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“मई दिवस बन जाये हर दिन साल का, यह सोच कर तैयारियाँ करने लगें हम फिर”

“मई दिवस बन जाये हर दिन साल का, यह सोच कर तैयारियाँ करने लगें हम फिर” इंक़लाबी जोश-ओ-ख़रोश के साथ मज़दूरों ने दी शिकागो के शहीदों को श्रद्धांजलि ‘बिगुल मज़दूर…

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर पूँजीवादी शोषण के खि़लाफ़ संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया

इस वक़्त पूरी दुनिया में मज़दूर सहित अन्य तमाम मेहनतकश लोगों का पूँजीपतियों-साम्राज्यवादियों द्वारा लुट-शोषण पहले से भी बहुत बढ़ गया है। वक्ताओं ने कहा कि भारत में तो हालात और भी बदतर हैं। मज़दूरों को हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी भी नहीं है कि अच्छा भोजन, रिहायश, स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि ज़रूरतें भी पूरी हो सकें। भाजपा, कांग्रेस, अकाली दल, आप, सपा, बसपा सहित तमाम पूँजीवादी पार्टियों की उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियों के तहत आठ घण्टे दिहाड़ी, वेतन, हादसों व बीमारियों से सुरक्षा के इन्तज़ाम, पीएफ़, बोनस, छुट्टियाँ, काम की गारण्टी, यूनियन बनाने आदि सहित तमाम श्रम अधिकारों का हनन हो रहा है। काले क़ानून लागू करके जनवादी अधिकारों को कुचला जा रहा है।

पर्चा – 1 मई, अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस ज़िन्दाबाद! मई दिवस के शहीद अमर रहें!

भारत पर इस समय फ़ासीवादी शिकंजा कसता जा रहा है। फ़ासीवादी बड़ी पूँजी की सेवा करते हैं तथा मज़दूर वर्ग समेत तमाम गरीबों को जाति-धर्म-क्षेत्र के नाम पर आपस में भिड़ा देते हैं। मोदी सरकार एक ओर तो आज मज़दूरों के रहे-सहे श्रम कानूनों को ख़त्म करती जा रही है तथा दूसरी ओर जाति-धर्म के झगड़े-दंगे फैलाने वालों को शह दे रही है। हर तरफ़ वायदा ख़िलाफ़ी, झूठ, जुमलेबाजी का बोलबाला है। इतिहास गवाह है कि फ़ासीवाद को संगठित मज़दूर वर्ग ही परास्त कर सकता है। जाति-मजहब की दीवारों को गिराकर हमें अपने साझे संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

वक्ताओं ने कहा कि पूरी दुनिया में भूख-प्यास, लूट, दमन, जंग, क़त्लेआम, धर्म-नस्ल-देश-जाति-क्षेत्र के नाम पर नफ़रत आदि के सिवाय इस पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था से और कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि हम इस गली-सड़ी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए पुरज़ोर ढंग से लोगों को जगाने और संगठित करने की कोशिशों में जुट जायें।

स्‍तालिन – सभी को काम, सभी को आज़ादी, सभी को बराबरी!

हर वर्ग के अपने उत्सव होते हैं। कुलीन सामन्त ज़मींदार वर्ग ने अपने उत्सव चलाये और इन उत्सवों पर उन्होंने ऐलान कि‍या कि‍ कि‍सानों को लूटना उनका ”अधि‍कार” है। पॅूंजीपति ‍वर्ग के अपने उत्सव होते हैं और इन पर वे मज़दूरों का शोषण करने के अपने ”अधि‍कार” को जायज़ ठहराते हैं। पुरोहि‍त-पादरि‍यों के भी अपने उत्सव हैं और उन पर वे मौजूदा व्यवस्था का गुणगान करते हैं जि‍सके तहत मेहनतकश लोग ग़रीबी में पि‍सते हैं और नि‍ठल्ले लोग ऐशो-आराम में रहकर गुलछर्रे उड़ाते हैं। मज़दूरों के भी अपने उत्सव होने चाहि‍ए जि‍स दि‍न वे ऐलान करें: सभी को काम, सभी के लि‍ए आज़ादी, सभी लोगों के लि‍ए सर्वजनीन बराबरी। यह उत्सव है मई दि‍वस का उत्सव।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विश्वभर में गूँजी मज़दूर मुक्ति की आवाज़

इस वर्ष भी विश्वभर में करोड़ों मज़दूरों न पूँजीवादी लूट के खिलाफ़ जोरदार आवाज़ बुलन्द की है। आयोजन चाहे क्रान्तिकारी ताकतों की पहलीकदमी पर हुए हों या चाहे पूँजीपरस्त नेताओं/संगठनों की पहलकदमी पर हुए हों, अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर मज़दूरों द्वारा दिखाया जोश यह दिखाता है कि वे मौजूदा लुटेरी व्यवस्था से किस कदर दुखी हैं, कि वे पूँजीपक्षधर नेताओं के लक्ष्यों से अगली कार्रवाई चाहते हैं, कि वे गुलामी वाली परिस्थितियों से छुटकारा चाहते हैं। अनेक स्थानों पर क्रान्तिकारी व मज़दूर पक्षधर ताकतों के नेतृत्व में आयोजन हुए जिनके दौरान मज़दूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई जारी रखने, पूँजीवादी व्यवस्था को जड़ से मिटाने, पूँजीपति वर्ग के मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों के खिलाफ़ तीखे हो रहे हमलों के खिलाफ़ संघर्ष तेज़ करने के संकल्प लिए गये।

मई दिवस के अवसर पर मज़दूर शहीदों को याद किया, पूँजी की गुलामी के ख़ि‍लाफ़ संघर्ष आगे बढ़ाने का संकल्प लिया

विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि आठ घण्टे काम दिहाड़ी का क़ानून बनवाने के लिए पूरे विश्व के मज़दूरों ने संघर्ष किया है। उन्नीसवीं सदी में अमेरिकी औद्योगिक मज़दूरों ने ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन’ के नारे के तहत बेहद शानदार, कुर्बानियों से भरा जुझारू संघर्ष किया था। पहली मई 1886 को अमेरिकी मज़दूरों ने देशव्यापी हड़ताल की थी जिसका अमेरिकी हाकिमों ने दमन किया था। दमन द्वारा मज़दूरों की आवाज़ को दबाया नहीं जा सका। आगे चलकर पूरे विश्व में आठ घण्टे काम दिहाड़ी, जायज़ मज़दूरी और अन्य अनेकों अधिकारों के लिए मज़दूरों के संघर्ष आगे बढ़े और विश्व भर की सरकारों को मज़दूरों को संवैधानिक अधिकार देने पड़े। रूस, चीन जैसे देशों में मज़दूर हुक़ूमतें स्थापित हुईं जिनके द्वारा मानवता ने शानदार उपलब्धियाँ हासिल कीं।

मई दिवस के महान शहीद आगस्‍ट स्‍पाइस के दो उद्धरण

सच बोलने की सज़ा अगर मौत है तो गर्व के साथ निडर होकर वह महँगी क़ीमत मैं चुका दूँगा। बुलाइये अपने जल्लाद को! सुकरात, ईसा मसीह, जिआदर्नो ब्रुनो, हसऊ, गेलिलियो के वध के ज़रिये जिस सच को सूली चढ़ाया गया वह अभी ज़िन्दा है। ये सब महापुरुष और इन जैसे अनेक लोगों ने हमारे से पहले सच कहने के रास्ते पर चलते हुए मौत को गले लगाकर यह क़ीमत चुकाई है। हम भी उसी रास्ते पर चलने को तैयार हैं

मई दिवस के अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्‍ता, मुम्‍बई द्वारा जारी पर्चा

आज मज़दूरों की 93 फ़ीसदी (लगभग 56 करोड़) आबादी ठेका, दिहाड़ी व पीस रेट पर काम करती है जहाँ 12 से 14 घण्टे काम करना पड़ता है और श्रम क़ानूनों का कोई मतलब नहीं होता। जहाँ आए दिन मालिकों की गाली-गलौज का शिकार होना पड़ता है। इतनी हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी हम अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के सपने नहीं देख सकते। वास्तव में हमारा और हमारे बच्चों का भविष्य इस व्यवस्था में बेहतर हो भी नहीं सकता है। आज ज़रूरत है कि हम मज़दूर जो चाहे किसी भी पेशे में लगे हुए हैं, अपनी एकता बनायें। आज हम ज्यादातर अलग-अलग मालिकों के यहाँ काम करते हैं इसलिए आज ये बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी इलाकाई यूनियनें भी बनायें। अपनी आज़ादी के लिए, अपने बच्चों के भविष्य के लिए, इन्सानों की तरह जीने के लिए और ये दिखाने के लिए कि हम हारे नहीं हैं, हमें एकजुट होने की शुरुआत करनी ही होगी।

श्रीलंका में मई दिवस और मज़दूर आन्दोलन के नये उभार के सकारात्मक संकेत

श्रीलंका का मज़दूर वर्ग यदि स्वयं अपने अनुभव से संसदवाद, अर्थवाद और ट्रेडयूनियनवाद से लड़ते हुए नवउदारवादी नीतियों और राज्यसत्ता के विरुद्ध एकजुट संघर्ष की ज़रूरत महसूस कर रहा है तो कालान्तर में उसकी हरावल पार्टी के पुनस्संगठित होने की प्रक्रिया भी अवश्य गति पकड़ेगी, क्योंकि श्रीलंका की ज़मीन पर मार्क्सवादी विचारधारा के जो बीज बिखरे हुए हैं, उन सभी के अंकुरण-पल्लवन-पुष्पन को कोई ताक़त रोक नहीं सकेगी। यदि कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की एक पीढ़ी अपना दायित्व नहीं पूरा कर पायेगी, तो दूसरी पीढ़ी इतिहास के रंगमंच पर उसका स्थान ले लेगी।