समाजवादी क्रान्ति कोई एकल कार्य नहीं है, एक मोर्चे पर एक एकल लड़ाई नहीं है; बल्कि तीखे वर्ग संघर्षों का एक पूरा युग है, सभी मोर्चों पर लड़ाइयों की, यानी, अर्थशास्त्र और राजनीति की सभी समस्याओं के इर्द-गिर्द लड़ाइयों एक लम्बी श्रृंखला है, जो तभी ख़त्म हो सकती है जब पूँजीपति वर्ग का स्वत्वहरण कर दिया जायेगा। यह मानना एक बुनियादी ग़लती होगी कि जनवाद के लिए संघर्ष सर्वहारा वर्ग को समाजवादी क्रान्ति से भटका सकता है, या उस लक्ष्य को धुँधला या ढँक सकता है, आदि। इसके विपरीत, जिस तरह समाजवाद तब तक विजयी नहीं हो सकता जब तक कि वह पूर्ण जनवाद लागू न करे, उसी तरह सर्वहारा वर्ग पूँजीपति वर्ग पर विजय के लिए तब तक तैयार नहीं हो पायेगा जब तक कि वह जनवाद के लिए बहुआयामी, सुसंगत और क्रान्तिकारी संघर्ष नहीं छेड़ता है।