Category Archives: असंगठित मज़दूर

आँगनवाड़ीकर्मी हैं सरकारी कर्मचारी के दर्जे की हक़दार!

दमन की इन कार्रवाइयों के बावजूद आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष देश भर में जारी है। आँगनवाड़ीकर्मियों की सरकारी कर्मचारी के माँग के मसले पर कई राज्यों के उच्च न्यायालयों में भी अलग-अलग यूनियनों ने अर्ज़ियाँ दायर की गयी हैं। इस मद्देनज़र हाल में कई महत्वपूर्ण बयान और फ़ैसले आये हैं। वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि आँगनवाड़ीकर्मियों को ग्रेच्युटी दी जानी चाहिए और इस दिशा में केन्द्र व राज्य सरकारों को ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए। अब बीते 30 अक्टूबर को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा का ज़रूरी फैसला आया है जिसमें केन्द्र व सभी राज्य सरकारों को यह आदेश दिया गया है कि वे आँगनवाड़ीकर्मियों को नियमित करने की दिशा में ठोस योजना बनाये। इसके साथ ही इस आदेश में यह भी बात कही गयी है कि जबतक आँगनवाड़ीकर्मियों को नियमित करने की योजना लागू नहीं होती है तब तक उन्हें ग्रेड 3 व ग्रेड 4 रैंक के सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाला वेतन और तमाम अन्य सुविधाएँ मुहैया करायी जायें। इस फ़ैसले को राज्य सरकार और केन्द्र सरकार द्वारा तुरन्त संज्ञान में लेते हुए इसपर कारवाई शुरू की जाये।

राजधानी दिल्ली में एकजुट होकर अधिकारों के लिए आवाज़ उठायी मनरेगा मज़दूरों ने

मोदी सरकार द्वारा फण्ड रोकने से मनरेगा मज़दूर बेहद बुरे हाल से गुज़र रहे हैं। मोदी सरकार और राज्य सरकार की नूराँकुश्ती में मज़दूर रोज़गार के अधिकार से वंचित हैं। जबकि मनरेगा एक्ट की धारा 27 किसी विशिष्ट शिकायत के आधार पर “उचित समय के लिए” अस्थायी निलम्बन से अधिक कुछ भी अधिकृत नहीं करती है। यह निश्चित रूप से केन्द्र को उन श्रमिकों के वेतन को रोकने के लिए अधिकृत नहीं करता है जो पहले से ही काम कर चुके हैं।

नया साल मज़दूर वर्ग के फ़ासीवाद-विरोधी प्रतिरोध और संघर्षों के नाम! साम्राज्यवाद-पूँजीवाद के विरुद्ध क्रान्तिकारी संघर्षों के नाम!

यह सच है कि बीता साल भी पूरी दुनिया में मेहनतकश अवाम के लिए प्रतिक्रिया और पराजय के अन्धकार में बीता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि कुछ भी स्थायी नहीं होता। यह समय पस्तहिम्मती का नहीं, बल्कि अपनी हार से सबक लेकर उठ खड़े होने का है। रात चाहे कितनी ही लम्बी क्यों न हो, सुबह को आने से नहीं रोक सकती। इस नये साल हमें सूझबूझ, जोशो-ख़रोश और ताक़त के साथ गोलबन्द और संगठित होने को अपना नववर्ष का संकल्प बनाना होगा। फ़ासीवाद के ख़िलाफ़, साम्राज्यवाद-पूँजीवाद के ख़िलाफ़, हर रूप में शोषण, दमन और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ समूची मेहनतकश जनता को संगठित करने के काम को नये सिरे से, रचनात्मक तरीक़े से अपने हाथों में लेना होगा।

बवाना के मज़दूर की चिट्ठी

सुबह जगो तो काम के लिए, नहाओ तो काम के लिए, खाओ तो काम के लिए, रात बारह बजे सोओ तो काम के लिए। ऐसा लगता है की हम सिर्फ काम करने के लिए पैदा हुए हैं ‌तो हम फिर अपना जीवन कब जियेंगे। महीने की सात से दस तारीख के बीच तनखा मिलती है, पन्द्रह तारीख तक जेब में पैसे होते हैं तो अपने बच्चों के लिए फल या कुछ ज़रूरी चीजें ले सकते हैं । उसके बाद हर दिन एक-एक रुपया सोचकर खर्च करना पड़ता है। महीना ख़त्म होते-होते ये भी सोच ख़त्म हो जाती है। अगर कहीं बीमार पड़ गये तो क़र्ज़ के बोझ तले दबना तय है।

अदालत ने भी माना : आँगनवाड़ीकर्मी हैं सरकारी कर्मचारी के दर्जे की हक़दार!

यह फ़ैसला लम्बे समय से संघर्षरत आँगनवाड़ीकर्मियों के संघर्ष का ही नतीजा है। कर्मचारी के दर्जे की माँग की हमारी लड़ाई को आगे ले जाने के में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ देश भर की आँगनवाड़ीकर्मियों को इसके लिए बधाई देती है। लेकिन हमें कोर्ट के इस आदेश मात्र से निश्चिन्त होकर नहीं बैठ जाना होगा। देश भर में आन्दोलनरत स्कीम वर्करों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किस प्रकार एक स्वतन्त्र और इन्क़लाबी यूनियनें खड़ी की जायें और अलग-अलग राज्यों में बिखरे हुए इन आन्दोलनों को एक सूत्र में पिरोया जाये। आँगनवाड़ीकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने के लिए नीति में ज़रूरी बदलाव केन्द्र सरकार के हाथों में है। इसके लिए केन्द्र सरकार के खिलाफ़ संघर्ष को तेज़ करने और देशभर में आँगनवाड़ीकर्मियों को एकजुट करने की ज़रूरत है।

गिग व प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के मज़दूरों के श्रम अधिकारों को छीनने के लिए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार लायी ख़तरनाक मसविदा क़ानून

इसका मुख्य लक्ष्य यह है कि इन गिग मज़दूरों और प्लेटफॉर्म कम्पनियों के बीच के रोज़गार सम्बन्ध को ही नकार देना, ताकि इन मज़दूरों की मज़दूर पहचान ही उनसे छीन ली जाय। इसका प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के पूँजीपतियों को क्या फ़ायदा होगा? इसका यह फ़ायदा होगा कि औपचारिक तौर पर मज़दूरों को जो थोड़े-बहुत श्रम अधिकार प्राप्त हैं, उन पर इन गिग मजदूरों का कोई दावा नहीं होगा। यानी पुराने श्रम क़ानूनों के तहत और नये फ़ासीवादी लेबर कोड के तहत ये मज़दूर आयेंगे ही नहीं।

आँगनवाड़ी कर्मियों ने लोकसभा चुनाव में मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र पक्ष को मज़बूत करने का निर्णय लिया!!

मोदी सरकार के पिछले 10 साल देश मेहनतकश अवाम के लिए नर्क़ साबित हुए हैं। भाजपा और मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतियों की वजह से जनता के ऊपर बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता का ऐसा कहर टूटा है, जिसकी मिसाल हमारे देश के इतिहास में मौजूद नहीं है। नोटबन्दी, जीएसटी, कोरोना महामारी के दौरान का कुप्रबन्धन, राफ़ेल घोटाला, अडानी घोटाला, इलेक्टोरल बॉण्ड महाघोटाला, ईवीएम घोटाला, आसमान छूती महँगाई और बेरोज़गारी दर, साम्प्रदायिकता का ज़हर, मज़दूर विरोधी लेबर कोड, जन आन्दोलनों का बर्बर दमन : यही नेमतें हैं 10 साल के मोदी राज की! आज अमीरों और धन्नासेठों की सबसे चहेती पार्टी भाजपा यूँ ही नहीं है और हजारों करोड़ रुपए का चन्दा इन धन्नासेठों ने मोदी को समाजसेवा के लिए तो दिया नहीं है। ज़ाहिरा तौर पर इसका मतलब ही यह है कि भाजपा इस दौर में पूँजीपति वर्ग की सबसे कारगर तरीक़े से सेवा कर सकती है और पूँजीपरस्त नीतियों को डण्डे के ज़ोर पर लागू करवा सकती है। यह एक फ़ासीवादी पार्टी है और इसलिए जनता की सबसे बड़ी दुश्मन है।

दिल्ली के करावल नगर में जारी बादाम मज़दूरों का जुझारू संघर्ष : एक रिपोर्ट

हड़ताल मज़दूरों को सिखाती है कि मालिकों की शक्ति तथा मज़दूरों की शक्ति किसमें निहित होती है; वह उन्हें केवल अपने मालिक और केवल अपने साथियों के बारे में ही नहीं, वरन तमाम मालिकों, पूँजीपतियों के पूरे वर्ग, मज़दूरों के पूरे वर्ग के बारे में सोचना सिखाती है। जब किसी फ़ैक्टरी का मालिक, जिसने मज़दूरों की कई पीढ़ियों के परिश्रम के बल पर करोड़ों की धनराशि जमा की है, मज़दूरी में मामूली वृद्धि करने से इन्कार करता है, यही नहीं, उसे घटाने का प्रयत्न तक करता है और मज़दूरों द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में हज़ारों भूखे परिवारों को सड़कों पर धकेल देता है, तो मज़दूरों के सामने यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि पूँजीपति वर्ग समग्र रूप में समग्र मज़दूर वर्ग का दुश्मन है और मज़दूर केवल अपने ऊपर और अपनी संयुक्त कार्रवाई पर ही भरोसा कर सकते हैं।

‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण : समाहार रपट

3 मार्च को दिल्ली में यात्रा के समापन के तौर पर होने वाले विशाल प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया, बवाना औद्योगिक क्षेत्र में यात्रा के समर्थन में हुई हड़ताल को कुचलने के लिए गिरफ्तारियाँ और हिरासत में यातना तक का सहारा लिया, जन्तर-मन्तर से कई लहरों में हज़ारों लोगों को बार-बार हिरासत में लिया और शहर में जगह-जगह जत्थों में आ रहे मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं को रोकने की कोशिश की और जन्तर-मन्तर पर कई दफ़ा लाठी चार्ज तक किया। लेकिन इससे भी वह प्रदर्शन को रोकने में कामयाब नहीं हो पायी। जन्तर-मन्तर पर तो बार-बार प्रदर्शन हुए ही, दिल्ली के करीब आधा दर्जन पुलिस थानों में भी प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शन का सन्देश सीमित होने के बजाय पूरे शहर में और भी ज़्यादा व्यापकता के साथ फैला।

नगर निगम गुड़गाँव के ठेका ड्राइवरों को हड़ताल की बदौलत आंशिक जीत हासिल हुई

वेतन और पी.एफ. के भुगतान न होने के चलते न सिर्फ़ ठेका ड्राइवर बल्कि ठेके पर काम करने वाले सफ़ाई, सिक्योरिटी गार्ड, मैकेनिक सभी हड़ताल में शामिल हुए थे। वैसे तो इस इकोग्रीन कम्पनी द्वारा ठेके पर कार्यरत मज़दूरों के श्रम कानूनों के सभी अधिकारों की जिस तरह से खुलेआम धज्जियाँ नगर निगम गुड़गाव की नाक के नीचे उड़ाई जा रहीं है। ज़ाहिर है, यह बिना प्रशासन, सरकार और ठेकेदार की मिलीभगत के सम्भव नहीं है। इसके लिए ठेका ड्राइवरों को इस सच्चाई को समझना होगा और आने वाले दिनों में इसके लिए कमर कसनी होगी। साथ ही विभिन्न सेक्टर के मज़दूरों के साथ इस मुद्दे पर एकता बढ़ाकर आगे बढ़ना होगा।