पर्यावरणीय विनाश के चलते सिमटता वसन्त
जानलेवा होते ये पर्यावरण परिवर्तन पूँजी द्वारा प्रकृति की अन्धी लूट के कारण हैं। पर्यावरण परिवर्तन की तमाम चिन्ता पूँजीवादी देशों के हुक्मरानों के एजेण्डे में ही नहीं हैं। उनकी चिन्ता मुनाफ़े की गिरती दर को रोकने के ख्यालों और प्रयासों में ही डूबी है जो उन्हें श्रम और प्रकृति को और अधिक लूटने की ओर ही धकेलती है। भारत सरकार द्वारा जंगलों से लेकर पर्वतों, नदियों को नष्ट करने की योजनाओं पर मुहर लगाने से लेकर साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा ग्रीनलैण्ड, आर्कटिक और अण्टार्क्टिक में जीवाश्म ईंधन के भण्डार की लूट के लिए रस्साकशी हो या ब्राज़ील के अमेज़न जंगलों की तबाही, यह स्पष्ट है कि पर्यावरण को बचाना इनके एजेण्डे में है ही नहीं। स्पष्ट ही है कि पर्यावरण को बचाने का मुद्दा भी आम मेहनतकश जनता के जीने के हक़ से जुड़ा मुद्दा है। पर्यावरण वैज्ञानिक हान्सेन की ‘2 सी इज़ डेड’ की यह चेतावनी पूँजीवादी हुक्मरानों के बहरे कानों पर पड़ रही है। यह मसला आज मज़दूरवर्गीय राजनीति का अहम मुद्दा है। यह दुनिया के मज़दूरों और मेहनतकशों के जीवन के अधिकार का ही मुद्दा है और इसके लिए संघर्ष भी मज़दूरवर्गीय राजनीति से ही लड़कर दिया जा सकता है न कि हुक्मरानों के आगे की गयी गुहारों से!