भाजपा के “रामराज्य” में बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराध
अदिति
वैसे तो देश की सभी चुनावबाज़ पार्टियों में स्त्री-विरोधी अपराधी बैठे हुए हैं, लेकिन भाजपा ने इस मामले में भी सबको पीछे छोड़ दिया है। हाल की बलात्कार की तमाम घटनाओं में भाजपा से जुड़े हुए लोगों का लिप्त पाया जाना भाजपा के स्त्री-हितैषी होने के झूठ को तार-तार करके रख देता है और इस पार्टी के असली चेहरा को आम जनता के सामने बेनक़ाब करता है। 2014 के बाद से देश में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का ख़ूब शोर मचाया गया, लेकिन बीते 11 सालों में देश में महिलाओं के साथ बर्बर बलात्कार की कई ऐसी घटनाएँ घटी हैं, जो किसी भी संवेदनशील इन्सान को झकझोर कर रख देंगी। इन घटनाओं ने आम जनता के सामने कुछ बातों को एकदम स्पष्ट किया है। पहली बात तो यह कि भाजपा कितना भी स्त्री-हितैषी होने का दावा करे, बीते कुछ सालों में जिस बेशर्मी के साथ इसने बलात्कारियों को सुरक्षा और राजनीतिक संरक्षण देने का काम किया है, वह अभूतपूर्व है। दूसरा, देश में पुलिस-प्रशासन से लेकर क़ानून व्यवस्था का चरित्र भी स्त्री-विरोधी पितृसत्तात्मक मानसिकता से ग्रस्त है, जोकि पूँजीवादी व्यवस्था के वास्तविक चरित्र को भी साफ़ कर देता है।
‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसे ढोंग-पाखण्ड से भरे नारों की असल सच्चाई यह है कि घरों, सड़कों, खेतों-फैक्ट्रियों, ऑफ़िसों, विश्वविद्यालयों-कॉलेजों सभी जगह स्त्रियों का उत्पीड़न कम होने की जगह बढ़ गया है। बलात्कार और उसके बाद बर्बरतापूर्ण हत्या की घटनाएँ अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के अयोध्या से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में अंजाम दी गयी हैं। ऐसा नहीं है कि 2014 से पहले हमारा देश स्त्रियों के लिए कोई स्वर्ग था, लेकिन यह बात आज दिन के उजाले की तरह साफ़ हो चुकी है कि फ़ासीवादी भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद से इन घटनाओं में बेतहाशा तेज़ी आयी है। एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान लोकसभा में क़रीब 43 प्रतिशत सांसदों के विरुद्ध स्त्री-विरोधी अपराधों सहित तमाम तरह के आपराधिक आरोप हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या भाजपा के सांसदों की है, जिनमें से 30 प्रतिशत के विरुद्ध बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे गम्भीर स्त्री–विरोधी अपराधों के आरोप हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2020 में स्त्री-उत्पीड़न के 49,385 मामले दर्ज हुए थे, जो 2022 में बढ़कर 65,743 हो गये। स्त्रियों के उत्पीड़न में दोषियों को मिलने वाली सज़ा की दर 2021 के 25.2 प्रतिशत की तुलना में 2022 में घटकर 23.3 प्रतिशत हो गयी। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार 2019-20 की तुलना में घरेलू उत्पीड़न के मामलों में 2020-21 में 25.09 प्रतिशत की वृद्धि हुई। भाजपा की साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति और उसके परिणामस्वरूप होने वाले या करवाये जाने वाले दंगों में स्त्रियाँ बर्बर बलात्कार और हत्या की शिकार हुई हैं। स्त्रियों की आबादी को भी धर्म के आधार पर बाँटा जा रहा है। दुनिया के सभी फ़ासिस्टों की तरह भारत के फ़ासिस्ट भी स्त्रियों को बच्चा पैदा करने, उन्हें पालने तथा घर-रसोई के कामों में ही क़ैद रखना चाहते हैं।
दो साल पहले बीएचयू कैम्पस में भाजपा आईटी सेल के पदाधिकारी लड़कों द्वारा छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद जिस तरह से अपराधियों को बचाने और उल्टे छात्रा को ही दोषी ठहराने की घृणित हरकतें की गयी वह सबके सामने है। ‘बेटी बचाओ’ का जुमला उछालने वाले प्रधानमन्त्री बनारस दौरे में लम्बी-चौड़ी हाँकते हैं, पर इस भयानक घटना पर चुप्पी साधे रहते हैं। जब महिला पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़़ यौन शोषण का आरोप लगाया था तो “स्त्री सम्मान” की रक्षा की बात करने वाली पार्टी भाजपा ने पूरी ताक़त से इस अपराधी का बचाव किया और अब वह सभी आरोपों से बरी हो चुका है। बिल्किस बानो के बलात्कारियों के रिहाई आदेश को मोदी सरकार के गृह मन्त्रालय द्वारा आधिकारिक तौर पर मंज़ूरी दी गयी थी और भाजपा नेताओं द्वारा अच्छे “संस्कारी ब्राह्मण” होने के लिए रिहा किये गये इन बलात्कारियों का स्वागत फूल-मालाओं से किया गया था! कठुआ में 8 साल की बच्ची के बलात्कारियों के समर्थन में इन्हीं भाजपाइयों ने तिरंगा लेकर रैली निकाली थी। हाथरस में बलात्कार की घटना हुई तो उसके आरोपियों को बचाने के लिए सवर्णों की ग्यारह गाँवों की पंचायत करने वाले जातिवादियों को भाजपा की योगी सरकार ने पूरा संरक्षण और मदद प्रदान की। इससे पहले भी भाजपा ने कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानन्द से लेकर तमाम बलात्कारियों का मज़बूती से साथ दिया है। राम रहीम और आसाराम जैसे बलात्कारियों को बार-बार ज़मानत देकर भी मोदी सरकार और अदालतें यही सन्देश दे रही हैं कि वे किसके साथ खड़ी हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि भाजपा बलात्कारियों की न सिर्फ़ शरणस्थली रही है बल्कि जन्मस्थली भी रही है। “संस्कृति”, “संस्कार”, “चाल-चेहरा-चरित्र” की बात करने वाली भाजपा और संघ परिवार के नेताओं की असलियत यही है कि इसमें सारे निकृष्ट कोटि के बदमाश, बलात्कारी, अपराधी, और हत्यारे मौजूद हैं! यही भाजपा के शुचिता और संस्कार का सच है!
फ़ासीवादी भाजपा के शासन में एक तरफ़ महिलाओं को ही सीमा में और संस्कार में रहने की हिदायत दी जाती है, महिलाओं के कपड़े पहनने, खाने, जीवनसाथी चुनने की आज़ादी पर हमला किया जाता है और दूसरी तरफ़ बलात्कारियों को खुली छूट मिलती है! जब ऐसी पार्टी सत्ता में होगी तो क्या नवधनाढ्य वर्गों, लम्पट टुटपुँजिया वर्गों और नेताओं की बिगड़ी औलादों का दुस्साहस नहीं बढ़ेगा कि वह किसी भी औरत पर हमला करे और उसका बलात्कार करे? जब इन आपराधिक तत्वों को यह यक़ीन है कि इन अपराधों की उसे कोई सज़ा नहीं मिलेगी, बस उसे भाजपा में शामिल हो जाने की आवश्यकता है, तो ज़ाहिर सी बात है कि स्त्री–विरोधी अपराधों में बढ़ोत्तरी तो होगी ही। शुचिता और संस्कार का ढोंग करने वाली फ़ासीवादी भाजपा के राज ने इस पतनशील और प्रतिक्रियावादी स्त्री-विरोधी मानसिकता को और मज़बूत किया है। भाजपा के गुरू गोलवलकर का मानना था कि औरतें बच्चा पैदा करने का यन्त्र होती हैं; इनके माफ़ीवीर सावरकर का मानना था कि बलात्कार का राजनीतिक हिंसा के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यही इनकी असली जन्मकुण्डली है!
यह सच है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचार और स्त्री विरोधी मानसिकता सदियों से क़ायम वर्ग समाज और वर्तमान पूँजीवादी पितृसत्तात्मक भारतीय समाज की एक कड़वी सच्चाई रही है, लेकिन फ़ासीवादी भाजपा के राज में बलात्कारियों, छेड़छाड़ करने वालों और बार-बार अपराध करने वालों को जो छूट मिल रही है वह चौंकाने वाली सच्चाई है। निश्चित तौर पर, स्त्रियों की ग़ुलामी क़ायम रहने तक स्त्री-विरोधी अपराधों को जड़-मूल से समाप्त करना सम्भव नहीं है, यदि हमें इन स्त्री-विरोधी अपराधों को ख़त्म करना है, तो हमें उस पूँजीवादी व्यवस्था और समूचे वर्ग समाज के ख़िलाफ़ निर्णायक संघर्ष छेड़ना होगा जो पितृसत्ता, मर्दवाद, स्त्री-पुरुष असमानता के तमाम रूपों को जन्म देता है और उनका फ़ायदा उठाता है। लेकिन हमें इस विशेष परिस्थिति को भी समझना होगा कि जब भी पूँजीपति वर्ग की नग्न व बर्बरतम तानाशाही क़ायम होगी यानी फ़ासीवादी ताक़तें सत्ता पर काबिज़ होंगी तो औरतों के ख़िलाफ़ अपराधों में अभूतपूर्ण बढ़ोत्तरी होगी! अभी भाजपा जैसी फ़ासीवादी पार्टी के शासन में यही हो रहा है। आज फ़ासीवादी सत्ता ने समाज के सबसे आपराधिक, पाशविक, बर्बर और प्रतिक्रियावादी तत्वों व शक्तियों को न सिर्फ़ खुला हाथ दे दिया है बल्कि भाजपा राज्य मशीनरी में अपनी व्यवस्थित घुसपैठ के ज़रिये उनका खुलेआम संरक्षण कर रही है। असल में स्त्री-विरोधी अपराधों में बढ़ोत्तरी इस फ़ासीवादी उभार का एक अंग है और इसलिए आज हमें अपने इस सबसे बड़े दुश्मन यानी कि फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए एकजुट, गोलबन्द और संगठित होना होगा।
मज़दूर बिगुल, जून 2025