आपस की बात – वेल्डिंग कम्पनी के मजदूरों के हालात

मुकेश, दिल्ली

मैं पिछले दो साल से दिल्ली की एक वेल्डिंग कम्पनी में काम कर रहा हूं। मैंने इन दो सालों में ही यहाँ काम करने वाले मजदूरों की जो हालत देखी वह बहुत ही खराब है। छोटी कम्पनियों में मज़दूर हमेशा मालिक की नजरों के सामने होता है, मज़दूर एक काम खतम भी नहीं कर पाता है कि मालिक दूसरा काम बता देता है। मेरे इलाके में जितनी भी फैक्ट्रियाँ है उसमें अधिकतर प्रदूषण वाली  फैक्ट्रियाँ हैं। सभी में धूल-मिट्टी हमेशा उड़ता रहता है। मैं जहाँ काम करता हूं उसमें केबल की रबर बनाने में पाउडर (मिट्टी) का इस्तेमाल होता है। मिट्टी इतनी सूखी और हल्की होती है कि हमेशा उड़ती रहती हहै। आँखों से उतना दिखाई तो नहीं देता लेकिन शाम को जब अपने शरीर की हालत देखते हैं तो पूरा शरीर और सिर मिट्टी से भरा होता है। नाक, मुंह के जरिये फेफड़ों तक जाता है। इस कारण मजदूरों को हमेशा टी.बी., कैंसर, पथरी जैसी गम्भीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। जो पाउडर केबल के रबर के ऊपर लगाया जाता है उससे तो हाथ पर काला-काल हो जाता है। जलन एवं खुजली होती रहती है। इन सबसे सुरक्षा के लिए सरकार ने जो नियम बना रखे हैं वे पूरे दिखावटी हैं। नाक, मुंह ढंकने के लिए कपड़े देना, हाथों के लिए दस्ताने, शाम को छुट्टी के समय गुड़ देना आदि। इनमें से किसी भी नियम का पालन मालिक, ठेकेदार नहीं करता है। सभी नियम-कानून को अपनी जेब में रखकर चलता है।

इन कम्पनियों में लंच एवं छुट्टी का समय कोई नहीं होता है अगर लंच का समय हो गया और आप काम कर रहे हैं तो ठेकेदार कहेगा अरे आधे घंटे बाद लंच कर लेना ये काम तब तक खतम हो जायेगा। छुट्टी के समय भी उसी तरह इतना कर ले उसके बाद छुट्टी कर लेना। किन्‍तु अगर किसी दिन आप 10 मिनट लेट जाइये तो मालिक पूरा हिसाब पूछेगा कि क्यों लेट आये। यह कम्पनी है कोई धर्मशाला नहीं। यही हालत लगभग सभी फैक्‍ट्रियों की है कहीं भी मजदूरों की चिन्ता किसी मालिक, ठेकेदार को नहीं होती उसे सिर्फ मुनाफे की चिन्ता होती है।

कम मज़दूर होने के कारण इन फैक्ट्रियों में मालिकों से मज़दूर अपनी कोई मांग नहीं मनवा पाता। क्योंकि हमारी ताकत छोटी होती है उसमें भी एक-दो मज़दूर, फोरमैन मालिक का चमचा ही होता है। किसी चीज का विरोध करने पर मालिक तुरन्त उन मजदूरों को निकालकर नयी भर्ती ले लेता है। दोस्तो, मैं कहना चाहूंगा कि हमारे पास सिर्फ एक ही रास्ता है कि खुद को संगठित करना पड़ेगा, सिर्फ एक फैक्ट्री के मजदूरों को नहीं बल्कि उस पूरे फैक्ट्री इलाके के मजदूरों को। क्योंकि जब तक हम बड़ी ताकत नहीं बनेंगे। मालिक हम लोगों की जिन्दगियों से खेलता रहेगा।

 

 

मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2023


 

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