हिमांशी नरवाल और शैला नेगी को संघी गुबरैलों द्वारा धमकी : यही है इन फ़ासिस्टों का असली चरित्र

नौरीन

22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकवादी हमला होता है। इस हमले में कुल 26 लोगों की जान जाती है। कायदे से तो इसके बाद यह सवाल उठना चाहिए था कि आतंकवादी देश की सीमा के भीतर कैसे आये और दुनिया के सबसे सैन्य सघन क्षेत्र में ऐसा हमला हुआ कैसे? लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा। चूँकि ये मामला कश्मीर से जुड़ा था तो भला फ़ासीवादी मोदी सरकार व आरएसएस की पूरी मशीनरी अपना प्रोपैगेण्डा फ़ैलाने में पीछे कैसे रहती। हमेशा की तरह इस घटना का इस्तेमाल भी फ़ासीवादी मोदी सरकार और उसके संघी गुबरैलों ने देश भर में कश्मीरियों और मुसलमानों के प्रति नफ़रत फैलाने के लिए किया। एक तरफ़ जहाँ पूरा देश इस घटना के बाद स्तब्ध था वहीं दूसरी तरफ़ संघियों का गुण्डा गिरोह इस घटना की आड़ में पूरे देश भर में साम्प्रदायिकता का नंगा नाच करने का माहौल तैयार करने में लगा हुआ था। हालाँकि जिस स्तर पर उन्हें सफ़लता की उम्मीद थी वह उन्हें नहीं मिली। इस बार आम मेहनतकश जनता का एक अच्छा-ख़ासा हिस्सा उन्माद और भावनाओं में बहने के बजाय सरकार से सवाल पूछ रहा था। संघियों के इस नफ़रती प्रोपैगेण्डा को सबसे बड़ा धक्का तब लगा जब एक तरफ़ तो मारे गये पर्यटकों के परिजन सरकार से सवाल कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ़ उनका यह भी कहना था कि इस घटना का हिन्दू-मुसलमान से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने साफ़ कहा कि इसके लिए कश्मीरी या मुसलमान कतई दोषी नहीं हैं। संघी गुबरैले जिनकी पूरी राजनीति ही नफ़रत पर टिकी हुई है उन्हें ये बात भला कैसे हज़म होती! इसके बाद इन गुण्डो ने मारे गये पर्यटकों के उन परिजनों, पत्नियों, आदि को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया, जो हिन्दू-मुसलमान एकता की बात कर रहे थे जो आपसी सौहार्द्र बनाये रखने की बात कर रहे थे। इस फ़ासीवादी हमले का निशाना बनीं ख़ुद आतंकी हमले में मारे गये नौसेना अधिकारी की पत्नी हिमांशी नरवाल।

क्या है हिमांशी नरवाल और शैला नेगी का मामला?

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के दौरान जिस नौसेना अधिकारी की लाश और उसकी पत्नी की तस्वीरों के ज़रिये फ़ासीवादी देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने की पूरी ताक़त लगा रहे थे उसी नौसैनिक की पत्नी हिमांशी ने जब लोगों से कश्मीरियों और मुसलमानों को निशाना न बनाने और शान्ति क़ायम करने की अपील की, तो संघी गुण्डे वहाँ भी महिला-विरोधी हरक़तें करने से नहीं चूकें। पत्रकारों से बातचीत करते हुए हिमांशी नरवाल ने कहा था कि “हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के ख़िलाफ़ जायें। हम शान्ति चाहते हैं और केवल शान्ति। बेशक़, हम न्याय चाहते हैं, जिन्होंने ग़लत किया है उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए.”। यह चार लाइन का स्टेटमेण्ट संघियों के प्रोपैगेण्डा को ध्वस्त करने के लिए काफ़ी था। इसके बाद हिमांशी नरवाल को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाने लगा। हिमांशी के ख़िलाफ़ संघी ट्रोल्स भद्दे-भद्दे कमेण्ट लिख रहे हैं। कोई उन्हें जेएनयू का बता रहा है तो कोई उन्हें बलात्कार की धमकी दे रहा है, कोई उन्हें पाकिस्तानियों से निकाह करने की सलाह दे रहा है! यह सब करके भाजपाई और संघी गुण्डों ने बेजोड़ “राष्ट्रवाद” का प्रदर्शन किया है!

दूसरा मामला उत्तराखण्ड की शैला नेगी का है। यहाँ कथित बलात्कार का विरोध करने उतरा संघी गुण्डा गिरोह साम्प्रदायिक नारे लगा रहा था, दंगा करने का प्रयास कर रहा था, दुकानों में तोड़-फोड़ कर रहा था। हालाँकि ये ही “संस्कृतिरक्षक” बाबा आसाराम, राम रहीम, कुलदीप सेंगर, ब्रजभूषण आदि जैसे भाजपाई बाबाओं और नेताओं के द्वारा किये गये बलात्कारों और यौन शोषण के मसले को एक “राष्ट्रवादी कार्रवाई” मानते हैं! वहाँ मौजूद शैला नेगी बताती हैं कि “वे पीड़िता के साथ दुर्व्यवहार का विरोध कर रहे थे, लेकिन महिला विरोधी नारे लगा रहे थे। यह बस एक भीड़ थी जो लोगों को डराने की कोशिश कर रही थी… उन्होंने मेरे पिता से पूछा कि क्या वह मुस्लिम या पाकिस्तानी हैं। जिस पर उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं मुस्लिम हूँ। आप ऐसे समय में मुझसे ऐसा सवाल कैसे पूछ सकते हैं?’ भीड़ ने इस मुद्दे को साम्प्रदायिक बना दिया, जो नहीं होना चाहिए था… हिन्दू और मुस्लिम, हम एक हैं”। इसके बाद सोशल मीडिया पर शैला नेगी को जान से मारने, उनके साथ बलात्कार करने की धमकी मिल रही है और लगातार उन्हें संघी ट्रोल कर रहे हैं। एक मीडिया को दिये साक्षात्कार में नेगी ने कहा कि उन्हें सोशल मीडिया पर धमकियाँ मिल रही हैं, लेकिन वह अब भी साम्प्रदायिक एकता और भाईचारे में विश्वास रखती हैं।

क्या बताता है हिमांशी नरवाल और शैला नेगी का मामला?

हिमांशी नरवाल और शैला नेगी के साथ जो हुआ वह कोई अपवाद नहीं है। ख़ासतौर पर 2014 से सत्ता में आने के बाद  फ़ासीवादी भाजपा और उसके आईटी सेल द्वारा सभी प्रकार के असन्तोष की आवाज़ों को दबाने के लिए हमले जारी हैं। ये दोनों घटनाएँ उसी फ़ासिस्ट परियोजना का एक हिस्सा हैं जिसके तहत गोविन्द पानसारे, गौरी लंकेश आदि जैसे जनपक्षधर लोगों की हत्या कर दी जाती है। जो लोग इस गुण्डा गिरोह के प्रोपैगेण्डा का हिस्सा बनने से मना करते हैं, बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से आईटी सेल के उन्मादी व दंगाई संघी सोशल मीडिया पर उनके साथ गाली-गलौच करते हैं, रेप आदि की धमकी दी जाती है। कल तक जिस हिमांशी नरवाल की फ़ोटो शेयर करके ये संघी गुबरैले और आईटी सेल के संघी गुबरैले देश में कश्मीरियों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बना रहे थे उसी हिमांशी नरवाल ने जब लोगों से अपील कि की इस मामले को साम्प्रदायिक रंग न दिया जाये और इसमें कश्मीरियों की ग़लती नहीं है तो इन संघियों के पेट में मरोड़ शुरू हो गया ।

वहीं दूसरी ओर उत्तराखण्ड में बलात्कार के ख़िलाफ़ रैली निकालने वाले ये संघी वास्तव में बलात्कारी को सज़ा दिलाने के लिए नहीं बल्कि बलात्कारी के धर्म का इस्तेमाल लोगों के बीच दंगा कराने व साम्प्रदायिक ज़हर का प्रचार-प्रसार करने के लिए कर रहे थे। अगर सच में इन संघियों को बलात्कार की घटना से फ़र्क पड़ता तो ये सबसे पहले चिन्मयानन्द, आशाराम, कुलदीप सिंह सेंगर, प्रज्ज्वल रेवन्ना, ब्रजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ रैली निकालते। इन्हें भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय पर तोड़फोड़ करना चाहिए क्योंकि यही वो पार्टी है जिसमें बलात्कारियों की भरमार है। ये वो लोग हैं जो कठुआ में एक बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने वाले बलात्कारी के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकालते हैं। आप ख़ुद इनका चरित्र समझ सकते हैं।

हिमांशी नरवाल और शैला नेगी के मामले ने संघियो की स्त्री-विरोधी मानसिकता को फिर से उजागर कर दिया है। इनके लिए महिलाएँ महज़ उपभोग की वस्तु और बच्चा पैदा करने की मशीन है। इन संघियों को बर्दाश्त नहीं कि कोई महिला इनके ख़िलाफ़ बोले। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास रहा है कि इन्हें न तो आतंकवादी हमले से कोई फ़र्क पड़ता है और न ही किसी स्त्री-विरोधी घटना से। इनके लिए सभी घटनाएँ सिर्फ़ और सिर्फ़ वह ज़रिया है जिससे ये अपनी नफ़रती साम्प्रदायिक राजनीति का गन्दा कारोबार करते हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने कारगिल के युद्ध में मारे गये सैनिकों के लिए ताबूतों की ख़रीद तक में घोटाले किये हैं, आजादी की लड़ाई में अंग्रेज़ों का साथ दिया है, क्रान्तिकारियों के ख़िलाफ़ मुखबिरी की है और माफ़ीनामे लिखे हैं। अगर इनके “राष्ट्रवाद” का कच्चा-चिट्ठा देश की जनता के सामने सही तरीक़े से खोला जाय, तो इनकी असलियत सबके सामने आ जायेगी। देश की जनता अच्छे से जानती है कि सरकार की असली मंशा तो यह है कि कैसे पहलगाम की घटना का इस्तेमाल करके देश में उन्मादी माहौल बनाया जाये। साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाये। हिन्दू–मुसलमान के बीच के भेद को और बढ़ाकर पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों में होने वाले चुनावों में फ़ायदा उठाया जाये। यहाँ असली निशाना बंगाल और बिहार के चुनाव हैं।

पहलगाम की घटना के बाद उठते कुछ ज़रूरी सवाल

पहलगाम की घटना को लेकर मोदी की गोदी में बैठी हमारे देश का गोदी मीडिया कोई सवाल करेगा ऐसी उम्मीद हमें नहीं करनी चाहिए। जो लोग पहलगाम के नाम पर हमारे बीच साम्प्रदायिक बँटवारे की राजनीति करने आयें उनसे ये सवाल ज़रूर पूछना चाहिए –

  • हमारे देश की सरहद में ये आतंकवादी कैसे घुसे?
  • बैसरन जैसे भीड़भाड़ वाली जगह पर सुरक्षा के इन्तज़ाम क्यों नहीं थे ?
  • घटना के लगभग 1 घण्टे बाद वहाँ पुलिस पहुँचती है, जबकि मारे गये पर्यटकों के परिवारों का कहना है कि अगर समय से लोगों को अस्पताल ले जाया जाता तो शायद कई लोगों की जान बच जाती।
  • जम्मू-कश्मीर में लाखों की संख्या में सेना व ख़ुफिया विभाग तैनात है। यह दुनिया का सबसे ज़्यादा सैन्य-सघन क्षेत्र है। क्या इण्टेलिजेंस को इस घटना की ख़बर नहीं थी और अगर इसकी ख़बर नहीं थी तो क्या इसे इण्टेलिजेंस और मोदी सरकार की भारी असफलता नहीं माना जाना चाहिए?
  • 2019 में पुलवामा हमला हुआ था जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने फ़ासीवादी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ गम्भीर सवाल उठाये थे। लेकिन आज तक उन सवालों का ज़वाब सरकार ने नहीं दिया।
  • क्या हुआ धारा 370 के दावे का जिसके बाद दुनिया भर मेंघूम-घूम कर प्रधानमन्त्री मोदी ढिन्ढोरा पीट रहे थे कि इससे कश्मीर से आतंकवाद ख़त्म हो जायेगा?
  • क्या हुआ नोटबन्दी का जिसके बाद प्रधानमन्त्री मोदी ने आश्वासन दिया था कि इससे सीधे आतंकवादियों पर मार पड़ेगी और जम्मू कश्मीर से आतंकवाद ख़त्म हो जायेगा?

अपने देश के पक्ष में खड़ा होने का यह कत्तई मतलब नहीं है कि हम सरकार की हाँ में हाँ मिलायें। अपने देश से प्यार करने वाले तमाम लोगों का पहला कर्तव्य है कि वो सरकार से सवाल पूछें। उसकी जवाबदेही तय करें। सच यह है कि आतंकवाद की जड़ में एक समूची कौम का दमन और उसे आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित किया जाना है। यदि यह जनवादी अधिकार उन्हें मिलता तो पाकिस्तान के हुक्मरान या कोई भी बाहरी ताक़त आतंकवाद को बढ़ावा नहीं दे सकती, क्योंकि आतंकवाद के पैदा होने का आन्तरिक कारण ही समाप्त हो जायेगा। इसलिए चाहे सेना की तैनाती को कितना ही बढ़ा दिया जाय, दमन को कितना भी बढ़ा दिया जाय, यह समस्या समाप्त नहीं होने वाली, उल्टे मौजूद रहेगी और बढ़ भी सकती है।

जुझारू जनएकजुटता ही इन संघियों को मुँहतोड़ ज़वाब है

हिमांशी नरवाल और शैला नेगी ने जिस बहादुरी के साथ इन संघियों के साम्प्रदायिक एजेण्डा को ध्वस्त किया है आज हमें इससे सीखने की ज़रूरत है। गुण्डों का ये गिरोह सड़कों पर जो आतंक मचाये फिर रहा है उसको उसी की भाषा में सड़कों पर मुँहतोड़ जवाब देना होगा। इन गुबरैलों को सबसे ज़्यादा डर लोगों की एकजुटता से लगता है। लोग एकजुट होकर इनके दोगलेपन पर सवाल न करने लगें इसीलिए जब भी कोई व्यक्ति इनसे सवाल करता है तो ये बिलबिला जाते हैं और फिर उसे जान से मारने, रेप आदि की धमकी देते हैं जैसा की इन मामलों में हुआ है। पहलगाम हमले के बाद संघ की पूरी मशीनरी ने देश में दंगा भड़काने की पूरी कोशिश की लेकिन जनता की एकजुटता ने उसके मंसूबों पर पानी फ़ेर दिया। आज हम मेहनतकश लोगों को ये बात समझ लेना होगा कि साम्प्रदायिकता, दंगा और युद्ध से हमें कुछ हासिल नहीं होगा। हमें अपनी वर्गीय एकजुटता कायम करके संघ और भाजपा के सभी प्रोपैगेण्डा को ध्वस्त करना होगा और उनके गुण्डा गिरोहों को मुँहतोड़ जवाब देना होगा। हमारे दुश्मन देश के बाहर नहीं हैं और न ही हमारे दुश्मन देश के अन्दर किसी धर्म या समुदाय के अल्पसंख्यक लोग हैं। हमारे दुश्मन हमारे ही देश के धन्नासेठ, धनी व्यापारी, धनी कुलक व पूँजीवादी भूस्वामी और इस समूचे पूँजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमेटी का काम करने वाली पूँजीवादी सरकार है, जो आज फ़ासीवादी संघ परिवार के हाथों में है। सवाल धर्म का नहीं है, सवाल वर्ग का है। यही सवाल समझने की ज़रूरत है।

 

 

मज़दूर बिगुल, मई 2025

 

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