काँवड़ यात्रा के ज़रिये फैलाया गया साम्प्रदायिक उन्माद!
यात्रा के दौरान तेज आवाज़ में डीजे बजाना, मारपीट करना, किसी भी शक़ मात्र से किसी की जान ले लेना, छेड़खानी करना, ड्रग्स लेकर आम राहगीरों को उत्पीड़ित करना… क्या यह सहने योग्य है? इसका भला धर्म-कर्म से क्या लेना-देना? यह तो एक दिशाहीन लम्पट आबादी को साम्प्रदायिक उन्माद से भरकर अपनी राजनीति के लिए फ़ासीवादी संघ व भाजपा द्वारा इस्तेमाल किया जाना है। यात्रा के दौरान तमाम ऐसी घटनाएँ सामने आयी, जिससे यह पता चलता है कि काँवड़ यात्रा लम्पटों की एक ऐसी भीड़ बन गयी है, जिसमें कोई भी गैरक़ानूनी काम करने का लाइसेंस मिल जाता है।