देशभर में साम्प्रदायिक उन्माद और नफ़रत का माहौल बनाने में जुटे संघ और भाजपा
अदिति
मोदी-नीत गठबन्धन सरकार के तीसरी बार सत्ता में पहुँचने के बाद सड़क पर फ़ासीवादी हिंसा की बढ़ती घटनाएँ हम देख रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा के ‘400 पार’ के नारे के फेल होने और सीटें घट जाने पर फ़ासिस्टों की बौखलाहट तरह-तरह से सामने आ रही है। देशभर में साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने में संघी फ़ासीवादी अपनी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में, महाराष्ट्र के बीड और इगतपुरी में, हिमाचल के शिमला, मंडी और संजौली में, उत्तराखण्ड में, चरखी दादरी में और मध्यप्रदेश के खरगोन में साम्प्रदायिक घटनाएँ देखने को मिली। इन सारी ही घटनाओं में आरोपी भाजपा या संघ परिवार के किसी आनुषंगिक संगठन से जुड़े हुए थे। इनमें से ज़्यादातर लोग स्वयं को “गौ-रक्षक” बताते हैं एवं गोकशी करने वालों को मौत के घाट उतार कर उन्हें सज़ा देने को “पवित्र काम” मानते हैं। हालाँकि ज़्यादातर घटनाओं में से में गोकशी की बात पूरी तरह से झूठी पायी गयी है। आइए, एक बार हालिया साम्प्रदायिक घटनाओं पर नज़र डालते हैं।
हरियाणा में चुनाव से पहले प्रदेश में दंगों का माहौल बनाया गया। इसी बीच कई मॉब-लिंचिंग यानी उन्मादी फ़ासीवादी भीड़ द्वारा हत्याओं या हिंसा की घटनाएँ हरियाणा में देखने को मिलीं।
- हरियाणा के चरखी दादरी ज़िले में स्थित बाढड़ा में पश्चिम बंगाल के रहने वाले युवक साबिर मलिक हत्याकाण्ड में बड़ा खुलासा हुआ। साबिर पर गाय का मांस खाने का आरोप लगाकर कथित गौरक्षकों ने पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी थी। लैब जाँच के दौरान जो मांस झुग्गियों से ज़ब्त किया गया था वो गोमांस नहीं पाया गया। “कार्रवाई” के नाम पर 10 गिरफ़्तारियाँ हुई, 6 आरोपी अभी भी फरार है। शक़ के आधार पर ही साबिर को भी अख़लाक़ की तरह मौत के घाट उतार दिया गया।
- अक्टूबर में उत्तर प्रदेश के बहराइच में दुर्गा पूजा विसर्जन के दौरान हुई हिंसा ने दंगे का रूप ले लिया। हिंसा की शुरुआत शोभायात्रा में बज रहे डीजे से हुई। बहराइच में महसी तहसील के महराजगंज कस्बे में गाने को लेकर हुए विवाद के बाद पथराव शुरू हुआ। इसके बाद हुई हिंसा में एक युवक गोपाल मिश्रा की मौत की घटना सामने आयी। एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुआ, जिसमें साफ़ दिख रहा था कि कैसे गोपाल मिश्रा पहले एक मुस्लिम के घर की छत पर चढ़ता है और वहाँ लगे हरे झण्डे को हटा देता है और उसकी जगह भगवा झण्डा लगा देता है और उन्मादी नारे लगाने लगता है। इस घटना के बाद बहराइच में जगह-जगह आगजनी, तोड़फोड़ और पथराव की खबरें सामने आयी। इस पूरे मसले में भी पुलिस प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। जब यह ख़बर देश भर में फैल गयी तो यूपी पुलिस ने “कार्रवाई” के नाम पर पाँच आरोपियों को गिरफ़्तार किया। दो आरोपियों की एनकाउण्टर की ख़बर आयी जिसमें दोनों ही मुस्लिम थे। गोदी मीडिया ने भी मसले पर खूब ज़ोर-शोर से उछाला। यहाँ भाजपा के ही एक नेता ने दंगा भड़काने की साज़िश का भण्डाफोड़ किया जिसका वीडियो भी वायरल हुआ।
- 30 अगस्त को शिमला के मल्याणा में एक 37 वर्षीय शख़्स विक्रम सिंह के साथ एक मुस्लिम युवक और उसके दोस्तों ने मारपीट की। इस झड़प में विक्रम सिंह बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था। पुलिस ने इस केस में छह आरोपियों को गिरफ़्तार किया था। आरोप है कि आरोपी हमले के बाद मस्जिद में आकर छुप गये थे। उसके बाद फ़ासीवादी संगठनों ने संजौली में प्रदर्शन किया और मस्जिद को अवैध बताते हुए गिराने की माँग की। मारपीट की घटना के अगले ही दिन उन्मादी भीड़ इस मस्जिद के सामने पहुँची और हनुमान चालीसा का पाठ किया। ज़ाहिर है, एक अकेली घटना को आधार बनाकर एक समूचे समुदाय को निशाना बनाया जा रहा था। भाजपा व संघ परिवार इस प्रकार की कार्रवाई लगातार ही करते हैं। अगर ऐसी घटना में आरोपी मुसलमान नहीं होते, तो उन्हें एक अकेली अलग-थलग घटना बताकर रफ़ा-दफ़ा किया जाता है, लेकिन अगर आरोपी कोई मुसलमान व्यक्ति है, तो उसे समूची मुसलमान आबादी व उनके अधिकारों पर हमले का आधार बना दिया जाता है।
- 11 सितम्बर के दिन संजौली (हिमाचल प्रदेश ) में संघियों द्वारा बड़े प्रदर्शन को अंजाम दिया गया। हज़ारों की तादाद में जुटी उग्र उन्मादी भीड़ ने सड़कों पर बैरिकेडिंग तोड़ी और कई घण्टों तक नारेबाज़ी की। प्रदर्शन के दौरान शहर में तनाव का माहौल बना। उपद्रवियों और पुलिस में झड़प भी हुई जिसमें कई लोग भी घायल हुए।
- 13 सितम्बर 2024 को हिमाचल प्रदेश के मण्डी शहर में जेल रोड में स्थित एक मस्जिद में कथित अवैध निर्माण को लेकर एक विरोध प्रदर्शन हुआ। संघी ऐसे मौक़े पर हर विवाद को साम्प्रदायिक रंग देने की तिकड़म में लगे रहते हैं। कांगड़ा ज़िले में नगरोटा बगवाँ के गाँधी मैदान के समीप स्थित एक शिवालय के शिवलिंग को तोड़ दिया गया। इस घटना पर भी संघियों ने क्षेत्र में तनाव का पूरा माहौल बनाया। इलाक़े से मुसलमानों के घरों और दुकानों को खाली करवाने की माँग की। बाद में पता चला कि शिवलिंग तोड़ने की घटना को एक हिन्दू महिला ने अंजाम दिया था, जिसकी मानसिक दशा ठीक नहीं थी।
- अक्टूबर 2024, उत्तर प्रदेश पीलीभीत जिले में एक मुस्लिम युवक की बजरंग दल के ज़िला अध्यक्ष सहित एक दर्जन से अधिक लोगों ने जमकर पिटाई की। पीड़ित युवक की पहचान रामपुर तालुके महाराजपुर निवासी चंगेज़ ख़ान के रूप में हुई है। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें आरोपी युवक को लाठी डंडों से पीटते हुए दिखायी दे रहे थे। आरोपियों ने युवक के गुप्तांगों पर भी डंडे से हमला किया। लेकिन पुलिस ने अभी तक आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की है।
- कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के इगतपुरी के पास धुले एक्सप्रेस में एक घटना घटी थी। महाराष्ट्र में चलती ट्रेन में एक बुजुर्ग से मारपीट की घटना सामने की गयी। संघियों ने बुजुर्ग पर बीफ़ लेकर चलने का आरोप लगाते हुए उन्हें थप्पड़ मारे और गालियाँ भी दी। इसका वीडियो सामने आने के बाद ठाणे प्रशासन ने पाँच से ज़्यादा यात्रियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की है। लेकिन ऐसी रपटों का क्या होता है, हम सभी जानते हैं।
- महाराष्ट्र के बीड जिले में गाय चोरी होने के झूठे आरोप में एक जूता व्यापारी पर गो रक्षकों की भीड़ ने हमला कर दिया। उसे गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती करवाया। इस मामले में पुलिस ने चार लोगो को गिरफ़्तार किया है।
यहाँ केवल कुछ उदाहरण दिये गये हैं, पर ऐसी घटनाओं की सूची काफ़ी लम्बी है। साम्प्रदायिक घटनाओं में आमतौर पर ग़रीब व निम्न मध्यवर्गीय मुसलमान को निशाना बनाया जाता है और एक बड़ी मुसलमान आबादी के बीच डर का माहौल पैदा किया जाता है। मॉब-लिंचिंग की इन घटनाओं पर सोचते समय यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि यह फ़ासीवादी राजनीति का ही एक हिस्सा है। शुरू में फ़ासीवादी राजनीति के तहत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है, बहुसंख्यक समुदाय की जनता के सामने उन्हें एक दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है, पूँजीवादी व्यवस्था के सभी पापों का ठीकरा इस काल्पनिक दुश्मन अल्पसंख्यक आबादी के सिर पर फोड़ दिया जाता है, फ़ासीवादी नेतृत्व को बहुसंख्यक समुदाय के अकेले प्रवक्ता और हृदय-सम्राट के रूप में पेश किया जाता है और बाद में हर उस शख़्स को जो फ़ासीवादी सरकार की आलोचना करता है, उसे इस नक़ली दुश्मन की छवि में समेट लिया जाता है। मक़सद होता है पूँजीवादी व्यवस्था व कारखाना मालिकों, ठेकेदारों, पूँजीवादी ज़मीन्दारों, धन्नासेठों, धनी व्यापारियों आदि के समूचे वर्ग को कठघरे से बाहर करना, उन्हें बचाना, जबकि उनके कुकर्मों का दोष आम मेहनतकश अल्पसंख्यक आबादी पर डाल देना और इस प्रकार समूची मेहनतकश आबादी को ही धर्म के नाम पर आपस में लड़वा देना, ताकि असली दुश्मन, यानी मालिकों, व्यापारियों, पूँजीवादी ज़मीन्दारों, व धन्नासेठों, यानी लुटेरों के वर्ग को बचाना। जो भी इस साज़िश के ख़िलाफ़ खड़ा होता है, उसे भी दुश्मन व “राष्ट्र-विरोधी” क़रार दे दिया जाता है।
नतीजतन, केवल किसी अल्पसंख्यक समुदाय को ही काल्पनिक दुश्मन के रूप में नहीं पेश किया जाता बल्कि नागरिक-जनवादी अधिकारों के लिए लड़ने वालों, मज़दूरों व उनकी ट्रेड यूनियनों, और फिर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को बहुसंख्यक समुदाय के दुश्मन के रूप में पेश किया जाता है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, वह तमाम लोग जो समाज में वैज्ञानिकता, तार्किकता एवं अन्धविश्वास उन्मूलन का काम करते हैं, उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जाता है। दाभोलकर, कलबुर्गी व पनसारे की हत्याएँ इस बात का सबूत है। मॉब लिंचिंग की इन घटनाओं के द्वारा आम लोगों के बीच उन्मादी माहौल तैयार किया जाता है ताकि इन नक़ली मुद्दों में फँसकर मेहनतकश अवाम अपने ज़रूरी एवं असली सवाल न उठा सकें इसलिए ऐसा किया जाता है।
मज़दूरों और मेहनतकशों को याद रखना चाहिए कि अगर वे दमन व उत्पीड़न, फ़ासीवादी हिंसा की हर घटना के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो वे शासक वर्ग, राज्यसत्ता और फ़ासीवादी शक्तियों द्वारा हिंसा करने के “अधिकार” को मौन सहमति देता है और इसी हिंसा का ये प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ कल मज़दूरों और मेहनतकशों के विरुद्ध भी खुलकर इस्तेमाल करेंगी और आज भी कर रही हैं। क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग एक क्रान्तिकारी राजनीतिक वर्ग के तौर पर अपने आपको तभी संगठित कर सकता है जब व शोषण, दमन व उत्पीड़न की हर घटना के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये चाहे वह उसके देश में हो या फिलिस्तीन में, चाहे वह मुसलमानों, औरतों या दलितों का ख़िलाफ़ हो या फिर दमित राष्ट्रों व राष्ट्रीयताओं के विरुद्ध। यह हमारा बुनियादी उसूल है।
आख़िर में हमें भगतसिंह की यह बात ज़रूर याद रखनी चाहिए :
“दंगों का इलाज़ यदि हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है। दरअसल भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी ख़राब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है। भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है। सच है, मरता क्या न करता… लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं। इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुक़सान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।”
(भगतसिंह के लेख – ‘साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज’ का एक अंश)
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