यह एक गाथा है… पर आप सबके लिए नहीं!
यह गाथा आपमें से बस उनके लिए है जो ज़िन्दगी से प्यार करते हैं और जो आज़ाद इन्सानों की तरह जीना चाहते हैं। आप सबके लिए नहीं, आपमें से बस उनके लिए, जो हर उस चीज़ से नफरत करते हैं, जो अन्यायपूर्ण और ग़लत है, जो भूख, बदहाली और बेघर होने में कोई कल्याणकारी तत्व नहीं देखते। आपमें से उनके लिए, जिन्हें वह समय याद है, जब एक करोड़ बीस लाख बेरोज़गार सूनी आँखों से भविष्य की ओर ताक रहे थे। यह एक गाथा है, उनके लिए, जिन्होंने भूख से तड़पते बच्चे या पीड़ा से छटपटाते इन्सान की मन्द पड़ती कराह सुनी है। उनके लिए, जिन्होंने बन्दूक़ों की गड़गड़ाहट सुनी है और टारपीडो के दागे जाने की आवाज़ पर कान लगाये हों। उनके लिए, जिन्होंने फासिज्म द्वारा बिछायी गयी लाशों का अम्बार देखा है। उनके लिए, जिन्होंने युद्ध के दानव की मांसपेशियों को मज़बूत बनाया था, और बदले में जिन्हें एटमी मौत का ख़ौफ दिया गया था। यह गाथा उनके लिए है। उन माताओं के लिए जो अपने बच्चों को मरता नहीं बल्कि ज़िन्दा देखना चाहती हैं। उन मेहनतकशों के लिए जो जानते हैं कि फासिस्ट सबसे पहले मज़दूर यूनियनों को ही तोड़ते हैं। उन भूतपूर्व सैनिकों के लिए, जिन्हें मालूम है कि जो लोग युद्धों को जन्म देते हैं, वे ख़ुद लड़ाई में नहीं उतरते। उन छात्रों के लिए, जो जानते हैं कि आज़ादी और ज्ञान को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। उन बुद्धिजीवियों के लिए, जिनकी मौत निश्चित है यदि फासिज्म ज़िन्दा रहता है। उन नीग्रो लोगों के लिए, जो जानते हैं कि जिम-क्रो’ और प्रतिक्रियावाद दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उन यहूदियों के लिए जिन्होंने हिटलर से सीखा कि यहूदी विरोध की भावना असल में क्या होती है। और यह गाथा बच्चों के लिए, सारे बच्चों के लिए, हर रंग, हर नस्ल, हर आस्था-धर्म के बच्चों के लिए उन सबके लिए लिखी गयी है, ताकि उनका भविष्य जीवन से भरपूर हो, मौत से नहीं।