मोदी राज में ‘अडानी भ्रष्टाचार – भ्रष्टाचार भवति’ !

वृषाली

भाजपा के “रामराज्य” में अडानी महोदय पर भ्रष्टाचार के आरोप थमने का नाम नहीं ले रहे। 2023 और 2024 में हिण्डनबर्ग के दो खुलासों के बाद 20 नवम्बर को एक अमेरिकी कोर्ट ने भी गौतम अडानी समेत 7 लोगों पर रिश्वतख़ोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगाये हैं। अमेरिकी कोर्ट के अभियोग के अनुसार अडानी पर भारत में सरकारी अधिकारियों को 2236 करोड़ रूपये की रिश्वत देकर राज्य विद्युत वितरण कम्पनियों के साथ “लाभदायक सौर ऊर्जा आपूर्ति अनुबन्ध” हासिल करने का आरोप है। हर बार की तरह अडानी जी की रक्षा में भाजपा के नेता समेत आईटी सेल के भाड़े के टट्टू मैदान में उतर चुके हैं। भाजपा नेताओं के लिए तो अडानी जी ही देश हैं, इसलिए अडानी पर हमला “देश” पर हमला है, विदेशी ताक़तों की साज़िश है। इन सब (कु)तर्कों के बावजूद अडानी जी ने विदेशों में देश का डंका तो बजवा ही दिया है।

क्या है पूरा मामला?

रिश्वतख़ोरी के इस मामले में भाजपा और आईटी सेल अडानी के बचाव में यह तर्क दे रहे कि जिन राज्यों में विद्युत वितरण के अनुबन्ध हासिल किये गये वहाँ विपक्ष की सरकारें थीं (हालाँकि आन्ध्र प्रदेश, ओड़ीसा, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ के अलावा जम्मू और कश्मीर भी इस फ़ेहरिस्त में शामिल है जहाँ उस वक़्त राष्ट्रपति शासन था)। लेकिन मुद्दा सिर्फ़ इन पाँच राज्यों का नहीं है, इस भ्रष्टाचार की जड़ें भारत सरकार के उपक्रम ‘सेकी’ (सोलर एनर्जी कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड) से जुड़ती हैं। कैसे? 2019 में भारत सरकार के इस उपक्रम के तहत निकले टेण्डर की नीलामी हुई थी। टेण्डर के निबन्धन और शर्तें अडानी के जूतों के हिसाब से पैर काटने के समान थीं। इस नीलामी में अडानी ग्रीन एनर्जी के अलावा अज़्योर पावर और नवयुग इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड दौड़ में सबसे आगे थे (अमेरिकी कोर्ट में चल रहे मामले में अज़्योर पावर का नाम भी शामिल है और उसने जाँच में सहयोग की सहमति दे दी है)। नवयुग लिमिटेड और अडानी समूह के बीच आन्ध्र प्रदेश स्थित एक बन्दरगाह को लेकर हुए एक सौदे के बाद नवयुग लिमिटेड इस दौड़ से ही बाहर हो गयी। ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की एक जाँच ने इस बात को उजागर किया है कि किस प्रकार केन्द्र सरकार और ‘सेकी’ ने अपने टेण्डर के नियमों को अडानी के अनुकूल बनाने का काम किया ताकि कॉण्ट्रैक्ट अडानी ग्रीन के हाथ ही लगे। ये कोई पहली दफ़ा नहीं था जब कोई सरकारी टेण्डर फिसलता हुआ अडानी समूह के हाथों में आ गिरा। वैसे तो मोदी जी ‘रेवड़ी कल्चर’ के विरोधी हैं, लेकिन सत्तासीन होने के बाद अडानी के प्रति उनकी नीति ‘अन्धा बाँटे रेवड़ी फ़िर-फ़िर’ अपने को ही दे वाली हो गयी है! 2018 में प्रकृतिक गैस पाइपलाइन बिछाने और संचालित करने के काम में सबसे बड़ा टेण्डर अडानी समूह के हाथ लगा था। 2019 में 6 एयरपोर्टों के संचालन का टेण्डर अकेले (और इस क्षेत्र में बिलकुल नये ) अडानी समूह को मिला। यह फ़ेहरिस्त काफ़ी लम्बी  है। मोदी राज में अडानी जी की धन-सम्पदा में अकूत बढ़ोत्तरी ही “रामराज्य” की असल परिचायक है। 2013 में भारत में अडानी के पास 44 परियोजनाएँ थीं, 2018 आते-आते यह संख्या 92 हो गयी। 2014 में भाजपा की सरकार बनने के लिए जब मोदी जी गुजरात से अडानी जी के निजी हवाई जहाज़ में चढ़े थे, तब उस हवाई जहाज़ के साथ-साथ अडानी जी क़िस्मत ने भी उड़ान भर ली थी।

बहरहाल, वापस मुद्दे पर लौटते हुए, ‘सेकी’ 2011 से नीलामी के ज़रिये विद्युत उत्पादकों से ऊर्जा ख़रीद कर राज्यों को बेचने का काम कर रही है। 2018 में ‘सेकी’ ने उन कम्पनियों से सौर्य ऊर्जा की ख़रीद की घोषणा की जो सौर्य संयन्त्र का भी उत्पादन करते हों। टेण्डर में जिस स्तर पर सौर्य ऊर्जा के उत्पादन की शर्त रखी गयी थी वह ख़ासा अडानी की कम्पनी के अनुकूल थी। इस नीलामी के ज़रिये ‘सेकी’ और विजेता कम्पनी के बीच 25 साल का क़रार होना तय था। जिस शुल्क पर बिजली ख़रीद समझौता तय हुआ (2.92 रुपये प्रति यूनिट), उस हिसाब से 25 सालों में अडानी ग्रीन और अज़्योर, दोनों को 1.5 लाख करोड़ का राजस्व मिलना तय था। क़रारनामे के 1.5 साल बाद दोनों ही कम्पनियों ने अपने शुल्क कम कर (2.54 और 2.42 प्रति kWh) दिये। बावजूद इसके ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ के अनुमान से अडानी ग्रीन को 25 सालों में कम से कम 53,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा। 2020 में अडानी समूह को दुनिया का सबसे बड़ा सौर्य ऊर्जा प्लान्ट बनाने का ठेका मिलने की ख़बर आयी थी।

‘सेकी’ के साथ हुए बिजली ख़रीद समझौते के बाद भी शुल्क ज़्यादा होने की वजह से कोई भी राज्य इस दर पर बिजली आपूर्ति समझौते के लिए तैयार नहीं था। अडानी जी ने इसी मजबूरी में घूसख़ोरी का दामन थाम लिया और (अप्रैल 2022 के हिसाब से) 2,029 करोड़ रुपये की रिश्वत दी। इस रक़म में से तक़रीबन 1,750 करोड़ रुपये आन्ध्र प्रदेश में अकेले एक व्यक्ति को दिये गये जिसके बाद राज्य की तीन वितरण कम्पनियाँ (सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा)  ‘सेकी’ से 7000 मेगावॉट बिजली ख़रीदने को तैयार हो गईं। चूँकि इस परियोजना के नाम पर जुटाये पैसों में 175 मिलियन डॉलर अडानी ने अमेरिकी निवेशकों से जुटाये थे तो अमेरिकी कोर्ट ने गौतम अडानी समेत 7 व्यक्तियों पर रिश्वतख़ोरी और अमेरिकी निवेशकों से धोखाधड़ी के आरोप लगाये हैं। हालाँकि ट्रम्प की हालिया जीत के बाद नयी अमेरिकी सरकार का रुख़ बदलने की भी सम्भावना बनती नज़र आती है।

इस पूरे वाकये के बाद अडानी समूह से ज़्यादा सक्रियता से गोदी मीडिया, भाजपा और आईटी सेल अडानी के बचाव का ज़िम्मा उठाए घूम रहा है। कहने को इस घूसख़ोरी में संलिप्त विपक्षी दलों की सरकारें थीं, तिस पर भी मोदी जी का भ्रष्टाचार के प्रति “ज़ीरो टॉलरेंस” का काँटा अभी ज़ीरो पर पहुँचा नहीं पा रहा। “सदाचार”, “राष्ट्रवाद” और “संस्कृति” की दुहाई देने वाली भाजपा का भ्रष्टाचार भी “राष्ट्रवादी” होता है। इसलिए अडानी के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की माँग “देश-विरोधी” है। “ न खाऊँगा, न खाने दूँगा” तो जुमला था, असल नारा तो “ख़ुद अकेला खाऊँगा, दोस्तों को खिलाऊँगा” है!

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2024 – जनवरी 2025


 

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