Category Archives: भ्रष्‍टाचार

मोदी राज में ‘अडानी भ्रष्टाचार – भ्रष्टाचार न भवति’ !

भाजपा नेताओं के लिए तो अडानी जी ही देश हैं, इसलिए अडानी पर हमला “देश” पर हमला है, विदेशी ताक़तों की साज़िश है। इन सब (कु)तर्कों के बावजूद अडानी जी ने विदेशों में देश का डंका तो बजवा ही दिया है।

भाजपा की वाशिंग मशीन : भ्रष्टाचारी को “सदाचारी” बनाने का तन्त्र!

जहाँ एक तरफ़ मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी, मिथुन चक्रवर्ती, सोवन चटर्जी, वाईएस चौधरी, सीएम रमेश, प्रफुल्ल पटेल व अन्य सारे उदाहरण आपके सामने हैं, जो भाजपा के समर्थक बनते या उसमें शामिल होते ही परम भ्रष्टाचारी से परम “सदाचारी” बन गये, वहीं दूसरी तरफ़ मोदी सरकार के कार्यकाल में ही हुए राफेल घोटाला, पीएम केयर घोटाला, अडानी घोटाला, सेण्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट घोटाला, इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाला जैसे घोटाले भी है, जिनकी जाँच की फाइल ही नहीं बन रही हैं। ऐसे में ‘बहुत सह लिया भ्रष्टाचार अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ जैसे मोदी के जुमलों की हक़ीक़त व संघ परिवार व भाजपा द्वारा सरकारी एजेंसियों ईडी, सीबीआई, एसीबी, आईटी, न्यायपालिका, चुनाव आयोग व अन्य के अन्दर घुसपैठ की तस्वीर अच्छी तरह से सबके सामने आ रही है। भाजपा सरकार अपने आपको चाहे जितना भी “संस्कारी”, “धर्मध्वजाधारी”, “राष्ट्रवादी” का तमगा लगा लें, मगर इनके “चाल-चेहरा-चरित्र” की सच्चाई सबके सामने आने लगी है। भाजपा सरकार ‘देशभक्ति’, हिन्दू-मुसलमान साम्प्रदायिकता, मन्दिर-मस्जिद, ‘लव जिहाद’, ‘गोरक्षा’, आदि के फ़र्जी शोर में इन्हें दबाने की कोशिश ज़रूर कर रही है, मगर मोदी का 56 इंच का सीना सिकुड़ता जा रहा है।

हिण्डेनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट में सट्टा बाज़ार विनियामक सेबी कटघरे में – वित्तीय पूँजी की परजीवी दुनिया की ग़लाज़त की एक और सच्चाई उजागर

वित्तीय पूँजी के आवारा, परजीवी और मानवद्रोही चरित्र पर पर्दा डालने के लिए सेबी जैसे विनियामक संस्थाओं को बनाया जाता है और उन्हें स्वायत्त व निष्पक्ष संस्थाओं के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन हिण्डेनबर्ग रिपोर्ट से यह दिन के उजाले की तरह साफ़ हो गया है कि ऐसी संस्थाओं की स्वायत्तता और निष्पक्षता एक छलावा है। ऐसी संस्थाएँ बनायी ही इसलिए जाती हैं कि तमाम लूट-खसोट और घोटालों के बावजूद लोगों का भरोसा पूँजी की इस मानवद्रोही दुनिया में बना रहे और निष्पक्षता और स्वायत्तता का ढोग-पाखण्ड करके लोगों की आँख में धूल झोंकी जाती रहे।

अडानी जी का मोदी जी से भ्रष्टाचार-विहीन प्रेम!

माधवी जी का अडानी जी से; अडानी जी का मोदी जी से जो रिश्ता है, वह क्या कहलाता है? ये सब प्यार के रिश्ते ही तो हैं! मोदी जी ‘प्यार बाँटते चलो’ में यक़ीन रखते हैं! अडानी ने उन्हें थोड़ा प्यार दिया और मोदी जी ने इस प्यार के लिए पूरा देश उनपर न्यौछावर कर दिया! मोदी जी को प्यार सिर्फ़ अडानी ही नहीं बल्कि अम्बानी से लेकर टाटा-बिड़ला-हिन्दुजा जैसे सब बड़े लोग करते हैं। बदले में मोदी जी भी सबका ख़्याल रखते हैं, बोलते हैं: “जितना खाना है खाओ, मैं बैठा हूँ।” आप इस प्रेम से प्रेम करें! अगर आप नहीं करते, तो आप कैसे देशद्रोही, विदेशपरस्त और सिक्युलर व्यक्ति हैं? प्रेम से प्रेम करने पर प्रेम बढ़ता है! इसलिए यह बात समझ लें कि राष्ट्र अडानी जी, अम्बानी जी, टाटा जी, बिड़ला जी आदि की तिजोरियों में निवास करता है! उनकी लक्ष्मी ही राष्ट्र है, वही धर्म है, वही नैतिकता है, वही सबकुछ है! अब मोदी जी ठहरे पक्के राष्ट्रवादी और धर्मध्वजाधारी! तो वे राष्ट्रसेवा और धर्मसेवा नहीं करेंगे, तो क्या करेंगे?

विकास के खोखले दावों की पोल खोलते गिरते पुल, जलभराव, टूटी सड़कें!

हमसे ही वसूले गये टैक्स के पैसे को सरकार इन पब्लिक सेक्टर के कामों में लगाती है। इसका ठेका प्राईवेट कॉन्ट्रैक्टर व कम्पनियों को दिया जाता है और जो भाजपा को अधिक चन्दा देता है, इन कामों का ठेका उन्हें दे दिया जाता है। आपको याद ही होगा पिछले साल उत्तराखण्ड में जिस सुरंग के ढहने से मज़दूर फँस गये थे, उस सुरंग का निर्माण करने वाली कम्पनी नवयुग इन्जीनियरिंग ने भाजपा को 55 करोड़ का चन्दा दिया था। इससे पहले भी यह कम्पनी ज़मीन अधिग्रहण और प्रोजेक्ट तैयार करने को लेकर भी विवाद में लिप्त थी, पर भाजपा ने इनको धन्धा देकर अपना धर्म निभाया। ऐसे में सरकार द्वारा जारी तमाम टेण्डरों में भ्रष्टाचार होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

 मोदी सरकार के घोटालों की पोल खोलती नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की हालिया रिपोर्ट

एक के बाद एक ऐसे घोटालों के सामने आने के बाद भी मोदी राज में बेलगाम होते भ्रष्टाचार पर गोदी मीडिया चूँ तक नहीं कर रहा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आज भी ख़ुद को पाक-साफ़ और देशभक्त बताने में जी जान से जुटे हैं। कैग की रिपोर्ट इनकी कथनी और करनी के दोमुँहेपन को लोगों के सामने लाता है।

हिण्डेनबर्ग रिपार्ट से उजागर हुआ कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला

उनकी कामयाबी के पीछे भाँति-भाँति की लूट-खसोट छिपी होती है। बैंकों व वित्तीय संस्थाओं में जमा जनता की बचत को ये क़र्ज़ों के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपनी पूँजी बढ़ाते हैं। इस पूँजी से कच्चा माल, मशीनें और श्रम-शक्ति ख़रीदते हैं। सरकार से अपनी क़रीबी का फ़ायदा उठाते हुए ये औने-पौने दामों पर ज़मीन, लाइसेंस व विभिन्न प्रकार के ठेके हासिल करते हैं। उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान मज़दूरों के श्रम को लूटकर ये मुनाफ़ा कमाते हैं। उसके बाद जब कर देने की बारी आती है तो सरकार पर दबाव बनाकर करों में ज़बर्दस्त छूट हासिल करते हैं जिससे आम मेहनतकश जनता पर बोझ बढ़ता है और उसकी आमदनी और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट होती है। इस अपार लूट से भी जब इन लुटेरों को सन्तोष नहीं होता तो वे भाँति-भाँति की तिकड़मों के ज़रिए स्टॉक क़ीमतों व बही-खाते में हेराफेरी करके अपनी लूट के पहाड़ को और ऊँचा करने से भी नहीं चूकते हैं।

आज़ादी का (अ)मृत महोत्सव : अडानियों-अम्बानियों की बढ़ती सम्पत्ति, आम जनता की बेहाल स्थिति

मेहनतकश साथियों, इस साल हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर बार की तरह मोदीजी फिर इस बार लाल क़िले पर चढ़कर लम्बे-लम्बे भाषण देंगे। बड़े-बड़े वायदे करेंगे, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले। इसका कारण भी है क्योंकि मोदी जी के लिए देश का मतलब आम जनता नहीं बल्कि देश के पूँजीपति हैं, इसलिए धन्नासेठों से किये सारे वायदे पूरे होते हैं और जनता को दिये जाते हैं बस जुमले। इस बार ये सरकार आज़ादी का मृत महोत्सव, माफ़ कीजिएगा, “अमृत महोत्सव” मना रही है। पर सवाल है किसके लिए आज़ादी?

एबीजी शिपयार्ड घोटाला : पूँजीवाद अपने आप में ही भ्रष्टाचार का अन्तहीन चक्र है!

जब से मोदी सरकार आयी है तब से बैंक धोखाधड़ी की ख़बर बहुत आम-सी हो गयी है। ये धोखाधड़ी की घटनाएँ भी दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करती जा रही हैं। 2015 में विजय माल्या का नौ हज़ार करोड़ का घोटाला सामने आया था! 2018 में नीरव मोदी का चौदह हज़ार करोड़ का घोटाला सामने आया और अब 2022 में तेईस हज़ार करोड़ का घोटाला सामने आया है।

मनरेगा मज़दूरों के बजट को खाती अफ़सरशाही

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून यानी मनरेगा की शुरुआत 2005 में हुई थी। इस योजना को शुरू करने का कांग्रेस का मक़सद था कि गाँव से शहर की ओर पलायन करती आबादी को किस तरह से गाँव में ही रोके रखा जाये और सामाजिक असन्तोष को फूटने से रोका जा सके। इसके लिए उन्होंने 100 दिनों के पक्के रोज़गार के नाम पर मनरेगा स्कीम चालू की थी। आज जब बेरोज़गारी अपने चरम पर है तो एक बहुत बड़ी आबादी बेरोज़गार होकर मनरेगा में रोज़गार पाने के लिए मशक़्क़त करती रहती है कि उन्हें मनरेगा में तो काम देर-सवेर थोड़ा बहुत मिल जाता है।