मुनाफ़े के गोरखधन्धे में बलि चढ़ता विज्ञान और छटपटाता इन्सान
कहने को तो विज्ञान मानव का सेवक है लेकिन पूँजीवाद में यह मात्र मुनाफ़ा कूटने का एक साधन बन कर रह गया है। मुनाफ़े की कभी न मिटने वाली भूख से ग्रस्त यह मानवद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था मानव के साथ-साथ मानवीय मूल्य और मानवीय संवेदनाओं को भी निरन्तर निगलती करती जा रही है। विज्ञान की ही एक विधा चिकित्सा विज्ञान का उदाहरण हम देख सकते हैं।