अक्टूबर क्रान्ति के दिनों की वीरांगनाएँ
अक्टूबर क्रान्ति की नायिकाएँ एक पूरी सेना के बराबर थीं और नाम भले ही भूल जायें उस क्रान्ति की जीत में और आज सोवियत संघ में और औरतों को मिली उपलब्धियों और अधिकारों के रूप में उनकी निःस्वार्थता जीवित रहेगी।
अक्टूबर क्रान्ति की नायिकाएँ एक पूरी सेना के बराबर थीं और नाम भले ही भूल जायें उस क्रान्ति की जीत में और आज सोवियत संघ में और औरतों को मिली उपलब्धियों और अधिकारों के रूप में उनकी निःस्वार्थता जीवित रहेगी।
सपनों पर पहरे तो बिठाये जा सकते हैं लेकिन उन्हें मिटाया नहीं जा सकता। वर्जनाओं के अंधेरे चाहे जितने घने हों, वे आजादी के सपनों से रोशन आत्माओं को नहीं डुबा सकते। यह कल भी सच था, आज भी है और कल भी रहेगा। अफगानिस्तान के धार्मिक कठमुल्लों के “पाक” फरमानों का बर्बर राज भी इस सच का अपवाद नहीं बन सका। मीना किश्वर कमाल की समूची जिन्दगी इस सच की मशाल बनकर जलती रही और लाखों अफगानी औरतों की आत्माओं को अंधेरे में डूब जाने से बचाती रही।
अब मुझे कमजोर और नाकारा न समझना
अपनी पूरी ताकत के साथ मैं तुम्हारे साथ हूँ
अपनी धरती की आजादी की राह पर
मेरी आवाज घुलमिल गयी है हजारों जाग उठी औरतों के साथ