हिण्डेनबर्ग रिपार्ट से उजागर हुआ कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला
अडाणी ही नहीं, पूरे पूँजीवाद की घिनौनी सच्चाई दुनिया के सामने है
आनन्द
पिछली 24 जनवरी को हिण्डेनबर्ग रिपोर्ट के जारी होने के बाद भारत के स्टॉक एक्सचेंजों में भूचाल-सा आ गया। रिपोर्ट जारी होने के एक सप्ताह के भीतर ही अडाणी समूह की कम्पनियों के शेयर के मूल्य में 30 प्रतिशत यानी 120 अरब डॉलर तक की गिरावट देखने में आयी। दुनिया का तीसरे नम्बर का सबसे अमीर आदमी देखते ही देखते इतना फिसल गया कि अब उसकी गिनती शीर्ष 20 अमीरों में भी नहीं हो रही है। अमेरिकी ‘एक्टिविस्ट शॅार्ट सेलर’ संस्था हिण्डेनबर्ग की इस रिपोर्ट में तथ्यों और आँकड़ों के साथ यह उजागर किया गया है कि अडाणी समूह ने इतने कम समय में जो पूँजी का साम्राज्य खड़ा किया है उसके पीछे दशकों से स्टॉक क़ीमतों और बही–खातों की हेराफेरी, विदेशी ‘टैक्स हैवेन’ में मौजूद अपने परिजनों द्वारा संचालित फ़र्ज़ी शेल कम्पनियों के ज़रिए अपने पैसे को अपनी ही कम्पनी में फिर से निवेश करके उसके शेयर की क़ीमतों को बढ़ाने और इन ऊँची शेयर क़ीमतों को दिखाकर देश और दुनिया की तमाम वित्तीय संस्थाओं से भारी–भरकम क़र्ज़ लेने की तिकड़म काम कर रही है।
अडाणी समूह पर इस प्रकार के फ़र्ज़ीवाड़े के आरोप पहले भी लगते रहे हैं, लेकिन अब तक यह लुटेरा समूह सरकार में अपनी पहुँच और मानहानि के मुक़दमों का सहारा लेते हुए मामले को रफ़ा-दफ़ा करता आया था या फिर जाँच-पड़ताल की क़वायद करते हुए मामले को ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता था। लेकिन इस बार ऊँट को पहाड़ के नीचे आना पड़ा क्योंकि अबकी बार आरोप एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था ने लगाया है और अब तमाम देशी-विदेशी निवेशकों व क़र्ज़दाताओं का भरोसा भी डगमगाता दिख रहा है जो शेयर बाज़ार में आये भूचाल से स्पष्ट है। इस भरोसे को बरक़रार रखने के लिए अडाणी ने हिण्डेनबर्ग की रिपोर्ट का एक हास्यास्पद जवाब भी दिया और रिपोर्ट के बाद लाये गये फ़ॉलो-ऑन पब्लिक ऑफ़र से प्राप्त रक़म को निवेशकों को वापस लौटा दिया। लेकिन फिर भी अडाणी समूह की कम्पनियों के शेयरों में औंधेमुँह हो रही गिरावट नहीं थमी।
ग़ौरतलब है कि हिण्डेनबर्ग रिसर्च एक ‘एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर’ संस्था है। ‘शॉर्ट सेलिंग’ का मतलब होता है कि किसी कम्पनी के शेयर को पहले अधिक दाम पर बेचकर बाद में कम दाम पर ख़रीदकर मुनाफ़ा कमाना। हिण्डेनबर्ग इस प्रकार की ‘शॉर्ट सेलिंग’ करने से पहले किसी कम्पनी द्वारा शेयर बाज़ार में की जा रही धाँधली पर शोध करती है और यह सुनिश्चित करने के बाद कि उस कम्पनी के शेयर का मूल्य उसके वास्तविक मूल्य से ज़्यादा है, वह अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करती है जिसके नतीजे के रूप में उस कम्पनी के शेयर का मूल्य गिरने लगता है और इस गिरावट का फ़ायदा उठाते हुए वह पहले अधिक दाम पर बेचे गये उसके शेयर को कम दाम पर वापस ख़रीदकर मुनाफ़ा कमाती है। स्पष्ट है कि हिण्डेनबर्ग रिसर्च का मक़सद बड़ी कम्पनियों के घोटालों को उजागर करके मुनाफ़ा कमाना ही है। लेकिन इस प्रक्रिया में आज के दौर में पूँजीवादी लूट-खसोट का एक पहलू हमारे सामने अवश्य आता है।
हिण्डेनबर्ग रिसर्च ने अडाणी समूह की कम्पनियों पर 2 वर्ष तक किये गये अपने शोध की रिपोर्ट में दावा किया है कि अडाणी समूह की 7 लिस्टेड कम्पनियों के स्टॉक में पिछले 3 वर्षों के दौरान जो औसतन 819 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है वह जालसाज़ी के ज़रिए हुई है। इस जालसाज़ी का तरीक़ा बताते हुए रिपोर्ट में प्रमाणों के साथ दिखाया गया है कि अडाणी समूह ने ‘टैक्स हैवेन’ कहे जाने वाले मॉरीशस, साइप्रस, यूएई, सिंगापुर और कैरिबियाई द्वीप समूह के तमाम देशों में फ़र्ज़ी शेल कम्पनियों का जाल बिछाया है जिन्हें गौतम अडाणी का बड़ा भाई विनोद अडाणी नियंत्रित करता है। विदेशों में मौजूद इन फ़र्ज़ी कम्पनियों में ग़ैर-क़ानूनी रूप से अडाणी समूह का ही पैसा लगा है और इसी पैसे से वापस भारत में अडाणी की ही लिस्टेड कम्पनियों के शेयर ख़रीदे जाते हैं और इस प्रकार इन कम्पनियों के शेयर की माँग में बढ़ोत्तरी करके उसके मूल्य को कृत्रिम रूप से बढ़ाया जाता है। भारतीय शेयर बाज़ार के विनियामक सेबी (सिक्योरिटीज़ ऐण्ड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इण्डिया) के नियम के अनुसार किसी लिस्टेड कम्पनी के शेयरों में प्रमोटर्स का हिस्सा 75 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। लेकिन शेल कम्पनियों के उपरोक्त फ़र्ज़ीवाड़े की मदद से अडाणी की 7 लिस्टेड कम्पनियों में अडाणी परिवार की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से कहीं ज़्यादा हो जाती है। यही नहीं अडाणी समूह अपनी कम्पनियों के शेयर के ऊँचे मूल्य और उनकी अच्छी सेहत दिखाकर देशी व विदेशी वित्तीय संस्थाओं से भारी क़र्ज़ा भी लेता रहा है जिसकी राशि उसकी वास्तविक परिसम्पत्तियों के मूल्य की तुलना में कहीं ज़्यादा है। इस प्रकार अडाणी समूह की कम्पनियों के शेयर के मूल्य उनकी वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाते हैं बल्कि उनकी वास्तविक स्थिति पर पर्दा डालने का काम करते हैं।
ग़ौरतलब है कि अडाणी समूह के शेयरों में निवेश करने वालों में एलआईसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ भी शामिल हैं। एलआईसी ने अडाणी समूह की कम्पनियों में 74 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश किया है। यानी आम जनता अपनी आमदनी में से कटौती करके जीवन बीमा के लिए जो प्रीमियम भरती है उसका अच्छा–ख़ासा हिस्सा अडाणी की ऐसी कम्पनियों में लगा है जिनमें धोखाधड़ी हुई है। इसी प्रकार अडाणी की कम्पनियों को क़र्ज़ देने वाली वित्तीय संस्थाओं में एसबीआई और पीएनबी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी शामिल हैं। एसबीआई ने अडाणी समूह को 21 हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ा दिया है और पीएनबी ने 7 हज़ार करोड़ रुपये का। अगर अडाणी समूह की कम्पनियाँ डूबती हैं तो उसका असर केवल उसकी कम्पनियों और उसके कर्मचारियों पर ही नहीं बल्कि एसबीआई, पीएनबी और एलआईसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों पर भी होगा, यानी उसका असर आम जनता की ज़िन्दगी पर भी होगा और पहले से ही मन्दी के ख़तरे से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की अस्थिरता भी और बढ़ेगी।
हिण्डेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद जो सच्चाइयाँ उजागर हुई हैं वो केवल अडाणी के ही नहीं बल्कि समूची पूँजीवादी व्यवस्था के लुटेरे चरित्र को एक बार फिर से बेपर्द करती हैं। इतने बड़े घोटाले के सामने आने के बाद यह सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर अडाणी जैसा जालसाज़ जब दशकों से यह गोरखधन्धा कर रहा था तब तमाम सरकारी एजेंसियाँ क्या कर रही थीं? मोदी सरकार के विरोधियों के मामूली मामलों में भी ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियाँ तुरन्त छापा मारने पहुँच जाती हैं, लेकिन कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला दशकों से चलता रहा और किसी भी एजेंसी ने चूँ तक नहीं बोली। शेयर बाज़ार की गतिविधियों पर निगरानी करने वाली एजेंसी सेबी ने भी इतने सालों में अडाणी समूह पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। ऐसा नहीं था कि अडाणी की करतूतों के बारे में किसी को कोई भनक नहीं थी। हिण्डेनबर्ग रिपोर्ट में जो आरोप लगाये गये हैं वैसे आरोप पहले भी अडाणी समूह पर लगते रहे हैं, लेकिन उसके बावजूद इस लुटेरे पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
सबसे ज़्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि सिर से लेकर पाँव तक भ्रष्टाचार में डूबा यह लुटेरा इस देश के प्रधानमंत्री का जिगरी यार है। ग़ौरतलब है कि यह वही प्रधानमंत्री है जिसने सत्ता में पहुँचने से पहले भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर बहुत शोर मचाया था और लम्बे-चौड़े वायदे किये थे। यह प्रधानमंत्री निहायत ही बेशर्मी से अपने जिगरी यार के निजी जेट में सवारी करता है और उसको राष्ट्र की समृद्धि का जनक बताकर उसका महिमामण्डन करता है। ‘सइयाँ भए कोतवाल, अब डर काहे का!’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए अडाणी ने ख़ास तौर पर मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पूँजी के अम्बार में ज़बर्दस्त बढ़ोत्तरी की है। कोरोना महामारी के दौरान जब पूरे देश की जनता त्राहि–त्राहि कर रही थी तब इस लुटेरे ने अपने जिगरी यार की सलाह को शब्दशः मानते हुए आपदा में ज़बर्दस्त अवसर तलाशा और अपनी सम्पत्ति में 8 गुना इज़ाफ़ा कर लिया।
इस बीच पूरा पूँजीवादी मीडिया इस जालसाज़ लुटेरे को देश का रोल-मॉडल बताता रहा, उसकी कामयाबी की ‘गौरव-गाथाएँ’ पूरे समाज में सुनियोजित ढंग से फैलायी जाती रहीं। लोगों को बताया जाता रहा कि इस व्यवस्था में कोई भी आदमी अपनी मेहनत और बुद्धि के बूते अमीर बन सकता है। लेकिन अब सच्चाई चीख़-चीख़कर हमें बता रही है कि पूँजीवादी समाज में जिन्हें रोल-मॉडल बताया जाता है उनकी कामयाबी के पीछे भाँति-भाँति की लूट-खसोट छिपी होती है। बैंकों व वित्तीय संस्थाओं में जमा जनता की बचत को ये क़र्ज़ों के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपनी पूँजी बढ़ाते हैं। इस पूँजी से कच्चा माल, मशीनें और श्रम-शक्ति ख़रीदते हैं। सरकार से अपनी क़रीबी का फ़ायदा उठाते हुए ये औने-पौने दामों पर ज़मीन, लाइसेंस व विभिन्न प्रकार के ठेके हासिल करते हैं। उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान मज़दूरों के श्रम को लूटकर ये मुनाफ़ा कमाते हैं। उसके बाद जब कर देने की बारी आती है तो सरकार पर दबाव बनाकर करों में ज़बर्दस्त छूट हासिल करते हैं जिससे आम मेहनतकश जनता पर बोझ बढ़ता है और उसकी आमदनी और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट होती है। इस अपार लूट से भी जब इन लुटेरों को सन्तोष नहीं होता तो वे भाँति-भाँति की तिकड़मों के ज़रिए स्टॉक क़ीमतों व बही-खाते में हेराफेरी करके अपनी लूट के पहाड़ को और ऊँचा करने से भी नहीं चूकते हैं। इस नज़रिए से देखने पर हम पाते हैं कि हिण्डेनबर्ग रिपोर्ट में जो सच्चाइयाँ उजागर हुई हैं वो दरअसल इस व्यवस्था की कुल लूट के आइसबर्ग का टिप मात्र हैं। कुछ लोग इस व्यवस्था को थोड़ा विनियमित करके इसकी लूट पर नकेल कसने की वकालत करते हैं। लेकिन वित्तीय पूँजी के इस मौजूदा युग में पूँजीवादी व्यवस्था इतनी सड़ चुकी है कि यह मानवता के सामने विकल्प के रूप में विभिन्न प्रकार की लूट-खसोट ही दे सकती है। इसलिए आज ज़रूरत इस लुटेरी व्यवस्था में रंगरोगन करके इसे मानवीय रूप देने की नहीं बल्कि इसका पर्दाफ़ाश करते हुए इसे जड़ से उखाड़ फेंकने की है।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2023
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