फ़ासिस्ट भाजपा और संघ के साम्प्रदायिक एजेण्डा और अम्बेडकर अस्पताल की आपराधिक लापरवाही के कारण नौजवान की मौत
अदिति
बीते 3 अक्टूबर को पाँच मन्दिर, शाहाबाद डेरी (दिल्ली) में लोग दशहरा के बाद मूर्ति विसर्जन के लिए गये थे। इस दौरान एक हादसा हुआ और लोगों से भरा ट्रक पलट गया। इसमें अनमोल नाम के युवक का पैर कट गया और उसे इलाक़े के सबसे पास स्थित अम्बेडकर अस्पताल में ले जाया गया। वहाँ समय से इलाज नहीं मिलने से उसकी मौत हो गयी।
अम्बेडकर अस्पताल में लाने के बाद लगभग 3 घण्टे तक अनमोल का इलाज नहीं किया गया और उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया। अनमोल को समय से आईसीयू में भर्ती करने के बजाय, अस्पताल के कुछ भ्रष्ट डॉक्टर परिजनों से रिश्वत माँगने और पुलिस को बुलाकर लोगों को धमकाने में व्यस्त थे। अगर समय से अम्बेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने इलाज शुरू कर दिया होता, तो आज अनमोल हमारे बीच होता। साफ़ है कि अम्बेडकर अस्पताल के भ्रष्ट प्रशासन की लापरवाहियों के कारण हमने अनमोल को खोया है। साथ ही हादसे में दर्जनों लोग घायल भी हुए थे। घायलों में चार लोगों की स्थिति काफ़ी नाज़ुक है। इनमें एक आकाश है, जिसके हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डी में गम्भीर चोटें आयी हैं, आकाश के हाथ को काटकर अलग कर दिया गया है। दूसरी हैं कमला देवी, जिनके हाथ का बहुत ज़्यादा मांस फट गया है। अर्जुन, आठवीं कक्षा में पढ़ता है, जिसके कूल्हे की हड्डी टूट गयी है। साथ ही बुचनी एक घरेलू कामगार हैं, जिनका पूरा जबड़ा टूट गया है, जो अभी भी बोलने में असमर्थ है। अम्बेडकर अस्पताल में ठीक से इलाज नहीं होने के कारण घायल लोग दिल्ली के अलग-अलग अस्पताल में चक्कर काट रहे हैं।
अम्बेडकर अस्पताल के प्रशासन की लापरवाही कोई नयी नहीं है। यहाँ लापरवाही के कारण पहले भी ऐसी घटनाएँ घट चुकी हैं। अम्बेडकर अस्पताल प्रशासन द्वारा की गयी लापरवाहियों पर नज़र डालते हैं:
- जून 2025, बाबा भीमराव अम्बेडकर अस्पताल में एक नवजात शिशु की मौत।
- जूनियर रेजिडेण्ट और सीनियर रेजिडेण्ट डॉक्टरों द्वारा कई अलग इंजेक्शनों को मिलाकर नसों में लगाया गया, जिससे गम्भीर जटिलताएँ उत्पन्न हुई।
- एक मरीज़ को अस्पताल में कथित रूप से लापरवाही भरे इलाज के कारण अपना हाथ गँवाना पड़ा था, जिसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने चिकित्सा लापरवाही के कारण मरीज़ को हुई क्षति के लिए अस्पताल को ₹23 लाख का मुआवज़ा देने के आदेश दिया।
- नवजात की मौत में लापरवाही का आरोप (2006)
- डॉक्टर के दुर्व्यवहार और लापरवाही का आरोप (2024): एक महिला ने अपनी बेटी की मृत्यु के सम्बन्ध में अम्बेडकर अस्पताल और एक डॉक्टर के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करायी थी, जिसमें दुर्व्यवहार और लापरवाही का आरोप लगाया गया था। जाँच समिति की रिपोर्ट में डॉक्टर के दुर्व्यवहार और कर्तव्य में लापरवाही की बात सामने आयी थी।
- 2014 में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अस्पताल पर एक गर्भवती महिला को भर्ती करने से मना करने के लिए जुर्माना लगाया था। महिला ने अस्पताल के बाहर ही बच्चे को जन्म दिया था। आयोग ने इसे चिकित्सा लापरवाही और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया।
मौजूदा घटना घटित ही इसलिए हुई क्योंकि यह पूरा कार्यक्रम धर्म के ज़रिये इलाके में साम्प्रदायिकीकरण की आग भड़काने के मक़सद से भाजपा सरकार व संघ परिवार ने आयोजित करवाया था। इस घटना के बाद अम्बेडकर अस्पताल के भ्रष्ट प्रशासन के रवैये ने रही-सही कसर पूरी कर दी। अम्बेडकर अस्पताल के भ्रष्ट प्रशासन की लापरवाहियों के कारण हमने अनमोल को खोया है। अस्पताल पहुँचने के 3 घण्टे तक इलाज नहीं करना, डॉक्टरों द्वारा रिश्वत की माँग करना, इसी कारण अनमोल की जान गयी है। इसी के साथ इलाक़े में भी स्थानीय प्रशासन और अस्पताल के दलाल मामले को ठण्डा करने की कोशिश में लगे हुए हैं। पूरे मामले को रफ़ा-दफ़ा करने के लिए अस्पताल प्रशासन, पुलिस प्रशासन और संघियों ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया है। लेकिन लोगों के दम पर और भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) के कार्यकर्ताओं द्वारा अनमोल का पोस्टमार्टम निष्पक्ष तरीक़े से करवाने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाया गया ताकि अनमोल की मौत का असल कारण सामने आ सके। नतीजतन, अनमोल का पोस्टमार्टम डॉक्टर्स के विशेष बोर्ड द्वारा किया गया। अनमोल की मौत कोई दुर्घटना से हुई मौत नहीं है, बल्कि इस मज़दूर-विरोधी पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा की गयी निर्मम हत्या है। मज़दूरों के बच्चे का पैर कट जाने के बावजूद उसे 3 घण्टे तक इलाज न मिलना, इस व्यवस्था की नंगी तस्वीर दिखाता है।
हमें ऐसी घटनाओं की जड़ तक जाकर ये भी समझना होगा कि ऐसी घटनाओं के पीछे का मुख्य कारण क्या है! आख़िर ऐसी स्थिति क्यों बनी, जिसमें इतने लोग घायल हुए? किस कारण अनमोल का पैर कटा? जो ट्रक पलटा था, उसमें लोगों को भेड़-बकरियों की तरह ठूँसा गया था। त्योहारों के माहौल को साम्प्रदायिक रंग देने के मक़सद से अलग-अलग मज़दूर बस्तियों में संघ द्वारा कई कार्यक्रम-रैलियाँ आयोजित किये गये थे। त्योहारों पर ऐसे कई कार्यक्रम भाजपा-आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल या इनके ही लग्गू-भग्गुओं द्वारा आयोजित करवाये जाते हैं। ये सभी कार्यक्रम भाजपा की तथाकथित “हिन्दू हितैषी सरकार” के दम पर आयोजित होते हैं। इनमें “हिन्दू राष्ट्र” बनाने के नारे दिये जाते हैं। “हम हिन्दू हैं” जैसे गीत बजाये जाते हैं और लोगों की आस्था का फ़ायदा उठाकर उन्हें इन कार्यक्रमों में शामिल किया जाता है। लेकिन क्या ऐसे हादसों से इन सारे ढकोसलों की पोलपट्टी नहीं खुल जाती? क्या मरने वाला युवक “हिन्दू” नहीं था? फिर क्यों एक “हिन्दू” युवक को अम्बेडकर अस्पताल में तड़प– तड़पकर कर मरने के लिए छोड़ दिया गया? कहाँ थे “हिन्दू रक्षा” के ढकोसले करने वाले भाजपा–आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के लोग? क्यों घटना होने के बाद ये लोग कहीं आस-पास भी नज़र नहीं आये? क्यों कोई “हिन्दू हितैषी” नेता वहाँ दिखाई तक नहीं दिया?
क्योंकि सवाल “हिन्दू” होने या न होने का है ही नहीं। इस घटना से यह बात स्पष्ट है। “हिन्दू हितैषी” होने का दावा करने वाली फ़ासीवादी भाजपा सरकार में एक “हिन्दू” बच्चा इलाज के बिना तड़प-तड़पकर अपना दम तोड़ देता है लेकिन ये सरकार उसको इलाज तक मुहैया नहीं कराती! कोई विधायक या सांसद इलाक़े में झाँकने तक नहीं आते हैं! साफ़ है कि आरएसएस और भाजपा हिन्दू धर्म का हवाला देकर सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा फ़ायदा उठाना चाहते हैं, धर्म के नाम पर हमें बाँटना चाहती है और आम मेहनतकश आबादी के युवाओं को अपनी साम्प्रदायिक फ़ासीवादी राजनीति का एक मोहरा बनाना चाहती है। हमारे इलाक़े में आरएसएस अपने साम्प्रदायिक ऐजेण्डे को पूरा करने के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करवाता रहता है, हमें “धर्म” और “राष्ट्र” की पट्टी पढ़ाता है। लेकिन साम्प्रदायिक फ़ासीवादी “राष्ट्र” ग़रीब मेहनतकशों की जगह क्या है, वह तमाम घटनाओं से रोज़-ब-रोज़ ज़ाहिर होता ही रहता है और इस घटना से भी ज़ाहिर हो गया।
तमाम धार्मिक त्योहारों पर संघ परिवार व उसके विभिन्न प्रकोष्ठ संगठनों की अगुवाई में, प्रशासन की नाक के नीचे से रैलियों का आयोजन किया जाता है। संघी लम्पटों की गाड़ियों में या रास्ते में विभिन्न जगह डीजे के ज़रिये बहुत भोंड़े और भद्दे मुस्लिम-विरोधी हिंस्र साम्प्रदायिक गीत बजाये जाते हैं। जानबूझकर मस्जिदों के सामने या मुस्लिम इलाक़ों को टारगेट किया जाता है। मुस्लिमों को उकसाया जाता है कि वो कुछ करें ताकि तोड़-फोड़, आगजनी की स्थिति पैदा की जा सके और पूरे माहौल को साम्प्रदायिक बनाया जा सके। सभी जानते हैं आर.एस.एस. और भाजपा लगातार इस किस्म की हरक़तों से साम्प्रदायिक उन्माद और हिंसा फैलाने की कोशिश करती है, लेकिन इन ग़ैर-कानूनी दंगाई हरक़तों पर प्रशासन मौन धारण किये रहता है। वजह साफ़ है: प्रशासन स्वयं इन साम्प्रदायिक फ़ासीवादी दंगाइयों के हाथ में है।
इसके कई उदाहरण इस बार काँवड़ यात्रा के दौरान भी देखने को मिले। इस बीच जो हिन्दू गाने त्योहारों पर रास्ते में या जुलूस में बजाये जा रहे हैं, उनमें कुछ गीतों के बोल इस तरह हैं ‘टोपी वाला भी सर झुकाकर जय श्री राम बोलेगा’, ‘सुन लो मुल्लो पाकिस्तानी, गुस्से में हैं बाबा बर्फानी’, ‘जो छुएगा हिन्दुओं की बस्ती को, मिटा डालेंगे उसकी हस्ती को’ आदि। इन मौकों पर इकट्ठा भीड़ का फ़ायदा उठाकर मुस्लिम दुकानों, घरों या मस्जिदों पर जबरिया भगवा झण्डा आदि लगाने के ज़रिये भी उकसाने की कोशिश होती है। माहौल ख़राब होने पर मरने वाले हमेशा ग़रीब घरों के बच्चे व युवा ही होते है। इस खेल में भाजपाइयों का मुहरा बनने से ज़्यादा मूर्खतापूर्ण काम ग़रीब मेहनतकशों के लिए और कुछ नहीं हो सकता है। उन्हें अपनी आँखें खोलनी चाहिए और समझ लेना चाहिए कि धर्म को लेकर फैलाये जा रहे उन्माद में उन्हें कतई नहीं बहना चाहिए। धर्म सभी का व्यक्तिगत मसला है और उसे राजनीति और सामाजिक जीवन में हमें प्रवेश करने ही नहीं देना चाहिए।
त्योहार तो बहाना है, असल मुद्दों से ध्यान भटकाना है! त्योहारों के आड़ में हमेशा मज़दूरों-मेहनतकशों को ही क्यों बलि चढ़ने के लिए तैयार किया जाता है? इन घटनाओं में कभी अमीरज़ादे और धन्नासेठ क्यों नहीं मरते? वे बस चाकू-छुरे, सिलेण्डर, तलवार, वगैरह सप्लाई करते हैं और इनका इस्तेमाल करके एक-दूसरे को मारने का काम हम ग़रीब मेहनतकशों का होता है, ताकि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़े, उन्माद बढ़े और उसका राजनीतिक फ़ायदा इन धन्नासेठों की पार्टी भाजपा को मिले। तय आपको करना है कि इनके इस गन्दे खेल में आपको प्यादा बनना है या नहीं।
हमें धर्म-जाति के मसलों में उलझा कर, आपस में लड़ाकर, हमारी असल लड़ाई से दूर कर दिया जाता है। एक तरफ़ चार नये लेबर कोड के ज़रिये मज़दूरों के काम के घण्टों को क़ानूनी तौर पर बढ़ाकर 12 घण्टे किया जा रहा है, मँहगाई चरम पर है और जन-कल्याणकारी योजनाओं में किया जा रहा ख़र्च हर बार के बजट में घटाया जा रहा है, पूँजीपतियों को तमाम छूटें और एक रुपया एकड़ पर ज़मीनें दी जा रही है, जबकि जनता को महँगाई और बेरोज़गारी की चक्की में पीस दिया गया है। कुल मिलाकर, मुनाफ़े की घटती दर से बिलबिलाये पूँजीपति वर्ग की सेवा में मोदी सरकार पूरी मुस्तैदी से डटी हुई है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि सरकार की जन-विरोधी नीतियों के कारण लोगों में असन्तोष बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में जनता का ध्यान असली समस्याओं से हटाने के लिए ही धार्मिक त्योहारों व आम तौर पर धर्म का इस्तेमाल कर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की निरन्तरता को बनाये रखना भाजपा व संघ परिवार की फ़ासीवादी राजनीति की ज़रूरत है। इन तमाम कार्यक्रमों के लिए फ़ासीवाद सरकारी मशीनरी का अपने हिसाब से बख़ूबी प्रयोग करता है क्योंकि फ़ासीवाद आज तमाम राजकीय संस्थाओं और उपकरणों में पैठ जमा चुका है। आज इसका जवाब मज़दूर वर्गीय एकजुटता के दम पर ही दिया जा सकता है।
पिछले लम्बे समय से भाजपा, आरएसएस के लोग इन त्योहारों को अपनी राजनीति का अखाड़ा बनाने में लगे हैं। आज पूरे देश में धार्मिक त्योहारों को साम्प्रदायिक रंग दिया जा रहा है। धर्म के नाम पर की जा रही इस राजनीति और फिर अम्बेडकर अस्पताल के आपराधिक रवैये ने ही अनमोल की जान ली है। घटना के बाद से इस सवाल को भी दबाया जा रहा है कि इस कार्यक्रम के आयोजक संगठन भी इस मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं। ये लोग इलाक़े में अपनी नज़र छिपाते हुए घूम रहे हैं और मसले को ‘दुर्घटना’ का नाम देने में लगे हैं। ये बात दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि, मज़दूरों-मेहनतकशों की लूट पर टिकी ये व्यवस्था हमें और हमारे बच्चों को मौत के अलावा कुछ नहीं दे सकती। हम मज़दूरों के बच्चे इस व्यवस्था के लिए मात्र कीड़े के समान हैं, जिनकी मौत से किसी “हिन्दू हितैषी” सरकार को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन चुनना हमें है या तो हम इनकी साम्प्रदायिक राजनीति में बहकर अपने बच्चों को दंगाई बनने देंगे, या असली मुद्दों पर एकजुट होकर मज़दूरों की एकता बनायेंगे? आख़िर कब तक हम चुपचाप बैठकर एक और अनमोल के मरने का इन्तज़ार करते रहेंगे?
हमें लूटने वाली सरकार, मालिक और पूरा अस्पताल प्रशासन एक है। इसलिए इस अपवित्र गठजोड़ को हम मज़दूरों को अपनी जुझारू वर्गीय एकजुटता से जवाब देना होगा ।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा अस्पताल प्रशासन और संघी दुष्प्रचार का लगातार पर्दाफ़ाश किया जा रहा है। मज़दूर पार्टी की तमाम गतिविधियों के कारण आरएसएस, बजरंग दल के दलालों द्वारा इलाक़े में कई अफ़वाहें भी उड़ायी गयी, लेकिन लोगों ने अपनी एकता के दम पर उन्हें चूहे की तरह बिल में छुपने के लिए मज़बूर कर दिया। साथ ही RWPI द्वारा इलाक़े में निम्न गतिविधियाँ जारी हैं:
- भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा इलाक़े में घायलों की मदद हेतु हरसम्भव प्रयास किये जा रहे हैं।
- मृतक अनमोल के निष्पक्ष पोस्टमार्टम के लिए प्रशासन को डॉक्टर्स का विशेष बोर्ड गठित करने के लिए मजबूर किया गया।
- इलाक़े में मेडिकल कैम्प लगाया गया, जिसमें घायलों को पट्टी करना, घाव साफ़ करना और उचित उपचार मुहैया कराना शामिल था।
- फ़ासीवादी एजेण्डे को नाक़ाम करते हुए पूरे इलाक़े में सघन अभियान चलाया गया। नुक्कड़-सभाओं का आयोजन किया गया। सघन पर्चा वितरण किया गया।
- पाँच मन्दिर, शाहाबाद डेरी में जन पंचायत का आयोजन किया गया, जिसमें संघ की पोल-पट्टी खोलते हुए विस्तार से बात रखी गयी और लोगों को इस पूरे मसले के प्रति जागरूक किया गया।
- इलाक़े के अलग-अलग हिस्सों में संघियों और अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत को उजागर करते हुए दो रैलियाँ निकाली गयीं।
- दोषियों पर क़ानूनी कार्यवाही करने और पीड़ितों को मुआवज़ा देने हेतु प्रशासन पर दवाब बनाया जा रहा है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2025













