ज़ायनवादी इज़रायली हत्यारों के हाथों फ़िलिस्तीनी जनता के जनसंहार का विरोध करो!
फ़िलिस्तीनी जनता की मुक्ति की अजेय चाहत को दबाया नहीं जा सकता है!
फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के समर्थन में दुनियाभर के इंसाफ़पसन्द लोग आ रहे हैं आगे!
अरविन्द
इस समय हम आधुनिक दुनिया के एक बहुत बड़े जनसंहार के साक्षी बन रहे हैं। अमेरिका और पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों की शह पर इज़रायली हत्यारों ने अब तक 62,263 फ़िलिस्तीनीयों को मार डाला है और 1,57,365 लोगों को बुरी तरह से घायल कर दिया है। ये आँकड़े मात्र 7 अक्तूबर 23 से 22 अगस्त 25 तक के हैं। इसके अलावा हज़ारों लोगों के शव अभी तक मलबे में दबे हो सकते हैं और लाखों लापता लोगों में से भी एक बड़ी संख्या मृतकों की हो सकती है। ग़ज़ा में मरने वालों में से तक़रीबन 70 प्रतिशत संख्या महिलाओं और बच्चों की है। फ़िलिस्तीन पर इज़रायल का यह जारी हमला कोई नया नहीं है।

Palestinian artist Maysa Yousef
7 अक्तूबर को ग़ज़ा की जनता ने उसके ऊपर थोपी गयी नाकेबन्दी को तोड़ने और अपनी राष्ट्रीय आज़ादी के लिए इज़रायल का प्रतिरोध किया। यह किसी भी गुलाम बनायी गयी क़ौम का हक़ होता है कि वह ज़रूरत पड़े तो हथियारबन्द तरीक़े से भी अपनी क़ौमी आज़ादी के लिए लड़े। अन्तरराष्ट्रीय क़ानून भी इस अधिकार को मानते हैं। लेकिन 7 अक्तूबर 2023 के बाद से इज़रायली हत्यारों द्वारा फ़िलिस्तीनी जनता के क़त्लेआम का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। फ़िलिस्तीन की ग़ज़ा पट्टी को मलबे के ढेर में तब्दील कर दिया गया है। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सामुदायिक भवन, रिहायशी इलाक़े और शरणार्थी शिविर बड़ी संख्या में मटियामेट कर दिये गये हैं। वेस्ट बैंक के तमाम इलाक़ों में भी इज़रायली सैनिक और ज़ायनवादी गुण्डा गिरोह आये-दिन हमले कर रहे हैं और फ़िलिस्तीनियों के संसाधनों को चुरा रहे हैं, उनके घरों पर क़ब्ज़ा कर रहे हैं और मकानों को ढहा रहे हैं। इज़रायली हत्यारों ने अब ग़ज़ा पट्टी के ग़ज़ा शहर नामक इलाक़े को अपने कब्ज़े में लेने का अभियान छेड़ा है। फ़िलिस्तीनियों की ज़मीन और संसाधनों पर ज़ायनवादियों के क़ब्ज़े का प्रयास कोई नयी बात नहीं है। निश्चय ही इज़रायली ज़ायनवाद का यह प्रयास भी फ़िलिस्तीनियों की मुक्ति की चाहत को बढ़ायेगा ही घटायेगा नहीं। इज़रायल की पूरी युद्ध मशीनरी अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों के हथियारों के ज़ख़ीरे के दम पर भी फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध युद्ध को कुचल पाने में असफल साबित हो रही है। इज़रायली हत्यारे दुनिया भर के शासकों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मदद के बावजूद भी फ़िलिस्तीनीयों के हौसलों को ढहा पाने में बार-बार शिकस्त खा रहे हैं।
इज़रायल ने ग़ज़ा पट्टी में खाद्य सामग्री, दवाओं, रोज़मर्रा की चीज़ों और हर प्रकार की राहत सामग्री की आपूर्ति को रोक दिया है या इसे बुरी तरह से बाधित कर दिया है। 7 अक्तूबर 2023 से पहले कि यदि बात करें तो प्रतिदिन राहत सामग्री के 500 ट्रक ग़ज़ा में प्रवेश पाते थे यानी महीने में लगभग 15,000 ट्रक। लेकिन अक्तूबर 2023 के बाद से राहत सामग्री की आपूर्ति पर इज़रायल के द्वारा नाकेबन्दी कर दी गयी है। अक्तूबर 2023 से जुलाई 2025 तक राहत सामग्री के मात्र 50,565 ट्रकों को ग़ज़ा में प्रवेश मिला जबकि क़ायदे से इनकी संख्या 3,30,000 होनी चाहिए थी। इज़रायली हमलों के चलते ग़ज़ा पट्टी के बाग़-बगीचों और खेती-बाड़ी को, जोकि बहुत सीमित स्तर पर ही थे, लगभग नष्ट किया जा चुका है। इज़रायली हत्यारों ने ग़ज़ा के कुल पशुधन के 97 फ़ीसदी और पोल्ट्री के 93 फ़ीसदी को समाप्त कर दिया है। इसी का परिणाम है की ग़ज़ा में भुखमरी और कुपोषण ने भी लोगों पर हमला बोल दिया है। विगत 22 अगस्त तक 273 लोग तो केवल भुखमरी जनित कुपोषण की वजह से मारे गये जिनमें 112 बच्चे शामिल हैं। इसके अलावा लाखों लोग भयंकर कुपोषण का शिकार हैं जिनमें से हज़ारों के हालात गम्भीर हो चले हैं।
ज़ायनवादी नस्लकुशी की सबसे बड़ी मार फ़िलिस्तीनी बच्चों पर पड़ रही है। ‘द टाइम्स ऑफ़ पेलेस्टाइन’ की 4 अगस्त की एक रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़ा में जारी हालिया नरसंहार के दौरान क़रीब 18,963 फ़िलिस्तीनी बच्चों की मौत हो चुकी है। ग़ज़ा के 17,000 बच्चे बिल्कुल यतीम हो चुके हैं और 39,384 बच्चों ने अपनी माँ या अपने पिता में से किसी एक को खो दिया है। इस युद्ध के दौरान बच्चे भीषण मानसिक आघात की स्थिति से गुजर रहे हैं। ग़ज़ा के 96 प्रतिशत बच्चे आसन्न मृत्यु के भय में जी रहे हैं, 87 प्रतिशत बच्चे अत्यन्त डर के साये में रह रहे हैं और 79 प्रतिशत बच्चे सोते समय डरावने सपने देखने की समस्या से पीड़ित हैं। भुखमरी और कुपोषण ने हज़ारों बच्चों को मौत की दहलीज़ पर ला छोड़ा है।
हिटलर के नाज़ी शासन के नक़्शेक़दम पर चलते हुए नेतन्याहू का ज़ायनवादी शासन दमन-उत्पीड़न के नित नये प्रयोग कर रहा है। राशन प्राप्त करने के लिए अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहे लोगों तक को गोलियों से भूना जा रहा है। इज़रायल-अमेरिका ने राहत सामग्री बाँटने का ज़िम्मा फरवरी में निर्मित हत्यारी एजेंसी ग़ज़ा ह्यूमनिटेरियन फ़ाउण्डेशन (जीएचएफ़) को दिया है और राशन सामग्री को फन्दे की तरह इस्तेमाल करके बेबस और लाचार फ़िलिस्तीनियों का शिकार किया जा रहा है।
ग़ज़ा के स्वास्थ्य मन्त्रालय के अनुसार मई 2025 से मध्य अगस्त तक जीएचएफ़ के तथाकथित राहत सामग्री केन्द्रों पर 1,965 लोग मारे जा चुके हैं और क़रीब 14,000 लोग घायल हुए हैं। तमाम देश जो आईडीएफ के साथ गठजोड़ करके ग़ज़ा में हवाई जहाजों से खाद्य सामग्री गिरा रहे हैं वह भी नौटंकी से ज़्यादा कुछ नहीं है। यह चीज़ भूखे लोगों के साथ एक भद्दे मज़ाक के समान है। सहायता करने वाले देशों में से ज़्यादातर तो प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर इज़रायल के मददगार ही रहे हैं और ये सहायता का यह नाटक केवल इसलिए कर रहे हैं कि इन देशों की जनता द्वारा फ़िलिस्तीन के समर्थन में उठायी जा रही आवाज़ों को शान्त कराया जा सके। इस सहायता सामग्री की मात्रा बहुत कम होती है और इसे हासिल करने के दौरान छीना-झपटी में ही कई फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं और सामग्री के डिब्बों के नीचे दबने से ही कई लोगों की मृत्यु हुई है। फ़िलहाली तौर पर इज़रायली हमले का पूर्ण खात्मा और खाद्य सामग्री प्रचुर मात्रा में पहुँचने से ही ग़ज़ा में जारी भुखमरी को समाप्त हो सकती है।
अमेरिका की प्रत्यक्ष और पश्चिमी व अरब देशों की खुली-छुपी मदद के दम पर इज़रायली हत्यारे फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा में जो कुछ कर रहे हैं उसे नरसंहार नहीं कहा जायेगा तो भला क्या कहा जायेगा? इज़रायल के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों और नियम-क़ायदों का कुछ भी मतलब नहीं है क्योंकि साम्राज्यवाद की चौधराहट इसके आक़ा अमेरिका के पास है। निश्चय ही यह स्थिति सदा नहीं रहने वाली है।
इतिहास पर एक नज़र
फ़िलिस्तीन की जनता साल 1948 में इज़रायल नामक सेटलर बस्ती के जन्म के साथ ही भीषण जनसंहार की चपेट में है। उससे भी पहले ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की रहनुमाई में 1917 में हुई बालफोर घोषणा के बाद से ही ज़ायनवादी हथियारबन्द गुण्डा गिरोह यहाँ की आम आबादी को निशाना बनाते रहे थे। विभिन्न चढ़ाव-उतार से होता हुआ आज़ादी और न्याय के लिए फ़िलिस्तीनी जनता का मुक्ति संघर्ष तब से लेकर आज तक जारी है। हम भारतीय जन जिन्होंने तक़रीबन 200 वर्ष तक औपनिवेशिक ग़ुलामी झेली है, वे इस संघर्ष की अहमियत को और आज़ादी की क़ीमत को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। अपने निर्माण के साथ ही इज़रायली सेटलर औपनिवेशिक कॉलोनी ने फ़िलिस्तीनी क़ौम को ख़ून की नदी में डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। असल में इज़रायल कोई देश या राष्ट्र नहीं है बल्कि यह एक जारी औपनिवेशिक परियोजना है जिसका मक़सद अरब देशों में स्थित कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के संसाधनों पर पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों और अमरीकी साम्राज्यवाद के क़ब्ज़े और प्रभाव को बनाये रखना और पूरे क्षेत्र में पश्चिमी साम्राज्यवाद के वर्चस्व को बनाये रखना है और जिसका अस्तित्व ही फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की क़ीमत पर क़ायम हुआ है।
‘ईश्वर द्वारा ज़मीन के वायदे’ जिसे ज़ायनवादी ‘प्रॉमिस्ड लैण्ड’ की संज्ञा देते हैं और तथाकथित यहूदी राज्य की स्थापना के लिए गढ़ी गयी कहानियों का वस्तुस्थिति से कुछ भी लेना-देना नहीं है। ज़ायनवाद एक आधुनिक प्रतिक्रियावादी विचारधारा और आन्दोलन है। इसका यहूदी धर्म से बस इतना ही सम्बन्ध है कि यह अपनी साम्राज्यवाद की मददगार भूमिका को यहूदी धर्म के रूपकों का इस्तेमाल करके छुपा देना चाहता है। आज के समय इज़राइल का काम मध्यपूर्व में अमरीकी सैन्य चौकी का काम करना है और उसके आर्थिक और राजनीतिक हितों की सुरक्षा करना है। साम्राज्यवाद की चौधराहट अमेरिका के हाथों में आने से पहले इज़रायल यही काम तब के साम्राज्यवादी चौधरी ब्रिटेन के लिए करता था। और अब भी यह अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ-साथ पश्चिमी साम्राज्यवादियों के हितों की भी सेवा करने का काम करता ही है। इस सेटलर बस्ती ने फ़िलिस्तीनी कौम पर भीषण युद्ध थोप रखा है। अमेरिका और पश्चिमी साम्राज्यवादी हुक्मरान इज़रायल को मुफ़्त में ही बेशुमार पैसा और बेहिसाब हथियार ऐसे ही नहीं दे रहे हैं।
प्रतिरोध लाज़िमी है!
जहाँ दमन होता है वहाँ प्रतिरोध का होना भी अवश्यम्भावी होता है। इज़रायल द्वारा अपने लोगों की नस्लकुशी को फ़िलिस्तीन के बहादुर लोग गर्दन झुकाकर सहन करने के लिए तैयार नहीं हैं। याद रखें, फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का अर्थ सिर्फ़ मुसलमान नहीं हैं। हालाँकि ऐसा होता तो भी हर इंसाफ़पसन्द मेहनतकश, नौजवान और नागरिक इज़रायली हत्यारों द्वारा उनके नरसंहार का विरोध ही करता। फ़िलिस्तीनी राष्ट्र में मुसलमानों के साथ अरबी यहूदी, अरबी ईसाई व बद्दू कबीलों के लोग भी शामिल हैं। दूसरी बात, अकेले हमास ही उनकी राष्ट्रीय मुक्ति की लड़ाई को नेतृत्व देने वाला संगठन नहीं है बल्कि पी.एफ.एल.पी. जैसे संगठन भी हैं, जो विचारधारा से सेक्युलर हैं। ऊपर से हमास भी अब एक सेक्युलर फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना को अपना लक्ष्य मानता है, हालाँकि उसकी अपनी सांगठनिक विचारधारा इस्लाम के संकीर्ण रूपों से प्रभावित रही है। लेकिन फ़िलिस्तीन के लोग हमास के अस्तित्व में आने से पहले भी अपनी राष्ट्रीय आज़ादी के लिए लड़ते रहे हैं और कल हमास न रहे, तो भी लड़ते रहेंगे। जो भी ताक़त इस लड़ाई की अगुवाई करने को तैयार होगी, फ़िलिस्तीन की जनता उससे विचारधारा के स्तर पर सहमत हो या असहमत हो, उसका साथ देगी क्योंकि उनके लिए सबसे पहला सवाल है अपने राष्ट्र की औपनिवेशिक ग़ुलामी से आज़ादी। अमरीकी साम्राज्यवाद और इसके पश्चिमी सहयोगी देशों की प्रत्यक्ष मदद, उन्नत से उन्नत तकनीक और हथियारों के बड़े से बड़े ज़ख़ीरे के दम पर भी ज़ायनवादी इज़रायल फ़िलिस्तीनी बहादुर योद्धाओं की हिम्मत तोड़ने में नाकाम साबित हो रहा है। हथगोलों की मदद से इज़रायल के बड़े-बड़े युद्धक टैंकों के परखच्चे उड़ाये जा रहे हैं। हर बीतते दिन के साथ इज़रायली हत्यारे खुद को और फँसा हुआ पाते हैं और अपनी झेंप और शर्म मिटाने के लिए निहत्थे भूखे-असहाय लोगों और बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं। इनका जीत का मुगालता तो कभी का धूल-धूसरित हो चुका है अब तो उल्टा ग़ज़ा से लौटने वाले ज़ायनवादी सैनिक डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं और मोर्चे पर जाने के नाम पर ही बीमार हो जा रहे हैं। यही नहीं इज़रायल के अन्दर से ही ग़ज़ा में जारी नरसंहार के विरोध में आवाज़ें उठने लगी हैं। निश्चित तौर पर फ़िलिस्तीनियों की अनगिनत शहादतें जाया नहीं होंगी और आज नहीं तो कल ज़ायनवाद की उल्टी गिनती शुरू होना लाज़मी है।
दुनिया भर की इन्साफ़पसन्द जनता फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के साथ है
दुनिया भर के इन्साफ़पसन्द लोग फ़िलिस्तीनी क़ौम के मुक्तिसंघर्ष के साथ गहरी हमदर्दी रखते हैं। तमाम देशों के जनद्रोही शासक वर्ग भले ही कहीं खुले तो कहीं छुपे तौर पर इज़रायल नामक हत्यारे औपनिवेशिक सेटलमेण्ट के साथ हाथ मिला रहे हों, लेकिन सभी महाद्वीपों के तमाम देशों के आम लोग फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में लाखों-करोड़ों की तादाद में सड़कों पर उतर रहे हैं। हालिया दिनों में तमाम यूरोपीय देशों के छात्रों-युवाओं और आम इंसाफ़पसन्द लोगों ने ग़ज़ा में जारी इज़रायली जनसंहार के खिलाफ़ ज़बरदस्त मोर्चा खोला हुआ है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के लोग भी ज़ायनवादी अत्याचारों का मुखर विरोध कर रहे हैं। ग्रीस के विभिन्न शहरों जैसे सिरॉस, रॉड्स, करीट में इज़रायली पर्यटक जहाज को बन्दरगाहों पर रोकने के विरोध में वहाँ की जनता और पोर्ट मज़दूरों ने जुझारू प्रतिरोध खड़े कर दिये थे। इस दौरान ज़ायनवादियों और ग्रीस के शासक वर्ग के गठजोड़ को मुँह की खानी पड़ी थी। हाल ही में तीन अलग-अलग घटनाएँ हुई जब ग्रीस के युद्ध विरोधी कार्यकर्ताओं और गोदी मज़दूरों ने इज़रायल के जहाज में स्टील और एल्यूमिनियम जैसी हथियार निर्माण सामग्री और अन्य साजो-सामान को लादने से इन्कार कर दिया था जिसकी वजह से यह सामग्री सीधे तौर पर इज़रायल नहीं पहुँच सकी और जहाजों को अपने मार्ग बदलने पड़े।
ऐतिहासिक तौर पर इज़रायल के समर्थक रहे तमाम देशों के छात्र-युवा और आम नागरिक फ़िलिस्तीन की आज़ादी के समर्थन में अपने-अपने देशों के शासक वर्गों और पुलिस के दमन का सीना तानकर मुक़ाबला कर रहे हैं। यह जनता का ही दबाव है कि यूरोप के तमाम देश इज़रायल से व्यापारिक सम्बन्ध और कूटनीतिक रिश्ते तक ख़त्म करने की बात करने लगे हैं जैसाकि पहले केवल अरब के मुस्लिम बहुसंख्यक देशों की ओर से सुनने को मिलता था। कई देशों ने इज़रायल के साथ हथियारों की किसी भी प्रकार की ख़रीद-फ़रोख्त पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है। एशिया, अफ़्रीका, लातिन अमेरिका से लेकर तमाम महाद्वीपों की इन्साफ़पसन्द आबादी फ़िलिस्तीनी क़ौम का समर्थन और हत्यारे इज़रायली ज़ायनवाद का विरोध करने में लगातार आगे आ रही है। इसी का परिणाम है कि अमरीकी साम्राज्यवाद और इसकी गोदी में बैठे इज़रायली ज़ायनवादियों के हौसले पस्त हो रहे हैं और ये बदहवासी में कभी कहीं तो कभी कहीं पर निहत्थे लोगों पर बम बरसा रहे हैं और खुद ही अधिकाधिक नंगे होते जा रहे हैं।
इज़रायली ज़ायनवादी हत्यारों के विरोध में दुनिया भर में फैलता बीडीएस अभियान
दुनिया भर की जनता फ़िलिस्तीनी मुक्तिसंघर्ष का समर्थन और ज़ायनवादी इज़रायल का विरोध केवल शब्दों के माध्यम से ही नहीं कर रही हैं बल्कि लोगों ने इसके लिए तमाम क़िस्म के रचनात्मक तरीक़े ईजाद किये हैं। ऐसा ही एक तरीक़ा है ‘बीडीएस अभियान’। इस अभियान का मतलब है बी यानी बॉयकोट (बहिष्कार), डी यानी डाइवेस्टमेण्ट (विनिवेश) और एस यानी सैंक्शन (प्रतिबन्ध)। ‘बीडीएस’ अभियान’ के तहत दुनियाभर की इंसाफ़पसन्द जनता के सामने इज़रायली ज़ायनवादियों के मालिकाने वाली और इज़रायल में निवेश करने वाली और उनके द्वारा जारी नरसंहार का वित्तपोषण करने वाली कम्पनियों/ब्राण्डों के उत्पादों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया जा रहा है। साम्राज्यवादी मदद से इतर इज़रायल इन्हीं कम्पनियों के पैसे की मदद से ही फ़िलिस्तीन में क़त्लेआम जारी रखे हुए है। इसीलिए इनका बहिष्कार ज़रूरी है। ‘बीडीएस’ मुहिम के तहत इज़रायली ज़ायनवादी बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों, अकादमिकों, फ़िल्मों आदि का भी बहिष्कार किया जा रहा है। कुछ बुनियादी मसलों पर समानता रखते हुए बीडीएस अभियान के दुनिया भर में बहुत सारे रूप हैं। इस अभियान ने इज़रायली ज़ायनवादी युद्ध मशीनरी पर ख़ासी चोट की है। इसके साथ ही इसने उन शासन-सत्ताओं की भी पोल खोली है जो खुले तौर पर तो इज़रायल का विरोध करने का नाटक करती हैं और छुपे तौर पर उसके साथ गलबहियाँ करने का काम करती हैं। इसने उन गैर-इज़रायली कम्पनियों-ब्राण्डों की भी कलई खोलकर रख दी हो जो खुद को साफ़-सुथरा बनाकर पेश करते हैं लेकिन जिनके हाथ ग़ज़ा के मासूमों के खून से रंगे हुए हैं।
फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए ‘बीडीएस’ नामक यह अभियान दुनिया भर में तेज़ी से फैल रहा है। ‘बीडीएस’ अभियान का ही प्रभाव है कि कई देशों में इज़रायल की समर्थक कम्पनियों/ब्राण्डों की दुकानें बन्द हो चुकी हैं। कुछ देशों में तो फ़िलिस्तीन पर हमले की समर्थक कई कम्पनियाँ दिवालिया तक हो चुकी हैं। इज़रायली सेटेलमेण्ट की समर्थक स्टारबक्स नामक कॉफ़ी कम्पनी की मलेशिया में कम से कम 50 दुकानें (आउटलेट) बन्द हो चुकी हैं। मध्यपूर्व के देशों में यही कम्पनी काम की कमी के चलते हज़ारों कर्मचारियों की छँटनी कर चुकी है। तुर्की में मैकडॉनल्ड नामक इज़रायल समर्थक कम्पनी दिवालिया हो चुकी है और मिश्र में इसकी बिक्री 70 प्रतिशत तक गिर चुकी है। एक सर्वे के अनुसार जॉर्डन नामक देश के 93 प्रतिशत लोगों ने ‘बीडीएस’ मुहिम को अपना समर्थन दिया है। तमाम अरब देशों के साथ दुनिया के अलग-अलग देशों में ‘बीडीएस’ मुहिम के असर देखने को मिल रहे हैं। हमें यह याद रखना होगा कि दक्षिण अफ़्रीका से नस्लभेदी औपनिवेशिक सत्ता के पाँव उखाड़ने में ऐसी बहिष्कार मुहिमों ने अहम भूमिका अदा की थी। निश्चय ही इज़रायल नामक ज़ायनवादी सेटलर कॉलोनी की उल्टी गिनती शुरू कराने में ‘बीडीएस’ अभियान का भी कुछ योगदान ज़रूर होगा।
‘बीडीएस’ अभियान’ फ़िलिस्तीन के समर्थन और ज़ायनवादी इज़रायल के खिलाफ़ हमें सक्रिय रूप से कुछ करने का मौक़ा देता है। यह अभियान भारत में जारी है। यहाँ के लोग भी इज़रायल की समर्थक कम्पनियों, ब्राण्डों व इसके पक्षपोषकों का बहिष्कार कर रहे हैं। इसके साथ ही भारतीय मूल की उन कम्पनियों और ब्राण्डों का भी बहिष्कार किया जा रहा है जो ज़ायनवादियों के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग व सहकार कर रहे हैं। भारत के इंसाफ़पसन्द लोगों को न्याय और आज़ादी की ख़ातिर लड़ने वाले अपने फ़िलिस्तीनी भाइयों-बहनों और साथियों के समर्थन में ‘बीडीएस’ मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2025













