मनरेगा स्त्री मज़दूरों का नारा : पूरे साल काम दो! काम के पूरे दाम दो!! काम नहीं तो बेरोज़गारी भत्ता दो!
मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के कारण मनरेगा के बजट में लगातार कटौती की जा रही है। बजट कटौती का सीधा मतलब श्रम दिवस के कम होने और रोज़गार के अवसरों में भी कमी है। कैथल में मनरेगा भ्रष्टाचार से भी जाहिर है कि बजट का एक बड़ा हिस्सा भी भ्रष्ट अफ़सरशाही की जेब में चला जाता है। यूनियन से अजय ने बताया कि ज़ाहिर है कि मनरेगा की योजना को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाकर लागू करने से ही गाँव के ग़रीबों की सारी समस्याएँ हल नहीं हो जायेंगी और मनरेगा की पूरी योजना ही गाँव के ग़रीबों को बस भुखमरी रेखा पर बनाये रखने का काम ही कर सकती है। ज़रूरत इस बात की है कि सच्चे मायने में रोज़गार गारण्टी, पर्याप्त न्यूनतम मज़दूरी, सभी श्रम अधिकारों समेत गाँव के ग़रीबों को प्राथमिक से उच्च स्तर तक समान व निशुल्क शिक्षा, समान, स्तरीय व निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएँ, आवास की सरकार सुविधा, और सामाजिक सुरक्षा मुहैया करायी जाय। यह काम मौजूद पूँजीवादी व्यवस्था में कोई सरकार नहीं करती क्योंकि पूँजीपतियों की सेवा करने से उन्हें फुरसत ही कहाँ होती है! ग़रीबों की सुध लेने का काम मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था नहीं करने वाली। लेकिन तात्कालिक माँग के तौर पर मनरेगा में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की लड़ाई मज़दूरों के एक रोज़मर्रा के हक़ की लड़ाई है, जिसे आगे बढ़ाने का काम यूनियन कर रही है।