नक़ली दवाओं का जानलेवा धन्धा
ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में दवाओं की क्वालिटी के साथ समझौता किया जाता है, मानकों को नीचे लाया जाता है, जो मानक हैं उनके अनुसार भी काम नहीं किया जाता। इसकी वजह से दवा की क्वालिटी ख़राब होती है। या फिर जानबूझकर मिलावट की जाती है, ग़लत लेबलिंग की जाती है। पहले से ही बर्बाद स्वास्थ्य ढाँचा वैसे ही बीमारियों से लड़ नहीं पा रहा था, नक़ली और घटिया दवाओं के कारोबार ने उसे बिलकुल ही पंगु बना दिया है। इन सबका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की आम मेहनतकश आबादी को। यूँ ही मेहनतकश को स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं मिलती हैं, ऊपर से अगर अपनी दिन-रात की हाड़तोड़ मेहनत से की हुई कमाई से अगर दवा ख़रीदने की नौबत आ जाये तब भी उसे मिलता है दवा के रूप में ज़हर।