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ज़ायनवादी इज़रायली हत्यारों के हाथों फ़िलिस्तीनी जनता के जनसंहार का विरोध करो!

फ़िलिस्तीन की जनता साल 1948 में इज़रायल नामक सेटलर बस्ती के जन्म के साथ ही भीषण जनसंहार की चपेट में है। उससे भी पहले ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की रहनुमाई में 1917 में हुई बालफोर घोषणा के बाद से ही ज़ायनवादी हथियारबन्द गुण्डा गिरोह यहाँ की आम आबादी को निशाना बनाते रहे थे। विभिन्न चढ़ाव-उतार से होता हुआ आज़ादी और न्याय के लिए फ़िलिस्तीनी जनता का मुक्ति संघर्ष तब से लेकर आज तक जारी है। हम भारतीय जन जिन्होंने तक़रीबन 200 वर्ष तक औपनिवेशिक ग़ुलामी झेली है, वे इस संघर्ष की अहमियत को और आज़ादी की क़ीमत को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। अपने निर्माण के साथ ही इज़रायली सेटलर औपनिवेशिक कॉलोनी ने फ़िलिस्तीनी क़ौम को ख़ून की नदी में डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। असल में इज़रायल कोई देश या राष्ट्र नहीं है बल्कि यह एक जारी औपनिवेशिक परियोजना है जिसका मक़सद अरब देशों में स्थित कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के संसाधनों पर पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों और अमरीकी साम्राज्यवाद के क़ब्ज़े और प्रभाव को बनाये रखना और पूरे क्षेत्र में पश्चिमी साम्राज्यवाद के वर्चस्व को बनाये रखना है और जिसका अस्तित्व ही फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की क़ीमत पर क़ायम हुआ है।

क्या फ़िलिस्तीनी जनता के मुक्ति संघर्ष का समर्थन करना और वहाँ जारी जनसंहार के ख़िलाफ़ बोलना हमारे देश में अपराध है?

आज़ादी के बाद से ही हमारे देश की सरकारें हमेशा से फ़िलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष की समर्थक रही हैं। लेकिन आज फ़ासीवादी मोदी सरकार क़ागज़ पर तो फ़िलिस्तीन का समर्थन करती है लेकिन अलग-अलग मौक़े पर ज़ायनवादियों के साथ मोदी सरकार का नाजायज़ सम्बन्ध सबके सामने आ ही जाता है। हमारे देश की गोदी मीडिया, आईटी सेल, और सरकार फ़िलिस्तीन और इज़रायल के मुद्दे को मुसलमान बनाम यहूदी का मुद्दा बता रहे हैं, लेकिन जो लोग फ़िलिस्तीन का इतिहास जानते हैं उन्हें पता है कि 1948 से पहले इज़रायल नामक कोई देश नहीं था। इज़रायल कोई देश या राष्ट्र नहीं बल्कि फ़िलिस्तीन पर जबरन क़ब्ज़ा करने की एक सेटलर औपनिवेशिक परियोजना है। यह पश्चिमी साम्राज्यवाद द्वारा बनायी गयी एक औपनिवेशिक बस्ती है, जिसका इस्तेमाल वह फ़िलिस्तीनियों के दमन, विस्थापन व हत्या के लिए और साथ ही मध्य-पूर्व में पश्चिमी साम्राज्यवाद के हितों की सुरक्षा में इस्तेमाल की जाने वाली सैन्य चौकी के रूप में करता है। न तो फ़िलिस्तीन का मसला कभी धर्म का मसला था और न ही यह आज है। यह एक ग़ुलाम बनाये गये मुल्क की आज़ादी के लिए जारी लड़ाई है। ऐसे में आज दुनिया के हर इन्साफ़पसन्द इन्सान का कर्तव्य है कि वह फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा हो।

फ़िलिस्तीनी कविताएँ Palestinian Poems

और इस तरह उन्होंने मेरी तलाशी ली…
अन्त में, मुझे दोषी ठहराते हुए उन्होंने कहा :
हमें कुछ नहीं मिला
उसकी जेबों में अक्षरों के सिवाय।
कुछ नहीं मिला सिवाय एक कविता के।

दो फ़िलिस्तीनी कविताएँ / समीह अल-कासिम. इब्राहीम तुकन

नौजवान थकेंगे नहीं
उनका लक्ष्य तेरी आज़ादी है
या फिर मौत
हम मौत का प्याला पी लेंगे
पर अपने दुश्मनों के ग़ुलाम नहीं बनेंगे
हम हमेशा के लिए
अपमान नहीं चाहते
और न अभावग्रस्त ज़िन्दगी
हम अपनी महानता
लौटायेंगे मेरे देश
ओ मेरे देश