बारिश ने उजागर की “स्मार्ट सिटी” की हक़ीकत – हर बार की तरह मज़दूर और मेहनतकश तबका ही भुगत रहा है!
इन हालात में सबसे ज़्यादा मार उस वर्ग पर पड़ी है, जो हर रोज़ सुबह 5 बजे उठकर काम की तलाश में, या कारखानों, दफ़्तरों, दुकानों पर काम तक पहुँचने के लिए निकलता है — मज़दूर वर्ग। फुटपाथ पर रहने वाला, झुग्गियों में गुजर-बसर करने वाला, ईंट-भट्ठों और फ़ैक्टरियों में काम करने वाला, सफाई कर्मचारी, निर्माण मज़दूर, रेहड़ी-पटरी चलाने वाला, इन सबके लिए ये बारिश आफ़त बनकर आई है। जिन झुग्गियों में वे रहते हैं, वहाँ सीवर व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं। न कोई निकासी का प्रबन्ध है, न कोई प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा। इसका नतीजा क्या होता है, ये हम मज़दूर जानते हैं। हमें इसी गन्दगी में पशुवत पड़े रहने के लिए छोड़ दिया जाता है, हालाँकि हमारे समाज के धनाढ्य वर्गों की समृद्धि की इमारतें हमारे श्रम की नींव पर ही खड़ी होती हैं।