आख़िर कब तक उत्तर बिहार की जनता बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर रहेगी?
आज विज्ञान और टेक्नोलॉजी जिस हद तक आगे बढ़ चुकी है, उसका उपयोग कर ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को कम किया जा सकता है। हालाँकि जैसा कि पहले भी कहा पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत भी उत्पादक शक्तियों के विकास के कारण ऐसा सम्भव होते हुए भी इसे नहीं किया जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। हमें सत्ता में बैठी सरकारों को इन मसलों पर घेरते हुए उनसे सवाल करना होगा और पूँजीवादी व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करना होगा। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए हमें सरकारों को मजबूर करना होगा।