बढ़ते स्त्री विरोधी अपराध और प्रतिरोध का रास्ता
स्त्री उत्पीड़न के पीछे असल वज़ह पूँजीवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था है जिसमें महिलाएँ दोहरी गुलामी का शिकार हैं। जब तक यह व्यवस्था है तब तक हम चाहे जितना ‘सेफ़ स्पेस’ बना लें, कराटे सीख लें, ‘राजनीतिक रूप से सही भाषा’ में बात करना सीख लें, पढाई कर लें, हमारी मुक्ति सम्भव नहीं है। इसके लिए ज़रूरी है कि इस पूँजीवादी व्यवस्था को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के लिए सड़कों पर एक जुझारू आन्दोलन खड़ा किया जाये। इस व्यवस्था का पूर्ण रूप से ख़ात्मा ही स्त्री मुक्ति की पहली अनिवार्य शर्त है। मज़दूर सत्ता की स्थापना और समाजवाद का निर्माण ही एक लम्बी प्रक्रिया में क़दम-दर-क़दम मज़दूरों और उनके अंग की तौर पर स्त्रियों को भी मुक्त कर सकता है। पितृसत्ता वर्गों के साथ पैदा हुई थी और यह वर्गों के साथ ही ख़त्म हो सकती है। यह दूरगामी लक्ष्य है, यह लम्बी लड़ाई है, लेकिन इसकी शुरुआत हमें करनी ही होगी।