लोकसभा चुनावों में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) के पाँच प्रत्याशियों का प्रदर्शन
भारत
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) ने इस बार के लोकसभा चुनाव में दूसरी बार रणकौशलात्मक भागीदारी की। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने पाँच सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे : दिल्ली उत्तर-पूर्व, दिल्ली उत्तर-पश्चिम, कुरुक्षेत्र, सन्तकबीर नगर और पुणे। इन सभी जगहों पर आरडब्ल्यूपीआई ने जनता के बीच क्रान्तिकारी प्रचार किया, समाजवादी क्रान्ति के कार्यक्रम का प्रचार किया, फ़ासीवादी मोदी सरकार और उसकी नीतियों को बेनक़ाब किया, समूची पूँजीवादी व्यवस्था को बेनक़ाब किया और जनता के ठोस मुद्दों पर एक ठोस कार्यक्रम और ठोस नारों के साथ काम किया। लोकसभा निर्वाचन मण्डल में हम आम तौर पर समूचे क्षेत्र को कवर नहीं कर सकते। वजह यह है कि ये इतने बड़े होते हैं कि इसमें क्रान्तिकारी प्रचार को पूर्णता के साथ करने के लिए जिस प्रकार के धनबल की ज़रूरत होती है, वह पूँजीवादी दलों के पास ही हो सकती है या फिर एक देशव्यापी क्रान्तिकारी पार्टी के पास। सभी लोकसभा सीटों पर मतदाताओं की औसत संख्या हमारे देश में 22,29,410 है। उनका भौगोलिक विस्तार भी भारी है।
हमने आम मेहनतकश जनता का आह्वान किया था कि उपरोक्त पाँच निर्वाचन मण्डलों में वह एकजुट होकर आरडब्ल्यूपीआई के उम्मीदवारों को वोट दे, जबकि बाकी सभी निर्वाचन मण्डलों में भाजपा की हार को सुनिश्चित करे। किसी अन्य पूँजीवादी पार्टी का सकारात्मक समर्थन करना एक स्वतन्त्र सर्वहारा अवस्थिति का परित्याग होता है। लेकिन फ़ासीवादी बुर्जुआ पार्टी अन्य सभी पूँजीवादी पार्टियों से भिन्न होती है। ऐसे में, सर्वहारा वर्ग की मनोगत शक्तियों की कमज़ोर और बिखरी स्थिति को देखते हुए यह नकारात्मक नारा ही सबसे सटीक नारा था। चुनावों के ठीक पहले आरडब्ल्यूपीआई की पहल और नेतृत्व में देश में एक तीन माह लम्बी चली, 8600 किलोमीटर, 13 राज्य और 85 से ज़्यादा ज़िलों को कवर करने वाली ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण भी आयोजित किया गया था जो 10 दिसम्बर 2023 से 3 मार्च 2024 तक चला। देश में फ़ासीवाद-विरोधी माहौल तैयार करने में तमाम प्रगतिशील, जनवादी व सेक्युलर ताक़तें सक्रिय थीं और इस यात्रा ने भी इस माहौल को बनाने में अहम योगदान किया। हमारा यह पूर्वानुमान था कि इस बार मोदी के पक्ष और विपक्ष में जिस प्रकार का ध्रुवीकरण है, उसके मद्देनज़र हमें मिलने वाले वोट पहले के मुकाबले कम हो सकते हैं। मोटा-मोटी हमारा पूर्वानुमान सही था।
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली व उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट पर भागीदारी
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की उम्मीदवार साथी अदिति को उत्तर-पश्चिमी दिल्ली सीट पर 790 वोट मिले और उत्तर-पूर्वी दिल्ली से साथी योगेश को 410 वोट ही मिले। उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में एक बहुत बड़ी आबादी ने अदिति और पार्टी के प्रचार को स्वीकार किया हालाँकि यह समर्थन वोटों की संख्या में नहीं झलका। यह पूँजीवादी चुनाव में सम्भव भी नहीं है क्योंकि इस चुनाव में वोट को पैसे, दारू और मुर्गा खिलाकर, जाति-धर्म के आधार पर बाँटकर खरीदा जाता है। एक बहुत बड़ी आबादी यह भी सोचती है कि मज़दूर पार्टी वाले बात तो सही कह रहे हैं लेकिन ये लोग चुनाव में जीतेंगे तो है नहीं, तो अपना वोट “बर्बाद” क्यों किया जाये। लेनिन ने भी कहा था कि वोट जनसमर्थन का सही बैरोमीटर नहीं है और असल में किसी पार्टी को कितना जनसमर्थन प्राप्त है यह जनआन्दोलनों, हड़तालों और पार्टी द्वारा चलाये जनअभियानों में जनता की भागीदारी से तय होता है।
साथ ही यह बात भी ग़ौर करने लायक है कि बवाना औद्योगिक क्षेत्र, शाहाबाद डेरी, भीम नगर व अनेक मज़दूर वर्गीय रिहायशी इलाक़ो में एक बड़ी आबादी का दिल्ली का वोट ही नहीं है। मेहनतकशों की एक आबादी मतदान के दिन भी फैक्टरियों में, घरों में काम कर रही थी। निश्चित ही हमारा प्रचार भी अभी व्यापक नहीं था और हम पूरे निर्वाचन क्षेत्र में नहीं पहुँच पाये। कुल 10 विधानसभा क्षेत्रों में से हम 4 विधानसभा में प्रचार कर पाये जिसमें भी सघन तौर पर हम दो विधानसभाओं के कुछ क्षेत्रों में प्रचार अभियान चला पाये। लेकिन धनबल, बाहुबल, जाति-धर्म की राजनीति के बीच हमने मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र पक्ष को मज़बूती से रखा और एक बड़ी आबादी ने हमें समर्थन भी दिया।
हमें अनेक मज़दूर यूनियनों व जनसंगठनों का भी समर्थन मिला। ‘दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन’, ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ और ‘बवाना औद्योगिक क्षेत्र मज़दूर यूनियन’ ने खुलकर हमें समर्थन दिया।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवार साथी योगेश खड़े हुए थे। यह राजधानी दिल्ली का सबसे घनी आबादी वाला लोकसभा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अनुमानतः 60 फ़ीसदी मज़दूर आबादी रहती है और इसमें भी लगभग 95 फ़ीसदी ठेका मज़दूर हैं। इस क्षेत्र में कई छोटे-छोटे लघु उद्योग सीलमपुर, जाफ़राबाद, करावल नगर, बुराड़ी, मुस्तफ़ाबाद, मौजपुर, खजूरी इलाकों में हैं। पार्टी का प्रचार भी इस वर्ग पृष्ठभूमि के चलते करावल नगर, खजूरी चौक के आसपास केन्द्रित रहा। RWPI ने मज़दूर आबादी और निम्नमध्यम वर्गीय आबादी के बीच अपने चुनावी प्रचार में ठेका प्रथा समाप्त करने, न्यूनतम मज़दूरी 30,000 रुपये करने और रोज़गार गारण्टी क़ानून पारित करने व अन्य मज़दूरवर्गीय माँगों को ज़ोरदार ढंग से उठाया। पार्टी के उम्मीदवार योगेश को इलाक़े के बादाम मज़दूरों का व्यापक समर्थन मिला लेकिन अधिकतर बादाम मज़दूरों के पास मतदाता पहचान पत्र है ही नहीं। ‘करावलनगर मज़दूर यूनियन’ और ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने लोकसभा चुनाव में हमारा समर्थन किया।
हरियाणा में कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र से भागीदारी
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने हरियाणा में कुरुक्षेत्र की सीट से भागीदारी की। हरियाणा में ग़रीब किसानों, खेत मज़दूरों, मनरेगा मज़दूरों, औद्योगिक श्रमिकों और नौजवान आबादी को केन्द्र में रखते हुए समाजवादी कार्यक्रम का लोकसभा क्षेत्र में प्रचार-प्रसार किया गया। हज़ारों की संख्या में पर्चे बाँटे गये, नुक्कड़ सभाएँ और गली-बैठकें आयोजित की गयी। प्रचार अभियान का ज़्यादा ज़ोर कलायत और कैथल विधानसभा क्षेत्रों में केन्द्रित रहा क्योंकि यहाँ पर RWPI के साथी पिछले लम्बे समय से सामाजिक-राजनीतिक काम करते रहे हैं। जनसम्पर्क अभियानों के दौरान शिक्षा-स्वास्थ्य-रोज़गार-आवास-खेती-मज़दूरी आदि से जुड़े बहुत सारे नये पहलू कार्यकर्ताओं की नज़र में आये। कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का प्रचार अभियान मुख्यतः ग़रीब किसान आबादी, खेतिहर मज़दूरों व मनरेगा मज़दूरों के बीच केन्द्रित रहा। यहाँ से पार्टी के उम्मीदवार रमेश खटकड़ थे। हमारे बेहद सीमित संसाधनों और मुख्य तौर दो विधानसभा तक प्रचार के सीमित रहने के बावजूद हमें 757 मत प्राप्त हुए हैं। ये राजनीतिक वोट हैं, जो आरडब्ल्यूपीआई के कार्यक्रम व विचारधारा के आधार पर दिये गये हैं। पूँजीवादी चुनावों में समर्थन के मतों में रूपान्तरित होने के पीछे बहुत से पहलू काम कर रहे होते हैं, जैसे जातिवाद, धनबल, बाहुबल आदि, जिन्हें जनता की राजनीतिक वर्ग चेतना के स्तरोन्नयन के साथ ही खत्म किया जा सकता है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दौरान हम लाखों लोगों तक जनता का क्रान्तिकारी एजेण्डा और कमेरे तबकों के असली मुद्दे ले जाने में कामयाब रहे हैं। निश्चित तौर पर मज़दूर पार्टी को जनता के बीच मज़बूत विकल्प के तौर पर उभरने में अभी समय लगेगा लेकिन जहाँ भी प्रचार टीम गयी लोगों ने पार्टी के एजेण्डे का खुलकर समर्थन किया। आने वाले समय में और व्यापक ढंग से पार्टी के समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया जायेगा।
महाराष्ट्र में पुणे लोकसभा सीट से भागीदारी
महाराष्ट्र में आर.डब्लू.पी.आई ने पुणे और मुम्बई (नॉर्थ-इस्ट) इन दो जगहों पर क्रमश: कॉमरेड अश्विनी खैरनार और कॉमरेड बबन ठोके को उम्मीदवारी दी थी। पुणे में शुरुआती दिनों में लगभग एक महीना घर-घर व गली-गली जाकर सघन अभियान चलाया गया, भाजपा की फ़ासीवादी राजनीति का पर्दाफ़ाश किया व मज़दूरों के स्वतन्त्र विकल्प को चुनने की अपील की गयी। यह अभियान मेहनतकशों के इलाक़ों में ही चलाया गया। भाजपा के प्रति जनता में गुस्सा तो साफ़ तौर पर दिख ही रहा था लेकिन भाजपा को हराने की चाहत और “वोट कटने” का डर मेहनतकशों में इतना तीव्र हो गया था कि कई लोगो ने हमारी बात से सहमत होते हुए भी चुनाव न लड़ने के लिए कहा। इससे पता चलता है कि चुनावी राजनीति में भी स्वतन्त्र मज़दूरवर्गीय भूमिका की ज़रूरत का एहसास जनता में अभी कम है। सीमित शक्ति व संसाधन के बावजूद लगभग 50 दिन के अभियान में अंदाज़न एक लाख लोगों तक प्रचार अभियान पहुँचा और लगभग 10,000 लोगों ने आर्थिक सहयोग किया। चुनाव में कुल 415 वोट प्राप्त हुए, जो इस विशेष राजनीतिक परिस्थिति में हुए ध्रुवीकरण के मुताबिक आश्चर्यजनक नहीं था। चुनाव के नतीजे वाले दिन ईवीएम ख़राब हुए, कुछ ईवीएम मशीनों के सील टूटे हुए थे। इसपर साथी अश्विनी द्वारा की गयी आपत्ति के बावजूद आरओ ने कार्यवाई नहीं की। इस दिन भाजपा ने कई काउंटिंग एजेण्ट को भी ख़रीदने की कोशिश की। यह दर्शाता है भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए तमाम हथकण्डे अपनाये।
मुंबई (नॉर्थ-इस्ट) में जनता में चलने वाले प्रचार अभियान के प्रभाव और पिछले कुछ दिनों में आर.डब्लू.पी.आई की जनता में बढ़ी हुई पहुँच के डर से तमाम पूँजीवादी पार्टियों ने आरओ पर दवाब बनाकर बबन ठोके का नामांकन रद्द करवा दिया। आरओ ने नाममात्र में तकनीकी ग़लतियों के आधार पर नामांकन को खारिज़ कर दिया, जिसे अन्तिम समय पर सूचित किया गया और उसे ठीक करने की मोहलत भी नहीं दी गयी। इसमें प्रशासन की ओर से पक्षपाती रवैया साफ़ दिख रहा था। आगामी विधानसभा चुनाव में भी इस सीट से मज़दूरपक्षीय उम्मीदवार को खड़ा किया जायेगा और तमाम पूँजीवादी चुनाबबाज़ पार्टियों का पर्दाफ़ाश किया जायेगा।
उत्तर प्रदेश में सन्तकबीरनगर सीट पर भागीदारी
इस सीट पर आरडब्ल्यूपीआई के प्रत्याशी साथी मित्रसेन को 2544 वोट मिले। इस लोकसभा क्षेत्र का विस्तार तीन ज़िलों में है जिसमें अम्बेडकरनगर, गोरखपुर व सन्तकबीरनगर शामिल हैं, जिसे इतने सीमित संसाधनों में कवर कर पाना मुश्किल था। इसमें हम सिर्फ़ आलापुर विधानसभा के भी कुछ ही गाँव में जा सके क्योंकि आलापुर विधानसभा क्षेत्र भी अपने आप में काफ़ी बड़ा क्षेत्र है जहाँ 400 से ज़्यादा गाँव हैं। यह 2544 वोट भी इसी विधानसभा के अलग-अलग गाँवों से हमे मिले हैं। पूरे इलाक़े में छोटी जोत की खेती होती है। साथ ही इलाक़े में तम्बाकू की खेती करने वाले छोटे किसान और खेत मज़दूर भी हैं। जिस ग्रामीण इलाक़े को केन्द्रित करके आरडब्ल्यूपीआई ने चुनाव प्रचार किया, उन गाँवों में लगभग हर परिवार से कोई न कोई सदस्य बाहर जाकर मज़दूरी करता है। सन्तकबीरनगर और आसपास के इलाक़ों में उद्योग-धन्धे नहीं के बराबर हैं। तमाम छोटे-मोटे उद्योग भी बरसों से बन्द पड़े हैं। छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को 50-100 किमी की दूरी तय करके गोरखपुर जाना पड़ता है। इलाक़े के जो प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कभी खुलते भी हैं, वहाँ भी न तो डॉक्टर हैं, न जाँच उपकरण और न ही दवाइयाँ। आरडब्ल्यूपीआई द्वारा उठाये गये शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार और न्यूनतम मज़दूरी के मुद्दों को जनता का व्यापक समर्थन मिला। बहुत-सी महिलाओं ने आरडब्ल्यूपीआई के प्रचार कार्य को आगे बढ़ाने के लिए सभाओं के दौरान सहयोग के डिब्बों में पैसे डाले। बहुत से युवाओं और नागरिकों ने नम्बर दिये। बाज़ारों में प्रचार के दौरान बहुत से रेहड़ी-खोमचा लगाने वालों, सड़क किनारे दुकान लगाने वालों का कहना था कि इस तरह का प्रचार उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। सभी जगहों पर लोगों ने बात सुनने के बाद ख़ुद ही आगे बढ़कर सहयोग किया। आरडब्ल्यूपीआई समाजवादी कार्यक्रम के प्रचार के जिस मुख्य मक़सद को लेकर चुनावों में उतरी थी, उन सभी मुद्दों पर लोगों का बहुत अच्छा समर्थन मिला।
कुल मिलाकर कहें तो सबसे प्रमुख सकारात्मक बात यह है कि इस अभियान के ज़रिये चुनाव के दौरान राजनीतिक तौर पर सक्रिय आबादी के बीच हमने समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया। यह सिर्फ़ मज़दूर वर्ग तक केन्द्रित नहीं रहा बल्कि आम जनता के हर तबके तक हमारी बात पहुँची। इस प्रचार के ज़रिये पूँजीपति वर्ग की पार्टियों का बेहतरीन भण्डाफोड़ भी किया गया। कुछ क्षेत्रों में हमने मज़दूरों के बीच वालण्टियर कोर भी खड़ी की है। वहीं नकारात्मक के तौर पर जो बात उभर कर आयी उसके पीछे एक छोटी पार्टी होने के वस्तुगत कारण अधिक थे जिस कारण हम जनता के व्यापक हिस्से में प्रचार नहीं कर पाये। दूसरा, दिल्ली में रह रही मज़दूर आबादी के एक बड़े हिस्से का वोटर कार्ड यहाँ नहीं है जिस कारण वे वोट नहीं डाल सकते हैं। आगे पार्टी की तरफ़ से इस बाबत मतदाता कार्ड कैम्प भी लगवाये जायेंगे। उन इलाक़ों में प्रचार को अधिक सकारात्मक रुख के साथ लोगों ने सुना और वोट की संख्या भी ठीक रही जहाँ जनता के बीच हमारे संस्थाबद्ध सुधार कार्य चल रहे हैं। पार्टी को इस ओर भी विशेष ज़ोर देना होगा, यह कार्य फ़ासीवाद के विरुद्ध हमारी रणनीति का भी अहम हिस्सा है।
आगे का रास्ता क्या होगा
RWPI मज़दूरों का अपना स्वतन्त्र क्रान्तिकारी विकल्प है। अभी यह अपनी पहचान को स्थापित करने की ही मंज़िल में है। अभी व्यापक मेहनतकश जनसमुदाय तक इस नाम को पहुँचने और स्थापित होने में समय लगेगा, जो कि लाज़िमी है, क्योंकि यह किसी पूँजीवादी घराने, पूँजीवादी चुनावी ट्रस्टों, एनजीओ, फ़ण्डिंग एजेंसियों आदि के वित्तपोषण पर नहीं टिकी है। पूरा चुनाव अभियान RWPI ने जनता के बीच से और प्रगतिशील व्यक्तियों के बीच से जुटाये सहयोग से चलाया और समझा जा सकता है कि लोकसभा के विशाल निर्वाचन मण्डल को पूरी तरह ऐसे प्रचार से समेट पाना भी मुमकिन नहीं होता। कारपोरेट मीडिया का समर्थन आपके पास नहीं होता जिससे कि उस आबादी तक भी आपकी बात पहुँच सके, जिस तक आप स्वयं भौतिक रूप में नहीं पहुँच सकते। इन सभी सीमाओं के बावजूद RWPI को अपने प्रचार अभियान और कई लोकसभा सीटों पर वोटों के रूप में भी जनता का अच्छा समर्थन प्राप्त हुआ है। आने वाले समय में इस प्रदर्शन को पार्टी और बेहतर बनायेगी और पूँजीवादी संसद में मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधि और स्वर के रूप में पहुँचेने का प्रयास करेगी। आने वाले समय में RWPI आम मेहनतकश जनता के सभी मुद्दों पर उन्हें गोलबन्द और संगठित करना जारी रखेगी और उसके राजनीतिक विकल्प के तौर पर खड़ी होगी।
जिन मुद्दों को लेकर हमने संसदीय चुनाव में हस्तक्षेप किया था उन मुद्दों को लेकर ही हम फिर से जनता के बीच निरन्तर मौजूद रहेंगे। रोज़गार की गारण्टी, ठेका प्रथा का ख़ात्मा, न्यूनतम वेतन 30000 रुपये, नि:शुल्क और समान शिक्षा, नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा, पक्की नालियाँ, साफ़ पीने का पानी व अन्य तात्कालिक माँगों को मौजूदा सरकार के समक्ष रखने के लिए पार्टी द्वारा हर इलाक़े में मोहल्ला सभाओं का आयोजन किया जायेगा और इन सवालों को लेकर आन्दोलन शुरू किया जायेगा। RWPI सभी मज़दूर साथियों का आह्वान करती है कि वे पार्टी से जुडें और अन्य इंसाफ़पसन्द लोगों को भी जोड़ें। पार्टी समाजवादी कार्यक्रम की दीर्घकालिक माँगों को भी जनता में लगातार प्रचारित-प्रसारित करती रहेगी। आगे भी आरडब्ल्यूपीआई पूँजीवादी चुनावों में एक स्वतन्त्र सर्वहारा पक्ष के निर्माण के लिए काम जारी रखेगी और इसके ज़रिये जनता के बीच एक नये विकल्प के निर्माण, समाजवादी कार्यक्रम के प्रचार और पूँजीवादी व्यवस्था को बेनक़ाब करने का काम करती रहेगी। अन्त में, हम आरडब्ल्यूपीआई को दिये गये समर्थन के लिए मेहनतकश जनता, तमाम क्रान्तिकारी यूनियनों, जनसंगठनों व संस्थाओं को क्रान्तिकारी सलाम पेश करते हैं और सर्वहारा सत्ता व समाजवादी व्यवस्था के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने के अपने प्रयासों को जारी रखने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर करते हैं।
मज़दूर बिगुल, जून 2024
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन