बरगदवा, गोरखपुर के मज़दूरों ने मई दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया
बिगुल संवाददाता
“मैं जानता हूँ कि हमारे सपने इस साल या अगले साल पूरे होने वाले नहीं हैं, लेकिन मैं जानता हूँ कि आने वाले समय में, एक न एक दिन वे ज़रूर पूरे होंगे।”
– मई दिवस के नेता माइकल श्वाब
“मज़दूरों को ताक़त के दम पर दबा कर रखा जाता है और इसका जवाब भी ताक़त से ही दिया जाना चाहिए।”
– मई दिवस के नेता लुईस लिंग्ग
पिछली 1 मई को (अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस) ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ और ‘टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन’ द्वारा गोरखपुर के बरगदवा में संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मई दिवस के शहीदों की तस्वीर पर माल्यार्पण और ‘कारवाँ चलता रहेगा’ गीत से किया गया। ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के प्रसेन ने मई दिवस के इतिहास पर और इस इतिहास से मजदूरों की अनभिज्ञता, शासक वर्ग द्वारा इस विरासत को धूल-मिट्टी डालकर दबाने की साज़िश पर विस्तार से बात रखी। बिगुल के अम्बरीश ने सभा में बात रखते हुए कहा कि पूरे बरगदवा के इलाक़े में ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के नेतृत्व में बहुत से हक़-अधिकार मज़दूरों ने हासिल किये थे। लेकिन मज़दूर उसे बचा सकने और अपने हक़ को बढ़ा सकने में सफल नहीं रहे। क्योंकि मालिक वर्ग के असली चरित्र, वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था के संकट के चरित्र को नहीं समझ सके और अपनी एकजुटता बनाये नहीं रख सके। मज़दूर थोड़े से हक़ पाकर बैठ गये। वो यह नहीं समझ सके कि इस थोड़े हक़ को भी तभी बचाया जा सकता है जब वो और बड़ी एकजुटता के साथ और अधिकारों के लिए लड़ें। लेकिन मई दिवस पर हमें अतीत से सबक लेते हुए आगे के संघर्षों के लिए कमर कस लेने का संकल्प लेना है।
बिगुल से जुड़ी प्रीति ने अल्बर्ट पार्सन्स का जेल की कालकोठरी से लिखे बच्चों के नाम पत्र को पढ़कर अल्बर्ट पार्सन्स का अपने बच्चों से फिर कभी न मिल पाने की यन्त्रणा और दर्द का बयान किया और कहा कि फिर भी अल्बर्ट पार्सन्स ने अपने बच्चों को लोगों के लिए जीने और न्याय के इस संघर्ष के उसी रास्ते पर बढ़ने की सलाह दी।
‘टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन’ की तरफ से अजय मिश्रा ने बात रखी कि भितरघातियों और मालिकों की तरह-तरह की तिकड़मों के बावजूद बरगदवा के मज़दूर आज फिर से अपनी एकजुटता की जरूरत को गहराई से अहसास कर रहे हैं।
बिगुल के आकाश ने फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा लाए गये चार लेबर कोड पर बात रखी। आकाश ने बताया कि ये चार लेबर कोड वास्तव में काम के घण्टे बढ़ाने, मज़दूरी घटाने, यूनियन को बनाने की प्रक्रिया को बहुत कठिन बनाने और श्रम क़ानूनों को पूरी तरह मालिकों के पक्ष में करने के मज़दूर विरोधी क़ानून हैं। मज़दूरों का इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए।
बिगुल के धर्मराज ने बात रखी कि आज मालिक, सरकार और प्रशासन के अलावा हमें अपने अन्दर के चार बड़े दुश्मनों को पहचानने की ज़रूरत है। ये चार बड़े दुश्मन हैं-साम्प्रदायिकता, अन्धराष्ट्रवाद, जातिवाद और इलाक़ा/पेशा आधारित संकीर्णता। इनका इस्तेमाल पूँजीपति वर्ग और उनके प्रतिनिधि मज़दूर वर्ग की एकता को तोड़ने के लिए करते हैं। इसलिए मज़दूर वर्ग को अपने भीतर से इन गलत विचारों को जड़-मूल से खत्म करना होगा।
कार्यक्रम में हम मेहनतकश जगवालों से, रउरा शासना के बाटे न जबाब भाई जी, तस्वीर बदल दो दुनिया की और बड़ी-बड़ी कोठिया आदि गीत गाए गये और सफ़दर हाशमी का लिखा नाटक ‘मशीन’ खेला गया। कार्यक्रम का समापन मई दिवस के शहीद अमर रहे, काम के घण्टे 6 करो, दैनिक मज़दूरी 800 रुपये करो, ओवरटाइम का डबल रेट से भुगतान करो, फ़ासीवाद मुर्दाबाद, पूँजीवाद का नाश हो आदि नारों से हुआ।
मज़दूर बिगुल, मई 2025