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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबन्धन की भारी जीत! मज़दूर वर्ग की चुनौतियाँ बढ़ेंगी, ज़मीनी संघर्षों की तेज़ करनी होगी तैयारी!

मुसलमानों और सामाजिक आन्दोलनों को झूठे दुश्मन के रूप में चित्रित करके, मन्दिर-मस्जिद, गोमाता, लव-लैण्ड-वोट जिहाद, वक्फ़ बोर्ड आदि जैसे कई फ़र्ज़ी मुद्दे उठाकर समाज में भय का माहौल पैदा करके इनका जनाधार बनाया गया है। ऐसे में जब रोज़गार-महँगाई-मन्दी के चलते जनता के बीच भारी असन्तोष मौजूद है, तब भाजपा ने साम-दाम-दण्ड-भेद का इस्तेमाल कर मीडिया और आरएसएस कार्यकर्ताओं की मदद से व पूँजीपतियों द्वारा ख़र्च किये गये हज़ारों करोड़ रुपये का इस्तेमाल करके व इसके अलावा चुनाव में कटेंगे तो बँटेंगे, ओबीसी-मराठा मुद्दे पर भी ध्रुवीकरण करके, चुनाव आयोग की मदद से मतदाता सूची में बदलाव, सम्भावित तौर पर ईवीएम से चुनावों में हेरफेर करके और इसके साथ ही “लाडली बहन” जैसे लालच दिखाने वाली योजनाओं द्वारा एक बार फिर सत्ता तक पहुँचने में भाजपा-महायुति क़ामयाब रही है। इन सब कारणों में संघ परिवार के समर्पित हिन्दुत्व वोट बैंक और भाजपा के वास्तविक जनाधार की भूमिका को निश्चित रूप से नहीं भुलाया जाना चाहिए।

‘हरियाणा विधानसभा चुनाव – 2024’ में भाजपा की जीत के मायने और मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष की ज़रूरत

रोडवेज़ के निजीकरण का मुद्दा हो या कॉलेजों की बढ़ी हुई फ़ीसों का, निजीकरण का मुद्दा हो या ठेकाकरण का, सरकारी भ्रष्टाचार हो या नौकरशाही का भ्रष्टाचार, ग़रीब किसानों की लूट हो या मज़दूरों-कर्मचारियों का दमन-शोषण, दलितों के उत्पीड़न-शोषण के मामले हों या स्त्रियों के उत्पीड़न के मुद्दे हों, भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) ने विभिन्न जन-संघर्षों में यथासम्भव भागीदारी की है और कई जगहों पर इन संघर्षों को नेतृत्व भी दिया है। हरियाणा की जनता को यह बात समझनी होगी कि मज़दूरों, कर्मचारियों, ग़रीब किसानों, छात्रों, युवाओं, स्त्रियों समेत कमेरों के संघर्षों की दम पर ही भाजपा की फ़ासीवादी और जनविरोधी राजनीति को सही मायनों में टक्कर दी जा सकती है। किसी भी अन्य पूँजीवादी दल के भरोसे बैठे रहने से हमें हमारे हक़ नहीं मिलने वाले हैं। हमें अपना स्वतन्त्र क्रान्तिकारी राजनीतिक विकल्प  खड़ा करना होगा तथा मज़बूत करना होगा जिसमें हम पहले ही बहुत देर कर चुके हैं। एक ऐसा विकल्प जो सड़कों से लेकर संसद तक के संघर्षों में मेहनतकश जनता के हितों की नुमाइन्दगी कर सके। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) जनता का ऐसा ही विकल्प बनने के लिए प्रतिबद्ध है।

लोकसभा चुनावों में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) के पाँच प्रत्याशियों का प्रदर्शन

इन सभी जगहों पर आरडब्ल्यूपीआई ने जनता के बीच क्रान्तिकारी प्रचार किया, समाजवादी क्रान्ति के कार्यक्रम का प्रचार किया, फ़ासीवादी मोदी सरकार और उसकी नीतियों को बेनक़ाब किया, समूची पूँजीवादी व्यवस्था को बेनक़ाब किया और जनता के ठोस मुद्दों पर एक ठोस कार्यक्रम और ठोस नारों के साथ काम किया। लोकसभा निर्वाचन मण्डल में हम आम तौर पर समूचे क्षेत्र को कवर नहीं कर सकते। वजह यह है कि ये इतने बड़े होते हैं कि इसमें क्रान्तिकारी प्रचार को पूर्णता के साथ करने के लिए जिस प्रकार के धनबल की ज़रूरत होती है, वह पूँजीवादी दलों के पास ही हो सकती है या फिर एक देशव्यापी क्रान्तिकारी पार्टी के पास। सभी लोकसभा सीटों पर मतदाताओं की औसत संख्या हमारे देश में 22,29,410 है। उनका भौगोलिक विस्तार भी भारी है।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा पाँच लोकसभा सीटों पर की जा रही रणकौशलात्मक भागीदारी की विस्तृत रिपोर्ट 

आम मेहनतकश जनता के फ़ौरी और दूरगामी हितों को साधने का काम उसकी स्वतन्त्र क्रान्तिकारी पार्टी ही कर सकती है। आम मेहनतकश जनता के स्वतन्त्र क्रान्तिकारी पक्ष को प्रस्तुत करते हुए भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में भागीदारी कर रही है। इसके पहले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव एवं इसके उपरान्त कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा भागीदारी की गयी थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ (RWPI) ने छह लोकसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवारों को उतारा है : दिल्ली उत्तर-पूर्व, दिल्ली उत्तर-पश्चिम, मुम्बई उत्तर-पूर्व, पुणे, अम्बेडकरनगर और कुरुक्षेत्र, हालाँकि, साज़िशाना ढंग से उत्तर-पूर्व मुम्बई से आरडबल्यूपीआई के उम्मीदवार का पर्चा रद्द कर दिया गया है।

आँगनवाड़ी कर्मियों ने लोकसभा चुनाव में मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र पक्ष को मज़बूत करने का निर्णय लिया!!

मोदी सरकार के पिछले 10 साल देश मेहनतकश अवाम के लिए नर्क़ साबित हुए हैं। भाजपा और मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतियों की वजह से जनता के ऊपर बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता का ऐसा कहर टूटा है, जिसकी मिसाल हमारे देश के इतिहास में मौजूद नहीं है। नोटबन्दी, जीएसटी, कोरोना महामारी के दौरान का कुप्रबन्धन, राफ़ेल घोटाला, अडानी घोटाला, इलेक्टोरल बॉण्ड महाघोटाला, ईवीएम घोटाला, आसमान छूती महँगाई और बेरोज़गारी दर, साम्प्रदायिकता का ज़हर, मज़दूर विरोधी लेबर कोड, जन आन्दोलनों का बर्बर दमन : यही नेमतें हैं 10 साल के मोदी राज की! आज अमीरों और धन्नासेठों की सबसे चहेती पार्टी भाजपा यूँ ही नहीं है और हजारों करोड़ रुपए का चन्दा इन धन्नासेठों ने मोदी को समाजसेवा के लिए तो दिया नहीं है। ज़ाहिरा तौर पर इसका मतलब ही यह है कि भाजपा इस दौर में पूँजीपति वर्ग की सबसे कारगर तरीक़े से सेवा कर सकती है और पूँजीपरस्त नीतियों को डण्डे के ज़ोर पर लागू करवा सकती है। यह एक फ़ासीवादी पार्टी है और इसलिए जनता की सबसे बड़ी दुश्मन है।

दीघा विधानसभा क्षेत्र से भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का चुनावों में हस्तक्षेप

10 नवम्बर, पटना. (बिगुल संवाददाता)। बिहार विधानसभा चुनावों में पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र में नवनिर्मित भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने भी पहली बार वारुणी पूर्वा के रूप में अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। इस उम्मीदवार को 410 वोट प्राप्त हुए। वारुणी पूर्वा ने बताया कि पिछले कुछ माह से क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने पटना में अपने कार्यों की शुरुआत की थी। दीघा विधानसभा क्षेत्र बिहार का सबसे बड़ा विधानसभा क्षेत्र है और यहाँ पर क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का कार्य और पहुँच दो छोटे-से मज़दूर व निम्न मध्यवर्गीय इलाक़ों तक सीमित था। इन क्षेत्रों में क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी पिछले कुछ माह से मज़दूरों व आम मेहनतकश आबादी के मुद्दों को लेकर संघर्षों को संगठित करती रही है।

बिहार: दीघा विधानसभा सीट पर RWPI को मिले समर्थन के लिए इन्क़लाबी अभिवादन

इस विधानसभा चुनाव में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा भागीदारी एक रणकौशलात्मक हस्तक्षेप था, जिसके तहत चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया गया। साथ ही जनता के बीच मौजूद पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करने वाली तमाम चुनावबाज़ पार्टियों और पूँजीपतियों के रिश्ते का भी भण्डाफोड़ किया गया।

चुनावों में रणकौशलात्मक हस्तक्षेप की क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट कार्यदिशा क्या है?

आम तौर पर बुर्जुआ चुनावों और संसद में रणकौशलात्मक भागीदारी के प्रश्न पर मार्क्स और एंगेल्स के समय में भी कम्युनिस्ट अवस्थिति स्पष्ट थी। जिस प्रकार मार्क्स और एंगेल्स ने अपने समय के अराजकतावादी और ”वामपंथी” भटकावों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए इस अवस्थिति को विकसित किया था, उसी प्रकार लेनिन ने भी अपने दौर में मौजूद वामपंथी और दुस्साहसवादी अवस्थितियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए इसी अवस्थिति को विकसित किया। लेनिन के दौर में रणकौशलात्मक भागीदारी की कार्यदिशा इसलिए भी अधिक स्पष्टता के साथ विकसित हुई क्योंकि इस दौर में अन्तरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन में पार्टी का सिद्धान्त भी सांगोपांग रूप ले चुका था। इसका श्रेय भी लेनिन को ही जाता है। कम्युनिस्ट पार्टी कैसी हो, उसका ढाँचा और संगठन कैसा हो, इस बारे में लेनिन का चिन्तन आज भी सभी संजीदा मार्क्सवादी-लेनिनवादी क्रान्तिकारियों के लिए केन्द्रीय महत्व रखता है।

मज़दूरों-मेहन‍तकशों ने बनायी अपनी क्रान्तिकारी पार्टी!

‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ मज़दूर वर्ग की एक हिरावल पार्टी है जो कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद के क्रान्तिकारी उसूलों में यक़ीन करती है। यह पार्टी मानती है कि सर्वहारा वर्ग का ऐतिहासिक लक्ष्‍य है कि वह क्रान्तिकारी रास्‍ते से बुर्जुआ राज्‍यसत्ता का ध्‍वंस करके सर्वहारा वर्ग की सत्ता क़ायम करे और समाजवादी व्‍यवस्‍था का निर्माण करे। RWPI का मानना है कि मज़दूर सत्ता और समाजवादी व्‍यवस्‍था अन्‍तत: इसी रास्‍ते से बन सकते हैं। लेकिन समाजवादी क्रान्ति से पहले भी एक सही क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी को पूँजीवादी चुनावों में मज़दूर वर्ग के स्‍वतन्‍त्र क्रान्तिकारी पक्ष की हैसियत से हस्‍तक्षेप करना चाहिए और यदि वह संसद में अपने प्रतिनिधि भेजने में सफल होती है, तो उसे पूँजीवादी संसद के भीतर से पूँजीवादी संसदीय व्‍यवस्‍था की असलियत को आम मेहनतकश जनता के समक्ष उजागर करना चाहिए, ऐसे पूँजीवादी जनवादी अधिकारों को आम मेहनतकश जनता तक पहुँचाने के लिए हरसम्‍भव प्रयास करना चाहिए जो कि महज़ काग़ज़ पर उन्‍हें मिले हुए हैं, वास्‍तव में हासिल नहीं हैं, और आम मेहनतकश जनता के जीवन में सुधार के लिए जो भी सीमित कार्य किये जा सकते हैं, वे करने चाहिए।