चैट जीपीटी और “मानव समाज पर ख़तरा!”
जिसे कृत्रिम चेतना कहा जा रहा है वह वास्तव में मानव की मानसिक गतिविधि का ही अमूर्तन है। परन्तु चूँकि मानसिक गतिविधि अपने आप में सीमित नहीं है इसलिए उसका अमूर्तन भी कोई ‘अन्तिम उत्पाद’ नहीं है। मानव ज्ञान के उन्नततर होते जाने के साथ ही यह भी और उन्नततर होगा। चैट जीपीटी मशीन मानवीय ज्ञान के एक ख़ास स्तर का ही प्रतिबिम्बन करती है। मानव चेतना का गुण होता है कि वह वस्तु जगत का प्रतिबिम्बन करती है। यह प्रतिबिम्बन हूबहू आईने के प्रतिबिम्बन समान नहीं होता है। पहले स्तर पर हमारी आँखें, हमारी नाक, कान, जीभ और त्वचा यानी इन्द्रियों के जरिये भौतिक जगत की एक तस्वीर, एक खाका और एक रूपरेखा बनाते हैं। यह भौतिक जगत समाज और प्रकृति ही है। अब चूँकि समाज और प्रकृति दोनों ही परिवर्तनशील हैं तो ज़ाहिर है कि प्रतिबिम्बन भी परिवर्तनशील होगा।