Category Archives: महान जननायक

भगतसिंह को पूजो नहीं, उनके विचारों को जानो, उनकी राह पर चलने का संकल्प लो!

शासक वर्ग हमेशा इस जुगत में रहता है कि जनता अपने क्रान्तिकारियों के विचारों को जानने न पाये। इसलिए वह अपनी शिक्षा व्यवस्था से लेकर, अख़बार, पत्रिकाओं, टी.वी., इण्टरनेट, सिनेमा आदि के माध्यम से विचारों की धुन्ध फैलाता रहता है ताकि मेहनतकश लोग अपनी क्रान्तिकारी विरासत को जान ही न सकें। शासक वर्ग इस कोशिश में रहता है कि जननायकों को या तो बुत बनाकर पूजने की वस्तु बना दिया जाये ताकि लोग बस उन्हें फूलमाला चढ़ाकर भूल जायें या फिर शहीदों के क्रान्तिकारी विचारों के बारे में षड़यंत्राकारी चुप्पी साध ली जाये जिससे कि लोग अपने संघर्षों के इतिहास को ही भूल जायें।

चन्द्रशेखर आज़ाद  के जन्मदिवस (23 जुलाई) पर

“आज़ाद का समाजवाद की ओर आकर्षित होने का एक और भी कारण था। आज़ाद का जन्म एक बहुत ही निर्धन परिवार में हुआ था और अभाव की चुभन को व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने अनुभव भी किया था। बचपन में भावरा तथा उसके इर्द-गिर्द के आदिवासियों और किसानों के जीवन को भी वे काफ़ी नज़दीक से देख चुके थे। बनारस जाने से पहले कुछ दिन बम्बई में उन्हें मज़दूरों के बीच रहने का अवसर मिला था। इसीलिए, जैसा कि वैशम्पायन ने लिखा है, किसानों तथा मज़दूरों के राज्य की जब वे चर्चा करते तो उसमें उनकी अनुभूति की झलक स्पष्ट दिखायी देती थी।

अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद की क्रान्तिकारी विरासत को आगे बढ़ाओ!

आज़ाद ने एक ऐसे इंक़लाब का सपना देखा था, और एक ऐसे समाज के लिए लड़ रहे थे ‘जहाँ इन्सान द्वारा इन्सान का शोषण ख़त्म हो जाये, जो लोग सुई से लेकर जहाज तक सब कुछ बनाते है उनके लिए ही सारी सम्पदा हो,उनका ही राजकाज हो!’ आज़ाद और उनके साथी महज़ अंग्रेज़ों से आज़ादी नहीं चाहते थे, बल्कि हर प्रकार की लूट और शोषण से आज़ादी चाहते थे। आज के समय में मज़दूरों और युवाओं को आज़ाद से जो एक बात सीखनी होगी वह है इस उसूल में यक़ीन की मज़हब-धर्म सबका निजी मसला है। इसका आपके सामाजिक जीवन और राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। जैसा कि आज़ाद के साथी शहीदे-आज़म भगतसिंह ने साफ़ कहा था, धर्म पर हम अलग-अलग व्यक्तिगत आस्था रख सकते हैं, या हम नास्तिक हो सकते हैं, इसके बावजूद हमारी राजनीति हमारे वर्गीय हितों से तय होती है।

काकोरी के शहीदों को याद करो! अवामी एकता कायम करो!

आज हमारे देश में एक फ़ासीवादी हुकूमत क़ायम है जो अंग्रेजों से भी बर्बर तरीके से आम जनता को लूटने, काले क़ानून बनाने और जाति-धर्म के नाम पर समाज में विभाजन पैदा करने में लगी हुई है। जिस तरह से अंग्रेज़ लुटेरे भाई-भाई को लड़ा रहे थे, उसी तरह से आज सत्ता में बैठे लोग भी जनता को बेवजह के मुद्दों पर आपस में लड़ा रहे हैं और धर्म व जाति के नाम पर बहाये गये लोगों के खून से वोट की फ़सल को सींच रहे हैं। आम मेहनतकश जनता को निचोड़कर पूँजीपतियों की तिजोरी भरने वाली इस सरकार के ख़िलाफ़ नौजवानों-छात्रों और इंसाफ़पसन्द नागरिकों को आगे आने और अवामी एकता क़ायम करने की ज़रूरत है।

फ़्रेडरिक एंगेल्स – सागर जैसा हृदय, आलोकित शिखरों जैसी मेधा, तूफ़ानों जैसा जीवन

मार्क्सवादी दर्शन में एंगेल्स का अपना योगदान विशाल है। ‘लुडविग फायरबाख़ और क्लासिकी जर्मन दर्शन का अन्त’, ‘ड्यूहरिंग मत-खण्डन’, ‘प्रकृति की द्वंद्वात्मकता’ तथा ‘परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्यसत्ता की उत्पत्ति’ जैसी कृतियाँ मार्क्सवादी दर्शन और ऐतिहासिक भौतिकवाद के सार एवं महत्व की क्लासिकी प्रस्तुतियाँ हैं। एंगेल्स का बहुत बड़ा योगदान यह था कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को उन्होंने प्राकृतिक विज्ञानों पर लागू किया। वर्ग, शोषण और जेण्डर-विभेद के नृतत्वशास्त्रीय मूल की उनकी विवेचना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सर्वतोमुखी ज्ञान ने उनके लिए पदार्थ की गति के वस्तुगत रूपों को विद्याओं के विभेदीकरण का आधार बनाते हुए विज्ञानों के वर्गीकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली का विशदीकरण करना सम्भव बनाया। दार्शनिक वाद-विवादों में, वैज्ञानिक और आर्थिक नियतत्ववाद तथा अज्ञेयवाद की आलोचना करते हुए एंगेल्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की आधारभूत प्रस्थापनाओं का विकास किया।

काकोरी ऐक्शन की विरासत से प्रेरणा लो! धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ सच्ची धर्मनिरपेक्षता के लिए आगे आओ!

काकोरी ऐक्शन उस समय तक चले आ रहे क्रान्तिकारी आन्दोलन के गुणात्मक रूप से नयी मंजिल में प्रवेश कर जाने का प्रतीक बन गया। काकोरी ऐक्शन में शामिल ये क्रान्तिकारी राजनीतिक चेतना और वैचारिकता के धरातल पर अपने पहले की पीढ़ी के क्रान्तिकारियों से आगे बढ़े हुए थे। उनके पास एक स्पष्ट स्वप्न था कि आने वाला समाज कैसा होगा। एचआरए के घोषणापत्र की शुरुआत इन शब्दों से होती है – “हर इन्सान को निःशुल्क न्याय चाहे वह ऊँच हो या नीच, अमीर हो या ग़रीब, हर इन्सान को वास्तविक समान अवसर, चाहे वह ऊँच हो या नीच, अमीर हो या ग़रीब।”

मज़दूरों को इतिहास क्यों जानना चाहिए?

आज भी जिस तरीक़े से फ़ासीवादी सत्ता द्वारा इतिहास को विकृत करके जनता के सामने पेश करने की कोशिश हो रही है ताकि जनता के बीच  साम्प्रदायिकता का ज़हर घोला जा सके, ऐसे में कोसाम्बी की लेखनी बेहद महत्त्व रखती है। आज ज़रूरत है आम मेहनतकश जनता को अपने देश के इतिहास के ऐसे वैज्ञानिक विश्लेषणों से परिचित करवाने की ताकि उन्हें फा़सीवादियों के झूठे प्रचार की ज़द में आने से रोका जा सके। आज ज़रूरत है जनता को  सही मायने में तथ्यों और उनके वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित इतिहास से परिचित करवाने की। कोसाम्बी इस सन्दर्भ में एक बेहद ज़रूरी स्थान रखते हैं और आज इसी रूप में उन्हें याद किया जा सकता है कि उन्होंने हमेशा इतिहास की साम्प्रदायिक और अन्धराष्ट्रवादी व्याख्याओं का अपनी लेखनी के ज़रिये मुकाबला किया और जनता के पक्ष से लिखे गए इतिहास को स्थापित किया।

मज़दूरों और मेहनतकशों की मुक्ति को समर्पित महान क्रान्तिकारी और चिन्तक थे हमारे भगतसिंह

23 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए फाँसी के फन्दे पर झूल जाने वाले एक बहादुर नौजवान भगतसिंह की तनी हुई मूँछें और टोपी वाली तस्वीर तो आपने देखी होगी। असेम्बली में बम फेंकने और वहाँ से भागने के बजाय अपनी गिरफ़्तारी देकर बहरी अंग्रेज़ी सरकार को चुनौती देने वाली कहानियों से कई लोग परिचित होंगे। भारतीय शासक वर्ग की पूरी जमात हमारे महान पूर्वज शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर उनके जीवन के केवल इन्हीं पक्षों पर ज़ोर देते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह डर लगातार सताता रहता है कि कहीं जनता इनके विचारों को जानकर अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न कर दे।

चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस (23 जुलाई) पर – अपनी क्रान्तिकारी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लो!

आज़ादी की लड़ाई में एक धारा क्रान्तिकारियों की भी थी और अंग्रेज़ी हुकूमत की नाक में उन्होंने हमेशा दम करके रखा। वे समाजवाद के उसूलों को मानते थे, मज़दूर पार्टी बनाने का लक्ष्य रखते थे और मज़दूर राज क़ायम करना चाहते थे। उनके इन आदर्शों और विचारों से न सिर्फ़ अंग्रेज़ी हुकूमत ख़ौफ़ज़दा थी बल्कि देश के पूँजीपति वर्ग की पार्टी कांग्रेस का नेतृत्व भी घबराता था। क्योंकि वह समझता था कि अगर आज़ादी के आन्दोलन का नेतृत्व भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक़ उल्ला, बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारियों की क्रान्तिकारी धारा के हाथों में आया तो भारत की आज़ादी पूँजीपतियों की लक्ष्यपूर्ति से आगे जायेगी और मज़दूर राज और समाजवाद की स्थापना की ओर जायेगी। ये बेहद युवा क्रान्तिकारी थे और अपने विचारधारात्मक-राजनीतिक विकास के आरम्भिक चरणों में थे, हालाँकि इन शुरुआती मंज़िलों में भी उन्होंने अपनी बौद्धिक-वैचारिक शक्ति को दिखला दिया था।

अय्यंकालि के स्मृति दिवस पर – जाति-उन्मूलन आन्दोलन को अय्यंकालि से सीखना होगा

कई जाति-विरोधी व्यक्तित्वों को ख़ुद भारत की सरकार ने आज़ादी के बाद से ही प्रचारित-प्रसारित किया है लेकिन अय्यंकालि को नहीं। क्यों? क्योंकि अय्यंकालि आमूलगामी तरीक़े से और जुझारू तरीक़े से सड़क पर उतरकर संघर्ष का रास्ता अपनाते थे; क्योंकि अय्यंकालि सरकार की भलमनसाहत या समझदारी के भरोसे नहीं थे, बल्कि जनता की पहलक़दमी पर भरोसा करते थे। वह कोई सुधारवादी या व्यवहारवादी नहीं थे, बल्कि एक रैडिकल जाति-विरोधी योद्धा थे। यही कारण है कि सरकार अय्यंकालि के रास्ते और विचारों के इस पक्ष को हमसे बचाकर रखती है। क्योंकि यदि मेहनतकश दलित और दमित जनता उनके बारे में जानेगी, तो उनके रास्ते के बारे में भी जानेगी और यह मौजूदा पूँजीवादी व जातिवादी सत्ता ऐसा कभी नहीं चाहेगी कि उसके विरुद्ध रैडिकल संघर्ष के रास्ते को जनता जाने और अपनी पहलक़दमी में भरोसा पैदा करे। यही कारण है कि अय्यंकालि की विरासत को जनता की शक्तियों को याद करना चाहिए। उनकी स्मृतियों को, प्रगतिशील ताक़तों को जीवित रखना चाहिए। उनके आन्दोलन के रास्ते को व्यापक मेहनतकश और दलित जनता में हमें ले जाना होगा। केवल ऐसा करके ही हम अय्यंकालि को सच्ची आदरांजलि दे सकते हैं। उनको याद करने का यही सबसे बेहतर तरीक़ा हो सकता है।