Tag Archives: कवितायें / गीत

शाखा में साख

बहुत दिन हुए, मोहल्ले में विधर्मियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। गहन मुद्रा में बैठे पाण्डेय जी सोच रहे थे। अन्य शाखा प्रान्त के लोग उनका कभी-कभी मज़ाक भी उड़ाने लगे थे। वे कहते “पाण्डेय जी आपके इलाक़े में तो इन मुल्लों की संख्या बढ़ती जा रही है। लगता है आपको पण्डिताईनी से फ़ुरसत नहीं मिल रही।” यही ख़्याल उन्हें बार-बार कुरेद रहा था। रविवार के दिन काम-धन्धें से फ़ारिग़ होकर कुर्सी पर बैठे वह इसी चिन्तन में मगन थे। पाण्डेय जी अब 50 के होने को आये हैं, बड़े से अपार्टमेण्ट में रह रहे हैं। बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत हैं। इनका एक बच्चा अभी विदेश में सेटल हो चुका है, दूसरा बैंगलोर की एक बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है। बचपन में ही पाण्डेय जी शाखा से जुड़ गये थे। आज वह शाखा के उत्तर-पश्चिमी ज़िला के संघचालक हैं। जवानी में उन्होंने बाबरी मस्ज़िद के आन्दोलन में भी भाग लिया था।

चीले  के  महाकवि  पाब्लो नेरूदा  की  कविता – मैं दण्ड की माँग करता हूँ I Demand Punishment / Pablo Neruda

मेरे भाइयो! संघर्ष जारी रहेगा
अपनी लड़ाई हम जारी रखेंगे
कल-कारख़ानों में, खेत-खलिहानों में
गली-गली में यह लड़ाई जारी रहेगी
नमक/शोरा की खदानों में
यह लड़ाई जारी रहेगी

दो फ़िलिस्तीनी कविताएँ / समीह अल-कासिम. इब्राहीम तुकन

नौजवान थकेंगे नहीं
उनका लक्ष्य तेरी आज़ादी है
या फिर मौत
हम मौत का प्याला पी लेंगे
पर अपने दुश्मनों के ग़ुलाम नहीं बनेंगे
हम हमेशा के लिए
अपमान नहीं चाहते
और न अभावग्रस्त ज़िन्दगी
हम अपनी महानता
लौटायेंगे मेरे देश
ओ मेरे देश

गाज़ा : दो कविताएँ

स्कूल अब हज़ारों लोगों के लिए
घर और पनाहगाह है।
विद्यार्थी विस्थापित हैं या मर चुके हैं,
जख़्मी हैं या
अनाथ हो चुके हैं।
अध्यापिका बच्चों को छिपाने के लिए
लेट जाती है उन पर।
किताबें धुएँ और राख में तब्दील हो चुकी हैं।
गणित यह है
51 दिन, 2,200 मृत, 10,000 ज़ख़्मी

कविता – हमारा श्रम / आनन्द, गुड़गाँव

अगर हमें मौक़ा मिले तो
इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं
मगर बेड़ियाें से जकड़ रखा है हमारे
जिस्म व आत्मा को इस लूट की व्यवस्था ने
हम चाहते हैं अपने समाज को
बेहतर बनाना मगर
इस मुनाफ़े की व्यवस्था ने
हमारे पैरों को रोक रखा है

कविता – फ़िलिस्तीन / कात्यायनी

जब संगीनों के साये और बारूदी धुएँ के बीच
“अरब वसन्त” की दिशाहीन उम्मीदें
बिखर चुकी होती हैं
तब चन्द दिनों के भीतर पाँच सौ छोटे-छोटे ताबूत
गाज़ा की धरती में बो दिये जाते हैं
और माँएँ दुआ करती हैं कि पुरहौल दिनों से दूर
अमन-चैन की थोड़ी-सी नींद मयस्सर हो बच्चों को
और ताज़ा दम होकर फिर से शोर मचाते
वे उमड़ आयें गलियों में, सड़कों पर
जत्थे बनाकर।

रोशनाबाद श्रृंखला की तीन कविताएँ

दु:खों का इतिहास अगर एक हो
और वर्तमान भी अगर साझा हो
तो प्यार कई बार ताउम्र ताज़ा बना रहता है,
सीने के बायीं ओर दिल धड़कता रहता है
पूरी गर्मजोशी के साथ
और इन्सान बार-बार नयी-नयी शुरुआतें
करता रहता है ।

केदारनाथ अग्रवाल की तीन छोटी कविताएँ

जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

तानाशाह : तीन कविताएँ

कविता की कुछ पंक्तियां
..सम्मोहित-सी वह भीड़
हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी
और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी।
तानाशाह इतना आश्वस्त था कि
यह सोच भी नहीं पाता था कि
किसी भी सम्मोहन का जादू
कुछ समय बाद टूटने लगता है।

एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ
तानाशाह जब सड़क पर निकला
तो उसने देखा कि भीड़
जो उसके पीछे चला करती थी,
वह उसका पीछा कर रही है!

गौहर रज़ा की नज़्म – साज़िश (उन्नाव की बेटी के नाम)

जब मन्दिर, मस्जिद, गिरजा में
हर एक पहचान सिमट जाये
जब लूटने वाले चैन से हों
और बस्ती, बस्ती भूख उगे