विश्व सर्वहारा के महान क्रान्तिकारी शिक्षक एंगेल्स के जन्मदिवस (28 नवम्बर) पर

ध्रुव

विश्व सर्वहारा के महान शिक्षक फ़्रेडरिक एंगेल्स का जन्म 28 नवम्बर 1820 को जर्मनी के राइन प्रान्त में एक धनी व्यापारी व उद्यमी के परिवार में हुआ था। उनके पिता एक कपड़ा फ़ैक्ट्री के मालिक थे। कार्ल मार्क्स के अनन्य मित्र एंगेल्स ने एक व्यवसायी परिवार में पैदा होने के बावजूद अपना पूरा जीवन मज़दूर वर्ग के मुक्ति संघर्ष में लगा दिया। वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के सिद्धान्त ऐतिहासिक और द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को सूत्रबद्ध करने में मार्क्स के साथ एंगेल्स का भी प्रमुख योगदान रहा है।

एक व्यवसायी के परिवार में पैदा होने की वजह से शुरू से ही एंगेल्स पर अपने पिता के काम को सँभालने का दबाव था। 17 साल की उम्र में ही एंगेल्स ने पिता के दबाव की वजह से व्यावसायिक अनुभव लेना शुरू कर दिया। लेकिन युवा एंगेल्स का मन इन कामों में बिल्कुल नहीं लगता था। वे कविताएँ लिखते, दार्शनिक बहसों में भाग लेते, प्रकृति और समाज के तमाम सवालों पर चिन्तन-मनन करते थे। इसी दौरान वे हेगेल के दर्शन से काफी प्रभावित हुए और यंग हेगेलियन ग्रुप में शामिल हो गये। उस समय पूरे जर्मनी के ही युवाओं के बीच हेगेल के दर्शन का एक आर्कषण था जिससे एंगेल्स भी अछूते न रह सके। अपने पिता की फ़ैक्ट्री में काम करने के दौरान ही एंगेल्स ने मज़दूरों के बेहद कठिन जीवन को क़रीब से देखा। वे लगातार मज़दूरों की बस्तियों में जाते रहे और उनके हालात का अध्ययन करते रहे, साथ ही अपने व्यावसायिक कामों के दौरान उन्हें पूँजीवादी उद्योगों की कार्य-प्रणाली को नज़दीक से देखने और समझने का मौक़ा मिला। पूँजीवादी शोषण की पूरी व्यवस्था को देखने के बाद एंगेल्स ने मज़दूर वर्ग की मुक्ति के ऐतिहासिक मिशन को ही अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना लिया।

एंगेल्स विलक्षण बौद्धिक प्रतिभा के धनी थे। दर्शन और इतिहास के अलावा प्रकृति विज्ञान, सैन्य विज्ञान, भाषा शास्त्र जैसे विषयों पर उनका बहुत विशद अध्ययन था। दस से अधिक भाषाएँ जानने वाले एंगेल्स ने नार्वे के प्रसिद्ध नाटककार इब्सन की कृतियों को पढ़ने के लिए सत्तर वर्ष की उम्र में नार्वे की भाषा सीखी।

अपने शुरुआती दौर में एंगेल्स ने फ़्रेडरिक ओसवाल्ड के छद्म नाम से एक पत्रकार के रूप में भी काम किया। उनके शुरुआती प्रभावशाली लेखन में लेटर्स फ्रॉम वुपर्टल (1839) शामिल थे, जो शुरुआती औद्योगिकीकरण की बुराइयों का प्रत्यक्षदर्शी विवरण और राइनलैंड जिले में प्रान्तीय बुर्जुआ पाखण्ड पर हमला था, जहाँ वे बड़े हुए थे। 

एंगेल्स की असामान्य प्रतिभा के बारे में ज़िक्र करते हुए अपनी पुस्तक फ्रेडरिक एंगेल्स : जीवन और शिक्षाएँ” में जेल्डा कोट्स ने लिखा है – “एंगेल्स ने अपनी दार्शनिक अन्तर्दृष्टि और प्रखर प्रतिभा के फलस्वरूप बहुद जल्द पूँजीवादी उत्पादन की वास्तविक प्रकृति एवं मज़दूरों की वर्तमान भूमिका तथा उनके महान ऐतिहासिक भविष्य को समझा तथा ‘डायचे-फ्रांज़ीजिए यारबुखेर’ नामक पत्रिका में उन्होंने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की एक आलोचना प्रकाशित की। इसे मार्क्स ने सच्ची प्रतिभा का रेखाचित्र केवल इसलिए नहीं बताया था कि उसमें तफ़सील की गलतियाँ और मूल्यांकन की भूलें नहीं थीं, बल्कि इसलिए भी कि जिस तरह पूँजीवादी उत्पादन के तीव्र विकास और अमानवीय प्रभाव की उन्होंने विवेचना की थी, उसको देखकर वह अत्यधिक प्रभावित थे। इसमें, माल्थस के जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धान्त, व्यापारिक संकटों, मज़दूरी के नियमों, विज्ञान की प्रगति आदि पर उनके विचारों में, वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के काफ़ी फलदायक बीज सन्निहित थे।” 

केवल 22 वर्ष की उम्र में (जबकि वो मज़दूरों के जीवन की कठिनाइयों के स्वयं भुक्तभोगी नहीं थे और परिवार, शिक्षा और पेशे से पूँजीपति वर्ग से आते थे) जिस तरीक़े से उन्होंने तत्कालीन इंग्लैण्ड के दलों और वर्गों का मूल्याकन किया और उनकी सच्चाइयों को सामने रखा वह दिखलाता है कि वो कितनी गहराई से चीजों का मूल्यांकन करते थे। 

एंगेल्स न केवल अध्ययन-मनन करते थे बल्कि वे मज़दूरों के तमाम संघर्षों और आन्दोलनों में लगातार सक्रिय भी रहते थे। इंग्लैण्ड में मज़दूरों के ऐतिहासिक चार्टिस्ट आन्दोलन से भी वे जुड़े थे। इन्हीं सारे अनुभवों को लेकर उन्होंने 1844 में ‘इंग्लैण्ड में मज़दूर वर्ग की दशा’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक की विशेषता केवल यह नहीं थी कि इसमें मज़दूर वर्ग की जीवन दशा का सही विवरण प्रस्तुत किया गया था बल्कि युवा लेखक एंगेल्स की इस किताब की मुख्य विशेषता यह थी कि इसमें पूँजीवादी उत्पादन के मर्म और पूँजीवादी समाज में निहित विरोधाभासों को पूरी तरह से उजागर किया गया था। पुस्तक में मुख्य तौर पर इस बात का ज़िक्र था कि किस प्रकार पूँजीवादी उद्योग ने आधुनिक सर्वहारा वर्ग को जन्म दिया है? और किस प्रकार मज़दूर ग़ुलामी से भी बदतर ज़िन्दगी जीते हैं? मज़दूर अपनी शारीरिक शक्ति और हुनर को ही नहीं, बल्कि जब तक कुशल संगठन के असली महत्व को नहीं जान लेता तब तक अपनी आत्मा को भी उत्पादन के स्वामी अर्थात पूँजीपति के हाथों बेचने को मजबूर होता है।

जिस वर्ष एंगेल्स ने इस पुस्तक के प्रकाशन का काम पूरा किया ठीक उसी वर्ष मार्क्स से उनकी पहली मुलाकात हुई। इसके बाद ही शुरुआत हुई एक ऐतिहासिक और सच्ची मित्रता की जिसने युग प्रवर्तक की भूमिका निभाते हुए मज़दूर वर्ग को पूँजीवादी दासता से मुक्ति का रास्ता दिखलाया। इस महान दोस्ती की बुनियाद में एक वैचारिक एकता थी, साथ ही मज़दूर वर्ग के मुक्ति का साझा स्वप्न भी था। मार्क्स-एंगेल्स की दोस्ती ने एक ऐसी मिसाल क़ायम की जिसके बारे में लेनिन ने लिखा है, “प्राचीन इतिहास में मित्रता के ही कितने ही हृदयस्पर्शी उदाहरण मिलते हैं। यूरोपीय सर्वहारा वर्ग कह सकता है कि उसके विज्ञान की रचना दो ऐसे विद्वानों और योद्धाओं ने की है, जिनके पारस्परिक सम्बन्धों ने प्राचीन लोगों के मानवीय मैत्री की सर्वाधिक हृदयस्पर्शी गाथाओं को भी पीछे छोड़ दिया है।”

वैसे तो मार्क्स से मुलाकात से पहले ही मार्क्स और एंगेल्स के विचारों में इतनी समानता थी कि पूँजीवादी समाज के बारे में दोनों ही लगभग समान निष्कर्ष तक पहुँच चुके थे। इसी का परिणाम था कि अपनी पहली मुलाकात के वर्ष में ही दोनों के साझे प्रयास से “पवित्र परिवार” नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। जिसका उद्देश्य मुख्यतः जनता के लिए परिकल्पनात्मक दर्शन की भ्रान्तियों का खण्डन करना था। ‘पवित्र परिवार’ के प्रकाशित होने से पहले ही एंगेल्स ने मार्क्स और रूगे की जर्मन फ़्रांसीसी पत्रिका में अपनी रचना “राजनीतिक अर्थशास्त्र पर आलोचनात्मक निबन्ध” प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण से समकालीन, आर्थिक व्यवस्था की परिघटनाओं को जाँचा-परखा और पाया कि ये निजी स्वामित्व के प्रभुत्व के अनिवार्य परिणाम हैं। 1845 में एंगेल्स ने अपना व्यावसायिक जीवन और परिवार त्याग दिया और बार्मेन छोड़कर ब्रसेल्स चले गये। ब्रसेल्स में ही एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर अपने दार्शनिक और आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने का काम शुरू किया।

ब्रसेल्स में ही एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर जर्मन लेबर यूनियन की स्थापना की और डायचे ब्रसेरलर ज़ाइटूंग, जो कि एक जर्मन समाचारपत्र था, के संचालन का काम शुरू किया। इस समाचारपत्र में एंगेल्स उन तमाम आन्दोलनों की ख़बर भेजते थे जो उस वक्त इंग्लैण्ड और जर्मनी में हो रहे थे। आगे चलकर वे ‘लीग ऑफ दी जस्ट’ के साथ भी जुड़ गये। मार्क्स और एंगेल्स की शिक्षाओं के प्रभाव में यह लीग ‘इण्टरनेशनल कम्युनिस्ट लीग’ के रूप में विकसित हुई। 1846 में मार्क्स-एंगेल्स की पुस्तक ‘जर्मन विचारधारा’ प्रकाशित हुई जिसमें इतिहास की भौतिकवादी अवधारणा, ऐतिहासिक भौतिकवाद को पहली बार एक समग्र सिद्धान्त के रूप में तैयार किया गया था। एंगेल्स ने बाद में कहा कि इस सिद्धान्त, जिसने सामाजिक विकास के वास्तविक नियमों को और समाज के को विज्ञान में क्रान्ति ला दी, ने मार्क्स की पहली महान खोज को मूर्त रूप दिया, जिसने समाजवाद को यूटोपिया से विज्ञान में बदलने में मुख्य भूमिका निभायी। “जर्मन विचारधारा” मार्क्सवाद की पहली परिपक्व रचना है।

1848 ही वह वर्ष था ‘जब दुनिया के मज़दूरों एक हो!’ के जीवन्त उद्घोष के साथ इण्टरनेशनल कम्युनिस्ट लीग का घोषणापत्र ‘कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र’ के नाम से प्रकाशित हुआ जिसने पूरी दुनिया में समाजवाद की स्थापना के संघर्ष में लगे तमाम क्रान्तिकारियों का पथ-प्रदर्शित किया और मज़दूर वर्ग के मुक्ति के संघर्ष को आलोकित करने का काम किया। कम्युनिस्ट घोषणापत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए लेनिन ने लिखा है – “इस छोटी-सी पुस्तिका का मूल्य अनेकानेक ग्रन्थों के बराबर है: आज भी उसकी जीवन्त भाव-धारा समूचे सभ्य संसार के संगठित और संघर्षरत सर्वहारा को स्फूर्ति और प्रेरणा प्रदान करती है।”

एंगेल्स की बौद्धिक क्षमता मार्क्स से किसी मामले में कम न थी लेकिन उन्होंने अपनी तमाम क्षमताओं को और जीवन का अधिकांश हिस्सा मार्क्स की रचनाओं को ही आगे बढ़ाने में लगा दिया। मार्क्स की महान रचना ‘पूँजी’ प्रकाशित न हो पाती अगर एंगेल्स न होते। एंगेल्स की मार्क्स के प्रति गहरी भावना के बारे में लेनिन ने लिखा है: “एंगेल्स सदा ही – और आम तौर से, बिल्कुल सही ही – अपने को मार्क्स के बाद रखते थे। अपने एक पुराने मित्र को उन्होंने लिखा था, ‘मार्क्स के जीवनकाल में मैं हमेशा पूरक की भूमिका अदा करता था,’ जीवित मार्क्स के प्रति उनका प्रेम और मृत मार्क्स के प्रति उनका सम्मान-भाव निस्सीम था। इस दृढ़ योद्धा और कठोर विचारक के अन्दर एक अत्यन्त प्रेमी आत्मा निवास करती थी।”

1864 में जब मार्क्स ने “अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर संघ” की स्थापना की तो इसके कार्यों में एंगेल्स की सक्रिय भूमिका रही। 1874 में जर्मन सोशल-डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) ने अपने अख़बार में प्रमुख नेता ऑगस्ट बेबेल द्वारा ड्यूहरिंग के काम के पक्ष में एक लेख प्रकाशित किया। ड्यूहरिंग के विचारों को लोकप्रियता मिलनी शुरू हुई। जिसके बाद एंगेल्स ने ‘ड्यूरिंग मतखण्डन’ नामक किताब लिखी जिसमें उन्होंने प्रकृति और समाज से सम्बन्धित ड्यूहरिंग के मूर्खतापूर्ण विचारों की धज्जियाँ उड़ा दी। साथ ही उन्होंने ‘प्रकृति में द्वन्द्वात्मकता’ (1883) और ‘परिवार, निजी सम्पति और राज्य की उत्पति’ (1884) जैसी कृतियों से द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त को आगे बढ़ाने का काम किया।

मार्क्स की मृत्यु के बाद एंगेल्स जीवनपर्यन्त मार्क्सवाद की शिक्षाओं को समृद्ध करने में लगे रहे। अपनी तमाम छोटी-बड़ी रचनाओं के द्वारा एंगेल्स ने प्रकृति, समाज, दर्शन और विज्ञान के तमाम सवालों पर मार्क्सवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का काम किया। मार्क्स की रचना ‘पूँजी’ का प्रथम खण्ड मार्क्स के जीवन काल में ही प्रकाशित हो गया था। लेकिन मार्क्स की मृत्यु के बाद ‘पूँजी’ के अन्य दो खण्डों को सम्पादित करके प्रकाशित करने का श्रमसाध्य काम एंगेल्स ने किया। अपनी मृत्यु के कुछ समय पूर्व तक एंगेल्स मार्क्स की कृतियों के सम्पादन और उनके प्रकाशन सम्बन्धी योजनाओं में लगे रहे।

लेनिन ने लिखा है- “मार्क्स की मृत्यु के बाद अकेले एंगेल्स यूरोपीय समाजवादियों के परामर्शदाता और नेता बने रहे। उनका परामर्श और मार्गदर्शन जर्मन समाजवादी, जिनकी शक्ति सरकारी यन्त्रणाओं के बावजूद शीघ्रता से और सतत बढ़ रही थी, और स्पेन, रूमानिया, रूस आदि जैसे पिछड़े देशों के प्रतिनिधि, जो अपने पहले क़दम बहुत सोच-विचार कर और सँभलकर रखने को विवश थे, सभी समान रूप से चाहते थे। वे सब वृद्ध एंगेल्स के ज्ञान और अनुभव के समृद्ध भण्डार से लाभ उठाते थे।”

6 अगस्त 1995 को लन्दन में एंगेल्स का निधन हो गया। उनकी इच्छानुसार उनके अवशेषों को समुद्र में बिखेर दिया गया। दुनिया के मज़दूर वर्ग के हृदय में उनके महान शिक्षक फ़्रेडरिक एंगेल्स के लिए हमेशा गर्व और आदर का भाव बना रहेगा। उनकी शिक्षाएँ विश्व सर्वहारा के मुक्ति पथ को हमेशा आलोकित करती रहेंगी।


“आजकल के हमारे पूरे समाज का यही आर्थिक ढाँचा है: सभी प्रकार का मूल्य केवल मज़दूर वर्ग ही उत्पन्न करता है। कारण, मूल्य श्रम का ही दूसरा नाम है, वह नाम, जो आजकल के हमारे पूँजीवादी समाज में किसी ख़ास माल के उत्पादन में लगे सामाजिक दृष्टि से आवश्यक श्रम की मात्रा को दिया जाता है। लेकिन मज़दूरों द्वारा उत्पन्न इन मूल्यों पर मज़दूरों का अधिकार नहीं होता। उन पर अधिकार होता है कच्चे माल, मशीनों, औज़ारों तथा आरक्षित निधियों के मालिकों का, जो मालिकों को मज़दूर वर्ग की श्रम-शक्ति को ख़रीदने का सुयोग प्रदान करते हैं। इसलिए मज़दूर वर्ग जो राशि उपज पैदा करता है, उसमें से उसे केवल एक हिस्सा ही वापस मिलता है। और, जैसा कि हमने अभी देखा, उसका दूसरा हिस्सा, जो पूँजीपति अपने पास रख लेता है, जिसमें से उसे ज़्यादा से ज़्यादा ज़मींदार के साथ हिस्सा बँटाना पड़ता है, हर नये आविष्कार तथा खोज के साथ बढ़ता जाता है, जबकि मज़दूर वर्ग के हिस्से में आनेवाला भाग (प्रति आदमी के हिसाब से) या तो बहुत ही धीरे-धीरे और बहुत ही कम बढ़ता है, या बिल्कुल ही नहीं बढ़ता और बाज़ सूरतों में तो वह घट भी सकता है।

लेकिन ये आविष्कार और खोजें, जो नित्य बढ़ती हुई गति से एक दूसरे से आगे बढ़ रही हैं, मानव-श्रम की उत्पादनशीलता, जो दिन-ब-दिन इतनी तेज़ी के साथ बढ़ रही है कि पहले सोचा भी नहीं जा सकता था, अन्त में जाकर एक ऐसा टकराव पैदा करती हैं, जिसके कारण आज की पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का विनाश निश्चित है। एक ओर, अकूत धन-सम्पत्ति और मालों की इफ़रात है, जिनको ख़रीदार ख़रीद नहीं पाते; दूसरी ओर, समाज का अधिकांश भाग है, जो सर्वहारा हो गया है, उजरती मज़दूर बन गया है और जो ठीक इसीलिए इन इफ़रात मालों को हस्तगत करने में असमर्थ है। समाज के एक छोटे-से अत्यधिक धनी वर्ग और उजरती मज़दूरों के एक विशाल सम्पत्तिविहीन वर्ग में बँट जाने के परिणामस्वरूप उसका ख़ुद अपनी इफ़रात से गला घुटने लगता है, जबकि समाज के सदस्यों की विशाल बहुसंख्या घोर अभाव से प्रायः अरक्षित है या नितान्त अरक्षित तक है। यह वस्तुस्थिति अधिकाधिक बेतुकी और अधिकाधिक अनावश्यक होती जाती है। इस स्थिति का अन्त अपरिहार्य है। उसका अन्त सम्भव है। एक ऐसी नयी सामाजिक व्यवस्था सम्भव है, जिसमें वर्त्तमान वर्ग-भेद लुप्त हो जायेंगे और जिसमें–शायद एक छोटे-से संक्रमण-काल के बाद, जिसमें कुछ अभाव सहन करना पड़ेगा, लेकिन जो नैतिक दृष्टि से बड़ा मूल्यवान काल होगा–अभी से मौजूद अपार उत्पादक-शक्तियों का योजनाबद्ध रूप से उपयोग तथा विस्तार करके और सभी के लिए काम करना अनिवार्य बनाकर, जीवन-निर्वाह के साधनों को, जीवन के उपभोग के साधनों को तथा मनुष्य की सभी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों के विकास और प्रयोग के साधनों को समाज के सभी सदस्यों के लिए समान मात्र में और अधिकाधिक पूर्ण रूप से सुलभ बना दिया जायेगा।”

कार्ल मार्क्स की पुस्तिका ‘उजरती श्रम और पूँजी’ में फ्रेडरिक एंगेल्स की भूमिका का एक अंश

 


 

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