एकश्लोकी रामायण की तरह संक्षेप में आज़ाद का चरित्र इतना ही है, परन्तु उनके जीवन में इस भाँति अशिक्षित, कुसंस्कारग्रस्त, ग़रीबी में पड़ी हुई जनता के क्रान्ति के मार्ग पर बढ़ते जाने की एक संक्षिप्त उद्धरणी-सी हमें मिलती है। आज़ाद का जन्म हद दर्जे की ग़रीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और धार्मिक कट्टरता में हुआ था, और फिर वे, पुस्तकों को पढ़कर नहीं, राजनीतिक संघर्ष और जीवन संघर्ष में अपने सक्रिय अनुभवों को सीखते हुए ही उस क्रान्तिकारी दल के नेता हुए जिसने अपना नाम रखा था: ‘’हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ और जिसका लक्ष्य था भारत में धर्म निरपेक्ष, वर्ग-विहीन समाजवादी प्रजातंत्र की स्थापना करना।