विभिन्न इलाक़ों में मई दिवस के कार्यक्रमों की एक रिपोर्ट
मई दिवस का नारा, सारा संसार हमारा

– केशव

136वें मज़दूर दिवस के अवसर पर देश की तमाम क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियनों व संगठनों द्वारा मई दिवस की विरासत को याद करते हुए तथा बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, श्रम क़ानूनों पर हमले के ख़िलाफ़ अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार से लेकर देशभर के अन्य इलाक़ों की क्रान्तिकारी यूनियनों और संगठनों ने मिलकर मोदी सरकार द्वारा लगातार श्रम क़ानूनों पर किये जाने वाले हमलों समेत देशभर में बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन, गोष्ठी, सभा व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया।
दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन, बिगुल मज़दूर दस्ता, दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन, बवाना क्षेत्र औद्योगिक मज़दूर यूनियन, दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन समेत तमाम अन्य संगठनों ने भागीदारी की। ग़ौरतलब है कि यह प्रतिरोध प्रदर्शन दिल्ली के मण्डी हाउस से जन्तर-मन्तर तक रैली के रूप में आयोजित होना था। लेकिन प्रशासन ने “शान्ति व्यवस्था” क़ायम करने का हवाला देकर इस कार्यक्रम के आयोजन की अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया। लेकिन दिल्ली में जब खुलेआम साम्प्रदायिक नारे लगते हैं, जब मस्जिदों में घुसकर संघ के फ़ासीवादी गुण्डे भगवा झण्डे लगा देते हैं, तब यही दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रहती है। वहीं दिल्ली की आम मेहनतकश आबादी जब अपनी माँगों को लेकर शान्तिपूर्ण प्रदर्शन करती है, तब अचानक ही दिल्ली पुलिस को “अशान्ति” फैलने का डर सताने लगता है। लेकिन दिल्ली पुलिस के इन तमाम हथकण्डों के बावजूद मज़दूरों और उनकी क्रान्तिकारी यूनियन ने जन्तर-मन्तर पर विरोध प्रदर्शन सफलतापूर्वक आयोजित किया। वहीं गुड़गाँव के ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के बीच मज़दूर दिवस के दिन सरकार की इन मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन द्वारा प्रतिरोध सभा का आयोजन किया गया।
उत्तर प्रदेश के भी कई इलाक़ों में मज़दूर दिवस के अवसर पर कई कार्यक्रम किये गये। बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से इलाहाबाद, गोरखपुर, अम्बेडकरनगर, लखनऊ, मथुरा समेत कई जगहों पर मई दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इलाहाबाद में एनआरएमयू के हॉल में ‘मई दिवस की विरासत और हमारा वर्तमान कार्यभार’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। साथ ही इलाहाबाद में लेबर चौक पर भी मज़दूरों के बीच सभा का आयोजन व पर्चा वितरण किया गया। गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में बिगुल मज़दूर दस्ता और टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन की ओर से ‘मशीन’ नाटक मंचन किया गया। इसके बाद बरगदवा औद्योगिक इलाक़े में जुलूस निकाला गया। लखनऊ के खदरा इलाक़े में और तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र में मई दिवस के अवसर पर नुक्कड़ सभाएँ की गयीं व पर्चे बाँटे गये। मथुरा में मई दिवस के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन किया गया और मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों और साम्प्रदायिकता के विरोध ंमें जुलूस निकाला गया। बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा उत्तराखण्ड के हरिद्वार में नुक्कड़ सभा व जन सम्पर्क अभियान चलाते हुए व्यापक पर्चा वितरण किया गया। वहीं हरियाणा के नरवाना ज़िले में मज़दूर आबादी के बीच बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा व्यापक पर्चा वितरण किया गया।
मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ (RWPI) द्वारा उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर ज़िले में मज़दूर दिवस की पूर्व संध्या पर जनसभा का आयोजन किया गया। इस सभा में सांस्कृतिक कार्यक्रम व सफ़दर हाशमी के मशहूर नाटक ‘मशीन’ का मंचन किया गया। साथ ही आज़मगढ़ ज़िले में आरडब्ल्यूपीआई द्वारा नुक्कड़ सभा का आयोजन किया गया। महाराष्ट्र के मानखुर्द में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया और रैली निकाली गयी। अहमदनगर, महाराष्ट्र में रैली व नुक्कड़ सभा का आयोजन किया गया। बिहार में आरडब्ल्यूपीआई द्वारा मई दिवस के अवसर पर सभा आयोजित की गयी व ‘मशीन’ नाटक का मंचन किया गया। हरियाणा में क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन और भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा मनरेगा मज़दूरों के बीच सभा व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान ‘देश को आगे बढ़ाओ’ नाटक का मंचन भी किया गया।
मज़दूर दिवस का यह दिन अमेरिका के मज़दूरों के राजनीतिक संघर्ष और क़ुर्बानी को याद कर दुनियाभर में मनाया जाता है। 1 मई 1886 को अमेरिका के लाखों मज़दूरों ने अपनी राजनितिक माँग ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम और आठ घण्टे मनोरंजन’ के लिए एक साथ हड़ताल करने का फ़ैसला किया। हड़ताल में क़रीब 11,000 फ़ैक्टरियों के कम से कम 3 लाख 80 हज़ार मज़दूर शामिल हुए। शहर के मुख्य मार्ग ‘मिशिगन अवेन्यु’ पर मज़दूर नेता अल्बर्ट पार्सन्स के नेतृत्व में शानदार जुलूस निकाला गया। मज़दूरों को संगठित होता देख डरे हुए मालिक-पूँजीपतियों ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप मज़दूर वर्ग पर बार-बार हमले किये। इन हमलों के ख़िलाफ़ 4 मई को शहर के मुख्य बाज़ार ‘हे मार्केट स्क्वायर’ में जनसभा का आयोजन किया गया। सभा के अन्त में पूँजीपतियों के इशारों पर षड्यंत्र के तहत पुलिस ने बम फिंकवा दिया और लोगों को तितर-बितर कर दिया। इसके बाद उल्टा दोष भी मज़दूरों पर ही मढ़ दिया गया और शान्तिपूर्ण सभा के ऊपर पुलिस ने अन्धाधुन्ध गोलियाँ और लाठियाँ बरसा दीं। इस घटना में छः मज़दूर मारे गये और 200 से ज़्यादा घायल हुए। घटना के दौरान मज़दूरों के रक्त से लाल हुआ कपड़ा ही मेहनतकश वर्ग का झण्डा बना। बम काण्ड में मज़दूर नेताओं को फँसाकर जेल में बन्द कर दिया गया। आठ मज़दूर नेताओं को इस घटना का दोषी क़रार दे दिया गया। मज़दूर वर्ग के इन महान पूर्वजों के नाम थे: अल्बर्ट पार्सन्स, आगस्टस स्पाईस, जार्ज एंजेल, अडोल्फ़ फ़िशर, सैमुएल फ़ील्डेन, माइकल शवाब, लुईस लिंग्ग और ऑस्कर नीबे। इनमें से सिर्फ़ सामुएल फ़िल्डेन ही 4 मई को वारदात के समय घटनास्थल पर मौजूद थे बाक़ी तो वहाँ पर थे भी नहीं! 20 अगस्त 1887 को इस मुक़दमे का फ़ैसला सुनाया गया, जिसमें ऑस्कर नीबे के अलावा सभी मज़दूर नेताओं को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी। 1 मई से शुरू हुआ मज़दूर वर्ग का संगठित संघर्ष यहीं पर नहीं रुका, बल्कि इसके बाद दुनियाभर में ‘काम के घण्टे आठ करो’ का नारा गूँज उठा। हारकर पूँजीपति वर्ग को काम के घण्टे आठ के अधिकार को क़ानूनी मान्यता देकर स्वीकारना पड़ा और मज़दूर वर्ग के नायकों का बलिदान रंग लाया। तब से लेकर अब तक 136 साल बीत चुके हैं, इस दौरान मज़दूर वर्ग ने अनगिनत संघर्षों और क़ुर्बानियों के कीर्तिमान स्थापित किये।
ग़ौरतलब है कि इसी संघर्ष और क़ुर्बानी को याद करते हुए दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में मई दिवस से पहले मज़दूरों-मेहनतकशों के बीच मई दिवस की विरासत को लेकर अभियान चलाया गया। दिल्ली के शाहाबाद डेरी इलाक़े में रहने वाली घरेलू कामगारों, बवाना-वज़ीरपुर के कारख़ाने में काम करने वाले मज़दूरों से लेकर करावलनगर-ख़जूरी में रहने वाले लोगों को मज़दूर वर्ग के इस गौरवशाली इतिहास से परिचित कराया गया। उन्हें यह भी बताया गया कि आज देशभर में किस प्रकार फ़ासीवादी ताक़तें एक तरफ़ तो मज़दूरों के हक़ अधिकारों पर हमले कर रही हैं, लेबर कोड के ज़रिए श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने का काम कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर मज़दूरों को बाँटने के लिए उनके बीच धर्म का ज़हर घोल रही हैं। जब-जब मज़दूरों पर महँगाई, बेरोज़गारी की मार पड़ती है, तब-तब यह फ़ासीवादी निज़ाम जनता के बीच धर्म के आधार पर फूट डालने का काम करता है। लेकिन आज मज़दूर वर्ग के सामने संशोधनवादी राजनीति का भी एक बहुत बड़ा ख़तरा मौजूद है, जो मज़दूरों के बीच रहकर उनकी पीठ पर छुरा मारने का काम करती है। देश में मौजूद तमाम केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें आज इसी काम को अंजाम दे रही हैं। ये ट्रेड यूनियनें मज़दूरों के ग़ुस्से को अर्थवाद की अन्धी गली में भटकने के लिए छोड़ देती हैं। और साल में एक या दो दिन महज़ रस्मी क़वायद के रूप में हड़ताल कर देते हैं। शिकागो के मज़दूरों ने अपनी राजनीतिक माँग को लेकर जो संघर्ष किया था, ये संशोधनवादी ट्रेड यूनियनें उस गौरवशाली संघर्ष की विरासत भुला देने का काम कर रही हैं।
इसलिए आज मज़दूर वर्ग को इन तमाम पूँजीपतियों की दलाल, संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देना होगा। वहीं दूसरी ओर मज़दूरों के अधिकारों पर हमला कर पूँजीपति वर्ग के हित की नंगे रूप से सेवा करने वाली फ़ासीवादी मोदी सरकार के तमाम हथकण्डों को परास्त करते हुए अपनी असल माँगों पर एकजुट होना होगा। देशभर में हो रही तमाम साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध आज हमें सड़कों पर आना होगा। साथ ही आरएसएस-भाजपा की पैदाइश दंगाई भीड़ को भी सड़कों पर सबक़ सिखाना होगा। तभी जाकर हम मई दिवस के शहीदों की विरासत को सही रूप में अपना सकेंगे और एक बेहतर दुनिया बनाने की लड़ाई में मुक़म्मल जीत हासिल कर सकेंगे।

मज़दूर बिगुल, मई 2022


 

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