Category Archives: मई दिवस

मई दिवस की है ललकार, लड़कर लेंगे सब अधिकार!

आज़ादी के बाद से केन्द्र व राज्य में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो, सभी ने पूँजीपति वर्ग के पक्ष में मज़दूरों के मेहनत की लूट का रास्ता ही सुगम बनाया है। लेकिन 1990-91 में आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद और ख़ास-कर मोदी के सत्तासीन होने के बाद से मज़दूरों पर चौतरफ़ा हमला बोल दिया गया है। चार नए लेबर कोड के ज़रिये मज़दूरों के 8 घण्टे काम के नियम, यूनियन बनाने, कारख़ानों में सुरक्षा उपकरण आदि के अधिकार को ख़त्म कर दिया गया है। विरोध प्रदर्शनों को कुचलने लिए प्रशासन और पूँजीपतियों को वैध-अवैध तरीक़ा अपनाने की खुली छूट दे दी गयी है। जर्जर ढाँचे और सुरक्षा उपकरणों की कमी के चलते कारख़ाने असमय मृत्यु और अपंगता की जगहों में तब्दील हो गये हैं। हवादार खिड़कियाँ, ऊँची छत, दुर्घटना होने पर त्वरित बचाव के साधन नहीं हैं।

बरगदवा, गोरखपुर के मज़दूरों ने मई दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया

पिछली 1 मई को (अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस) ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ और ‘टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन’ द्वारा गोरखपुर के बरगदवा में संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मई दिवस के शहीदों की तस्वीर पर माल्यार्पण और ‘कारवाँ चलता रहेगा’ गीत से किया गया। ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के प्रसेन ने मई दिवस के इतिहास पर और इस इतिहास से मजदूरों की अनभिज्ञता, शासक वर्ग द्वारा इस विरासत को धूल-मिट्टी डालकर दबाने की साज़िश पर विस्तार से बात रखी।

दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों ने मई दिवस की क्रान्तिकारी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया!

1 मई यानी मज़दूर दिवस के मौक़े पर दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन ने आम सभा का आयोजन किया। दिल्ली के सेण्ट्रल पार्क में आयोजित होने वाली इस सभा को रोकने की पुलिस व प्रशासन द्वारा काफ़ी कोशिशें की गयी। महिलाएँ पार्क में बैठकर बातचीत न कर पायें इसलिए पार्क के सभी प्रवेश द्वारों को बन्द कर दिया गया और आसपास भी बैठ रही महिलाकर्मियों को पुलिस द्वारा फ़र्ज़ी मुकदमे का डर दिखाकर डराया-धमकाया जाने लगा। इन सबके बावज़ूद महिलाओं ने अपनी सभा चलाने की ठानी और राजीव चौक के एक अन्य पार्क में बैठकर ‘मई दिवस के क्रान्तिकारी इतिहास और आज के वक़्त में इसकी ज़रूरत’ पर अपनी बातचीत को जारी रखा।

मई दिवस 2025 – रस्म-अदायगी से आगे बढ़कर मज़दूर वर्ग के अधिकारों पर असली जुझारू लड़ाई के लिए जागो! गोलबन्द हो! संगठित हो!

आज पूरी दुनिया में यह तथ्य स्वीकार किया जाता है कि इन मज़दूर नेताओं को केवल उनके क्रान्तिकारी विचारों और मज़दूर वर्ग को उसकी जायज़ माँगों के लिए संगठित करने के लिए पूँजीपति वर्ग की शह पर सज़ा दी गयी थी। पूँजीपति वर्ग को यह लगता था कि इसके ज़रिये वे मज़दूरों के आठ घण्टे के कार्यदिवस व अन्य माँगों के लिए उभरते आन्दोलन को कुचल सकेंगे। लेकिन हुआ इसका उल्टा। फाँसी पाने वाले एक मज़दूर नेता ऑगस्ट स्पाइस ने फाँसी की सज़ा सुनाये जाने के बाद कठघरे से ही पूँजीपति वर्ग को चुनौती देते हुए एलान किया था : “एक दिन हमारी ख़ामोशी उन आवाज़ों से कहीं ज़्यादा ताक़तवर साबित होगी, जिनका आज तुम गला घोंट रहे हो।” स्पाइस के इस एलान को इतिहास ने सही साबित किया।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस 1 मई को रस्म या छुट्टी का दिन नहीं, अपने क्रान्तिकारी पुरखों की जीत के जश्न और पूँजी की जकड़बन्दी को छिन्न-भिन्न करने के फ़ौलादी संकल्प का दिन बनाओ!

मज़दूरों ने जब आठ घण्टे के काम की माँग की थी तब उस समय तकनीक और मशीनें आज की मशीनों और तकनीक के मुक़ाबले बहुत पिछड़ी हुई थीं। अब जबकि मशीनें और तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी हैं कि काम व समूचे माल के निर्माण को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़कर काम को सरल व तेज़ रफ़्तार से किया जाना सम्भव बना दिया गया है। तब मज़दूर की मज़दूरी का हिस्सा घटता जा रहा है और काम के घण्टे बढ़ते जा रहे हैं। 1984 में जहाँ कुल उत्पादन लागत का 45 प्रतिशत हिस्सा मज़दूरी के रूप में दिया जाता था वो 2010 तक घटकर 25 प्रतिशत रह गया। संगठित क्षेत्र में पैदा होने वाले हर 10 रूपये में मज़दूर वर्ग को केवल 23 पैसे मिलता है। ऑटो सेक्टर में एक विश्लेषण के अनुसार तकनीकी विकास के हिसाब से ऑटो सेक्टर का मज़दूर 8 घण्टे के कार्यदिवस में अपनी मज़दूरी के बराबर का मूल्य मात्र 1 घण्टे 12 मिनट में पैदा कर देता है, जबकि 6 घण्टे 48 मिनट मज़दूर बिना भुगतान के काम करता है। मज़दूरों की मेहनत की इसी लूट से एक ओर ग़रीबी और दूसरी ओर पूँजी का अम्बार खड़ा होता है।

मई दिवस और मौजूदा दौर में मज़दूर वर्ग के समक्ष चुनौतियाँ

एक ऐसे वक़्त में हम मई दिवस मना रहे हैं जब मज़दूरों से उन अधिकारों को ही छिना जा रहा है जिन्हें मई दिवस के शहीदों की शहादत और मजदूर वर्ग के बेमिसाल संघर्षों के बाद हासिल किया गया था। दुनिया भर में फ़ासीवादी और धुर-दक्षिणपंथी सरकारें सत्ता में पहुँच रही हैं जो मज़दूर अधिकारों पर पाटा चला रही हैं। यह दौर नवउदारवादी हमले का दौर है। ठेकाकरण, अनौपचारिकीकरण, यूनियनों को ख़त्म किया जाना और श्रम क़ानूनों को ख़त्म किया जाना मज़दूर वर्ग के समक्ष चुनौती है। तुर्की के मज़दूर वर्ग के कवि नाज़िम हिकमत ने एक कविता में कहा था कि यह जानने के लिए कि हमें कहाँ जाना है यह जानना ज़रूरी होता है कि हम कहाँ से आये हैं। मई दिवस के आज के दौर की चुनौतियों की थाह लेने से पहले हम एक बार अपने अतीत पर निगाह डालें तो इस चुनौती का सामना करने का रास्ता भी मिल जायेगा।

मई दिवस : मज़दूर वर्ग के महान पुरखों के गौरवशाली संघर्ष की विरासत को आगे बढ़ाने का दिन

अमेरिका में जिन मज़दूरों ने अपने बलिष्ठ हाथों से अमेरिका के शहरों को खड़ा किया, रेल पटरियों का जाल बिछाया, नदियों को बाँधा, गगनचुम्बी इमारतों को बनाया, और पूँजीपतियों के लिए दुनियाभर के ऐशो-आराम खड़े किये उनकी जीवनस्थिति अभी भी बेहद भयावह थी। उस समय युवा मज़दूर अपने जीवन के 40 बसन्त भी नहीं देख पाते थे। अगर मज़दूर इसके खि़लाफ़ कोई भी आवाज़ उठाते थे तो उनपर निजी गुण्डों, पुलिस और सेना से हमले करवाये जाते थे! लेकिन इन सबसे अमेरिका के जाँबाज़ मज़दूर दबने वाले नहीं थे!

मई दिवस का नारा, सारा संसार हमारा

136वें मज़दूर दिवस के अवसर पर देश की तमाम क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियनों व संगठनों द्वारा मई दिवस की विरासत को याद करते हुए तथा बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, श्रम क़ानूनों पर हमले के ख़िलाफ़ अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार से लेकर देशभर के अन्य इलाक़ों की क्रान्तिकारी यूनियनों और संगठनों ने मिलकर मोदी सरकार द्वारा लगातार श्रम क़ानूनों पर किये जाने वाले हमलों समेत देशभर में बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन, गोष्ठी, सभा व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया।

मई दिवस 1886 से मई दिवस 2022 : कितने बदले हैं मज़दूरों के हालात?

इस वर्ष पूरी दुनिया में 136वाँ मई दिवस मनाया गया। 1886 में शिकागो के मज़दूरों ने अपने संघर्ष और क़ुर्बानियों से जिस मशाल को ऊँचा उठाया था, उसे मज़दूरों की अगली पीढ़ियों ने अपना ख़ून देकर जलाये रखा और दुनियाभर के मज़दूरों के अथक संघर्षों के दम पर ही 8 घण्टे काम के दिन के क़ानून बने। लेकिन आज की सच्चाई यह है कि 2022 में कई मायनों में मज़दूरों के हालात 1886 से भी बदतर हो गये हैं। मज़दूरों की ज़िन्दगी आज भयावह होती जा रही है। दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए 12-12 घण्टे खटना पड़ता है।

मई दिवस को मज़दूर वर्ग के जुझारू संघर्ष की नयी शुरुआत का मौक़ा बनाओ!

मई दिवस का नाम हम सभी जानते हैं। हममें से कुछ हैं जो 1 मई, यानी मज़दूर दिवस या मई दिवस, के पीछे मौजूद गौरवशाली इतिहास से भी परिचित हैं। लेकिन कई ऐसे भी हैं, जो कि इस इतिहास से परिचित नहीं हैं। यह भी एक त्रासदी है कि हम मज़दूर अपने ही तेजस्वी पुरखों के महान संघर्षों और क़ुर्बानियों से नावाकि़फ़ हैं। जो मई दिवस की महान अन्तरराष्ट्रीय विरासत से परिचित हैं, वे भी आज इसे एक रस्मअदायगी क़वायदों में डूबता देख रहे हैं। कहीं न कहीं हमारे जीवन की तकलीफ़ों में हम भी जाने-अनजाने इसे रस्मअदायगी ही मान चुके हैं। यह मज़दूर वर्ग के लिए बहुत ख़तरनाक बात है। क्यों?