Category Archives: महान जननायक

मज़दूरों को इतिहास क्यों जानना चाहिए?

आज भी जिस तरीक़े से फ़ासीवादी सत्ता द्वारा इतिहास को विकृत करके जनता के सामने पेश करने की कोशिश हो रही है ताकि जनता के बीच  साम्प्रदायिकता का ज़हर घोला जा सके, ऐसे में कोसाम्बी की लेखनी बेहद महत्त्व रखती है। आज ज़रूरत है आम मेहनतकश जनता को अपने देश के इतिहास के ऐसे वैज्ञानिक विश्लेषणों से परिचित करवाने की ताकि उन्हें फा़सीवादियों के झूठे प्रचार की ज़द में आने से रोका जा सके। आज ज़रूरत है जनता को  सही मायने में तथ्यों और उनके वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित इतिहास से परिचित करवाने की। कोसाम्बी इस सन्दर्भ में एक बेहद ज़रूरी स्थान रखते हैं और आज इसी रूप में उन्हें याद किया जा सकता है कि उन्होंने हमेशा इतिहास की साम्प्रदायिक और अन्धराष्ट्रवादी व्याख्याओं का अपनी लेखनी के ज़रिये मुकाबला किया और जनता के पक्ष से लिखे गए इतिहास को स्थापित किया।

मज़दूरों और मेहनतकशों की मुक्ति को समर्पित महान क्रान्तिकारी और चिन्तक थे हमारे भगतसिंह

23 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए फाँसी के फन्दे पर झूल जाने वाले एक बहादुर नौजवान भगतसिंह की तनी हुई मूँछें और टोपी वाली तस्वीर तो आपने देखी होगी। असेम्बली में बम फेंकने और वहाँ से भागने के बजाय अपनी गिरफ़्तारी देकर बहरी अंग्रेज़ी सरकार को चुनौती देने वाली कहानियों से कई लोग परिचित होंगे। भारतीय शासक वर्ग की पूरी जमात हमारे महान पूर्वज शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर उनके जीवन के केवल इन्हीं पक्षों पर ज़ोर देते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह डर लगातार सताता रहता है कि कहीं जनता इनके विचारों को जानकर अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न कर दे।

चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस (23 जुलाई) पर – अपनी क्रान्तिकारी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लो!

आज़ादी की लड़ाई में एक धारा क्रान्तिकारियों की भी थी और अंग्रेज़ी हुकूमत की नाक में उन्होंने हमेशा दम करके रखा। वे समाजवाद के उसूलों को मानते थे, मज़दूर पार्टी बनाने का लक्ष्य रखते थे और मज़दूर राज क़ायम करना चाहते थे। उनके इन आदर्शों और विचारों से न सिर्फ़ अंग्रेज़ी हुकूमत ख़ौफ़ज़दा थी बल्कि देश के पूँजीपति वर्ग की पार्टी कांग्रेस का नेतृत्व भी घबराता था। क्योंकि वह समझता था कि अगर आज़ादी के आन्दोलन का नेतृत्व भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक़ उल्ला, बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारियों की क्रान्तिकारी धारा के हाथों में आया तो भारत की आज़ादी पूँजीपतियों की लक्ष्यपूर्ति से आगे जायेगी और मज़दूर राज और समाजवाद की स्थापना की ओर जायेगी। ये बेहद युवा क्रान्तिकारी थे और अपने विचारधारात्मक-राजनीतिक विकास के आरम्भिक चरणों में थे, हालाँकि इन शुरुआती मंज़िलों में भी उन्होंने अपनी बौद्धिक-वैचारिक शक्ति को दिखला दिया था।

अय्यंकालि के स्मृति दिवस पर – जाति-उन्मूलन आन्दोलन को अय्यंकालि से सीखना होगा

कई जाति-विरोधी व्यक्तित्वों को ख़ुद भारत की सरकार ने आज़ादी के बाद से ही प्रचारित-प्रसारित किया है लेकिन अय्यंकालि को नहीं। क्यों? क्योंकि अय्यंकालि आमूलगामी तरीक़े से और जुझारू तरीक़े से सड़क पर उतरकर संघर्ष का रास्ता अपनाते थे; क्योंकि अय्यंकालि सरकार की भलमनसाहत या समझदारी के भरोसे नहीं थे, बल्कि जनता की पहलक़दमी पर भरोसा करते थे। वह कोई सुधारवादी या व्यवहारवादी नहीं थे, बल्कि एक रैडिकल जाति-विरोधी योद्धा थे। यही कारण है कि सरकार अय्यंकालि के रास्ते और विचारों के इस पक्ष को हमसे बचाकर रखती है। क्योंकि यदि मेहनतकश दलित और दमित जनता उनके बारे में जानेगी, तो उनके रास्ते के बारे में भी जानेगी और यह मौजूदा पूँजीवादी व जातिवादी सत्ता ऐसा कभी नहीं चाहेगी कि उसके विरुद्ध रैडिकल संघर्ष के रास्ते को जनता जाने और अपनी पहलक़दमी में भरोसा पैदा करे। यही कारण है कि अय्यंकालि की विरासत को जनता की शक्तियों को याद करना चाहिए। उनकी स्मृतियों को, प्रगतिशील ताक़तों को जीवित रखना चाहिए। उनके आन्दोलन के रास्ते को व्यापक मेहनतकश और दलित जनता में हमें ले जाना होगा। केवल ऐसा करके ही हम अय्यंकालि को सच्ची आदरांजलि दे सकते हैं। उनको याद करने का यही सबसे बेहतर तरीक़ा हो सकता है।

सारी दुनिया के मज़दूरों के नेता और शिक्षक कार्ल मार्क्स के जन्मदिवस (5 मई) पर

मज़दूरी की दर अपेक्षाकृत ऊँची होने के बावजूद श्रम की उत्पादन-शक्ति के बढ़ने से पूँजी का संचय तेज़ हो जाता है। इससे एडम स्मिथ की तरह, जिसके ज़माने में आधुनिक उद्योग अपने बाल्य-काल में ही था, कोई यह नतीजा निकाल सकता है कि पूँजी का संचय तेज़ होने से मज़दूर का पलड़ा भारी हो जायेगा, क्योंकि उसके श्रम की माँग बढ़ेगी। इसी दृष्टिकोण से सोचते हुए बहुत-से तत्कालीन लेखकों ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि यद्यपि पिछले बीस वर्षों में अंग्रेज़ पूँजी इंग्लैण्ड की आबादी के मुक़ाबले में बहुत तेज़ी से बढ़ी है, पर मज़दूरी बहुत नहीं बढ़ी।

भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत (23 मार्च) की 91वीं बरसी पर

इलाहाबाद में संगम के बग़ल में बसी हुई मज़दूरों-मेहनतकशों की बस्ती में विकास के सारे दावे हवा बनकर उड़ चुके हैं। आज़ादी के 75 साल पूरा होने पर सरकार अपने फ़ासिस्ट एजेण्डे के तहत जगह-जगह अन्धराष्ट्रवाद की ख़ुराक परोसने के लिए अमृत महोत्सव मना रही है वहीं दूसरी ओर इस बस्ती को बसे 50 साल से ज़्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक यहाँ जीवन जीने के लिए बुनियादी ज़रूरतें, जैसे पानी, सड़कें, शौचालय, बिजली, स्कूल आदि तक नहीं हैं।

तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष के 75 साल उपलब्धियाँ और सबक़ (दूसरी व अन्तिम क़िस्त)

पिछली क़िस्त में हमने देखा कि किस प्रकार 1940 के दशक की शुरुआत में हैदराबाद के निज़ाम की सामन्ती रियासत में आने वाले तेलंगाना के जागीरदारों और भूस्वामियों द्वारा किसानों के ज़बर्दस्त शोषण व उत्पीड़न के विरुद्ध शुरू हुआ आन्दोलन 1946 की गर्मियों तक आते-आते सामन्तों के ख़िलाफ़ एक सशस्त्र विद्रोह में तब्दील हो गया। निज़ाम की सेना और रज़ाकारों द्वारा इस विद्रोह को बर्बरतापूर्वक कुचलने की सारी कोशिशें विफल साबित हुईंं।

तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष के 75 साल उपलब्धियाँ और सबक़ (पहली क़िस्त)

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चले तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष (तेलुगु में ‘तेलंगाना रैतुंगा सायुध पोराटम’) की शानदार विरासत को भारत के हुक्मरानों द्वारा साज़िशाना ढंग से छिपा देने की वजह से देश के अन्य हिस्सों में आमजन तेलंगाना के किसानों और मेहनतकशों की इस बहादुराना बग़ावत से अनजान हैं, हालाँकि तेलंगाना में यह शौर्यगाथा लोकसंस्कृति के तमाम रूपों में जनमानस के बीच आज भी ज़िन्दा है।

मेहनतकश जनता के सच्चे लेखक मक्सिम गोर्की के स्मृति दिवस पर एक साहित्यिक परिचय

दुनिया में ऐसे लेखकों की कमी नहीं, जिन्हें पढ़ाई-लिखाई का मौक़ा मिला, पुस्तकालय मिला, शान्त वातावरण मिला, जिसमें उन्होंने अपनी लेखनी की धार तेज़ की। लेकिन बिरले ही ऐसे लोग होंगे जो समाज के रसातल से उठकर आम-जन के सच्चे लेखक बने। मक्सिम गोर्की ऐसे ही लेखक थे।

जन्मदिवस (14 जून) के अवसर पर क्यूबा की क्रान्ति के नायक चे ग्वेरा को याद करते हुए कुछ कविताएँ

जन्मदिवस (14 जून) के अवसर पर क्यूबा की क्रान्ति के नायक चे ग्वेरा को याद करते हुए कुछ कविताएँ चे कमांडेंट – निकोलस गिएन (1902-1989), क्यूबा के राष्ट्रकवि यद्यपि बुझा…