मेहनतकशों पर कोरोना की तीसरी लहर की मार

– भारत

कोरोना की तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है। देश के कई राज्यों में कोरोना केसों की संख्या कम हो रही है और कई राज्यों में इसका अधिकतम उभार आना अभी बाक़ी है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे शहरों में केस अब कम हो रहे हैं। वहीं कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बेंगलुरु में अभी भी फैलना जारी है। 23 जनवरी तक पूरे देश मे 3,06,064 कोरोना केस आ चुके हैं और प्रतिदिन औसतन 500-600 मौतें हो रही हैं। इस बार पिछले वर्ष की तरह मौतें नहीं हो रहीं, पर इसके बावजूद यह बड़े पैमाने पर फैल रहा है। कोरोना का नया वेरियेण्ट ओमिक्रॉन उतना घातक नहीं है। यह फैलता ज़्यादा तेज़ है, लेकिन इसके कारण मृत्यु दर अभी काफ़ी कम ही है। ओमिक्रॉन फेफड़ों को भी प्रभावित नहीं कर रहा है। इसके दो अन्य कारण भी हैं : पहला, एक अच्छी-ख़ासी आबादी का वैक्सीनेशन होना और दूसरा बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास होना। लेकिन वैज्ञानिकों ने अभी इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया है कि भविष्य में कोई नया वेरियेण्ट आ सकता है। जो भी हो, तीसरी लहर उपरोक्त कारणों से बेहद कम घातक है। लेकिन इसके बावजूद कोरोना संक्रमण से प्रभावित होने वाली आबादी में दूरगामी स्वास्थ्य प्रभाव देखे जा रहे हैं। साथ ही, सारे रोगी ओमिक्रॉन के ही नहीं है, बल्कि उनमें एक तादाद डेल्टा वेरियेण्ट के रोगियों की भी है, जिसके कारण दूसरी भयंकर घातक लहर आयी थी। एक युग में मौसमी फ़्लू भी कोरोना वायरस जितना ही घातक था। लेकिन मनुष्यों में प्रतिरोधक क्षमता के विकास और बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन के साथ यह एक मामूली चीज़ बनकर रह गया। भविष्य में कोरोना वायरस के साथ भी ऐसा ही होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।
तीसरी लहर के दौरान भी पिछले दो वर्षों की तरह ही केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने मज़दूरों को अपने हाल पर छोड़ दिया। ज़्यादातर राज्यों में नाइट कर्फ़्यू से लेकर आंशिक लॉकडाउन लगा दिया गया है। यह आंशिक लॉकडाउन आनन-फ़ानन में बिना किसी योजना के लगाये गये। इसके कारण आम मेहनतकशों के सामने फिर रोज़ी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। ओमिक्रॉन के कम घातक होने के मद्देनज़र अव्वलन तो इतनी पाबन्दियों की कोई ज़रूरत नहीं थी और दरकार सिर्फ़ इस बात की थी कि वैक्सीनेशन को और बड़े पैमाने पर किया जाये और मास्क को अनिवार्य बनाये रखा जाये। लेकिन इसके बावजूद पिछली लहर में हुई छीछालेदर से शासक वर्ग और उसकी सरकारें डरी हुईं थीं और ये पाबन्दियाँ लगा रही थीं। पिछली बार भी लॉकडाउन व तमाम पाबन्दियाँ मेहनतकश आबादी के भोजन आदि का इन्तज़ाम किये बिना लगायी गयी थीं और बिना किसी तैयारी के उन्हें जनता पर थोपा गया था और इस बार भी नाइट कर्फ़्यू और सप्ताहान्त की बन्दी को मेहनतकश आबादी के हितों की कोई परवाह किये बिना ही थोप दिया गया।
देश की जनता को एक तरफ़ कोरोना महामारी का डर है और दूसरी तरफ़ सरकार द्वारा फिर बिना किसी तैयारी के लगाये गये आंशिक लॉकडाउन का भी डर है जिसकी वजह से उनका रोज़गार खतरे में आ जाता है। इसके कारण पहले से ही मन्दी के शिकार कई कामकाज ठप्प पड़ गये हैं। दुकानों पर काम करने वालों से लेकर, सिलाई मज़दूर, फ़ैक्टरी मज़दूर, दिहाड़ी मज़दूर, घरेलू कामगार, रिक्शा-ठेले चलाने वाले व होटल पर काम करने वाले मज़दूरों के काम आंशिक लॉकडाउन के कारण रुके पड़े हैं। देशभर में मज़दूरों के लिए रोज़गार का संकट और बढ़ गया है।
पिछले कई वर्षों से बेरोज़गारी में लगातार वृद्धि हो रही है और कोरोना ने इसे और बढ़ा दिया है। दिसम्बर में बेरोज़गारी दर 7.9 प्रतिशत रही जो कि नवम्बर से अधिक है। तीसरी लहर आने के बाद हालात और बुरे हुए हैं। आंशिक लॉकडाउन और बढ़ रहे कोरोना केसों ने एक बार फिर मज़दूरों के पिछले दो वर्षों के बुरे अनुभवों की याद ताज़ा कर दी है, जब उन्हें हज़ारों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था और भूख बीमारी से मरना पड़ा था। इस बार भी न तो किसी सरकार द्वारा राशन दिया जा रहा है और न ही किसी प्रकार की आर्थिक सुरक्षा दी जा रही है। कई जगहों से फ़ैक्टरी मज़दूरों को काम से निकाले जाने की ख़बरें आ रही हैं। फ़ैक्टरी मालिकों के प्रति भी सरकारें पूरी वफ़ादारी दिखा रही हैं, इसी कारण मालिकों द्वारा मज़दूरों को इस दौरान का वेतन नहीं दिया जा रहा और श्रम क़ानूनों को तो वैसे भी रद्दी के ढेर में फेंका जा चुका है। कई आँकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में मज़दूरों के ऊपर दो से तीन गुना क़र्ज़ बढ़ा है। साथ ही मासिक आय कम हुई है।
दूसरी ओर, चुनावों में सारी पार्टियों के नेता-मंत्री व्यस्त हैं। भाजपा से लेकर कांग्रेस, आप, सपा, बसपा और तमाम पार्टियों के लिए ज़रूरी मुद्दा मेहनतकश जनता की जीविका और स्वास्थ्य नहीं है, बल्कि अन्य ग़ैर-मुद्दे हैं। भाजपा पूरी तरह से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में लगी हुई है क्योंकि देश और प्रदेशों के स्तर पर उसकी सरकारें पूरी तरह से फेल हैं। देश में इस दौरान मेहनतकशों की समस्याएँ बढ़ रही हैं, पर सरकारें इस पर ध्यान देने के बजाय साम-दाम-दण्ड-भेद लगाकर किसी भी हालत में चुनाव जीतने में लगी हैं। इसी के मद्देनज़र चुनाव जीतने के लिए फ़ासिस्ट योगी सरकार केन्द्र सरकार द्वारा बनाये जा रहे ई-श्रम कार्ड में 1000 रुपये भेज रही है। यह चुनाव जीतने के हथकण्डों से अधिक कुछ नहीं है। योगी सरकार से पूछा जाना चाहिए कि हज़ार रुपये में आज के समय में घर का ख़र्च कैसे चलेगा। देखा जाये तो केन्द्र सरकार ई-श्रम कार्ड पूरे देश के असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का बना रही है (जिसे बनाने के लिए इनके दलाल 150-200 रुपये ले रहे हैं) पर इससे इस कोरोना के समय में कोई सुविधा नहीं हो रही।
इस कोरोना काल और अनियोजित आंशिक लॉकडाउन से एक बार फिर मेहनतकशों के सामने बीमारी के साथ-साथ भुखमरी, बेरोज़गारी का संकट पैदा हो गया है। ऐसे में सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देशभर में मज़दूरों-मेहनतकशों को इस दौरान भोजन, दवा-इलाज व अन्य किसी भी प्रकार की समस्याएँ न आयें।

हम केन्द्र व राज्य सरकारों से यह माँग करते हैं कि –
1) सार्वभौमिक राशन वितरण प्रणाली लागू करो!
2) सार्वभौमिक और निःशुल्क चिकित्सा व्यवस्था लागू करो!
3) सभी मूलभूत वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति की सार्वभौमिक सार्वजनिक व्यवस्था करो!
4) राज्य सरकारें यह आदेश जारी करें कि किसी भी कम्पनी, फ़ैक्टरी में मालिक द्वारा किसी भी सप्ताह का वेतन नहीं काटा जायेगा। साथ ही, लॉकडाउन के दौरान (पूर्ण या आंशिक) किसी भी व्यक्ति को काम से नहीं निकाला जायेगा।
5) सभी मज़दूर बस्तियों और इलाक़ों को नियमित तौर पर सैनिटाइज़ किया जाये व हर व्यक्ति को अच्छी गुणवत्ता वाला मास्क निःशुल्क उपलब्ध कराया जाये।
6) किरायेदार मज़दूर आबादी के इस माह के किराया माफ़ी के लिए मालिकों को बाध्य किया जाये (जहाँ ज़रूरत हो वहाँ के किराये का भुगतान सरकार करे) ताकि प्रवासी मज़दूर अपने गाँव लौटने को मजबूर न हों।
7) सरकार सुनिश्चित करे कि सभी मज़दूरों को अब तक किये गये काम का भुगतान (वेतन) हो।
8) लॉकडाउन के दौरान मज़दूर आबादी को आ रही समस्याओं के समाधान के लिए एक मज़दूर हेल्पलाइन फ़ोन नम्बर तत्काल चालू करना चाहिए।
9) अन्य बीमारियों के मरीज़ों के इलाज के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाये।
10) तथाकथित ‘स्वरोज़गार प्राप्त’ अनौपचारिक मज़दूरों जैसे ठेला चालक, रिक्शा चालक, रेहड़ी-खोमचे वालों, आदि के लिए 15,000 रुपये प्रति माह नक़द गुज़ारे भत्ते की व्यवस्था करो, उनकी नियमित व नि:शुल्क कोरोना जाँच की व्यवस्था करो, उन्हें आवश्यक सुरक्षा प्रदान करो!
11) घर जाने वाले प्रवासी मज़दूरों के लिए पूर्ण सुरक्षा के साथ नि:शुल्क परिवहन की व्यवस्था करो!
12) स्वास्थ्य सेवा समेत सभी मूलभूत सेवाओं व वस्तुओं के उत्पादन, जैसे परिवहन, बिजली उत्पादन व वितरण, आदि में लगे मज़दूरों व कर्मचारियों और साथ ही आम पुलिसकर्मियों को सुरक्षा के सभी आवश्यक उपकरण प्रदान करो, उनकी नियमित कोरोना जाँच व नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की जाये!

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2022


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments