव अवधि के दौरान जिला स्तर पर जब ईवीएम को अपर्याप्त सुरक्षा प्रणालियों के साथ कई स्थानों पर पुराने गोदामों में संग्रहीत किया जाता है; और तीसरा, चुनाव से पहले प्रथम-स्तरीय जाँच के चरण में जब ईवीएम की सेवा बीईएल और ईसीआईएल के अधिकृत तकनीशियनों द्वारा की जाती है।

आँगनवाड़ी कर्मियों ने लोकसभा चुनाव में मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र पक्ष को मज़बूत करने का निर्णय लिया!!

मोदी सरकार के पिछले 10 साल देश मेहनतकश अवाम के लिए नर्क़ साबित हुए हैं। भाजपा और मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतियों की वजह से जनता के ऊपर बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता का ऐसा कहर टूटा है, जिसकी मिसाल हमारे देश के इतिहास में मौजूद नहीं है। नोटबन्दी, जीएसटी, कोरोना महामारी के दौरान का कुप्रबन्धन, राफ़ेल घोटाला, अडानी घोटाला, इलेक्टोरल बॉण्ड महाघोटाला, ईवीएम घोटाला, आसमान छूती महँगाई और बेरोज़गारी दर, साम्प्रदायिकता का ज़हर, मज़दूर विरोधी लेबर कोड, जन आन्दोलनों का बर्बर दमन : यही नेमतें हैं 10 साल के मोदी राज की! आज अमीरों और धन्नासेठों की सबसे चहेती पार्टी भाजपा यूँ ही नहीं है और हजारों करोड़ रुपए का चन्दा इन धन्नासेठों ने मोदी को समाजसेवा के लिए तो दिया नहीं है। ज़ाहिरा तौर पर इसका मतलब ही यह है कि भाजपा इस दौर में पूँजीपति वर्ग की सबसे कारगर तरीक़े से सेवा कर सकती है और पूँजीपरस्त नीतियों को डण्डे के ज़ोर पर लागू करवा सकती है। यह एक फ़ासीवादी पार्टी है और इसलिए जनता की सबसे बड़ी दुश्मन है।

कर्नाटक चुनाव के नतीजे और मज़दूर-मेहनतकश वर्ग के लिए इसके मायने

भाजपा की चुनावी रैलियों से रोज़गार, शिक्षा, महँगाई, आवास और स्वास्थ्य नदारद थे और आते भी कैसे क्योंकि अभी सरकार में तो स्वयं भाजपा ही थी। भाजपा और संघ परिवार के लिए बिना कुछ किये वोट माँगने का सबसे सरल रास्ता होता है साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा देना। इसकी तैयारी इस वर्ष के अरम्भ से ही भाजपा ने नंगे तौर पर शुरू कर दी थी। जनवरी में कॉलेज में हिजाब पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। लोगों के बीच प्रतिरोध होने पर हिन्दुत्ववादी संगठनों को हिंसा की खुली छूट दे दी गयी।

चुनावी शिकस्त देकर फ़ासीवाद को हराने के मुंगेरी लालों के हसीन सपनों पर एक बार फिर पड़ा पानी!

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि जैसे-जैसे पूँजीवादी व्यवस्था का ढाँचागत आर्थिक संकट बढ़ता जाता है वैसे-वैसे फ़ासीवाद की ज़मीन भी उर्वर और विस्तारित होती जाती है। ऐसे संकट के समय बुर्जुआ वर्ग की सार्वत्रिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली फ़ासीवादी ताक़तों को बुर्जुआ जनवादी चुनाव में शिकस्त देकर फ़ासिज़्म को रोकने व परास्त करने का सपना देखने वाले भारत के तमाम मुंगेरी लालों (उदारवादियों, सुधारवादियों, वामपन्थी बुद्धिजीवियों और सामाजिक जनवादियों) को अपने हसीन सपने के बारे में एकबार फिर से सोचने की ज़रूरत है।

दिल्ली एमसीडी चुनाव में मेहनतकश जनता के समक्ष विकल्प क्या है?

4 दिसम्बर को दिल्ली में एमसीडी के चुनाव होने वाले हैं। मतलब यह कि फिर से सभी चुनावबाज़ पार्टियों द्वारा झूठे वादों के पुल बाँधे जायेंगे। चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी, सभी के द्वारा जुमले फेंके जायेंगे। ऐसे में मेहनतकश जनता के पास सिर्फ़ कम बुरा प्रतिनिधि चुनने का ही विकल्प होता है और आज के समय में तो कम बुरा तय करना भी मुश्किल होता जा रहा है। सच्चाई तो यही है कि इन सभी में से कोई भी मज़दूर-मेहनतकश जनता का विकल्प नहीं है।