मनरेगा मज़दूरों की माँग: ‘पूरे साल काम दो, काम के पूरे दाम दो!’
बिगुल संवाददाता
कलायत (हरियाणा), मनरेगा मज़दूरों ने ‘क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में अपनी लम्बित माँगों को लेकर बीडीपीओ कार्यालय पर प्रदर्शन करके बीडीपीओ रितु को ज्ञापन सौंपा। मज़दूरों का कहना था कि उन्हें मनरेगा के तहत मिलने वाले क़ानूनी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
ज्ञापन सौंपने से पहले मज़दूरों ने ज़ोरदार प्रदर्शन किया और जनसभा के दौरान अपनी समस्याओं को साझा करते हुए जनसुनवाई की। प्रदर्शन में गाँव सिमला, चौशाला, पिंजुपुरा, रामगढ़, हरिपुरा आदि के मज़दूर शामिल हुए।
यूनियन के साथी अजय ने कहा कि एक तरफ़ मोदी सरकार लगातार मनरेगा का बजट घटा रही है, तो दूसरी तरफ़ हरियाणा की नायब सैनी सरकार ने मनरेगा के तहत रोज़गार लगभग ख़त्म कर दिया है। प्रदेश में कृषि क्षेत्र की न्यूनतम मज़दूरी ₹493 है, जबकि मनरेगा मज़दूरों को मात्र ₹400 मिलते हैं। यह सरकार की मज़दूर-विरोधी और गरीब-विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। जब से पूँजीपतियों की सबसे चहेती और वफ़ादार पार्टी भाजपा सत्ता में आयी है, तब से मनरेगा योजनाओं को असफल बनाने की साज़िश चल रही है – यह सीधा हमला है गरीबों और मज़दूरों पर।
अजय ने आगे कहा कि वैसे तो मनरेगा क़ानून के अन्तर्गत 100 दिन के रोज़गार की बात ही अपने आप में इस देश के मज़दूरों और गरीबों के साथ एक भद्दा मज़ाक़ है क्योंकि ‘रोज़गार’ का मतलब ही है रोज़ किया जाने वाला काम। इसलिए असल माँग तो साल के 365 दिन पक्के रोज़गार की गारण्टी की होनी चाहिए। लेकिन अभी तो सरकार अपने द्वारा ही बनाये क़ानून के तहत 100 दिन का रोज़गार देने से भी भाग रही है। आँकड़ों के अनुसार पूरे देश में और कलायत में भी मनरेगा के तहत सालाना औसतन 25–30 दिन का ही काम मिल पाता है। गाँवों में बढ़ती महँगाई के बीच मज़दूरों द्वारा अपने परिवार का गुज़ारा करना कठिन हो गया है। ऐसे में मनरेगा ही देहाती क्षेत्र में मज़दूरों का एक सहारा है, लेकिन सरकारें लगातार इसके बजट और कार्यदिवसों में कटौती कर रही हैं।
ऐसे में ज़रूरी है कि हम न सिर्फ मौजूदा क़ानून के अमल के लिए संगठित होकर सरकारों पर दबाव बनायें बल्कि रोज़गार के वास्तविक अधिकार के लिए भी एकजुट होकर संघर्ष खड़ा करें।
‘मनरेगा बचाओ मोर्चा’ के साथी धीरज ने कहा कि सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों के कारण मनरेगा मज़दूरों का हक़ छीना जा रहा है। गाँव की सड़कों की मरम्मत, स्कूल और खेल मैदानों की देखभाल, तालाब-नहर की सफाई, श्मशान भूमि का रखरखाव जैसे कच्चे कार्य या तो बन्द कर दिये गये हैं या बहुत सीमित हो गये हैं। इसका नतीजा है कि आज मनरेगा में रोज़गार लगभग समाप्त हो गया है।
प्रदर्शन में तय किया गया कि ‘मनरेगा बचाओ’ और ‘काम के सवाल’ को लेकर पूरे प्रदेश के मनरेगा मज़दूरों को 21 नवम्बर को दिल्ली में मोदी सरकार का घेराव करना चाहिए।
‘क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन’ के बैनर तले एकजुट मज़दूरों ने मुख्य रूप से निम्नलिखित माँगें रखीं:
कम से कम 100 दिन के काम की गारण्टी: मज़दूरों ने कहा कि उन्हें क़ानून के अनुसार पूरे 100 दिन का रोज़गार नहीं मिल रहा, मुश्किल से 20–30 दिन का ही काम दिया जाता है। उनकी माँग है कि हर मज़दूर परिवार के लिए साल में कम से कम 100 दिन का रोज़गार सुनिश्चित किया जाये।
‘कार्य रोक’ आदेश वापस लो: 5 अगस्त 2025 को राष्ट्रीय स्तर की निगरानी टीम की रिपोर्ट के आधार पर आयुक्त-मनरेगा/अपर निदेशक, हरियाणा द्वारा मनरेगा के कुछ कार्यों पर लगायी गयी रोक क़ानूनी और तथ्यात्मक दृष्टि से ग़लत है। इस आदेश से लाखों ग्रामीण मज़दूरों की आजीविका और गरिमा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अतः इस आदेश को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाये।
रुके हुए कार्य फिर शुरू करो: जिन कार्यों पर रोक लगी है — जैसे मिट्टी कार्य, तालाब गहरीकरण, खेत-तालाब निर्माण, जल संरक्षण कार्य, नहर सफाई आदि — उन्हें फिर “मंज़ूरीशुदा काम” की श्रेणी में शामिल कर तर्कसंगत ढंग से फिर से शुरू किया जाये।
बकाये वेतन का भुगतान: मेटों और मज़दूरों को पिछले दो वर्षों से किये गये काम का वेतन नहीं मिला है। मज़दूरों ने तत्काल बकाया भुगतान की माँग की।
बेरोज़गारी भत्ता दो: मनरेगा कानून के अनुसार, काम माँगने के 15 दिन के भीतर रोज़गार न मिलने पर मज़दूरों को बेरोज़गारी भत्ता दिया जाना चाहिए। मज़दूरों ने बेरोज़गारी भत्ता और मेटों के बकाया वेतन के तुरन्त भुगतान की माँग की।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2025













