दवा कम्पनियों की मुनाफ़ाखोरी और भ्रष्ट सरकारी तंत्र का गठजोड़
जब तक आवश्यक दवाओं का उत्पादन मुनाफे और निजी स्वार्थों से प्रेरित रहेगा, तब तक बाज़ार में महँगी, अप्रभावी, नकली और मिलावटी दवाएँ मिलती रहेंगी और इसका खामियाजा देश की आम जनता को भुगतना पड़ेगा। यह हालिया घटनाएँ एक बार फिर हमें इस सच्चाई से अवगत कराती हैं कि जबतक यह व्यवस्थागत ढाँचा बदला नहीं जायेगा और स्वास्थ्य सेवाओं को एक मूलभूत अधिकार न मानकर निजी हाथों में मुनाफ़ाख़ोरी का ज़रिया मात्र बनाकर रखा जायेगा, यह समस्या जड़ से हल नहीं की जा सकती है। ऐसा होना तभी सम्भव है जब एक वास्तविक जन पक्षधर स्वास्थ्य व्यवस्था हमारे पास हो।





















