Category Archives: इतिहास

विश्व सर्वहारा के महान क्रान्तिकारी शिक्षक एंगेल्स के जन्मदिवस (28 नवम्बर) पर

मार्क्स से मुलाकात से पहले ही मार्क्स और एंगेल्स के विचारों में इतनी समानता थी कि पूँजीवादी समाज के बारे में दोनों ही लगभग समान निष्कर्ष तक पहुँच चुके थे। इसी का परिणाम था कि अपनी पहली मुलाकात के वर्ष में ही दोनों के साझे प्रयास से “पवित्र परिवार” नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। जिसका उद्देश्य मुख्यतः जनता के लिए परिकल्पनात्मक दर्शन की भ्रान्तियों का खण्डन करना था। ‘पवित्र परिवार’ के प्रकाशित होने से पहले ही एंगेल्स ने मार्क्स और रूगे की जर्मन फ़्रांसीसी पत्रिका में अपनी रचना “राजनीतिक अर्थशास्त्र पर आलोचनात्मक निबन्ध” प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण से समकालीन, आर्थिक व्यवस्था की परिघटनाओं को जाँचा-परखा और पाया कि ये निजी स्वामित्व के प्रभुत्व के अनिवार्य परिणाम हैं। 1845 में एंगेल्स ने अपना व्यावसायिक जीवन और परिवार त्याग दिया और बार्मेन छोड़कर ब्रसेल्स चले गये। ब्रसेल्स में ही एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर अपने दार्शनिक और आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने का काम शुरू किया।

मई दिवस और मौजूदा दौर में मज़दूर वर्ग के समक्ष चुनौतियाँ

एक ऐसे वक़्त में हम मई दिवस मना रहे हैं जब मज़दूरों से उन अधिकारों को ही छिना जा रहा है जिन्हें मई दिवस के शहीदों की शहादत और मजदूर वर्ग के बेमिसाल संघर्षों के बाद हासिल किया गया था। दुनिया भर में फ़ासीवादी और धुर-दक्षिणपंथी सरकारें सत्ता में पहुँच रही हैं जो मज़दूर अधिकारों पर पाटा चला रही हैं। यह दौर नवउदारवादी हमले का दौर है। ठेकाकरण, अनौपचारिकीकरण, यूनियनों को ख़त्म किया जाना और श्रम क़ानूनों को ख़त्म किया जाना मज़दूर वर्ग के समक्ष चुनौती है। तुर्की के मज़दूर वर्ग के कवि नाज़िम हिकमत ने एक कविता में कहा था कि यह जानने के लिए कि हमें कहाँ जाना है यह जानना ज़रूरी होता है कि हम कहाँ से आये हैं। मई दिवस के आज के दौर की चुनौतियों की थाह लेने से पहले हम एक बार अपने अतीत पर निगाह डालें तो इस चुनौती का सामना करने का रास्ता भी मिल जायेगा।

राम मन्दिर के बाद काशी के ज़रिये साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश में लगे संघ-भाजपा – इस उन्माद में मत बहिए! आइए अपने सही इतिहास को जानें!

मोदी सरकार के पास अब यही मुद्दे बचे हैं, जिसके ज़रिये वह 2024 का चुनाव जीत सकती है। पहले राम मन्दिर के नाम पर दंगे हुए, अब ज्ञानवापी के नाम पर उन्माद फैलाने की कोशिश जारी है और हो सकता है चुनाव तक काशी-मथुरा तक भी यह आग पहुँच जाये। भाजपा व संघ परिवार आपकी धार्मिक भावनाओं का शोषण कर आप को ही मूर्ख बना रही है। मोदी सरकार धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। यह आपको तय करना है कि आपको क्या चाहिए। क्या आपको शिक्षा-चिकित्सा-रोज़गार-आवास के अपने बुनियादी हक़ चाहिए, एक बेहतर जीवन चाहिए या फिर आपको मन्दिर-मस्ज़िद के झगड़ों में ही उलझे रहना है।

फ़्रेडरिक एंगेल्स – सागर जैसा हृदय, आलोकित शिखरों जैसी मेधा, तूफ़ानों जैसा जीवन

मार्क्सवादी दर्शन में एंगेल्स का अपना योगदान विशाल है। ‘लुडविग फायरबाख़ और क्लासिकी जर्मन दर्शन का अन्त’, ‘ड्यूहरिंग मत-खण्डन’, ‘प्रकृति की द्वंद्वात्मकता’ तथा ‘परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्यसत्ता की उत्पत्ति’ जैसी कृतियाँ मार्क्सवादी दर्शन और ऐतिहासिक भौतिकवाद के सार एवं महत्व की क्लासिकी प्रस्तुतियाँ हैं। एंगेल्स का बहुत बड़ा योगदान यह था कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को उन्होंने प्राकृतिक विज्ञानों पर लागू किया। वर्ग, शोषण और जेण्डर-विभेद के नृतत्वशास्त्रीय मूल की उनकी विवेचना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सर्वतोमुखी ज्ञान ने उनके लिए पदार्थ की गति के वस्तुगत रूपों को विद्याओं के विभेदीकरण का आधार बनाते हुए विज्ञानों के वर्गीकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली का विशदीकरण करना सम्भव बनाया। दार्शनिक वाद-विवादों में, वैज्ञानिक और आर्थिक नियतत्ववाद तथा अज्ञेयवाद की आलोचना करते हुए एंगेल्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की आधारभूत प्रस्थापनाओं का विकास किया।

काकोरी ऐक्शन की विरासत से प्रेरणा लो! धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ सच्ची धर्मनिरपेक्षता के लिए आगे आओ!

काकोरी ऐक्शन उस समय तक चले आ रहे क्रान्तिकारी आन्दोलन के गुणात्मक रूप से नयी मंजिल में प्रवेश कर जाने का प्रतीक बन गया। काकोरी ऐक्शन में शामिल ये क्रान्तिकारी राजनीतिक चेतना और वैचारिकता के धरातल पर अपने पहले की पीढ़ी के क्रान्तिकारियों से आगे बढ़े हुए थे। उनके पास एक स्पष्ट स्वप्न था कि आने वाला समाज कैसा होगा। एचआरए के घोषणापत्र की शुरुआत इन शब्दों से होती है – “हर इन्सान को निःशुल्क न्याय चाहे वह ऊँच हो या नीच, अमीर हो या ग़रीब, हर इन्सान को वास्तविक समान अवसर, चाहे वह ऊँच हो या नीच, अमीर हो या ग़रीब।”

मई दिवस : मज़दूर वर्ग के महान पुरखों के गौरवशाली संघर्ष की विरासत को आगे बढ़ाने का दिन

अमेरिका में जिन मज़दूरों ने अपने बलिष्ठ हाथों से अमेरिका के शहरों को खड़ा किया, रेल पटरियों का जाल बिछाया, नदियों को बाँधा, गगनचुम्बी इमारतों को बनाया, और पूँजीपतियों के लिए दुनियाभर के ऐशो-आराम खड़े किये उनकी जीवनस्थिति अभी भी बेहद भयावह थी। उस समय युवा मज़दूर अपने जीवन के 40 बसन्त भी नहीं देख पाते थे। अगर मज़दूर इसके खि़लाफ़ कोई भी आवाज़ उठाते थे तो उनपर निजी गुण्डों, पुलिस और सेना से हमले करवाये जाते थे! लेकिन इन सबसे अमेरिका के जाँबाज़ मज़दूर दबने वाले नहीं थे!

‘इण्टरनेशनल’ के रचयिता यूजीन पोतिए के 135वें स्मृति दिवस पर लेनिन का लेख

पिछले साल, 1912 के नवम्बर में, फ़्रांसीसी मज़दूर कवि, सर्वहारा वर्ग के प्रसिद्ध गीत, “इण्टरनेशनल” (“उठ जाग, ओ भूखे बन्दी,” आदि) के लेखक यूजीन पोतिए की मृत्यु को हुए पच्चीस वर्ष पूरे हो गये। (उनकी मृत्यु 1887 में हुई थी।) उनके इस गीत का सभी यूरोपीय तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कोई भी वर्ग चेतन मज़दूर चाहे जिस देश में वह पहुँच जाये, क़िस्मत उसे चाहे जहाँ ढकेलकर ले जाये, भाषा-विहीन, नेत्र-विहीन, अपने देश से दूर कहीं वह चाहे जितना अजनबी महसूस करे – “इण्टरनेशनल” (मज़दूरों के अन्तर्राष्ट्रीय गीत) की परिचित टेकों के माध्यम से वह वहाँ अपने लिए साथी और मित्र ढूँढ़ सकता है।

अक्टूबर क्रान्ति की स्मृति और विरासत का आज हम मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए क्या अर्थ है?

रूसी कैलेण्डर के अनुसार, 1917 के अक्टूबर महीने में रूस के सर्वहारा वर्ग ने अपनी कम्युनिस्ट पार्टी, जिसका नाम बोल्शेविक पार्टी था, की अगुवाई में पूँजीपतियों और पूँजीवादी ज़मीन्दारों की सत्ता को एक क्रान्ति के ज़रिए उखाड़ फेंका और मज़दूर राज की स्थापना की। हमारे कैलेण्डर के अनुसार, यह महान घटना 7 नवम्बर 1917 को हुई थी। इस मज़दूर राज के पहले व्यवस्थित प्रयोग का जीवन 36 वर्षों तक चला। उसके बाद पूँजीपति वर्ग ने मज़दूर वर्ग की सत्ता को गिराकर पूँजीवादी व्यवस्था की पुनर्स्थापना कर दी। यह कोई अनोखी बात नहीं थी। जब पूँजीपति वर्ग ने सामन्ती ज़मीन्दारों, राजे-रजवाड़ों और चर्च की सत्ता को दुनिया में पहली बार ज़मीन्दोज़ किया था तो उसकी सत्ता तो एक दशक भी मुश्किल से चली थी।

तेलंगाना में निज़ाम की सत्ता के पतन की 75वीं बरसी पर जश्न मनाने की होड़ में भाजपा और टीआरएस ने की इतिहास के साथ बदसलूकी

गत 17 सितम्बर को तेलंगाना में निज़ाम की सत्ता के पतन की 75वीं बरसी के मौक़े पर हैदराबाद शहर में भाजपा और टीआरएस के बीच जश्न मनाने की बेशर्म होड़ देखने में आयी। पूरा शहर दोनों पार्टियों के पोस्टरों व बैनरों से पाट दिया गया था। शहर में दोनों पार्टियों द्वारा कई स्थानों पर रैलियाँ निकाली गयीं और जनता की हाड़तोड़ मेहनत से कमाये गये करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये गये। भाजपा व केन्द्र सरकार ने इस दिन को ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया, जबकि टीआरएस व तेलंगाना सरकार ने इसे ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया। ग़ौरतलब है कि भाजपा पिछले कई सालों से 17 सितम्बर को ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने की मुहिम चलाती आयी थी।

‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ : एक जनविद्रोह जो भारतीय पूँजीपति वर्ग के वर्चस्व से निकलकर क्रान्तिकारी दिशा में जा सकता था

‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ जनता के क्रान्तिकारी संघर्षों की विरासत का एक एहम हिस्सा है। 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में हुए जनउभार ने ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन का अन्त सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस आन्दोलन में आम मेहनतकश जनता की बड़े स्तर पर भागीदारी थी। क़रीब 40 प्रतिशत मज़दूरों और किसानों ने इस आन्दोलन में हिस्सेदारी की और यह आन्दोलन सिर्फ़ शहरों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि गाँव-गाँव में फैल गया था। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का अंग्रेज़ी हुकूमत पर क्या प्रभाव पड़ा इसको हम तभी के वायसराय लिनलिथगो के इस वक्तव्य से जान सकते हैं जो उन्होंने तभी के प्रधानमंत्री चर्चिल को लिखे पत्र में कहा था कि “यह 1857 के बाद का सबसे गम्भीर विद्रोह है जिसकी गम्भीरता और विस्तार को हम अब तक सैन्य सुरक्षा की दृष्टि से छुपाये हुए हैं।”