Category Archives: साम्राज्‍यवाद

क्या है BDS आन्दोलन?

बहिष्कार (Boycott) के ज़रिये इज़राइल की नस्लभेदी (Apartheid) व्यवस्था, उसमें संलिप्त खेल, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों तथा सभी इज़रायली और उन अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों का बहिष्कार करना शामिल है, जो इज़रायल को मुनाफ़ा पहुँचाकर जनसंहार में उसकी मदद करती हैं।

अमेरिकी साम्राज्यवाद काग़ज़ी बाघ है / माओ त्से-तुङ U.S. Imperialism is a paper tiger / Mao Zedong

जब साम्राज्यवाद को नेस्तनाबूद कर दिया जायेगा, केवल तभी शान्ति क़ायम हो सकती है। वह दिन ज़रूर आयेगा जब काग़ज़ी बाघों का सफ़ाया कर दिया जायेगा। लेकिन वे अपने आप ख़त्म नहीं हो जायेंगे, उन पर आँधी-वर्षा के थपेड़े पड़ना ज़रूरी है।

भारत में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चलाया जा रहा है बीडीएस (BDS) अभियान!

भारत में भी बीडीएस अभियान को काफ़ी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। देश के कई राज्यों में फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन (IPSP) द्वारा यह अभियान चलाया जा रहा है। पटना, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, हरियाणा समेत कई अन्य जगहों पर इस अभियान के तहत गलियों-मुहल्लों में व्यापक पर्चा वितरण किया जा रहा है, घर-घर जाकर लोगों को फ़िलिस्तीन के संघर्ष से अवगत कराया जा रहा है। इज़रायली ज़ायनवादियों द्वारा की जा रही बर्बरता के पीछे के कारणों को बताते हुए लोगों से यह अपील की जा रही है कि वे ‘बीडीएस’ अभियान के साथ जुड़ें और इज़रायली सेटलर प्रोजेक्ट की मददगार कम्पनियों का हर रूप में पूर्ण बहिष्कार करें।

क्या फ़िलिस्तीनी जनता के मुक्ति संघर्ष का समर्थन करना और वहाँ जारी जनसंहार के ख़िलाफ़ बोलना हमारे देश में अपराध है?

आज़ादी के बाद से ही हमारे देश की सरकारें हमेशा से फ़िलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष की समर्थक रही हैं। लेकिन आज फ़ासीवादी मोदी सरकार क़ागज़ पर तो फ़िलिस्तीन का समर्थन करती है लेकिन अलग-अलग मौक़े पर ज़ायनवादियों के साथ मोदी सरकार का नाजायज़ सम्बन्ध सबके सामने आ ही जाता है। हमारे देश की गोदी मीडिया, आईटी सेल, और सरकार फ़िलिस्तीन और इज़रायल के मुद्दे को मुसलमान बनाम यहूदी का मुद्दा बता रहे हैं, लेकिन जो लोग फ़िलिस्तीन का इतिहास जानते हैं उन्हें पता है कि 1948 से पहले इज़रायल नामक कोई देश नहीं था। इज़रायल कोई देश या राष्ट्र नहीं बल्कि फ़िलिस्तीन पर जबरन क़ब्ज़ा करने की एक सेटलर औपनिवेशिक परियोजना है। यह पश्चिमी साम्राज्यवाद द्वारा बनायी गयी एक औपनिवेशिक बस्ती है, जिसका इस्तेमाल वह फ़िलिस्तीनियों के दमन, विस्थापन व हत्या के लिए और साथ ही मध्य-पूर्व में पश्चिमी साम्राज्यवाद के हितों की सुरक्षा में इस्तेमाल की जाने वाली सैन्य चौकी के रूप में करता है। न तो फ़िलिस्तीन का मसला कभी धर्म का मसला था और न ही यह आज है। यह एक ग़ुलाम बनाये गये मुल्क की आज़ादी के लिए जारी लड़ाई है। ऐसे में आज दुनिया के हर इन्साफ़पसन्द इन्सान का कर्तव्य है कि वह फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा हो।

मध्य-पूर्व में साम्राज्यवादी युद्ध का विस्तार – युद्ध, नरसंहार और विनाश के अलावा साम्राज्यवाद मानवता को कुछ और नहीं दे सकता!

आने वाले दिनों में अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने पतित होते वर्चस्व को रोकने के लिए मध्य-पूर्व सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में युद्ध, नरसंहार, बेपनाह हिंसा का सहारा लेने से बाज़ नहीं आने वाला है। मध्य-पूर्व में चल रही मौजूदा उथल-पुथल का असर न सिर्फ़ उस क्षेत्र में होगा बल्कि तेल व गैस का भण्डार होने की वजह से उस क्षेत्र मे अस्थिरता का असर समूचे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर होना लाज़िमी है। साथ ही यह उथल-पुथल, अनिश्चितता और अस्थिरता जनबग़ावतों की ज्वाला को भी भड़काने का काम करेगी।

ट्रम्प और उसके टैरिफ़

असल में ट्रम्प को ये उम्मीद नहीं थी कि चीन उसके टैरिफ़ का उसी तरह से टैरिफ़ बढ़ाकर जवाब देगा! चीन से अमेरीका का टैरिफ़ वॉर 2018 से ही चला आ रहा है। जो अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प द्वारा ही लगाया गया था। इसे बाइडन प्रशासन ने भी जारी रखा था। लेकिन इस बार चीन ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए जवाबी टैरिफ़ लगाना शुरू कर दिया। ट्रम्प ने बाकी देशों को 90 दिन की छूट देते हुए ‘रेसिप्रोकल टैरिफ़’ घटाकर 10 फ़ीसदी कर दिया जबकि चीन के ऊपर पहले 34%, फ़िर 50%, फ़िर 84% और फ़िर 125% तक बढ़ा दिया!लेकिन उसका यह दाँव उल्टा पड़ता नज़र आ रहा है। क्योंकि 2018 में टैरिफ़ लगने के बाद से चीन ने अपनी निर्यात नीति को एक हद तक बदला है। एक तरफ़ चीन अपनी अर्थव्यवस्था को घरेलू खपत की ओर मोड़ रहा है और दूसरी तरफ़ नए निर्यातक बाज़ारों की तलाश कर रहा है।

भारत की मेहनतकश जनता को फ़िलिस्तीन की जनता का साथ क्यों देना चाहिए?

अगर आपके देश में कोई साम्राज्यवादी ताक़त आकर कब्ज़ा कर ले तो क्या आपको हथियार उठा कर लड़ने का हक़ है? बिल्कुल है। अगर आप अन्तरराष्ट्रीय क़ानून की बात करें, जिसे सभी देश मान्यता देते हैं, तो वह भी कहता है कि किसी भी जबरन कब्ज़ा करने वाली ताक़त के ख़िलाफ़ किसी भी देश के लोगों को हथियारबन्द बग़ावत करने और अपनी आज़ादी के लिए सशस्त्र संघर्ष करने की पूरी आज़ादी है। यह आतंकवाद नहीं है। यह आत्मरक्षा और मुक्ति के लिए और ग़ुलामी के विरुद्ध संघर्ष है। अगर आप को हथियारबन्द ताक़त और हिंसा के ज़रिये कोई ग़ुलाम बनाकर रखता है तो अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के ही मुताबिक आप हथियारबन्द संघर्ष और क्रान्तिकारी हिंसा द्वारा उसकी मुख़ालफ़त कर सकते हैं, उसके विरुद्ध लड़ सकते हैं। यह भी हम नहीं, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून कहता है, जिसे सभी देशों से मान्यता प्राप्त है, भारत से भी।

देशभर में जारी है ‘बीडीएस’ अभियान! इज़रायली हत्यारों से सम्बन्ध रखने वाली कम्पनियों व ब्राण्डों के उत्पादों का लोग कर रहे हैं बहिष्कार!

फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए ‘बीडीएस’ नामक यह अभियान दुनिया भर में तेज़ी से फ़ैल रहा है। ‘बीडीएस’ अभियान का ही प्रभाव है कि कई देशों में इज़रायल की समर्थक कम्पनियों/ब्राण्डों की दुकानें बन्द हो चुकी हैं। कुछ देशों में तो फ़िलिस्तीन पर हमले की समर्थक कई कम्पनियाँ दिवालिया तक हो चुकी हैं। इज़रायली सेटेलमेण्ट की समर्थक स्टारबर्क्स नामक कॉफी कम्पनी की मलेशिया में कम से कम 50 दुकाने (आउटलेट) बन्द हो चुकी हैं।

अमेरिका में ट्रम्प की वापसी के मज़दूर वर्ग के लिए क्या मायने हैं?

ट्रम्प के सनक भरे बयानों और उसके सिरफ़िरेपन को देखकर बहुत से लोग ताज्जुब करते हैं कि भला ऐसा शख़्स दुनिया के सबसे ताक़तवर देश का राष्ट्रपति कैसे बन सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह व्यक्ति अपने आप में एक नमूना है जिसके नमूनेपन को देखकर अमेरिकी पूँजीवाद के तमाम समर्थक व प्रशंसक भी शर्म से झेंप जाते हैं। हालाँकि हमारे देश के ‘सुप्रीम लीडर’ को देखकर उनकी झेंप की भावना अक्सर प्रतिस्पर्द्धा की भावना में भी तब्दील हो जाती है! बहरहाल, ऐसा भी नहीं है कि अमेरिकी राजनीति में ऐसे शख़्स का तूफ़ानी उभार बिल्कुल समझ से परे है। अगर हम अमेरिकी समाज की वर्तमान दशा व विश्व के पैमाने पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की मौजूदा सेहत की रोशनी में इस परिघटना को देखें तो हमें ट्रम्प नामक परिघटना को समझना मुश्किल नहीं होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में धुर-दक्षिणपंथी डोनाल्ड ट्रम्प की अन्तरविरोधों से भरी जीत के राजनीतिक मायने

ट्रम्प ने पिछली हार से सबक लेते हुए अपने चुनाव प्रचार के दौरान दक्षिणपंथी लोकलुभावन जुमलेबाज़ी के ज़रिये न सिर्फ़ पुराने वोट बैंक को सुदृढ़ किया बल्कि बड़े शातिराना तरीके़ से व्यवहारवादी रुख़ अपनाते हुए काली व लातिनी (दक्षिणी अमेरिका से आये हुए लोग) आबादी के बीच भी उसने थोड़ी ही सही लेकिन पकड़ बनायी। ऐसा उसने कमला हैरिस को अभिजात कुलीन वर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर और खुद को अमेरिका के टुटपुँजिया वर्ग के सच्चे प्रतिनिधि के तौर पर स्थापित करके किया।